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परीत का बदला भाग-2

शनिवार का दिन था,शाम के समय सभी लोग भोमिया के थान(स्थान) पर इकट्ठा हो गए थे!इकट्ठा क्यो ना हो खौफ जो था भोमिया का लोगो के मन मे!
कहा जाता है कि भोमिया बाबा के थान पर घर मे से एक व्यक्ति का आना आवश्यक है!
लोगो के दिल और दिमाग मे भोमिया बाबा के प्रति अटूट प्रेम और श्रद्धा देखने को मिल रही थी! अजीब सी खुशी लोगो के मन को ओर प्रफुल्लित कर रही थी वो खुशी थी कि आज उन्हें भोमिया बाबा की झलक देखने को मिल पाएगी!
रामु काका भी अपने परिवार के साथ बाबा के थान पर आ गए!
काका को आज उम्मीद थी कि सारी समस्या खत्म हो जाएगी!
काका आज अटवाई(8 पूआ) ओर खीर का प्रसाद के साथ गोठिया द्वारा बताई गई सभी सामग्री बड़े ढंग से सजाकर दोड़ली(टोकरी) में लाल कपड़े से ढक कर लाये थे!
थान पर सभी भक्त घेरा बनाकर बैठे हुए थे बाकी आम जन नीचे बैठी थी!
थान एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे था जो लोगो को धूप से भी बचाता था!
ऐसा भी कहा जाता है इस नीम के पेड़ के पत्ते आमजन के लिए तोड़ना भी मना है यदि ऐसा किया जाता है तो भोमिया बाबा नाराज हो जाता है!माना जाता है कि भोमिया बाबा इसी में निवास करते है!
जैसे जैसे शाम ढल रही थी वैसे वैसे लोगो की भीड़ बाबा के थान की ओर उमड़ रही थी!
अच्छी खासी भीड़ आ चुकी थी भीड़ का नजारा देखते हुए भक्तो ने भजन गाना शुरू दिया था,जिन लोगो के समस्या थी उन्हें आगे बैठाया गया था ताकि फरयाद सुनने में आसानी हो!
ढांक बज रही थी भक्तो के भजन काफी तेज आवाज में सुनने को मिल रहा था!तभी एक बूढ़े बुजुर्ग ने गोठिया के माथे(सर) पर भभूत लगा दी!
भभूत भोमिया बाबा को बुलाने की प्रयोजन से लगाई गई थी!
कुछ क्षण बाद भजन की रफ्तार थोड़ी तेज हो चुकी थी
गोठिया के शरीर मे अजीब से परिवर्तन हो रहे थे,उसकी आंखें तन चुकी थी!गोठिया ने अपना आसन बदला और जो भक्तो द्वारा लगाया गया गद्दे का आसन उस पर जाकर घुटने के बल बैठ गया!अपने दोनों हाथ घुटने पर थे आंखों की भृकुटि चढ़ चुकी थी!
गोठिया शरीर कंपकपा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे ढांक की आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन पैदा कर रही हो जिससे गोठिया का शरीर अपने वश से बाहर होता जा रहा हो!
ढांक की हर आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन की सिरहन सी छोड़ रहा थी लग रहा था जैसे उसका शरीर ढांक की आवाज से ही हिल रहा हो,
गोठिया ने अपने दोनों हाथ घुटने पर रख लिए नीम की तरफ अपनी लाल हुए आंखों के सहारे देख रहा था!
इतने में एक भक्त खड़ा हो गया और कुछ नीम की डालिया तोड़ने लग गया,भक्तो ने भी अपने भजन की सुर को रफ्तार देना शुरू कर दिया था जिससे गोठिया अपने शरीर को अपने वश से बाहर होता महशुस कर रहा था!लोगो के चेहरे पर भी मुस्कान की एक लहर सी दौड़ रही थी उनको भोमिया का बाबा का काफी बेसब्री से इंतजार था!
बूढ़े बुजुर्ग ने रामु काका को आगे आने का इसारा किया रामु काका आगे आकर बैठ गया!
भक्त ने नीम की डालिया गोठिया के हाथों में थमा दी,गोठिया अपने माथे को हिला रहा था कभी कभी किलकारियां निकाल रहा था!अजीब सी आवाज उसके मुंह से निकल रही थी!गोठिया मुह से हुंकार भर रहा था तभी बूढा बुजुर्ग गोठिया के पास आकर बैठ गया कहने लगा "बाबा शन्ति सु आओ हम तो थ्यारा ही बालक है हम सु काई कु नाराज होवे कुछ गलती हुई हो तो माफ कर दो आप तो बड़े देव हो"बूढ़े बुजुर्ग ने विनम्रता पूर्वक अपनी बात रखी!
इस बात को सुनकर गोठिया ने एक लंबी हुंकार भरी ओर एक दम शांत भाव मे आ गया
बूढ़े बुजुर्ग ने लोगो की तरफ देखते हुए कहा"बोलो भोमिया बाबा की जय"!
लोग तो बाबा के दर्शन के लिए कब से उतावले थे उन्होंने नतमस्तक हो कर बड़े आदर पूर्वक जय कार लगाई!
"भोमिया बाबा की जय"

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त मिलते है अगली क़िस्त में


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

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