Thursday, April 27, 2017

अधूरी प्रेम कहानी -भाग-3

उसके पिता उसके लिए लड़का ढूंढ रहे थे,वो अक्सर बताया कहती थी कि "पिताजी सरकारी नोकरी वाला लड़का ढूंढ कर मेरी शादी करने वाले है तुम आकर मेरे घरवालो से बात करो"! ऐसा कहते कहते रोने लग जाया करती थी!
प्यार तो मैं भी बहुत करता था उससे लेकिन उसके ओर मेरे घरवालो से बात करने की हिम्मत मेरी नही हो रही थी!
आखिर किस तरह से बात करू ये समझ नही पा रहा था एक उसे खोने का डर ऊपर से घरवालो से बात करने का डर मुझे अपने आप मे कमजोर बनाये जा रहा था!
खाली बैठे दिमाग मे हर वक्त यही चलता रहता कि किस तरह बात करु घरवालो से,कैसे राजी करू ओर नही माने तो मेरा क्या होगा"!
शाम का समय था मैं अपने कमरे में सो रहा था,मन्द गति से ठंडी ठंडी हवाएं नींद से खड़े होने नही दे रही थी! मन मेरा भी नही था खड़ा होने मुझे तो बस नींद में कविता ही नजर आ रही थी!
अचानक मेरी नींद को खदेड़ते हुए मोबाइल की घण्टी बजी!
देखा तो कविता का ही कॉल आ रहा था,कविता का कॉल देखकर नींद कहा गायब हो गयी पता ही नही चला!
हेलो!कविता कैसी हो.........
कविता फ़ोन पर रो रही थी कुछ बोल नही पा रही थी!
"क्या हुआ कविता तुम रोई तो तुम्हे मेरी कसम है"मैंने अपनी आवाज को तेज करते हुए कहा!
एक दम सन्नाटा सा छा गया कविता कसम देते ही चुप हो गयी थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी!
"बताओ कविता क्या हुआ कुछ बोल तो सही यार आखिर हुआ क्या है??मैंने जोर देते हुए कहा
कविता ने दुखी मन से रुन्दे गले से अपनी बात कह दी"आज पापा मेरे लिए लड़का देख कर आये है तुम कब बात करोगे,मैं सिर्फ तुमसे शादी करना चाहती हु ओर ऐसा नही हुआ तो मैं मर जाऊंगी"!
इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया
मेरा मन भी अब रोने का होने लगा था मैं नही चाहता था कि कविता मेरे से दूर जाए लेकिन बात करने की हिम्मत मेरे अंदर नही थी!
कविता भी समझ रही थी कि मैं बात नही कर पाऊंगा
इसलिए उसने अब अपना फ़ोन बन्द कर लिया था!
मैं बहुत परेसान था!
एक दिन कविता के घरवाले गाड़ी में अपना सामान जमा रहे थे!
मैने उत्सुकता से पूछ ही लिया"अंकल कहा जा रहे हो सुबह सुबह??
अंकल"बेटा कविता की शादी है तो गांव से ही करने का विचार है इसलिए 2 महीनों के लिए गांव ही जा रहे है तुम्हारे पापा को मैंने बोल दिया है तुम भी साथ आना उनके"
ये सब सुनकर मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी थी कविता को देखा तो मुझसे नजरे नही मिला रही थी!
उसका बेरुखापन मुझे अंदर ही अंदर जला रहा था आंखों आंसू आने की देरी थी मन ही मन बहुत रो रहा था!
ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ मेरे सामने ही खत्म हो रहा हो जैसे कोई मेरी सांसो को मुझसे छीन रहा हो!
एक बार पुनः मैने अंकल से पूछा"अंकल लड़का क्या करता है क्या कविता राजी है शादी के लिए,अभी तो इतनी ज्यादा उम्र भी नही हुई है!"एक स्वास में अपनी बात कह दी!
अंकल ने बड़े प्यार से कहा"बेटा लडकिया पराया धन होती है इनकी खुशी के लिए ही मा बाप इतनी मेहनत करता है, लड़का अध्यापक है इसे बहुत खुश रखेगा"!
"अंकल मैं भी तो जवान हु मेरे ही शादी कर दो इसकी मैं भी तो खुश रखूंगा ओर तुम्हारे पास भी रहेगी जब चाहो मिल लेना"मजाकिया अंदाज में एक तरह से मैने अपनी बात कह दी!
इस बार अंकल ने भी जबाव मजाकिया अंदाज में दिया"बात तो सही है लेकिन तुम तो बेरोजगार हो और इसके नखरे कैसे उठाओगे,पढ़ लिख कर नोकरी लग जाओ तब जाकर तुम्हारा भी ब्याह हो जाएगा,इतनी जल्दी क्यो हो रही है तुम्हे?'"
अब अंकल की बातों का मेरे पास कोई जबाव नही था समझ नही आ रहा था किस तरह समझाऊ की मैं कविता से बहुत प्यार करता हु उसके बिना खुश नही रह पाऊंगा!
मैं कविता की एक झलक पाने के लिए बेताब हो रहा था और वो मुझे देखना तक नही चाह रही थी!
उसका इस तरह का व्यवहार मुझे अंदर ही अंदर तोड़ रहा था मन ही मन दुःखी हो रहा था!
लगभग सारा सामान रख दिया था अब बस जाने की तैयारी थी!
अंकल गाड़ी में बैठकर हॉर्न देने लगे और जोर से आवाज लगाई"अरे जल्दी करो फिर दोपहर हो जाएगी"
इतने में ही कविता का दीदार हो चुके थे!
उसके चेहरे की मुस्कुराहट तो मानो गायब ही हो चुकी थी मेरे से नजरे नही मिला पा रही थी!
हल्का पिले रंग का सूट सलवार उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे!हाथ मे लाल रुमाल लिए हुए अपनी आंखों को पोछ रही थी!
उसके चेहरे को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बहुत रो रही हो लेकिन मेरे सामने सामान्य रहने का नाटक कर रही हो!
तभी मैने उससे बात करने के बहाने कहा"कविता मेरी एक बुक है तुम्हारे पास उसे दे दो मैं पढ़ लूंगा तुम तो पता नही आओगी या नही"!
वो बुक लेने अंदर गयी मैं उसके पीछे ही अंदर चला गया!


जाइयेगा नही कहानियों का सफर जारी रहेगा.........


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

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