Saturday, December 23, 2017

खलनायक तो बहुत है जननायक बस एक

#खलनायक_तो_बहुत_है_जननायक_बस_एक

काफी दिन से डॉ साहब की पोस्ट लिखने छोड़ दिया क्योंकि कुछ बातों से मन किरकिरा हो गया था!लेकिन कल की घटना के पश्चात कई लिखना चाहा ओर लिखा भी लेकिन पोस्ट नही किया!
अंत मे जाकर दिल माना ही नही ओर लिखने पर मजबूर कर ही दिया!

"खलनायक तो बहुत है, जननायक बस एक
उनका राजस्थान में करें हम मिलकर अभिषेक !

सत्य अहिंसा क्रांति का ,जो देता सन्देश
वही किरोड़ी लाल है,जो सबके मन में शेष ।

सुनता जनता की फरियाद 24*7 है,
रहता हर दम जो जनता के बीच है ।

लाखो युवाओ का जो सरताज है,
बड़े बुजुर्गों का जो जानता हमराज है ।

आंधी जनता की है फैली चारो ओर
सिर्फ किरोड़ी लाल का गाँव गाँव में शोर ।

देख नही सकता जनता को दुखी वो लाल है,
जान की परवाह किये बिना चलता वो किरोड़ी लाल है!

आते दिन भर लोग लेकर फरियाद है,

बिना सोचे समझे लगता उनके साथ है,

करें फैसला आज हम अब करें बड़ी तैयारी
लाल को राजस्थान में अब बैठाने की बारी ।

खलनायक तो बहुत है जननायक बस एक

#पहचान_एक_जन_सेवक_की:-#डॉ_किरोड़ी_लाल

Friday, July 28, 2017

परीत का बदला भाग-3

परीत का बदला,भाग-3
घोडल्या का शरीर अपने काबू में नही आ रहा था लग रहा था जैसे उसके ऊपर किसी आत्मा ने अपना कब्जा पा लिया हो जिसकी बजह से वह अपना नियंत्रण खो रहा हो! उसके शरीर की कपकपी लगातार बढ़ती ही जा रही जा रही थी!वह अपना आपा खो रहा था!
ग्रामीण निवासी भक्त जन भोमिया बाबा के जय कार लगा रहे थे!
शिवल्या पटेल भोमिया बाबा को शांति से आने का आग्रह करने लगे थे!शिवल्या पटेल ही भोमिया बाबा के आने पर लोगो की समस्या को बाबा को बताते थे और बाबा के द्वारा बताई गई बातों को दुखिया(पीड़ित) व्यक्ति को समझाते थे!
शिवल्या पटेल ने थोड़े तेज स्वर ने कहा" पटेल थ्यारी काई समस्या है बाबा के सामने रख बाबा थ्यारी समस्या कु जड़ सु खत्म कर देगो!"
इसी बीच मे भोमिया बाबा ने धीमे स्वर बदली हुई आवाज में कहा "आज किस्या याद कर लियो कुन पे विपदा आ गयी मैं तो छोटा सा देव हु!"
गांव के सभी छोटे एवम बड़े लोग बाबा से उम्मीद लगाए बैठे थे उनकी उम्मीद भी जायज थी!
शिवल्या पटेल ने बाबा को मानते हुए विनती स्वरूप में कहा" बाबा थ्यारा हाथ बहुत लंबा आप चाहे वो कर सकते है हम तो आपके सामने कीड़े मकोड़े है!"
शिवल्या पटेल में सभी से आग्रह करते हुए कहा" सभी एक एक करके बाबा के सामने अपनी बात रखे"!
रामु काका जो अपने पुत्र सोनू को लेकर काफी चिंतित थे बेटे को लेकर आगे आये और करुणा रूपी भाव लेकर बाबा के सामने अपने पुत्र को स्वस्थ्य करने की गुहार लगा रहे थे!
"बाबा हमसे काई गलती होगी जो तेरा बालक न कु इतना परेसान कर रो है,सब जगह दिखा लिया कुछ फर्क ही को पड़ रहा,अब तेरी शरण मे आयो हु म्हारी लाज रख दे"! काका का गला रुन्दा हुआ प्रतीत हो रहा था उनकी आवाज में पुत्र का दुख छुपा हुआ था!
गोठिया इस बात को सुनकर भृकुटि चढ़ाते हुए रामु काका ओर सोनू को देख रहे थे और एक गहरी सांस लेकर "देख पटेल तेरा छोरा कु तो मैं ठीक कर दूंगा या के बदले में काई कर सके"
रामु काका जो इतने रुपये अपने बेटे पर खर्च कर चुके थे उन्होंने पुत्र ठीक होने की सुनते ही थोड़े खुशी जैसे भाव लेते हुए"बाबा आप जो कहोगे वो कर दूंगा पर छोरा कु सही कर दो आप कु तो सब पतो है कब सु परेसान है!
पीछे लोगो मे आपसी वार्तालाप चल रहा था हो सकता है सोनू के उपली(भूत प्रेत) की बीमारी होय जेसू ही बाबा आज इतना गुस्सा में आ रहा है!सभी लोग एक दूसरे से कानाफूसी कर रहे थे!
शिवल्या पटेल भी बाबा से सोनू को ठीक करने का आग्रह कर रहे थे!
भोमिया बाबा ने हाथ आगे बढ़ाते हुए खांडा(तलवार) की तरफ इशारा किया ओर भभूत लाने का इशारा किया!
शिवल्या पटेल ने खांडा हाथ मे दे दी और भभूति रामु काका को दे दी!
भोमिया बाबा"पटेल या भभूत कु छोरा के 4 बार लगा दीज्यो ओर 2 दिन याकू थान पर परिक्रमा करवा लें जाना या ठीक हो जायेगो"!
रामु काका को संतुष्टि मिल गयी थी पर एक सवाल उनके मन मे अभी भी कुलबुला रहा था उन्होंने पूछना ही ठीक समझा" बाबा या छोरा के उपली है या डॉक्टर की बीमारी"!
भोमिया बाबा ने सोनू की तरफ देखते हुए कहा" ना उपली है ना डॉक्टर की या के तो घर की बीमारी है तेरो अहूत(घर का देवता) कर रहा है वाकू मैं देख लूंगा तू जो मैंने काम बतायो है वाकू कर या सही हो जायेगो!
अब रामु काका के मन मे सब्र आ गया था भोमिया बाबा ने इसी तरह सब की गुहार सुनी!
जोर से सब ने भोमिया बाबा की जयकार लगाई!
सभी खुशी खुशी घर आ गए
नोट:- कहानी अभी अधूरी है!कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे ताकि ओर बेहतर लिख सकु!

लेखक:- जयसिंह नारेड़ा

Friday, July 21, 2017

मीणा शायरी

ना डरते है हम #तलवारो से,
ना डरते है हम #कटारो से,
ना डरे है हम कभी #सैकड़ो और #हजारो से,
हम मीणा वो योद्धा है,
#दुश्मन भी कांपे जिसकी #ललकारो से,
#हस्ती अब अपनी हर #कीमत पर #सवारेंगे,
#वादा है मेरा की #हम नहीं #हारेंगे..!!
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हम छोरे मीणा के ...
हम पे किस का जोर...
जो हमसे टकराव गा..
दे गे साले को फोड़..!!
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मीणा बुरा या दुनिया बुरी
   फैसला हो ना सका
मीणा तो सबका होगया
कम्बखत मीणा का कोई ना हो सका!
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चलिए पढ़ाई की बात करते है!

#ग्रीनहाउस की गैसे याद करने की ट्रिक

#मीनाओ_का_जलवा
मी मीथेन (CH4)
ना -नाइट्रस आक्साइड (N2O)
ओ-ओजोन(O3)
का-कार्बन डाइ आक्साइड (CO2)
जलवा- जलबाष्प
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अब सीधा-सादा दिखता हु फिर मेरा रोल बदल जाएगा,
मीणा हु अगर जोश में आ गया तो माहौल बदल जाएगा,
जिस दिन उठा लिया मैंने हथयार,
सारी दुनिया का इलाज कर दुंगा,
जिस दिन आ गया बदमाशी पे मीणा,
उस दिन ब्याज समेत हिसाब कर दुंगा..!!
!! मीणा !!
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"रहता जहाँ-जहाँ मीणा वहां-वहां मीणाओ का राज़ है,
जलती सारी दुनिया हमसे फिर भी सर पर ताज है,
डरता कभी न मेहनत से, रहता हमेशा बिंदास है,
वैसे तो है सीधा साधा, अंदाज भी बड़ा ख़ास है,
लेकिन कोई अगर गलत करे तो करता उसका सत्यानाश है,
सची इसकी दोस्ती साचा इसका प्यार है,
दे देता जान अपने यारो के लिए ऐसा इसका प्यार है,
मीठे बोल बोलदे कोई मीणा बन जाता उसका यार है,
रहता जहाँ-जहाँ मीणा वहां-वहां मीणा का राज़ है,
सही-सही काम करता हमेशा, बड़ो को इस पर नाज है,
हर कोई खुश हो जाये हमेशा करता ऐसा काज है,
अतिथि का आदर सत्कार करना ही काज है,
गलत काम करने में आती इसको हमेशा लाज है,
रहता जहाँ-जहाँ मीणा वहां-वहां मीणा का राज़ है..."

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तेवर तो "मीणा" वक्त आने पे दिखायेंगे,
शहर तुम खरीदलो उस पर हुकुमत "मीणा"चलायेंगे..!!       
                       !!मीणा!!
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"मत लडो आपस मेँ नहीँ तो बिखर जाओगे
मोत आने से पहले खुद की नजरोँ मेँ मर जाओगे
हो मीणा तो मिसाल बनकर उभरो दुनिया के लिए
नहीँ तो इतिहास के चंद पन्नोँ मे सिमट जाओगे..!!"
                 !!#मीणा!!
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सुन ‪‎#छोरी #पार्टिया‬ होती होगी ‎#तेरे #घर‬ पर...
‎#मीणाओ के घर तो ‎#पंचायत‬ होती है...!!#मीणा!!

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#मीणा #पंजे को #कमल बना देते,
#मीना #काटों को #फुल बना देते,
लेकिन #ऐकता नही है #मीनाओ में,
नहीं तो मीणा को #मुख्यमंत्री क्या,
देश का #प्रधानमंत्री बना देते .!!
|!!#The_Great_Meena!!
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जिसे टकराने का शौक है वो टकरा के देख ले,
भला आँधियोँ से पहाङ उखङ नहीँ जाते,
इसलिए जरा सँभल कर चला करो हम मतवालोँ से,
हम "#मीणा" यूँ ही नहीँ कहलाते..
!!#Meena_The_Great!!
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वो क्या #उठाएंगे #तलवार,
जिनके #बाजू में #दम नही,
वो क्या #चलाए #गोली,
जिनके #सीने में #जोर नही ॥
#दबाते हे #बेजुबान को,
कभी #मर्दों से #लड़ कर #देख,
#खंजर भी #तेरा और #टुकड़े भी #तेरे,
#मीणा है हम कोई #हंसी #खेल नही..
🙅🙅🙅!! मीणा !!🙅🙅🙅
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लोहा टाटा का,
जूता बाटा का,
छोरा #मीणा का,
दुनिया में मशहूर है!
***!!मीणा!!***

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#मीणाओ से #पंगा नही #लेना #चाहिए,
क्योकी:-
जिन #तुफानो मेँ लोगो के #घर #उजड जाते है,
उन तुफानो मेँ #मीनाओ की #औरतें अपने #लहँगे_लुगड़ी  #सुखाती है!

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लेखक:- जयसिंह नारेड़ा

Friday, June 9, 2017

अधूरी प्रेम कहानी-भाग-4

कविता बुक लेने अंदर गयी,मैं उसके पीछे पीछे ही अंदर तक पहुच गया!
कविता बुक ढूंढ रही थी!मेरी तरफ उसने एक पल भी नही देखा,उसका ये बेरुखापन मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था!
मैं बस उसे देखा ही जा रहा था वो किताब ढूढ़ने में व्यस्त थी!
अब मेरे सब्र का बांध टूट चुका था,मैने कविता का हाथ पकड़ लिया जिसका उसने विरोध नही किया लेकिन मेरी तरफ से नजर हटा ली!
"यार कविता मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही है मुझसे बात क्यो नही कर रही हो मुझे तेरा इस तरह का व्यवहार बिल्कुल रास नही आ रहा है" मैंने अपने रुन्दे हुए गले से अपनी बात कह दी!
कविता ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नही दी और अपने काम मे व्यस्त रही!
आखिर कब तक अपना सब्र रख पाता!
मैंने कविता का हाथ पकड़ लिया इतने में ही अंकल ने आवाज लगा दी "बेटा कितनी देर लगाओगी हमे चलना भी है जल्दी आओ"!
मेरी तरफ मुड़ते हुए कविता ने अलमारी में रखी गिफ्ट जो मैंने उसे पहली मुलाकात पर दी वो अपने बैग में रख ली ओर एक डायरी मुझे थमा दी!
मैं डायरी खोलने ही वाला था कि मेरे हाथ कविता ने रोक लिए ये कहते हुए की"इस डायरी को तुम्हे जब भी टाइम मिले अकेले में पढ़ना मैंने हमारी यादे इसमे संभाल कर रखी है अब हमारा रिश्ता खत्म हो चुका है मुझसे कभी मिलने की कोशिश मत करना,हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मैं तुम्हारे लायक नही थी!"इतना कह कर कविता की आंखों में आंसू आ चुके थे उसकी आवाज में बिछड़ने का दर्द साफ नजर आ रहा था!
मन ही मन टूट रहा था उसे समझा नही पा रहा था कैसे बताऊ की मैं उससे बेपनाह मोहब्बत करता हु बस मेरे कहने की हिम्मत नही हो पा रही थी!
वो अपना सामान पैक कर चुकी थी कमरे से निकलने लगी मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया!गले लग कर दोनों रोने लगे गए!
ओर एक दम से अलग हो गयी और अपने कदम गाड़ी की तरफ बढ़ा दिए मेरी तरफ देखना भी उसने जरूरी नही समझा!
मैं अपना उतरा हुआ मुह लेकर बाहर आ गया उसकी मम्मी ने गेट लगा दिया और वे गाड़ी में बैठ गयी!
गाड़ी जिस जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे लग रहा था मेरी दिल की धड़कन मुझसे दूर होती जा रही हो जैसे मेरी सांसे मुझसे दूर होना चाहती हो!
गाड़ी तो आंखों से ओझल हो गयी लेकिन वो तश्वीर अभी तक आंखों में बनी हुई थी!
मैं सीधे अपने रूम में आ गया और अब अपने आपको नही रोक पाया उस डायरी को देख देख कर रो रहा था!
आंखों में तो जैसे सैलाब सा आ गया था आंसुओ को रोक ही नही पा रहा था!
रोते रोते कब आंख लग गयी पता ही नही चला!
शाम को 5 बज रहे थे कि दोस्त की कॉल आ रही थी जिसने मेरी नींद को उड़ा दी थी!
थोड़ी देर बात करने के बाद अपना मुह धोकर टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया!
मेरी नजर उस डायरी पर पड़ी ये सोच कर उठा ली इसमे क्या लिखा है ये पढ़ लू!
डायरी को काफी अच्छे से सजा कर रखा गया था उस पर लिखे शब्दो की सजावट भी बहुत अच्छे ढंग से की गई थी!
जैसे मैंने पहले पेज को खोला उस पर मेरा नाम बहुत सुंदर सजावट के साथ लिखा हुआ था!
कविता मेरा नाम नही लेती थी लेकिन में मेरा नाम देख कर बहुत अच्छा लग रहा था!
पेज पर बड़ा सा दिल बना रखा था जिस पर मेरा नाम उभरते हुए शब्दों में लिखा हुआ था!
उसके नीचे एक दो शायरियां लिख रखी थी!मेरे मन मे उसे पढ़ने की इच्छा जागृत होने लगी!
माँ ने आवाज लगा ही दी " बेटे खाना खा ले पहले बाकी काम बाद में कर लेना"!
रूखे मन से डायरी को बंद करके छुपकर आलमारी में रख दी!
जब से कविता गयी कही मन नही लग रहा था!उसे बार बार कॉल किये जा रहा था लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी कविता ने अपना नम्बर बन्द करके रखा हुआ था!
काफी मेसेज भी किये थे उसे लेकिन किसी का रिप्लाई नही आ रहा था!
उसके कोई जबाव नही आने से काफी परेसान हो रहा था समझ नही आ रहा था क्या किया जाए
आखिर पल पल उसकी चिंता सता रही थी !
वक्त अपनी रफ्तार से निकल रहा था उसकी शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे वैसे वैसे मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी!
मैं अपने आप को टूटता हुआ देख रहा था ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ मेरे से मेरे सामने ही छीना जा रहा है और मैं दर्शक की भांति देख रहा हु!
दर्शक भी ऐसा जो सिर्फ देख सकता हो कुछ कर नही सकता हो!
बुधवार का दिन था,लगभग दोपहर के 3 बजे का टाइम हो रहा था! मैं अपने कमरे में सो रहा था!तभी नींद को झकोरते हुए मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी!
ये किसी ओर का फ़ोन नही कविता का फ़ोन आ रहा था!
जाइयेगा नही कहानियों का सफर जारी रहेगा
शेष अगली क़िस्त में.....
-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा

Thursday, April 27, 2017

अधूरी प्रेम कहानी -भाग-3

उसके पिता उसके लिए लड़का ढूंढ रहे थे,वो अक्सर बताया कहती थी कि "पिताजी सरकारी नोकरी वाला लड़का ढूंढ कर मेरी शादी करने वाले है तुम आकर मेरे घरवालो से बात करो"! ऐसा कहते कहते रोने लग जाया करती थी!
प्यार तो मैं भी बहुत करता था उससे लेकिन उसके ओर मेरे घरवालो से बात करने की हिम्मत मेरी नही हो रही थी!
आखिर किस तरह से बात करू ये समझ नही पा रहा था एक उसे खोने का डर ऊपर से घरवालो से बात करने का डर मुझे अपने आप मे कमजोर बनाये जा रहा था!
खाली बैठे दिमाग मे हर वक्त यही चलता रहता कि किस तरह बात करु घरवालो से,कैसे राजी करू ओर नही माने तो मेरा क्या होगा"!
शाम का समय था मैं अपने कमरे में सो रहा था,मन्द गति से ठंडी ठंडी हवाएं नींद से खड़े होने नही दे रही थी! मन मेरा भी नही था खड़ा होने मुझे तो बस नींद में कविता ही नजर आ रही थी!
अचानक मेरी नींद को खदेड़ते हुए मोबाइल की घण्टी बजी!
देखा तो कविता का ही कॉल आ रहा था,कविता का कॉल देखकर नींद कहा गायब हो गयी पता ही नही चला!
हेलो!कविता कैसी हो.........
कविता फ़ोन पर रो रही थी कुछ बोल नही पा रही थी!
"क्या हुआ कविता तुम रोई तो तुम्हे मेरी कसम है"मैंने अपनी आवाज को तेज करते हुए कहा!
एक दम सन्नाटा सा छा गया कविता कसम देते ही चुप हो गयी थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी!
"बताओ कविता क्या हुआ कुछ बोल तो सही यार आखिर हुआ क्या है??मैंने जोर देते हुए कहा
कविता ने दुखी मन से रुन्दे गले से अपनी बात कह दी"आज पापा मेरे लिए लड़का देख कर आये है तुम कब बात करोगे,मैं सिर्फ तुमसे शादी करना चाहती हु ओर ऐसा नही हुआ तो मैं मर जाऊंगी"!
इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया
मेरा मन भी अब रोने का होने लगा था मैं नही चाहता था कि कविता मेरे से दूर जाए लेकिन बात करने की हिम्मत मेरे अंदर नही थी!
कविता भी समझ रही थी कि मैं बात नही कर पाऊंगा
इसलिए उसने अब अपना फ़ोन बन्द कर लिया था!
मैं बहुत परेसान था!
एक दिन कविता के घरवाले गाड़ी में अपना सामान जमा रहे थे!
मैने उत्सुकता से पूछ ही लिया"अंकल कहा जा रहे हो सुबह सुबह??
अंकल"बेटा कविता की शादी है तो गांव से ही करने का विचार है इसलिए 2 महीनों के लिए गांव ही जा रहे है तुम्हारे पापा को मैंने बोल दिया है तुम भी साथ आना उनके"
ये सब सुनकर मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी थी कविता को देखा तो मुझसे नजरे नही मिला रही थी!
उसका बेरुखापन मुझे अंदर ही अंदर जला रहा था आंखों आंसू आने की देरी थी मन ही मन बहुत रो रहा था!
ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ मेरे सामने ही खत्म हो रहा हो जैसे कोई मेरी सांसो को मुझसे छीन रहा हो!
एक बार पुनः मैने अंकल से पूछा"अंकल लड़का क्या करता है क्या कविता राजी है शादी के लिए,अभी तो इतनी ज्यादा उम्र भी नही हुई है!"एक स्वास में अपनी बात कह दी!
अंकल ने बड़े प्यार से कहा"बेटा लडकिया पराया धन होती है इनकी खुशी के लिए ही मा बाप इतनी मेहनत करता है, लड़का अध्यापक है इसे बहुत खुश रखेगा"!
"अंकल मैं भी तो जवान हु मेरे ही शादी कर दो इसकी मैं भी तो खुश रखूंगा ओर तुम्हारे पास भी रहेगी जब चाहो मिल लेना"मजाकिया अंदाज में एक तरह से मैने अपनी बात कह दी!
इस बार अंकल ने भी जबाव मजाकिया अंदाज में दिया"बात तो सही है लेकिन तुम तो बेरोजगार हो और इसके नखरे कैसे उठाओगे,पढ़ लिख कर नोकरी लग जाओ तब जाकर तुम्हारा भी ब्याह हो जाएगा,इतनी जल्दी क्यो हो रही है तुम्हे?'"
अब अंकल की बातों का मेरे पास कोई जबाव नही था समझ नही आ रहा था किस तरह समझाऊ की मैं कविता से बहुत प्यार करता हु उसके बिना खुश नही रह पाऊंगा!
मैं कविता की एक झलक पाने के लिए बेताब हो रहा था और वो मुझे देखना तक नही चाह रही थी!
उसका इस तरह का व्यवहार मुझे अंदर ही अंदर तोड़ रहा था मन ही मन दुःखी हो रहा था!
लगभग सारा सामान रख दिया था अब बस जाने की तैयारी थी!
अंकल गाड़ी में बैठकर हॉर्न देने लगे और जोर से आवाज लगाई"अरे जल्दी करो फिर दोपहर हो जाएगी"
इतने में ही कविता का दीदार हो चुके थे!
उसके चेहरे की मुस्कुराहट तो मानो गायब ही हो चुकी थी मेरे से नजरे नही मिला पा रही थी!
हल्का पिले रंग का सूट सलवार उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे!हाथ मे लाल रुमाल लिए हुए अपनी आंखों को पोछ रही थी!
उसके चेहरे को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बहुत रो रही हो लेकिन मेरे सामने सामान्य रहने का नाटक कर रही हो!
तभी मैने उससे बात करने के बहाने कहा"कविता मेरी एक बुक है तुम्हारे पास उसे दे दो मैं पढ़ लूंगा तुम तो पता नही आओगी या नही"!
वो बुक लेने अंदर गयी मैं उसके पीछे ही अंदर चला गया!


जाइयेगा नही कहानियों का सफर जारी रहेगा.........


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

परीत का बदला भाग-2

शनिवार का दिन था,शाम के समय सभी लोग भोमिया के थान(स्थान) पर इकट्ठा हो गए थे!इकट्ठा क्यो ना हो खौफ जो था भोमिया का लोगो के मन मे!
कहा जाता है कि भोमिया बाबा के थान पर घर मे से एक व्यक्ति का आना आवश्यक है!
लोगो के दिल और दिमाग मे भोमिया बाबा के प्रति अटूट प्रेम और श्रद्धा देखने को मिल रही थी! अजीब सी खुशी लोगो के मन को ओर प्रफुल्लित कर रही थी वो खुशी थी कि आज उन्हें भोमिया बाबा की झलक देखने को मिल पाएगी!
रामु काका भी अपने परिवार के साथ बाबा के थान पर आ गए!
काका को आज उम्मीद थी कि सारी समस्या खत्म हो जाएगी!
काका आज अटवाई(8 पूआ) ओर खीर का प्रसाद के साथ गोठिया द्वारा बताई गई सभी सामग्री बड़े ढंग से सजाकर दोड़ली(टोकरी) में लाल कपड़े से ढक कर लाये थे!
थान पर सभी भक्त घेरा बनाकर बैठे हुए थे बाकी आम जन नीचे बैठी थी!
थान एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे था जो लोगो को धूप से भी बचाता था!
ऐसा भी कहा जाता है इस नीम के पेड़ के पत्ते आमजन के लिए तोड़ना भी मना है यदि ऐसा किया जाता है तो भोमिया बाबा नाराज हो जाता है!माना जाता है कि भोमिया बाबा इसी में निवास करते है!
जैसे जैसे शाम ढल रही थी वैसे वैसे लोगो की भीड़ बाबा के थान की ओर उमड़ रही थी!
अच्छी खासी भीड़ आ चुकी थी भीड़ का नजारा देखते हुए भक्तो ने भजन गाना शुरू दिया था,जिन लोगो के समस्या थी उन्हें आगे बैठाया गया था ताकि फरयाद सुनने में आसानी हो!
ढांक बज रही थी भक्तो के भजन काफी तेज आवाज में सुनने को मिल रहा था!तभी एक बूढ़े बुजुर्ग ने गोठिया के माथे(सर) पर भभूत लगा दी!
भभूत भोमिया बाबा को बुलाने की प्रयोजन से लगाई गई थी!
कुछ क्षण बाद भजन की रफ्तार थोड़ी तेज हो चुकी थी
गोठिया के शरीर मे अजीब से परिवर्तन हो रहे थे,उसकी आंखें तन चुकी थी!गोठिया ने अपना आसन बदला और जो भक्तो द्वारा लगाया गया गद्दे का आसन उस पर जाकर घुटने के बल बैठ गया!अपने दोनों हाथ घुटने पर थे आंखों की भृकुटि चढ़ चुकी थी!
गोठिया शरीर कंपकपा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे ढांक की आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन पैदा कर रही हो जिससे गोठिया का शरीर अपने वश से बाहर होता जा रहा हो!
ढांक की हर आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन की सिरहन सी छोड़ रहा थी लग रहा था जैसे उसका शरीर ढांक की आवाज से ही हिल रहा हो,
गोठिया ने अपने दोनों हाथ घुटने पर रख लिए नीम की तरफ अपनी लाल हुए आंखों के सहारे देख रहा था!
इतने में एक भक्त खड़ा हो गया और कुछ नीम की डालिया तोड़ने लग गया,भक्तो ने भी अपने भजन की सुर को रफ्तार देना शुरू कर दिया था जिससे गोठिया अपने शरीर को अपने वश से बाहर होता महशुस कर रहा था!लोगो के चेहरे पर भी मुस्कान की एक लहर सी दौड़ रही थी उनको भोमिया का बाबा का काफी बेसब्री से इंतजार था!
बूढ़े बुजुर्ग ने रामु काका को आगे आने का इसारा किया रामु काका आगे आकर बैठ गया!
भक्त ने नीम की डालिया गोठिया के हाथों में थमा दी,गोठिया अपने माथे को हिला रहा था कभी कभी किलकारियां निकाल रहा था!अजीब सी आवाज उसके मुंह से निकल रही थी!गोठिया मुह से हुंकार भर रहा था तभी बूढा बुजुर्ग गोठिया के पास आकर बैठ गया कहने लगा "बाबा शन्ति सु आओ हम तो थ्यारा ही बालक है हम सु काई कु नाराज होवे कुछ गलती हुई हो तो माफ कर दो आप तो बड़े देव हो"बूढ़े बुजुर्ग ने विनम्रता पूर्वक अपनी बात रखी!
इस बात को सुनकर गोठिया ने एक लंबी हुंकार भरी ओर एक दम शांत भाव मे आ गया
बूढ़े बुजुर्ग ने लोगो की तरफ देखते हुए कहा"बोलो भोमिया बाबा की जय"!
लोग तो बाबा के दर्शन के लिए कब से उतावले थे उन्होंने नतमस्तक हो कर बड़े आदर पूर्वक जय कार लगाई!
"भोमिया बाबा की जय"

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त मिलते है अगली क़िस्त में


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Wednesday, April 26, 2017

परीत का बदला-भाग-1

रामगढ़ गांव डूंगर(पहाड़) की तलहटी में बसा हुआ है! ये छोटा सा गांव अपनी अलग पहचान लिए हुए था!
गांव तीन ओर से डूंगर से घिरा हुआ था जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहा था!
डूंगर से गांव को देखने पर कश्मीर की वादिया भी फीकी पड़ती नजर आती थी!
वैशाख का महीना था गर्मी अपनी आग बरसा रही थी,
गांव के अंदर बिजली की कोई खास व्यवस्था नही थी इसलिए लोग पेड़ो के नीचे ही गर्मी से बचाव करते थे!
रामु काका हुक्का कस ले रहे थे,आज उनका मन बिचलित हो रहा था!हुक्के की आग हल्की हल्की सुलग रही थी वे अपने बिचलित मन को हुक्के के कस के साथ पीना चाह रहे थे!
आज उनकी उनकी बैचनी भी जायज थी अपने छोटे बेटे को काफी डॉक्टरों ओर वैध के पास इलाज के लिए ले जाने के बावजूद भी कोई आराम नही मिल पा रहा था!
रामु काका के 3 बेटे थे! 1 बेटे ही शादी कर दी थी जिसके एक पुत्री थी! काका ओर छोटे भाई उस पुत्री को बहुत प्यार करते थे!
प्यार तो स्वाभाविक ही थी क्योंकि उनके परिवार का सबसे छोटी सदस्य थी!
शाम का समय हो चुका था लोगो की चहल पहल ज्यादा हो गयी थी! कुछ लोग बेटे सोनू को देखने आते और उसका हाल चाल पूछने के साथ कहते "किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ ओर कही पार नही पड़े तो अपने भोमिया बाबा की शरण मे ले चलो जल्दी ठीक हो जाएगा"
"छोरा कु यहां रख के मत बैठो!"
"अरे पटेल या काई बना दियो छोरा को या कु कब तक धर के बैठेगो गोठिया ओर भक्त न कु इकट्ठा कर ले आज भोमिया कु बुला लेंगे आज की आज या बीमारी को पातक कट जायेगो"भीड़ से निकल कर नारायणा पटेल रामु काका की ओर देखते हुए बोले!
रामु काका चिंतित भाव लिए हुए थे उनके चेहरे की मुस्कराहट तो मानो जैसे गायब हो गई थी!नारायणा पटेल की बात सुनकर उनका मन भी कुछ कुछ कहने लगा कि शायद भोमिया बाबा ही कुछ कर सकता है!
रामु काका निराशा पूर्ण भाव से "काई करू!सब डॉक्टरों को दिखा लिया जयपुर भी दिखा लायो पर छोरा के काई फर्क को दिख रो अब थ्यारा कहवा सु भोमिया कु भी बुला कर देख लू" काका ने अपनी बात रूखे मन से कह दी!
इतना कह कर काका बेजान पैरो से गोठिया के घर का रुख किया!
"बाबा,गोठिया बाबा काई हो रहा है?? काका ने बिचलित मन से पूछा!
"अरे आ पटेल आज तो घना दिन में आओ ओर छोरा का हाल किस्या है अब"गोठिया ने स्वागत रूपी भाव से आने के लिए कहा!
काका का मन अभी भी निराश था कुछ कहना भी चाहते थे पर शब्द नही मिल पा रहे थे,अपने रुन्दे हुए गले से बेटे के लिए करुणा रूपी भाव चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे!उनकी बेजान हो चुकी आवाज बाहर नही निकल पा रही थी!
गोठिया ने एक बार फिर पूछा"पटेल काई हाल है छोरा का किस्या चुप होगो??
इस बार काका की चुप्पी टूटी"बाबा कछु(कुछ) लाज रखे तो रख दे अब तो बस भोमिया बाबा ही कुछ कर सके है सब जगह दिखा लायो कोई फर्क नही पड़ रहा"इतना कह कर काका फिर से चुप्पी साध गए!
"देख पटेल,मैं तो बाबा सु अर्जी कर सकू हु बाबा जो कहेगा वही मैं कहूंगा अपनी ओर से जोड़ कर कहना नही आता!
कल भक्तन को भेड़ा(इकट्ठा) कर ले थान(स्थान) पर वही तेरा छोरा को इलाज हो जायेगो और तेरे श्रद्धानुसार जो बने वो कर दीज्यो"गोठिया ने एक लंबी स्वास भरते हुए कहा!
काका:- बाबा काई काई सामग्री लानी है वा भी बता दे हम तो अनजान है!
गोठिया:-अगरबत्ती का पैकेट,पताशा ओर लड्डू का प्रसाद ले आना और तेरे से श्रद्धानुसार जो बने वो ले आना!
काका:- ठीक है बाबा ले आएंगे पर छोरा को ख्याल रख ज्यो अब थ्यारी ही शरण न में आया हु!लाज रख दीज्यो म्हारी!
काका अपने बेजान पैरो से घर की तरफ चल दिया और रास्ते की दुकान से बताई गई सामग्री घर ले आया!
"बाबा ने काई बताई अब ठीक हो जायेगो का सोनू"काकी ने बिलखती हुई बोली!
काका ने प्रतिउत्तर देते हुए कहा" हा हो जायेगो कल भक्तन को इकट्ठा करेंगे और गोठिया बाबा के भोमिया बाबा आयगो सब इलाज कर देगो!
साोनु की तरफ देखते हुए काका बोले"बेटा अब काई दुखे है कुछ बता तो सही,कुछ खाने पर मन कर रहा हो तो बता दे!
साोनु काका के करुणा रूपी चेहरे को पढ़ रहा था हल्की सी मुस्कान लिए हुए चेहरे से कहा"काका अब तो सर दर्द कर रहा है बस,भूख नही है अभी होयगी तो कह दूंगा!
इतनी बात को सुनकर काका कर मन को कुछ प्रतिशत शुकुन मिला,मन ही मन भोमिया बाबा को शुक्रियादा करने लगे थे
अब उनको लग रहा था कि भोमिया बाबा ही इसे ठीक कर सकते है!


जाइयेगा नही कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मिलते है अगली क़िस्त में......


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Tuesday, April 25, 2017

अधूरी प्रेम कहानी - भाग-2

रात को जब सब सो गए तब मैंने वो पर्चा निकाला |
"जय,
तुम तो जानते हीं को मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूँ | तुम्हारे सामने आते हीं मेरी धड़कने बढ़ जाती हैं | तुम सब जानकार भी क्यों अनजान बने रहते हो ? मैं लाख तुम्हे दिल से निकालने की कोशिश करती हूँ फिर भी बार बार मेरा मन तुम्हारी तरफ खिंच जाता है |
शायद मैं तुम्हारे काबिल नहीं इसीलिए तुम हमेशा रुखा रुखा बर्ताव करते हो |ठीक है तुम्हारी यही मर्ज़ी तो यही सही | अब ये तड़पन हीं मेरा नसीब है |
तुम्हारी
तुम जानते हो |"
मैंने उसके ख़त को सैकड़ो बार पढ़ा और हर बार मुझे कोई घटना याद आ जाती कि कैसे प्यार से मेरी तरफ देखी थी या बात करने की कोशिश की थी और हर बार उसे मायूसी झेलनी पड़ी थी |एक दिन उसके पिताजी अपने भाई के साथ काम से बहार गए हुए थे |
कविता की माँ ने बड़े संकोच से आकर कहा " देखो न कविता की आज अंतिम परीक्षा है और ऑटो की हड़ताल हो गयी है | क्या तुम उसे कॉलेज छोड़ दोगे ?" "हाँ हाँ क्यों नहीं |चाचीजी आप चिंता मत कीजिये |
मैं उसे ले भी आऊंगा | मैंने अपनी मोटरसाईकिल निकाली और उसे लेकर कॉलेज के तरफ चल पड़ा |
पुरे रास्ते हम दोनों में से किसी ने मुह नहीं खोला | वह थोड़ी परेशान लग रही थी | शायद परीक्षा की वजह से | उसे कॉलेज उतार कर गेट के बाहर हीं प्रतीक्षा करने लगा |थोड़ी देर बाद एक सिपाही चीखता हुआ मेरी तरफ दौड़ा |
"ऐ लड़के तुम गिर्ल्स कॉलेज के सामने क्या कर रहे हो ?चलो भागो यहाँ से नहीं तो ये डंडा देखा है| इसने बड़ों बड़ों के आशकी के भूत उतारे हैं |
"बाबा मैं यहाँ किसी को परीक्षा दिलाने आया हूँ |
" झूठ मत बोलो |
नहीं मैं सच कह रहा हूँ |
नाम बताओ उसका |
मैंने अकड़ के कहा कविता | रोल नंबर ?"1234567"
ठीक है साइड में खड़े रहो |
तीन घंटे बाद जब वो परीक्षा देकर बाहर निकली उसका चेहरा गुलाब सा खिला हुआ था | आज मैंने ध्यान दिया कि कितनी सुंदर है वो | उसकी आँखें ,उसके गाल , उसके होंठ रेशमी जुल्फे सब से जैसे सौंदर्य टपक रहा हो | शायद पेपर अच्छा हुआ था पर पास आते हीं फिर से शांत हो गई | मैंने भी चुपचाप बाइक स्टार्ट कि और उसे बैठाकर चल दिया | आधे रास्ते में अचानक एक साइकल वाला सामने आ गया | उसे बचाने के चक्कर में मुझे बाए मोड़ना पड़ गया |
वो रास्ता नेहरू गार्डन को जाता था |
पुरे शहर में दिवानों के मिलने की एक मात्र सुरक्षित जगह थी | मैंने बाइक वापस नहीं ली ,चलता रहा | गार्डन पहुँचते ही जोर से ब्रेक मारी | अपने दोस्तों को कई बार ऐसा करते देखा था जो मेरे से भी अपने आप ब्रेक लग गई थी | वो गिरते गिरते बची | बाइक साइड लगा कर हम पार्क में घुस गए | वो अब भी शांत थी |
मैंने चुप्पी तोड़ी " आज इतनी शांत क्यों हो ?
कुछ बोलती क्यों नहीं ?"
वो फिर भी चुप रही |
कविता तुम जानती नहीं हो | जैसा मैं दिखाने की कोशिश करता हूँ वैसा हूँ नहीं | भले मैं तुमसे बात ना करूँ | तुम्हे देख कर नज़रंदाज़ करूँ पर सच कहूँ तो तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो | जाने कितनी रातें तुम्हारे बारे में सोचते हुए काटीं है | तुम्हारे सपने देखता हूँ ,तुमसे अकेले में बात किया करता हूँ पर तुम्हारे सामने आते हीं जाने क्या हो जाता है | तुम्हे ये क्यों लगता है कि तुम मेरे काबिल नहीं हो | तुम इतनी सुंदर इतनी अच्छी हो बल्कि मैं हीं तुम्हारे लायक नहीं हूँ |
"नहीं नहीं ऐसा मत कहो "| आखिरकार कविता का मौन टूटा |"
इतना कह के वो फिर चुप हो गई | उसे अब भी मुझ पर भरोसा नहीं था | मैंने सबके सामने उसका हाथ थाम लिया | उसने छुडाने की कोशिश की तो मैंने पकड़ मजबूत कर ली | सभी हमारी तरफ देखने लगे | भीड़ से अलग गुलमोहर के पेड़ के नीचे एक बेंच था | हम वहीँ जाकर बैठ गए | उसके नैनों में एक नई चमक और कपोलों पर हया छाने लगी | आज पहली बार मैंने उसे शर्माते हुए देखा था | उसकी चन्दन काया से सर्प की भाँती लिपट जाने का मन कर रहा था | 
उसका यौवन रह रह के मुझसे शरारत कर रहा था पर मैं विवश था | बातों का दौर चलता रहा | उसने जमकर मुझ पर भड़ास निकाली फिर शुरू हुआ प्यार भरी बातों का सिलसिला | ऐसी मदहोशी छाई कि घंटो बीत गए पता हीं नहीं चला | अँधेरा छाने पर गार्ड ने आकर सिटी बजाई | हम घबराए से बाइक की तरफ दौड़े | घर जाकर क्या बहाना बनाएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था | घर पहुँचते हीं कविता की माँ मिल गयीं | बड़ी घबराई सी लग रहीं थी |
"सब ठीक तो है ? इतनी देर कहाँ लगा दी ? मेरा कलेजा पानी पानी हुआ जा रहा था |"
कविता कुछ बोलना चाही पर मैं बीच में हीं बात काटते हुए बोला "ऑटो यूनियन वालों ने रास्ता जाम कर रखा था | किसी को जाने हीं नहीं दे रहे थे | हड़ताल जब ख़त्म हुई तब जाकर रास्ता खुला और हम आ सके |
"ओहो बेटा हमारी बजह सु तोकु इतनी परेसानी झेलनी पड़ी है"
कोई बात नही चाची काई फर्क पड़े

हमारी प्रेम कहानी जाने कब से धीमे धीमे सुलग रही थी पर उसे आग का रूप दिया उस पार्क वाली मुलाक़ात ने | अब हम अक्सर कभी पार्क तो कभी सिनेमा जाने लगे | खूब बातें होती | एक दुसरे को छेड़ते, शरारतें करते | हमारे बीच इतनी निकटता आ गई कि एक दुसरे को कुछ कहने के लिए शब्दों का सहारा नहीं लेना पड़ता | आँखों आँखों में हीं आधे से ज्यादा बातें हो जातीं |किसी दिन अगर लड़ाई हो जाती तो अगले दिन खुद हीं मान जाते |कभी एक दुसरे को मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती |कितने खुश थे हम | कहते है ना कि खुशी ज्यादा दिन नही टिकती यही हाल हमारे साथ होने जा रहा था!

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मिलते अगले भाग में...........

लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Sunday, April 16, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार....भाग-5(अंतिम भाग)

रात को खाने के बाद दोनों बालकनी में खड़े हो गए मगर खामोश, इस बार जैसे दोनों को ही एक अजनबीपन का एहसास हो रहा था राजेश नहीं समझ पा रहा था की वो उसे कैसे समझाए न ही अनुष्का ये बात समझ पा रही थी | दोनों जान चुके थे की दूरियां तो आ गयी हैं मगर इन दूरियों का जिम्मेवार कौन है वो या अनुष्का , मगर राजेश अभी भी अनुष्का को दिलोजान से चाहता था वो चाहता था की अनुष्का वापिस अपने शहर आ जाये लेकिन वो उसे मजबूर नहीं करना चाहता था |
अचानक फिर से घंटी बजी, राजेश की शून्यता टूटी मगर इस बार घंटी फ़ोन की थी ,घंटी लगातार बज रही थी और उसकी गूंज कमरे में पसरी ख़ामोशी और राजेश के दिल में बसी ख़ामोशी दोनों में खलल डाल रही थी , उसने चाय का गिलास टेबल पर रखा और रिसीवर उठाया और भरी आवाज में कहा "हेलो" दूसरी तरफ आवाज किसी औरत की थी कुछ जानी पहचानी ,दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "हेलो, हेलो, कौन? राजेश, मैं रश्मि बोल रही हूँ " थोड़ा विस्मय भरे अंदाज में राजेश ने कहा "अरे बुआ आप, आप कैसी हैं?" रश्मि की आवाज फिर आई " मैं अच्छी हूँ बहुत दिन हो गए थे तुमसे बात किये आजकल कॉलेज भी नहीं आ रहे हो, किसी ने बताया तुमने छुट्टी ले रखी है इसलिए सोचा फ़ोन कर के पूछ लूं कहीं तबियत खराब तो नहीं ?"
राजेश हंसने लगा "नहीं बुआ ऐसी कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ " रश्मि कुछ कहना चाह रही थी मगर हिम्मत नहीं हो रही थी बस इतना ही कहा " राजेश मैं तुम्हें और तुम्हारे हालातों को समझ सकती हूँ बस दुःख तो इस बात का है कि कुछ कर नहीं सकती जो भी हुआ बेहद बुरा हुआ " राजेश कुछ सकते में आ गया वो शायद इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था और आगे कुछ सुनना नहीं चाहता था रश्मि की बात काट कर बस इतना ही कहा "बुआ जी आप मेरी चिंता न कीजिये अभी कुछ काम है मैं आपसे बाद में बात करता हूँ" और रिसीवर रख दिया |
रिसीवर के रखते ही राजेश ज्यादा परेशान हुआ उसने बड़ी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरा और धड़ाम से पलंग पर आ गिरा और फिर वहीं सब बातें सोचने लगा, कैसे ये सब हो गया ये तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनुष्का इतनी बेरुखी से उसे ठुकरा कर चली जाएगी आखिर उसके प्यार में क्या कमी रह गयी थी ? अनुष्का अब एक प्रोफेसर बन चुकी थी क्या यही वजह थी ? या राजेश का कलर्क होना अब उसे अखरने लगा था आखिर अनुष्का ने ऐसा क्यों किया ? ये सब सवाल एक बड़ी पहेली बन गए थे राजेश के लिए | वो झट से उठा और टेबल पर पड़ी डायरी के बीच रखे उस अनुष्का के खत को अपने कांपते हाथों से निकाला और इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक बार फिर पढ़ने लगा वो जानता था कि जब से उसे अनुष्का का खत उसे मिला है वो कितनी बार उसे पढ़ चुका है ..
करीब एक महीना पहले उस दिन राजेश कॉलेज से लौटा ही था कि लैटरबॉक्स में खत मिला , ना जाने किसका था समझ नहीं पा रहा था वो अंदर आकर आराम कुर्सी पर बैठ गया थोड़ा सुस्ताने लगा फिर उस खत को खोला तो सबसे ऊपर अपना नाम पढ़ा, फिर ..क्या था धीरे धीरे उसे उसकी जिंदगी उससे दूर जाती दिखी ,जैसे जैसे वो उस खत को पढ़ रहा था उसे सब कुछ ख़त्म होता दिखाई दे रहा था...
"प्रिय राजेश
मैं इस खत को लिखने के लिए बहुत मजबूर हूं मैं जानती हूं इसे पढ़ कर तुम्हें बेहद दुःख होगा मुझे इसके लिए माफ़ कर देना मगर मुझे ये लिखना बेहद जरुरी लग रहा है , समय रहते ही मैं आपको सारी बातें कहना चाहती हूं मैं नहीं चाहती कि बाद में हम दोनों को कोई पछतावा महसूस हो | राजेश हमारी शादी को सात साल हो गए और एक दूसरे को समझने के लिए ये काफी होते हैं , मैं जानती हूं आप मुझे अच्छे से समझते हैं इसलिए इस खत में लिखी मेरी हर बात को आप समझोगे, मैं क्या सोचती हूं उसको भी | राजेश जब आप से मेरी शादी हुई तब मैं बेहद छोटी थी सिर्फ अठारह बरस की,उस वक्त मैं कितनी अल्हड और नादान थी आज मुझे लगता है , मैं उस वक्त नहीं जानती थी कि जिंदगी क्या है ,जीना किसे कहते हैं, मैं उस वक्त पढ़ना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी कि अचानक से आप मेरी जिंदगी में आ गए, आप मुझसे प्यार करते थे इसलिए मुझे भी आप से प्यार हो गया ,मगर मेरा वो प्यार शायद मेरा बचपना था आप ही सोचिये उस उम्र में तो शायद कोई भी लड़की बहक जाये क्यों कि वो उम्र ही ऐसी होती है |
आज मैं परिपक्व अवस्था में हूं जीवन के बारे में खुद के बारे में सोच सकती हूं, मैं अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूं जिंदगी को नए आयाम देना चाहती हूं,जीवन में अपने लक्षय को प्राप्त करना चाहती हूं ,इस लिए मैं ज्यादा ना लिखते हुए यही बात स्पष्ट कहना चाहती हूं कि मैं आपसे अलग होना चाहती हूं और कानूनी तौर पर आपसे तलाक लेना चाहती हूं | ये मेरी निजी राय है और इच्छा भी, आशा है आप मेरे इस फैसले का सम्मान करोगे और मुझे समझेंगे | आप अपने जीवन में हमेशा खुश रहिये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ!
अनुष्का"
दोनों के कानूनी तौर पर अलग हो जाने के तक़रीबन साल भर बाद खबर आई कि अनुष्का ने शहर के एक जाने माने उद्योगपति राजकुमार उर्फ राजू से शादी कर ली और हमेशा के लिए अमेरिका चली गयी ,लेकिन राजेश का कोई पता नहीं था उसको लेकर भी कई तरह की बातें सामने आई ,कोई कहता कि मानसिक संतुलन खो बैठा है ...
कोई कहता कि वो अपने गावं वापिस चला गया |
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मेरी कहानी का अंतिम पड़ाव यही तक था उम्मीद है आपको पसंद आई होगी!
कहानी में गलतिया राह गयी हो तो क्षमा करें और मार्गदर्शन देने का कष्ट करें!

-:लेखक:-
जायसिंह नारेड़ा

Tuesday, April 11, 2017

अंधविश्वास में जकड़ा समाज

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा समाज धार्मिक ठोंग पाखंड और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोभी और गुमराह मुल्लाओं , पंडितों ,भगवानो द्वारा जकड़ा हुआ समाज है | अधिकतर तो जाहिल इनका शिकार होते हैं लेकिन मैंने धर्म और आस्था के नाम पे बड़े बड़े पढ़े लिखे लोगो को इसका शिकार होते देखा है |चमत्कारी बाबाओं और भगवानो द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से सामने में आती रही हैं और धन तो इनके पास  दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते | इसके दोषी केवल यह बाबा ,मुल्ला या  भगवान् नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ  समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान् को पहचानने की गलती किया करता है| 

शायद हम आज यह ही नहीं पहचान पा रहे हैं की हमारा अल्लाह, भगवान् या ईश्वर कौन है ? हर वो ताकात जिससे हम डर जायें या हर वो चमत्कार जो हमारी समझ में ना आये उसे भगवान् या खुदा अथवा देवी-देवता बना लेने की गलती ही हमें गुमराह करती है | कल का चमत्कार हकीकत में आज का विज्ञान है यह बात हर पढ़े लिखे को समझनी चाहिए | इस्लाम ओर हिन्दू धर्म ने इसी लिए बार बार समझया की अल्लाह ओर भगवान एक है और उसी ने सबको पैदा किया है वही सबका दाता है और हर चमत्कार केवल उसी की ताक़त है और जो ऐसा यकीन ना करें किसी और के चमत्कार को देख उसको भगवान् या अल्लाह मान ले | बावजूद इस यकीन के और अल्लाह की हिदायत के मुसलमान भी गुमराह हो जाता है और दुनिया के ढोंगी  और चमत्कारी बाबाओं, मुल्लाओं के चक्कर में परेशानी के समय पड़  जाया करता है | 
बाबाओं द्वारा दिखाए चमत्कार जादू ,सहर, नजर बंद (नज़रों का धोका ) हुआ करता है जो की एक ज्ञान है|

यह बात साफ़ है की यह सारे ढोंग ,पाखंड धर्म का हिस्सा नहीं और इनपे विश्वास अंधविश्वास है | आप कह सकते हैं की जिस बात का कोई सम्बन्ध धर्म से ना हो उसी को ढोंग और पाखंड कहते हैं और अपने फायदे के लिए धर्म की आड़ में बनाए कानून को पाखंडवाद कहते हैं | धर्म से भटकाव सामाजिक कुरीतियों को और ढोंगी ,पाखंडियों पर अंधविश्वास को जन्म देता है | इसी कारण जब कोई इंसान समाज से कुरीतियों को दूर करने के नाम पर, ढोंग पाखंड और अंधविश्वास मिटाने के नाम पर अधर्मी मुल्लाओं ,पंडितों, चमत्कारियों, बाबाओं के शक्ति प्रदर्शन को देख उनको  बेनकाब करता दिखे तो ठीक क्यूंकि यह जो कर रहे है ये अंधविश्वास ओर पाखंडवाद की श्रेणी में आता है!
इन सब कुरूतियो से समाज को बचाना है!

आखिर कब तक इन जंझालो मे जकड़ा रहेगा हमारा समाज??

-:लेखक:-
#जयसिंह_नारेड़ा

Monday, April 10, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार.....भाग-4

साल दर साल फिर बीतते गए और पढाई का सिलसिला आगे चलता रहा ,एम.फिल करने के दौरान अनुष्का को एक प्राइवेट कॉलेज में नौकरी मिल गयी ,अनुष्का के पंखों को तो जैसे नयी उड़ान मिल गयी थी | बेहद खुश थी अनुष्का इस नौकरी के मिलने से मगर एक छोटी सी परेशानी थी वो ये की उसका कॉलेज दूसरे शहर में था | इस परेशानी का हल भी राजेश ने ही निकाला ,उसने अनुष्का से कहा कि वो वहां जाना चाहे तो जा सकती है अगर नौकरी नहीं भी करना चाहती है तो वो भी ठीक है ,मगर अनुष्का जाना चाहती थी वो हरगिज़ भी इस नौकरी को ठुकराना नहीं चाहती थी, इसलिए जाने का निश्चय किया, मगर अकेले रहने में उसे थोड़ा डर लग रहा था इसलिए राजेश ने ढांढस बंधाया कि वो हर शनिवार उसके पास आ जाया करेगा सप्ताह में दो दिन वो साथ बिताएंगे फिर अनुष्का नौकरी के लिए दूसरे शहर चली गयी |
यही वो मोड़ था जहां से राजेश और अनुष्का के रास्ते अलग अलग होने शुरू हुए ,एक कहावत भी है कि नजरों से दूर तो दिल से दूर वो यहां चरितार्थ होती दिख रही थी | राजेश तो अपने काम में व्यस्त हो गया मगर अनुष्का के लिए हर बात नयी थी नयी नौकरी, नया कॉलेज नए दोस्त और सबसे ज्यादा उसके नए सपने ,उसका मिलनसार और चंचल स्वभाव सभी को आकर्षित करता था कुछ ही समय में वो कॉलेज की प्रिय लेक्चरर बन गयी | इसी दौरान उसकी दोस्ती पूजा से हुई जो हिंदी की लेक्चरर थी ,दोनों जल्दी ही अच्छी सहेलियां बन गयी पूजा तलाकशुदा थी इसलिए वो भी अकेली ही रहती थी आजाद ख्याल की पूजा ने जैसे अनुष्का का दिल जीत लिया था पूजा अपनी कार से कॉलेज जाती थी , जब से दोनों अच्छी सहेलियां बनी थी दोनों का उठना बैठना आना जाना इकट्ठा था |
अभी अनुष्का को आये तीन महीने हो चले थे अचानक से एक दिन उसकी तबियत खराब हुई तो कॉलेज से छुट्टी ले कर घर जल्दी आ गयी ,दो दिन तक अजीब सी तबियत रहने के वाबजूद उसने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला अनुष्का गर्भ से है ,अनुष्का पर तो जैसे कोई बज्रपात हुआ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे वो राजेश को ये बात बताये या नहीं, उसने ये बात पूजा को कही और साथ में ये भी बताया वो अभी माँ नहीं बनना चाहती पूजा ने प्रतिउत्तर में यही कहा कि वो अपने फैसले खुद ले सकती है अगर वो नहीं चाहती तो वो गर्भ गिरा दे, पूजा की गर्भ गिराने वाली बात सुन कार अनुष्का अंदर तक कांप गयी उसने फ़ौरन ये बात राजेश को बताने का निश्चय किया और उसने यही सोचा कि वो राजेश से कुछ नहीं छिपायेगी वो जानती थी राजेश उसकी हर बात मान जाता है इस बार भी वो उसे समझेगा और मान लेगा |
उस दिन शनिवार था राजेश करीब तीन बजे तक पहुंच गया अनुष्का की अजीब सी हालत देखकर वो कुछ परेशान हुआ और उसकी हालत का कारण पूछा अनुष्का ने पहले तो यही कहा की तबियत कुछ ठीक नहीं मगर राजेश ने डॉक्टर के पास जाने की बात कहीं तो अनुष्का से रहा नहीं गया और कहा "राजेश मैं अभी बच्चा नहीं चाहती "और गहरे संतोष भरे भाव से राजेश को देखने लगी पहले तो राजेश कहने का मतलब समझा नहीं जब अनुष्का ने फिर से कहा की वो डॉक्टर के पास गयी थी तो पता चला की वो गर्भ से है मगर वो अभी बच्चा नहीं चाहती |
राजेश पहले तो बेहद खुश हुआ मगर जल्दी ही वो अनुष्का कि कहीं गयी बात से कुछ आक्रोश से भर गया मगर फिर भी खुद को सहज करते हुए एक समझदार इंसान की भांति अनुष्का को समझने की कोशिश की और कहा "अनुष्का हमारी शादी को सात साल होने को आ गए अब तो तुम्हारी पढाई भी पूरी हो गयी है अच्छी खासी नौकरी भी है फिर अब तो हम अपने परिवार के बारे में सोच सकते हैं" मगर अनुष्का राजेश की सारी बातों को अनसुना कर रही थी जैसे उसने फैसला ले लिया हो |


कहानियों का सफर अभी अधूरा है!
शेष अगली क़िस्त में

-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा 

Wednesday, March 29, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार.......भाग-3

दोनों का प्रेम विवाह था इसलिए राजेश अनुष्का बेहद खुश भी थे ,दोनों प्यार में इस कदर डूबे रहते कि साल कब बीत गया पता न चला | राजेश ने धीरे धीरे ये भी नोटिस किया कि अनुष्का को किताबें पढ़ने का बेहद शौक है उसने अनुष्का को खाली वक्त में हमेशा उस टेबल के इर्द गिर्द पाया जहां राजेशअक्सर कुछ न कुछ पढ़ने बैठता था | एक दिन राजेश से रहा नहीं गया और कहा "अनु तुम अपनी आगे की पढाई क्यों नहीं कर लेती" बात को बदल कर फिर ज़रा जोर दिया और कहा "मेरा मतलब है तुम्हें किताबें पढ़ने का शौक है और वैसे भी यही समय होता है पढ़ने का, तुम ग्रेजुएशन कर लो |"राजेश की बात सुन कर खुश तो हुई मगर थोड़े हैरानी भरे अंदाज में अनुष्का ने राजेश की तरफ देखा और कहा "अब अब तो शादी भी हो गयी क्या करूंगी आगे पढ़ कर और हंसते हंसते कहने लगी तुम नहा लो में नाश्ता बनाती हूँ " और रसोई में चली गयी |
मगर राजेश के मन में कुछ और था वो नहीं चाहता था की अनुष्का इस चूल्हे चौके के बीच रह कर अपनी जिंदगी यूं ही खराब कर दे ,उसे याद है उसने अनुष्का की बुआ को कहा था कि अनुष्का आगे अपनी पढ़ाई पूरी करेगी वो उसमें अनुष्का की पूरी सहायता करेगा | "अरे पढाई का शादी से क्या लेना देना, पढाई अपनी जगह है तुम भी आगे बढ़ो दुनिया को देखो " कह कर अपना तोलिया उठा कर नहाने चला गया | आखिर राजेश जब रोज रोज यही दोहराने लगा तो थक हार कर अनुष्का ने राजेश की बात मान ली और बी.ए फर्स्ट ईयर में एड्मिशन ले लिया |
क्या यही एक भूल हो गयी थी उस से ,राजेश फिर से उस लटकते घूमते पंखे को देख रहा था और सोच रहा था ,उसने तो वहीं किया जो की किसी भी अच्छे इंसान को और अच्छे पति को करना चाहिए था तभी दरवाजे की घंटी बजी ,मन नहीं था खोलने का सो थोड़ी देर वैसे ही लेटा रहा, घंटी फिर बज उठी इस बार दो बार बजी, दरवाजा खोला "गोलू तू" करीब 14 वर्ष का बच्चा हाथ में चाय लिए खड़ा था कहने लगा "ओह्ह क्या भैया इतनी देर से घंटी दे रहा हूँ अपनी चाय ले लो " चाय लेकर राजेश वापिस कमरे में आया और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया जो किताबों के टेबल के पास थी जिस पर वो सुबह होते ही वो बैठ जाया करता था और जहां अनुष्का और राजेश साथ साथ चाय की चुस्कियां भरते हुए अपनी सुबह को तरोताजा करते थे |
कितना खूबसूरत मंजर होता था और कितना अजीब है अब सब कुछ, चाय की पहली चुस्की भरते सोचने लगा कहां तो अनुष्का बाहर खाना खाने के लिए भी मना करती थी हमेशा कहती थी घर का बना खाना खाने से अच्छा कुछ भी नहीं और अब तो.. एक लम्बी आह भरी जैसे राजेश का अंदर का हर दर्द अपने आप को सिर्फ आहों में ही बयां कर रहा हो | अनुष्का पढ़ने में बहुत तेज थी इस बात में राजेश कोई शक नहीं था वो अनुष्का के इस बात से बेहद प्रभावित भी था, उसका मनपसंद सब्जेक्ट जियोग्राफी था ,राजेश को रश्मी बुआ की सिफारिश पर उसी कॉलेज में क्लर्क की जॉब मिल गयी!इसकी बजह से अनुष्का और राजेश बेहद खुश थे! धीरे धीरे दोनों की दिनचर्या फिक्स हो गयी राजेश जॉब के लिए कॉलेज जाता और अनुष्का अपने कॉलेज | राजेश ने परीक्षा के दिनों में अनुष्का की पूरी मदद की और समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,अनुष्का ने ग्रेजुएशन फर्स्ट डिवीज़न से पास किया और राजेश के कहने पर जियोग्राफी में एम.ए करने का निश्चय किया, अपना मन पसंद विषय पाकर अनुष्का फूली न समायी | अब कुछ दिनों के लिए वो बुआ के घर जाना चाहती थी बहुत जिद्द करने पर राजेश ने उसे बुआ के यहां छोड़ दिया ,रश्मी भी अनुष्का को देख कर बेहद खुश थी आखिर बुआ का उसके सिवा अपना था ही कौन ? रश्मी ने पाया कि अनुष्का बहुत ज्यादा खुश है और चहक भी रही है ये बात तो अच्छी थी मगर एक चिंता ने रश्मी के मन को घेर लिया , उसकी रूचि राजेश से ज्यादा अब कॉलेज जाने में थी, अनुष्का कॉलेज की सारी बातें रश्मी को बताती अपनी सहेलियों के बारे में दोस्तों के बारे में | उसने रश्मी को अपनी एक खास दोस्त सरिता के बारे में बताया कि कैसे वो अपनी गाड़ी लेकर कॉलेज आती है ,और कहने लगी
"बुआ वो बहुत अमीर घर से है उसके घर में सारे के सारे लोग बड़ी बड़ी पोस्ट पर हैं" रश्मी ने उसकी सब बहुत ध्यान से सब बातें सुनी वो अनुष्का को लेकर एक बात समझ रही थी उसकी उम्र के हिसाब से वो अपनी जगह ठीक है मगर कुछ पाने का सपना अभी भी वो आंखों में लिए घूम रही है क्या था वो सपना ? क्या वो सपना अनुष्का और राजेश दोनों का है या सिर्फ और सिर्फ अनुष्का का ? इन सवालों से रश्मी सिहर उठी वो ये भली प्रकार जानती थी कि राजेश उस से बेहद प्यार करता है इसी लिए अनुष्का की ख़ुशी में वो अपनी ख़ुशी ढूंढता है ,इसलिए वो अनुष्का की हर बात मान भी लेता है आखिर प्यार यही तो है एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की ख़ुशी में खुश रहना |
रश्मी ने कई बार बातों का रुख मोड़ने की कोशिश की और राजेश के बारे में और आगे परिवार बढ़ने केर बारे में अनुष्का से जानना चाहा मगर अनुष्का हर बार एक फीकी मुस्कराहट देकर बात टाल जाती और हर बार यही कहती "बुआ तुम भी न, अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी मैं पढ़ना चाहती हूँ कुछ बनना चाहती हूँ और खूब पैसा कमाना चाहती हूँ " पढ़ने वाली बात ठीक थी मगर पैसे वाली बात रश्मी को चिंता में डालने के लिए काफी थी | रश्मी खुद की बीती जिंदगी को याद करती है!और वो पल याद आ जाता है जब संदीप उसे नोकरी लगने के बाद शादी का झांसा देकर छोड़ गया था!संदीप भी रूपये कमाने के ख्याव इसी प्रकार देखता था जैसे अब अनुष्का देख रही थी!
इन विस्मरणीय बातो को याद करके बुआ की आँखे में पानी की बुँदे थी!जिनको वो अनुष्का से छिपा रही थी!
डर भी रही थी कही अनुष्का भी उसी राह पर नही चले!
कुछ दिन रह कर वो वापिस राजेश के पास लौट आई !
राजेश बेहद खुश था क्यों कि अनुष्का के बगैर पूरा घर सूना सूना लग रहा था |



कहानियों का सफर जारी रहेगा............शेष अगली क़िस्त में

आपके अनमोल सुझाव देते रहे 

धन्यवाद

-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा

Monday, March 20, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार....भाग-2

अनुष्का कुछ परेशान होकर कभी इधर कभी उधर तो कभी फर्श को देख रही थी, राजेश को कुछ अच्छा नहीं लगा उसने पूछा "क्या आप पानी लेंगी" अनुष्का ने नजरें उठाये बिना जवाब दिया "नहीं शुक्रिया" इस बार राजेश ने अपने पढाई को किनारे रख उससे बात करने की कोशिश की एक विश्वास भरे अंदाज में पूछा "रश्मी जी आपकी क्या लगती हैं?" अपने सवाल को फिर से दोहराया "मेरा मतलब है कि आपकी रिश्तेदार हैं या.." तभी अनुष्का ने जवाब दिया "जी वो मेरी बुआ हैं" इस बार राजेश सिर्फ जी कह कर मुस्कुराया, आगे की बात करने के लिए कोई सिरा नहीं मिल रहा था, राजेश जानता था की वो अब उस कमसिन यौवना से उसका नाम पूछना चाहता है मगर कैसे ? अगर गलती से भी बुरा मान गयी तो ये बहुत ही बुरा होगा खासकर उसके दिल के साथ, ये सोचकर उसने चुपी साध ली!किताब के पन्ने पलटने लगा और अपनी किताब को पढ़ने का नाटक करने लगा!
अनुष्का भी उसकी पहली नजर को पहचान गयी थी मगर जान कर अनजान बन गयी |
करीब पंद्रह मिनट गुजर गए यूँ ही चुपचाप बैठे दोनों को, अचानक एक हाथ अनुष्का के कंधे पर आ लगा और आवाज आई "अनु तू", ये आवाज अनुष्का की बुआ की थी ,अनुष्का अचानक से खड़ी हुई "ओह्ह बुआ तुम भी न.. पता है कितनी देर हो गयी तुम्हारा इन्तजार करते करते, कहां चली गयी थी ? |" रश्मी हंस पड़ी और कहने लगी "अरे यहीं थी बाहर, मुझे क्या पता तू आज कॉलेज आएगी सुबह को तूने कुछ कहा नहीं जब मैं घर से निकली, चल उधर आ जा" और अनुष्का को अपनी सीट की तरफ आने का इशारा किया |
फिर अचानक से रश्मी पलटी जैसे अपनी भूल का एहसास हुआ हो और राजेश की तरफ देख कर कहा "राजेश ये मेरी भांजी अनुष्का है और अनुष्का ये राजेश  हैं मेरी क्लास के होशियार लड़को में से एक है!
"राजेश आज आपने कल पढ़ाया वो याद नहीं किया क्या " राजेश अचानक किये इस सवाल से कुछ हड़बड़ा गया फिर सहज होकर मुस्कुराया और अनुष्का की तरफ "हेलो कहा "और सवाल के जवाब में बस इतना कहा "जी नहीं, जी अभी कर लूंगा" अनुष्का को राजेश की इस हालत पर हसीं आ गयी मगर हसीं नहीं हल्का सा मुस्कराई और अपनी बुआ के पीछे चल दी |
राजेश को उसकी मुस्कराहट ने अब होश में न रखा था उसके चेहरे पर अकस्मात् एक शर्मीलापन उभर आया जिसे राजेश ने छुपाने का भरसक प्रयास किया मगर कामयाब न हो सका मगर उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया था जिसके लिए वो बेसब्र था, मन ही मन सोचा अनुष्का, तो मैडम का नाम अनुष्का है, उसने फिर एक हलकी सी नजर रश्मी जी की सीट की तरफ डाली तो पाया बुआ भांजी बातों में व्यस्त हो चुकी हैं ,अनुष्का दूर से भी उतनी ही खूबसूरत लग रही ही जितनी की पास से | अब राजेश को भूख जोरों की लग रही थी इसलिए सारी किताबे एक तरफ़ समेट कर अब राजेश खाने के लिए केन्टीन जाने का रुख किया |
राजेश पर एक नया खुमार सा चढ़ा हुआ था वो समझ नहीं पा रहा था ये महज आकर्षण भर है या पहली नजर में होने वाला प्यार ,समोसे खाते वक्त भी यहीं सोचता रहा और मन ही मन हर्षित हो रहा था आखिर जो जिंदगी में आज तक न हुआ वो हो ही गया ,हो न हो यक़ीनन अनुष्का भी इस बात को जान चुकी है सोचकर मंद मंद मुस्करा दिया | जब तक राजेश वापिस अपने स्थान पर पहुंचा तब तक अनुष्का जा चुकी थी ,खाली कुर्सी देखते ही मन बोझिल हो गया और मन कोसते हुए अपने जगह बैठ गया | इस पहली मुलाकात ने राजेश और अनुष्का के प्यार की नीवं रख दी थी |

सिगरेट पूरी तरह बुझ चुकी थी और अतीत का वो सुनहरा पन्ना धुआं बन के हवा में उड़ गया था, राजेश एक लम्बी सांस भरते हुए वापिस कमरे में आ कर टांगे लटका कर पलंग पर बैठ गया |अख़बार को खोला मगर पढ़ने का मन नहीं किया फिर एक तरफ फैंक दिया आधे मन से रसोई की तरफ गया एक नजर डालने पर ऐसा लग रहा था की बरसों से यहां खाना नहीं बना है रसोई घर, रसोई घर न हो कर एक स्टोर बन गया था ,सारा सामान बिखरा पड़ा था कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं थी उसे याद आ रहा था कि खाना बनाते वक्त अनुष्का हमेशा कोई ना कोई गीत गुनगुनाया करती थी जो कि राजेश को बेहद पसंद था, फिर ... फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और वापिस कमरे में आ गया | राजेश सोचने लगा एक लम्हे में अचानक सब कुछ कैसे बदल जाता है हमारी जिंदगी पर एक एक लम्हे का कर्ज रह जाता है |
वो लम्हा कितना खास था, उसका कर्ज वो कभी भूल भी नहीं पायेगा जब राजेश के लिए अनुष्का उसकी जिंदगी बन कर उसकी दुनिया में हमेशा के लिए आ गयी थी, ऐसा लगा था कि सारी कायनात ने उसके लिए खुशियां समेट दी और दामन में भर दी हों ,अपने प्यार को पाना मतलब, जिंदगी को पाना था |
राजेश और अनुष्का अक्सर कॉलेज में ही मिला करते थे!अनुष्का बुआ से मिलने के बहाने कॉलेज में आती थी !उनकी ये मुलाकाते प्यार में तबदील हो गयी इस बात की भनक बुआ को लग चुकी थी!
राजेश ओर अनुष्का के इस सच्चे प्यार को उसकी बुआ ने हरी झंडी दे दी थी हालांकि रश्मी नहीं चाहती थी की अनुष्का अभी शादी करे क्यों कि वो बहुत छोटी भी थी और पढ़ने में अच्छी भी थी, लेकिन राजेश के प्यार के आगे उसकी एक ना चली |
राजेश एक सुलझा हुआ इंसान था बेहद नेक प्रवृति का ,शायद वो अनुष्का के लिए उपयुक्त भी था अगर वो अनुष्का को प्यार करता है तो उसे हर हाल में खुश भी रखेगा यही सोच कर रश्मी ने विवाह के लिए हामी भर दी थी | अनुष्का की मां की कुछ साल पहले बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी जिसके कारण ये जिम्मेवारी अनुष्का के पिता ने रश्मी के कन्धों पर डाल दी थी | रश्मी अविवाहित थी इसलिए अनुष्का को अपनी बच्ची समझ कर प्यार करती थी और दोनों बुआ भांजी न हो कर अच्छी सहेलियां भी थी |

कहानियों का सफर जारी रहेगा.......
शेष भाग अगली क़िस्त में ......

आपको मेरी कहानी का भाग-1 और भाग-2 कैसा लगा
अपने विचार अवश्य बताये

-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा

Saturday, March 18, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार........भाग-1

---------~~वो कॉलेज वाला प्यार........भाग-1~~-------
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सुबह के नौ बज रहे थे राजेश का आज फिर कॉलेज जाने का मन नहीं था, इसलिए फ़ोन कर दोस्तों को मना कर दिया मगर ऐसा कब तक चलने वाला था, चेहरे पर एक अजीब ख़ामोशी पसरी थी और पलंग पर लेटे लेटे बड़ी देर से उस पंखे को लगातार देखे जा रहा था, देख तो पंखे को रहा था पर मन कहीं और था | 
ज़रा सा ध्यान हटा तो पानी पीने के लिए टेबल पर रखी बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया परन्तु बोतल रात भर में खाली हो चुकी थी | नजर टेबल की तरफ फिर गयी,
प्लेट बुझी हुई सिगरेटों से भर गयी थी कुछ एक तो टेबल पर भी गिर गयी थी!
वो जानता था उसने पिछली कुछ रातें किस तरह गुजारी है तभी एक तेज आवाज हुई खिड़की के शीशे से किसी चीज़ के टकराने की ,अखबार वाले ने उस कमरे में फैली ख़ामोशी को तोड़ दिया था !
राजेश अचानक उठ बैठा और डिब्बी में पड़ी एक आखिरी सिगरेट निकाली और बड़े ही अनमने भाव से उठकर कमरे से सटी बालकनी का दरवाजा खोला |
जून के महीने में गर्मी अपने चरम सीमा पर थी तेज धुप में राजेश की आँखे एक दम बन्द हो गयी ,अखबार को उठा कर अंदर पलंग की तरफ फैंका और खुद लाइटर से सिगरेट सुलगा ली ,पहला कश भरते ही उसने अपनी बाईं तरफ देखा तो आलमारी में गिफ्ट रखा हुआ था गिफ्ट में दो प्रेमियो की तश्वीर थी,देख कर अचानक उसका मन भर आया आंखें नम हो गयी,इस तश्वीर को अनुष्का अपने साथ इस घर में लायी थी |
एकाएक वही सवाल जो पिछले कुछ दिनों से उसे जीने नहीं दे रहा था, ऐसा कैसे हो सकता है अनुष्का उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है ,एक के बाद एक सवाल तेजी से जहन में आ रहे थे और सिगरेट का धुंआ उन्हीं सवालों को हवा में उड़ा दे रहा था राजेश के पास इन सवालों के जवाब नहीं थे |
राजेश और अनुष्का एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे, उसे याद है उसने पहली बार जब अनुष्का को देखा था तो वो देखता ही रह गया था जब पहली बार राजेश ने अनुष्का को देखा था तब वो सिर्फ अठारह बरस की थी, वो बारवीं की परीक्षा दे चुकी थी और राजेश बाइस वर्ष का था कॉलेज की द्वितीय वर्ष का छात्र था, अनुष्का की बुआ राजेश की कॉलेज में प्रोफेसर थी, अनुष्का कभी कभार अपनी बुआ से मिलने कॉलेज आती थी बारवीं की परीक्षा देने के बाद वो बुआ के पास ही आ गयी थी |
उस दिन भी राजेश पुस्तकालय में बैठा हुआ अपनी किताबो में व्यस्त था कि अचानक से एक मीठी दिलकश आवाज उसके कानों में गूंजी "एक्सक्यूज़ मी" राजेश ने सर उठा कर देखा तो देखता रह गया कुछ ठगा सा, अनायास ही एक सुन्दर चेहरा उसकी आँखों के सामने उभर आया था, सफ़ेद चुनर में लिपटी वो कमसिन यौवना ,उसका दूधिया रंग,हिरन जैसी बड़ी - बड़ी आंखों के बीच हल्की छोटी नाक। पतले लाल सुर्ख होंठ। सुराहीदार गर्दन के नीचे कंधे और आकर्षक वक्ष। पतली कमर तक उसके लंबे बाल कुल मिलाकर वह तराशी हुई कोई अद्भुत व अलौकिक प्रतिमा लगती थी।उसके चेहरे की हँसी किसी को भी घायल कर सकती थी!
उसके दिल को बहकाने के लिया काफी थे कि बड़ी बड़ी आँखें कर अनुष्का फिर से बोली "एक्सक्यूज़ मी ,रश्मी जी कहां मिलेगी ?" उस दिन अनुष्का पहली बार बुआ से मिलने कॉलेज आई थी, राजेश के मुहं से सिर्फ "जी" निकला उसका ध्यान सवाल पर केंद्रित नहीं था, वो तो एक टक उस सौंदर्य से परिपूर्ण यौवना को देखे जा रहा था जो एक ताजा हवा के झौंके की भांति उसे अंदर से गुदगुद्दा रही थी!
अनुष्का ने फिर अपना सवाल दोहराया मगर इस बार दूसरे ढंग से ,'जी मैं आपसे पूछ रही हूँ रश्मी जी जो यहां प्रोफ़ेसर हैं वो कहां मिलेगी ?"
राजेश को झटका सा लगा झेंपते हुए वो कुछ परेशान अवस्था में अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और अनुष्का के चेहरे से नजर हटा कर इधर उधर देखने लगा और उत्तर दिया "जी अभी बताता हूं " अपनी टेबल से चपरासी को जो फाइल इधर उधर दे रहा था अपनी ओर आने का इशारा किया और पूछा 'रश्मी जी कहां हैं स्टाफ रूम में दिखाई नहीं दे रही "
बदले में उतर मिला 'मैडम बाहर गयी हैं अभी अभी केन्टीन की तरफ जाते हुए देखा कुछ और लोग भी साथ में थे" चपरासी ने जवाब दिया
अनुष्का चपऱासी का जवाब सुन बेसब्र हो गयी और मुहं से 'ओह्ह" निकला , राजेश फिर अनुष्का को देखने लगा इस बार वो उसे कुछ परेशान लगी और वो परेशानी उसके चेहरे के नूर को कुछ फीका कर रही थी , राजेश ने अनुष्का को सहज करने के लिए इतना ही कहा "आप बैठिये प्लीज़ वो कुछ ही देर में आ जाएंगी" अनुष्का कुछ न कहते हुए हलकी फीकी सी मुस्कान भरते हुए पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी |
राजेश ने फिर से अपनी किताबो की और रुख किया मगर अब दिल काम में कहां लगने वाला था, दिल में तो अजीब सी हलचल हो रही थी ,जो पहले कभी नहीं हुई और ये पल उसे जिंदगी के सबसे हसीन पल लग रहे थे जैसे कोई सुनहरा ख्वाब हकीकत का रूप ले रहा हो | दर्द उँगलियों के बीच जरूर था मगर लिखने की कोशिश भी नाकाम लग रही थी, इस बार उसने चोरी से अनुष्का को देखा और डर भी रहा था कहीं वो उसे इस तरह देखते हुए देख न ले, वो बला की सुन्दर थी बेहद आकर्षक कि जैसे ईश्वर ने उसे बनाते वक्त भूल से भी कोई भूल न की हो |
"जाइयेगा नही कहानी अभी अधूरी है!
कहानियो का सफर जारी रहेगा मिलते है अगली क़िस्त मे
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा,कृपया अपना कीमती समय देकर बताने का कष्ट करें कहानी कैसी लगी! कुछ गलतिया रह गयी हो तो बताने का कष्ट करें!

-:लेखक:-
जयसिंह नारेङा

https://jsnaredavoice.blogspot.in/2017/03/1.html?m=1

Tuesday, March 7, 2017

:-मेरी चुनिंदा शायरियां-:

जमाने से नही तन्हाई से डरता हूँ
प्यार से नही रुसवाई से डरता हूँ
मिलने की उमंग तो बहुत होती है,
लेकिन मिलने के बाद भी तेरी जुदाई से डरता हूँ!

दिल का रिश्ता है हमारा
दिल के कोने में नाम है तुम्हारा,
हर याद में चेहरा है तुम्हारा,
हम साथ नही तो क्या हुआ,
जीवन भर साथ निभाने वादा है हमारा

चाँद की रातों में सारा जंहा सोता है,
किसी की यादो में कोई बदनसीब रोता है,
खुदा किसी को मोहब्बत पर फ़िदा ना करे,
अगर करे तो फिर किसी को जुदा ना करे!!

दिल जब टूटता है तो आवाज नही आती,
हर किसी को दोस्ती रास नही आती,
ये तो अपने नसीब की बात है यारो,
कोई कोई भूलता है किसी को किसी याद नही आती!

होठो की बात आंसू कहते है,
चुप रहते है फिर भी बहते है,
आंसुओ की किस्मत तो देखिये,
ये उनके लिए बहते है जो दिल में रहते है!

मोहब्बत में भी कुछ राज होते है,
जागती आँखों में भी कुछ ख्बाव होते है,
जरुरी नही गम में ही आंसू आये,
मुस्कराती आँखों में सैलाब होता है!

ए-खुदा तेरी खुदाई की हम धाक देते है,
उसे खुश रखना जिसे हम दिल से प्यार करते है,

उनका भी हम दीदार करते है,
उनको भी हम दिल से याद करते है,
करे हम जब उनको हमारी जरूरत नही थी,
फिर भी हम उनको हर पल याद करते है!

तेरे इंतजार में कब से उदास बैठे है,
तेरे दीदार में आँखे बिछाए बैठे है,
तू एक नजर हमको देख ले बस,
यही इंतजार में बेक़रार बैठे है!

लेखक
जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...