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अधूरी प्रेम कहानी-भाग-4

कविता बुक लेने अंदर गयी,मैं उसके पीछे पीछे ही अंदर तक पहुच गया!
कविता बुक ढूंढ रही थी!मेरी तरफ उसने एक पल भी नही देखा,उसका ये बेरुखापन मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था!
मैं बस उसे देखा ही जा रहा था वो किताब ढूढ़ने में व्यस्त थी!
अब मेरे सब्र का बांध टूट चुका था,मैने कविता का हाथ पकड़ लिया जिसका उसने विरोध नही किया लेकिन मेरी तरफ से नजर हटा ली!
"यार कविता मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही है मुझसे बात क्यो नही कर रही हो मुझे तेरा इस तरह का व्यवहार बिल्कुल रास नही आ रहा है" मैंने अपने रुन्दे हुए गले से अपनी बात कह दी!
कविता ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नही दी और अपने काम मे व्यस्त रही!
आखिर कब तक अपना सब्र रख पाता!
मैंने कविता का हाथ पकड़ लिया इतने में ही अंकल ने आवाज लगा दी "बेटा कितनी देर लगाओगी हमे चलना भी है जल्दी आओ"!
मेरी तरफ मुड़ते हुए कविता ने अलमारी में रखी गिफ्ट जो मैंने उसे पहली मुलाकात पर दी वो अपने बैग में रख ली ओर एक डायरी मुझे थमा दी!
मैं डायरी खोलने ही वाला था कि मेरे हाथ कविता ने रोक लिए ये कहते हुए की"इस डायरी को तुम्हे जब भी टाइम मिले अकेले में पढ़ना मैंने हमारी यादे इसमे संभाल कर रखी है अब हमारा रिश्ता खत्म हो चुका है मुझसे कभी मिलने की कोशिश मत करना,हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मैं तुम्हारे लायक नही थी!"इतना कह कर कविता की आंखों में आंसू आ चुके थे उसकी आवाज में बिछड़ने का दर्द साफ नजर आ रहा था!
मन ही मन टूट रहा था उसे समझा नही पा रहा था कैसे बताऊ की मैं उससे बेपनाह मोहब्बत करता हु बस मेरे कहने की हिम्मत नही हो पा रही थी!
वो अपना सामान पैक कर चुकी थी कमरे से निकलने लगी मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया!गले लग कर दोनों रोने लगे गए!
ओर एक दम से अलग हो गयी और अपने कदम गाड़ी की तरफ बढ़ा दिए मेरी तरफ देखना भी उसने जरूरी नही समझा!
मैं अपना उतरा हुआ मुह लेकर बाहर आ गया उसकी मम्मी ने गेट लगा दिया और वे गाड़ी में बैठ गयी!
गाड़ी जिस जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे लग रहा था मेरी दिल की धड़कन मुझसे दूर होती जा रही हो जैसे मेरी सांसे मुझसे दूर होना चाहती हो!
गाड़ी तो आंखों से ओझल हो गयी लेकिन वो तश्वीर अभी तक आंखों में बनी हुई थी!
मैं सीधे अपने रूम में आ गया और अब अपने आपको नही रोक पाया उस डायरी को देख देख कर रो रहा था!
आंखों में तो जैसे सैलाब सा आ गया था आंसुओ को रोक ही नही पा रहा था!
रोते रोते कब आंख लग गयी पता ही नही चला!
शाम को 5 बज रहे थे कि दोस्त की कॉल आ रही थी जिसने मेरी नींद को उड़ा दी थी!
थोड़ी देर बात करने के बाद अपना मुह धोकर टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया!
मेरी नजर उस डायरी पर पड़ी ये सोच कर उठा ली इसमे क्या लिखा है ये पढ़ लू!
डायरी को काफी अच्छे से सजा कर रखा गया था उस पर लिखे शब्दो की सजावट भी बहुत अच्छे ढंग से की गई थी!
जैसे मैंने पहले पेज को खोला उस पर मेरा नाम बहुत सुंदर सजावट के साथ लिखा हुआ था!
कविता मेरा नाम नही लेती थी लेकिन में मेरा नाम देख कर बहुत अच्छा लग रहा था!
पेज पर बड़ा सा दिल बना रखा था जिस पर मेरा नाम उभरते हुए शब्दों में लिखा हुआ था!
उसके नीचे एक दो शायरियां लिख रखी थी!मेरे मन मे उसे पढ़ने की इच्छा जागृत होने लगी!
माँ ने आवाज लगा ही दी " बेटे खाना खा ले पहले बाकी काम बाद में कर लेना"!
रूखे मन से डायरी को बंद करके छुपकर आलमारी में रख दी!
जब से कविता गयी कही मन नही लग रहा था!उसे बार बार कॉल किये जा रहा था लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी कविता ने अपना नम्बर बन्द करके रखा हुआ था!
काफी मेसेज भी किये थे उसे लेकिन किसी का रिप्लाई नही आ रहा था!
उसके कोई जबाव नही आने से काफी परेसान हो रहा था समझ नही आ रहा था क्या किया जाए
आखिर पल पल उसकी चिंता सता रही थी !
वक्त अपनी रफ्तार से निकल रहा था उसकी शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे वैसे वैसे मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी!
मैं अपने आप को टूटता हुआ देख रहा था ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ मेरे से मेरे सामने ही छीना जा रहा है और मैं दर्शक की भांति देख रहा हु!
दर्शक भी ऐसा जो सिर्फ देख सकता हो कुछ कर नही सकता हो!
बुधवार का दिन था,लगभग दोपहर के 3 बजे का टाइम हो रहा था! मैं अपने कमरे में सो रहा था!तभी नींद को झकोरते हुए मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी!
ये किसी ओर का फ़ोन नही कविता का फ़ोन आ रहा था!
जाइयेगा नही कहानियों का सफर जारी रहेगा
शेष अगली क़िस्त में.....
-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा

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