---------~~वो कॉलेज वाला प्यार........भाग-1~~-------
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सुबह के नौ बज रहे थे राजेश का आज फिर कॉलेज जाने का मन नहीं था, इसलिए फ़ोन कर दोस्तों को मना कर दिया मगर ऐसा कब तक चलने वाला था, चेहरे पर एक अजीब ख़ामोशी पसरी थी और पलंग पर लेटे लेटे बड़ी देर से उस पंखे को लगातार देखे जा रहा था, देख तो पंखे को रहा था पर मन कहीं और था |
ज़रा सा ध्यान हटा तो पानी पीने के लिए टेबल पर रखी बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया परन्तु बोतल रात भर में खाली हो चुकी थी | नजर टेबल की तरफ फिर गयी,
प्लेट बुझी हुई सिगरेटों से भर गयी थी कुछ एक तो टेबल पर भी गिर गयी थी!
वो जानता था उसने पिछली कुछ रातें किस तरह गुजारी है तभी एक तेज आवाज हुई खिड़की के शीशे से किसी चीज़ के टकराने की ,अखबार वाले ने उस कमरे में फैली ख़ामोशी को तोड़ दिया था !
राजेश अचानक उठ बैठा और डिब्बी में पड़ी एक आखिरी सिगरेट निकाली और बड़े ही अनमने भाव से उठकर कमरे से सटी बालकनी का दरवाजा खोला |
जून के महीने में गर्मी अपने चरम सीमा पर थी तेज धुप में राजेश की आँखे एक दम बन्द हो गयी ,अखबार को उठा कर अंदर पलंग की तरफ फैंका और खुद लाइटर से सिगरेट सुलगा ली ,पहला कश भरते ही उसने अपनी बाईं तरफ देखा तो आलमारी में गिफ्ट रखा हुआ था गिफ्ट में दो प्रेमियो की तश्वीर थी,देख कर अचानक उसका मन भर आया आंखें नम हो गयी,इस तश्वीर को अनुष्का अपने साथ इस घर में लायी थी |
एकाएक वही सवाल जो पिछले कुछ दिनों से उसे जीने नहीं दे रहा था, ऐसा कैसे हो सकता है अनुष्का उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है ,एक के बाद एक सवाल तेजी से जहन में आ रहे थे और सिगरेट का धुंआ उन्हीं सवालों को हवा में उड़ा दे रहा था राजेश के पास इन सवालों के जवाब नहीं थे |
राजेश और अनुष्का एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे, उसे याद है उसने पहली बार जब अनुष्का को देखा था तो वो देखता ही रह गया था जब पहली बार राजेश ने अनुष्का को देखा था तब वो सिर्फ अठारह बरस की थी, वो बारवीं की परीक्षा दे चुकी थी और राजेश बाइस वर्ष का था कॉलेज की द्वितीय वर्ष का छात्र था, अनुष्का की बुआ राजेश की कॉलेज में प्रोफेसर थी, अनुष्का कभी कभार अपनी बुआ से मिलने कॉलेज आती थी बारवीं की परीक्षा देने के बाद वो बुआ के पास ही आ गयी थी |
उस दिन भी राजेश पुस्तकालय में बैठा हुआ अपनी किताबो में व्यस्त था कि अचानक से एक मीठी दिलकश आवाज उसके कानों में गूंजी "एक्सक्यूज़ मी" राजेश ने सर उठा कर देखा तो देखता रह गया कुछ ठगा सा, अनायास ही एक सुन्दर चेहरा उसकी आँखों के सामने उभर आया था, सफ़ेद चुनर में लिपटी वो कमसिन यौवना ,उसका दूधिया रंग,हिरन जैसी बड़ी - बड़ी आंखों के बीच हल्की छोटी नाक। पतले लाल सुर्ख होंठ। सुराहीदार गर्दन के नीचे कंधे और आकर्षक वक्ष। पतली कमर तक उसके लंबे बाल कुल मिलाकर वह तराशी हुई कोई अद्भुत व अलौकिक प्रतिमा लगती थी।उसके चेहरे की हँसी किसी को भी घायल कर सकती थी!
उसके दिल को बहकाने के लिया काफी थे कि बड़ी बड़ी आँखें कर अनुष्का फिर से बोली "एक्सक्यूज़ मी ,रश्मी जी कहां मिलेगी ?" उस दिन अनुष्का पहली बार बुआ से मिलने कॉलेज आई थी, राजेश के मुहं से सिर्फ "जी" निकला उसका ध्यान सवाल पर केंद्रित नहीं था, वो तो एक टक उस सौंदर्य से परिपूर्ण यौवना को देखे जा रहा था जो एक ताजा हवा के झौंके की भांति उसे अंदर से गुदगुद्दा रही थी!
अनुष्का ने फिर अपना सवाल दोहराया मगर इस बार दूसरे ढंग से ,'जी मैं आपसे पूछ रही हूँ रश्मी जी जो यहां प्रोफ़ेसर हैं वो कहां मिलेगी ?"
राजेश को झटका सा लगा झेंपते हुए वो कुछ परेशान अवस्था में अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और अनुष्का के चेहरे से नजर हटा कर इधर उधर देखने लगा और उत्तर दिया "जी अभी बताता हूं " अपनी टेबल से चपरासी को जो फाइल इधर उधर दे रहा था अपनी ओर आने का इशारा किया और पूछा 'रश्मी जी कहां हैं स्टाफ रूम में दिखाई नहीं दे रही "
बदले में उतर मिला 'मैडम बाहर गयी हैं अभी अभी केन्टीन की तरफ जाते हुए देखा कुछ और लोग भी साथ में थे" चपरासी ने जवाब दिया
अनुष्का चपऱासी का जवाब सुन बेसब्र हो गयी और मुहं से 'ओह्ह" निकला , राजेश फिर अनुष्का को देखने लगा इस बार वो उसे कुछ परेशान लगी और वो परेशानी उसके चेहरे के नूर को कुछ फीका कर रही थी , राजेश ने अनुष्का को सहज करने के लिए इतना ही कहा "आप बैठिये प्लीज़ वो कुछ ही देर में आ जाएंगी" अनुष्का कुछ न कहते हुए हलकी फीकी सी मुस्कान भरते हुए पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी |
राजेश ने फिर से अपनी किताबो की और रुख किया मगर अब दिल काम में कहां लगने वाला था, दिल में तो अजीब सी हलचल हो रही थी ,जो पहले कभी नहीं हुई और ये पल उसे जिंदगी के सबसे हसीन पल लग रहे थे जैसे कोई सुनहरा ख्वाब हकीकत का रूप ले रहा हो | दर्द उँगलियों के बीच जरूर था मगर लिखने की कोशिश भी नाकाम लग रही थी, इस बार उसने चोरी से अनुष्का को देखा और डर भी रहा था कहीं वो उसे इस तरह देखते हुए देख न ले, वो बला की सुन्दर थी बेहद आकर्षक कि जैसे ईश्वर ने उसे बनाते वक्त भूल से भी कोई भूल न की हो |
"जाइयेगा नही कहानी अभी अधूरी है!
कहानियो का सफर जारी रहेगा मिलते है अगली क़िस्त मे
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा,कृपया अपना कीमती समय देकर बताने का कष्ट करें कहानी कैसी लगी! कुछ गलतिया रह गयी हो तो बताने का कष्ट करें!
-:लेखक:-
जयसिंह नारेङा
https://jsnaredavoice.blogspot.in/2017/03/1.html?m=1
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