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परीत का बदला-भाग-1

रामगढ़ गांव डूंगर(पहाड़) की तलहटी में बसा हुआ है! ये छोटा सा गांव अपनी अलग पहचान लिए हुए था!
गांव तीन ओर से डूंगर से घिरा हुआ था जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहा था!
डूंगर से गांव को देखने पर कश्मीर की वादिया भी फीकी पड़ती नजर आती थी!
वैशाख का महीना था गर्मी अपनी आग बरसा रही थी,
गांव के अंदर बिजली की कोई खास व्यवस्था नही थी इसलिए लोग पेड़ो के नीचे ही गर्मी से बचाव करते थे!
रामु काका हुक्का कस ले रहे थे,आज उनका मन बिचलित हो रहा था!हुक्के की आग हल्की हल्की सुलग रही थी वे अपने बिचलित मन को हुक्के के कस के साथ पीना चाह रहे थे!
आज उनकी उनकी बैचनी भी जायज थी अपने छोटे बेटे को काफी डॉक्टरों ओर वैध के पास इलाज के लिए ले जाने के बावजूद भी कोई आराम नही मिल पा रहा था!
रामु काका के 3 बेटे थे! 1 बेटे ही शादी कर दी थी जिसके एक पुत्री थी! काका ओर छोटे भाई उस पुत्री को बहुत प्यार करते थे!
प्यार तो स्वाभाविक ही थी क्योंकि उनके परिवार का सबसे छोटी सदस्य थी!
शाम का समय हो चुका था लोगो की चहल पहल ज्यादा हो गयी थी! कुछ लोग बेटे सोनू को देखने आते और उसका हाल चाल पूछने के साथ कहते "किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ ओर कही पार नही पड़े तो अपने भोमिया बाबा की शरण मे ले चलो जल्दी ठीक हो जाएगा"
"छोरा कु यहां रख के मत बैठो!"
"अरे पटेल या काई बना दियो छोरा को या कु कब तक धर के बैठेगो गोठिया ओर भक्त न कु इकट्ठा कर ले आज भोमिया कु बुला लेंगे आज की आज या बीमारी को पातक कट जायेगो"भीड़ से निकल कर नारायणा पटेल रामु काका की ओर देखते हुए बोले!
रामु काका चिंतित भाव लिए हुए थे उनके चेहरे की मुस्कराहट तो मानो जैसे गायब हो गई थी!नारायणा पटेल की बात सुनकर उनका मन भी कुछ कुछ कहने लगा कि शायद भोमिया बाबा ही कुछ कर सकता है!
रामु काका निराशा पूर्ण भाव से "काई करू!सब डॉक्टरों को दिखा लिया जयपुर भी दिखा लायो पर छोरा के काई फर्क को दिख रो अब थ्यारा कहवा सु भोमिया कु भी बुला कर देख लू" काका ने अपनी बात रूखे मन से कह दी!
इतना कह कर काका बेजान पैरो से गोठिया के घर का रुख किया!
"बाबा,गोठिया बाबा काई हो रहा है?? काका ने बिचलित मन से पूछा!
"अरे आ पटेल आज तो घना दिन में आओ ओर छोरा का हाल किस्या है अब"गोठिया ने स्वागत रूपी भाव से आने के लिए कहा!
काका का मन अभी भी निराश था कुछ कहना भी चाहते थे पर शब्द नही मिल पा रहे थे,अपने रुन्दे हुए गले से बेटे के लिए करुणा रूपी भाव चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे!उनकी बेजान हो चुकी आवाज बाहर नही निकल पा रही थी!
गोठिया ने एक बार फिर पूछा"पटेल काई हाल है छोरा का किस्या चुप होगो??
इस बार काका की चुप्पी टूटी"बाबा कछु(कुछ) लाज रखे तो रख दे अब तो बस भोमिया बाबा ही कुछ कर सके है सब जगह दिखा लायो कोई फर्क नही पड़ रहा"इतना कह कर काका फिर से चुप्पी साध गए!
"देख पटेल,मैं तो बाबा सु अर्जी कर सकू हु बाबा जो कहेगा वही मैं कहूंगा अपनी ओर से जोड़ कर कहना नही आता!
कल भक्तन को भेड़ा(इकट्ठा) कर ले थान(स्थान) पर वही तेरा छोरा को इलाज हो जायेगो और तेरे श्रद्धानुसार जो बने वो कर दीज्यो"गोठिया ने एक लंबी स्वास भरते हुए कहा!
काका:- बाबा काई काई सामग्री लानी है वा भी बता दे हम तो अनजान है!
गोठिया:-अगरबत्ती का पैकेट,पताशा ओर लड्डू का प्रसाद ले आना और तेरे से श्रद्धानुसार जो बने वो ले आना!
काका:- ठीक है बाबा ले आएंगे पर छोरा को ख्याल रख ज्यो अब थ्यारी ही शरण न में आया हु!लाज रख दीज्यो म्हारी!
काका अपने बेजान पैरो से घर की तरफ चल दिया और रास्ते की दुकान से बताई गई सामग्री घर ले आया!
"बाबा ने काई बताई अब ठीक हो जायेगो का सोनू"काकी ने बिलखती हुई बोली!
काका ने प्रतिउत्तर देते हुए कहा" हा हो जायेगो कल भक्तन को इकट्ठा करेंगे और गोठिया बाबा के भोमिया बाबा आयगो सब इलाज कर देगो!
साोनु की तरफ देखते हुए काका बोले"बेटा अब काई दुखे है कुछ बता तो सही,कुछ खाने पर मन कर रहा हो तो बता दे!
साोनु काका के करुणा रूपी चेहरे को पढ़ रहा था हल्की सी मुस्कान लिए हुए चेहरे से कहा"काका अब तो सर दर्द कर रहा है बस,भूख नही है अभी होयगी तो कह दूंगा!
इतनी बात को सुनकर काका कर मन को कुछ प्रतिशत शुकुन मिला,मन ही मन भोमिया बाबा को शुक्रियादा करने लगे थे
अब उनको लग रहा था कि भोमिया बाबा ही इसे ठीक कर सकते है!


जाइयेगा नही कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मिलते है अगली क़िस्त में......


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

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