Wednesday, November 3, 2021

बचपन की दिवाली

बचपन की दिवाली

दिवाली एकमात्र ऐसा त्यौहार होगा जिसे आने के महीने भर पहले से तैयारी में लग जाते हैं। घर की साफ-सफाई, रंग–रोगन, तरह तरह मिठाई जिसमे मुख्य रूप से मावा की मिठाइयां सच में एक अलग ही उत्साह होता है| पर आज कितना भी बड़े हो जाए लेकिन बचपन की वो दिवाली नहीं भूली जा सकती | लेकिन ये सब अब नही देखने को मिलता

 जब दिवाली आने की सबसे ज्यादा खुशी होती थी क्यूंकि स्कूल की महीने भर की छुट्टियां | पर साथ मे
भगवान से प्रार्थना दिवाली का ढेर होमवर्क नहीं मिल जाए और अगर कोई टीचर ढेर सारा होमवर्क दे देता तो
वह किसी विलेन से कम नहीं लगता मन ही मन ढेरो गालियां तो दे ही देते थे । छुट्टियां आते ही थैला किस कोने में पड़ा होता यह तो पता ही नहीं चलता ??

छुट्टियों का अपना अलग ही मजा होता था सारे दिन दोस्तो के साथ घूमना,खेलना कूदना और मस्ती करना दिन तो पता ही नही चलता कब निकल गया और जब जीजी (मम्मी ) भाई (पापा) साफ सफाई की कह दे तो मानो जीव ही निकल गया हो दिवाली का सबसे बोरिंग पार्ट साफ सफाई करना ही लगता है।

शाम के टाइम जब भाई पटाखे लेकर आता तो महाभारत हो जाती मुझे ये नहीं चाहिए सुतली बॉम्ब ही चाहिए छोटा तो छोटा वाला (ज्ञानी) चला लेगा😂 
                                               टिकड़ी को छीलकर माचिस का बुरादा भरकर एक तगड़ा बम्ब बनाने का अपना अलग ही स्वैग था। कभी कभी तो दो बोल्ट के बीच में भर कर भी फेका करते थे ।

घर की छत और दीवारों को रोशनी की लड़ियो से सजाते। दीपकों में तेल भरकर जलाना और पडौसियो के घर जाकर दीपक जलाना देवी देवताओं के थान पर भी दीपक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी लेनी पड़ती थी

और जैसे लक्ष्मी पूजा हुई पटाखों से पूरे घर को गूंजा देना  दाल बाटी खाकर सो जाना सुबह जागते ही जले पटाखों को ढूंढना क्या पता कोई बचा साबुत पटाखा मिल जाए और उसको मिलने पर ऐसे खुश होते जैसे कोई खोया खजाना हाथ लग गया हो।

अगले दिन गोरधन पूजा पर दिन में ही चूरमा बाटी बनाते और शाम को गोरधन की पूजा की जाती बचपन से देखते आ दे है गोरधन भी भाई(पापा) ही बनाया करते है। हमारा गोरधन गांव में सबसे बड़ा बनता है । इसे गांव की एकता का परिचय भी कह सकते है लेकिन आजकल तो अलग घर घर में लोग पूजने लगे है दिनों दिन ये संख्या कम हो रही है ।

अगले दिन भैया दौज और ये त्यौहार हमारे कोई काम का नही था क्योंकि हमारे कोई बहन नही है हमेशा मौसी की लड़कियों की तरफ झांका चौकी करनी पड़ती थी अब दूसरा तो आए तो आए या नहीं आए
                                         अब हमने 2 धर्म की बहन बना ली ये कमी पूर्ति हो गई है।

ये सारी बात तो थी बचपन की लेकिन ये सब अब सपना सा बन कर रह गया है अब सारे बचपन के दोस्त बाहर रहने लगे है गांव आना जरूरी नहीं समझते कुछ जान कर नही आते तो कुछ की मजबूरियां हो गई है कुछ दोस्तो ने गांव से बाहर मकान बना लिए है तो वे ऐसे नही आते। यानी की सीधे तौर पर कहे तो अब गांव के लोगो का पलायन हो गया है।

                             गांव से लोगो के पलायन ने सारे त्योहारों की मटिया मेट कर दी है। आज दिवाली है लेकिन बिलकुल भी त्योहार जैसा नहीं लग रहा है।क्योंकि वो रौनक बिल्कुल भी नजर नही आती है अब तो ऐसे लगता है जैसे बचपन की दिवाली अब सिर्फ बचपन का सपना ही बन कर रह गया है।

✍️✍️जयसिंह नारेङा

Saturday, September 11, 2021

फेसबुकी संस्कारी

फेसबुक के संस्कारी

एक दो दिन पहले जब से पुलिस वालों वीडियो वायरल हुआ तब से प्रबुद्धजीवियो की टोली ने जन्म लिया है उन्हें लगता है इससे युवा बिगड़ रहे है और अपने फोकट के ज्ञान की फेसबुक गंगा बहा दी है जैसे वीडियो फेसबुक जीवियों जे बनाई हो ।

दरअसल इस युग में मुख्यतः संस्कारी 3 प्रकार के पाए जाते है।
👉 शुध्द संस्कारी
👉 मॉडर्न संस्कारी
👉 फेसबुक संस्कारी

आपको लग रहा होगा जैसे ये कोई टाइम पास कर रहा है इससे ज्यादा भी केटेगरी हो सकती है हा बिल्कुल हो सकती है क्योंकि हर प्रकार की प्रजाति जो पाई जाती है।

कल से इनके प्रवचन ऐसे लग रहे है जैसे मानो सनी लियोन और राखी सांवत का मिक्सर करके एक घोल बनाया मिया खलीफा और वही मिया खलीफा आज संस्कारो पर प्रवचन दे रही हो 😄😄😄

चलिए संस्कारियो की थोड़ी सी हकीकत जान लेते है ये वही संस्कारी है जो रात भर फ़ोन में दुनियाभर की पोर्न साइट खोलकर अपनी आत्मा की तृप्ति करते है और व्हाट्सएप पर ढेरो एडल्ट ग्रुप से जुड़े होते है ।

जब भी कोई वीडियो वायरल होती है तो ये मैसेंजर में वीडियो ना मांग कर सीधे व्हाट्सएप पर सम्पर्क करते है ताकि इनकी प्रायवेसी का ख्याल रह सके । यहां फोकट का ज्ञान बांटने वालो में से 99% व्यक्ति उपर्युक्त बताई प्रक्रिया से गुजरे हुए होते है ।।

फेसबुक पर समाजसेवी बने होने का टेग लेने के लिए वे समय समय पर ऐसी पोस्ट करते रहते है ये लोग भीड़ भाड़ वाले जगह या फिर यू कहे मोके वाली जगह पर महिलाओं पर कमेंट करने से नही चूकते और फिर पोस्ट करते है "आज के युग मे महिलाओं का शोषण हो रहा है" ताकि इनके स्टेटस में गिरावट ना आये ।।

कल के बुद्धिजीवी इनबॉक्स में वीडियो देखने के बाद ही तो पोस्ट कर रहे है अन्यथा उन्हें कैसे पता कि वीडियो में क्या था ??
और किस बजह से युवाओं का ध्यान भटक रहा है ये तो वही बात हुई खुद श्रीमान बैगन खाये औरों को परहेज बताए 😛😛

ऐसी बात नही है कुछ शुद्ध संस्कारी भी होते है । रही बात मॉडर्न संस्कारी की तो आप टिकटोक वाली भाभियो को देख ही सकते हो वैसे मैं भाभियो के खिलाफ एक शब्द नही बोलूंगा 😁😁

किसी की भावनाओं को ठेस पहुची हो तो एक बार अवगत अवश्य करवाये ताकि मैं दूसरी कड़ी लिखने की कोशिश कर सकू 😂😂

✍️ जयसिंह नारेङा

Sunday, September 5, 2021

मीणा हिन्दू या आदिवासी

काफी दिन से हिन्दू और आदिवासी की लड़ाई चल रही है....

दरअसल ये कोई लड़ाई नही है लेकिन इसे एक मुद्दा बनाया जा रहा है बात बात पर लोग तंज कसने लगे है कि तुम #हिन्दू हो या #आदिवासी हो ।

सुनने में अजीब लगेगा लेकिन एक ही जात ( मीणा ) दो भागों में वर्गीकृत हो रही है आधे लोग हिन्दू मीणा बने हुए है तो वही आधे लोग आदिवासी बने हुए है। 

जबकि सुप्रीम कोर्ट हमे आदिवासी मानता है और हमे आदिवासी का दर्जा दिया हुआ है हमारे ऊपर #हिन्दू_विवाह_अधिनियम लागू नही होता है वही दूसरी और हम कही न कही हिन्दू रीति रिवाजों के बहुत करीब है।

देखा जाए तो आदिवासी आज से ही नही आदि काल से ही झाड़ - फूक, टोटकों पर विस्वास करते आये है देवता भराने से लेकर भूत जिंदो की कहानियां भी आदिवासियों से ही जुड़ी हुई है । इन सब के साक्ष्य भी पुरातत्व विभाग के पास उपलब्ध है।

आदिवासियों का हिन्दू करण हुए ज्यादा समय नही हुआ इसे हिन्दू करण कह लीजिए या फिर होड़ कह लीजिए बात वही आकर रुकती है। 
                                आज जन्मदिन,सालगिरह और रिशेप्शन होने लगे है ठीक उसी प्रकार से त्योहारों को पनपाया गया है पहले क्रिसमस को कोई नही जानता था लेकिन आज हर कोई जानने लगा है कुछ तो मानने भी लगे है।

होली,दिवाली,रक्षाबंधन और अनत जैसे त्योहार हमारे फसलो से जुड़े हुए है आज से 30-40 साल पहले दीवाली पर पहले कोई लक्ष्मी पाना नही हुआ करता था आज होता है पहले केवल सिंदूर से बनाई जाती थी जिसकी कोई डिजाइन नही थी लेकिन आज बाजार से लक्ष्मी पाने के साथ साथ दुनियाभर के सामान और आरती का चिट्ठा भी दिया जाता है।

अब जिन लोगो ने केवल सिंदूर से बनाई थी उन्हें बनी बनाई मिल गयी तो उनका काम आसान हो गया यही समय के अनुसार बदलता जा रहा है।

हमारे बीच एक ऐसी #प्रजाति भी निवास करती है जिसका काम है जब तुम किसी त्योहार को मानते हो तो उनका कहना होता है कि तुम तो आदिवासी हो तुम क्यो मना रहे हो ??

"Wow बेटे ये अथाह ज्ञान तुझे ही है बाकी सब तो तुझे चूतिये लगते है ना ये जैसे इस त्योहार का किसी धर्म ने ठेका ले रहा हो अथवा कॉपीराइट या पेटेंट ले रखा हो
बाकी कोई नही मना सकता"

आदिवासी कौम हर धर्म हर त्योहार का सम्मान करती है हमारे लोग ईद पर भी बधाई देते है तो महावीर जैन की शौभा यात्रा में खड़े रहते है तो अजमेर में जाकर चादर भी चढ़ाते है कुछ हद तक पढ़े लिखे लोग क्रिसमस मनाते है। लेकिन मूर्ख लोगो को कौन समझाए की त्योहारों पर किसी धर्म का पेटेंट नही है इन्हें कोई भी मना सकता है ??

कुछ स्याने लोग ये भी तर्क देते है तुम फेरे क्यो लेते हो ?? " जैसे फेरे केवल हिन्दू ही लेते हो इन्हें इतना ज्ञान कहा है जैनी भी फेरे लेते है ।।

किसी धर्म के त्योहार को मनाने से तुम्हारी पहचान नही खो सकती लेकिन इतनी समझ कहा है ये तो बस भेड़ चाल चलने में लगे हुए है

आदिवासियों का लगाव शुरू से आर्यो के साथ रहा है जिसका मुख्य कारण हिंदुत्व धुर्वीकरण होना है।

हमारे लोग भोमिया,परीत,पठान,हीरामन और भेरू जैसे देवताओं को पूजा करते थे आज भी इनके 100 में से 95 घरों में राम की तस्वीर नही मिलेगी । आदिवासी कुल देवी देवताओं की कोई तस्वीर नही हुआ करती थी ना ही कोई डिजाइन हुआ करती थी केवल एक पत्थर को गाढ़ कर उसी में अपने देवता का निवास समझते थे
                                             जैसे मीन भगवान को जबरदस्ती थोपा गया है ठीक उसी प्रकार से काल्पनिक भगवानों को थोपा गया है ।

कुछ धर्म के ठेकेदार या फिर कहे कि मानसिक विकलांगता से ग्रसित लोग पोस्ट पर उल्टी कर सकते है हो सकता है FIR की धमकी देने लगे ।।

बिल्कुल आप हिन्दू है हम तो इस बात को स्वीकार भी करते है लेकिन कभी सोचा है कि तुम कोनसे हिन्दू हो ??
क्योकि हिंदुओ के 4 वर्ण होते है (1) ब्राह्मण -जो कि सर्वश्रेष्ठ है ( 2 ) क्षत्रिय ( 3 ) वैश्य और अंतिम ( 4 ) शुद्र -जिनका जन्म उपरोक्त 3 वर्णों की सेवा करने के लिए मात्र हुआ है।। 

कभी स्वयं के दिमाग से सोचना फिर तय करना तुम कौन हो ??

लेखक
जयसिंह नारेङा

Saturday, August 28, 2021

हक मांगना किसान की गलती

क्या गलती है इस किसान की 
यही की ये हक मांग रहा था ?? 

अब गूंगी बहरी सरकार से हक मांगना भी गुनाह हो गया है मंदिर के लिए चंदा मांग लेता तो इसे न्यूज़ में दिखा दिखा कर फेमस कर देते।
इसकी गलती है इसने अपने बच्चों को पालने के लिए लड़ाई लड़ रहा है इसकी गलती है कि ये घर परिवार को छोड़ कर सरकार से लड़ रहा है इसे जमीन में एक मंदिर बना देना चाहिए और भूखी नंगी जात को उसमे पुजारी रख देना चाहिए तब तो ये महान हुआ अन्यथा किसान बनेगा तो लोग किसानों को ऐसे ही मारते रहेंगे ।

                        सरकार किसानों का मान सम्मान बढ़ाने की बात करती है वो मान सम्मान लट्ठ देना ही तो है ये मान सम्मान कम है क्या जो आज एक किसान को खुनो से लतपथ कर दिया जबकि उसकी गलती ये थी कि वो अपने बाल बच्चों को पालने के लिए तानाशाही सरकार से अपना हक मांग रहा है।

अब कोई नेता इसके साथ नही लगेगा क्योकि नेताओ को डर है टिकट कट जाएगा पार्टी सीडी वायरल कर देगी या फिर अपना मंत्री पद चला जायेगा ।
          
                               रही बात विपक्ष की तो विपक्ष है ही कहा ?? विपक्ष तो खुद ही इनके साथ है वो मौन रह कर इन्हें समर्थन दे रहा है विपक्ष कभी किसानों के साथ रहा ही नही ।

ये किसान है मोदी जी ये पत्थर पर भी कमा सकते है लेकिन इन्हें स्वाभिमान की रोटी पसंद है। ये फसल पैदा करते है ताकि तुम जैसे नेताओं और उनके चमचों का पेट भर सके ।
             किसान तो वो कौम है जो अपने निवाले का आधा टुकड़ा दूसरे लोगो को दे देता है ताकि उसका भी पेट भर सके गांवों आज भी कुछ जातियां किसान के अनाज पर जीवित है जो फसल पकने पर मांगने आ जाती है और किसान हंसते हंसते हुए अपने बच्चों की तरह पाली हुई फसल को दे देता है।

जोहार किसान
जय अन्नदाता 🙏🙏🙏🙏

जयसिंह नारेङा

Thursday, July 15, 2021

सामान का बहिष्कार करो

एक समय हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाने लगा था  । हमारे देश के अवसरवादी लोग बहुत बड़े देश भक्त होने का ढोंग किया करते है।

एक बार उस देश पर किसी पड़ोसी देश ने हमला कर देता है । हमारे देश के लोगो के द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना शुरू कर दिया जाता है कि पड़ोसी देश के समान (चाइना का माल )का बहिष्कार करो।

उन लोगो को काफी ज्यादा लाइक आ गए पोस्ट पर और फॉलोवर भी बढ़ गए। लेकिन जब हालात सामान्य हो गए तब वो ही लोग दूसरे देश की चीजें बाजार से सस्ते में खरीदने लग गए।

नोट-यह घटना पूरी तरह से काल्पनिक है। इसका किसी सत्यता से सम्बन्ध मिलता है तो इसे संयोग मात्र माना जायेगा ।
© जयसिंह नारेङा

Tuesday, July 13, 2021

सोशल मीडिया

आजकल सोशल मीडिया का दौर है! चैटिंग तो जोरों शोरों पर रहती है आज के दौर में सब मोह माया के चक्कर में फंसे हुए हैं | 
बाबू सोना से चैटिंग करने का टाइम है पर अगर माँ बाप कुछ काम की बोल दे तो पढ़ाई का बहाना / नोकरी का बहाना या अन्य किसी काम का बहाना बना लेंगे

आजकल सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा तो सोशल मीडिया पर
देखने को मिलती है ..
फोटो पोस्ट करते ही चेक करने लगते हैं अरे उन फलाने का लाइक कमेंट नहीं आया! आज से मै भी इनकी पोस्ट पर लाइक कमेंट नही करूँगा! कहीं स्टेट्स देखने की प्रतिस्पर्धा तो कहीं वो पहले मैसेज नहीं करते हैं तो मैं क्यों करूँ!

वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल साइड पर ही अगले व्यक्ति की निजी जिंदगी का आकलन कर लेते हैं ..
अगर कोई व्यक्ति थोड़ा रोमांटिक स्टेटस लगा दे तो प्यार का चक्कर है, अगर गम भरे लगा दे तो भैय्या पक्का छोरी छोड़ गयी है 
आजकल लाइक कमेंट की भी होड हो चुकी है 
आगे फ्लाना ढीकाना , etc ....

                                     कोई किसी के वाट्सऐप स्टेटस से उसके करेंट स्टेट्स का अंदाजा नहीं लगा सकता कि वो किस परिस्थिति से गुजर रहा है ।

© जयसिंह नारेङा

Saturday, July 10, 2021

सोशल मीडिया और हम

सोशल मीडिया और हम

आज का दौर युवाशक्ति का दौर है। भारत में इस समय 65 प्रतिशत के करीब युवा हैं। इन युवाओं को बड़ी  ही सक्रियता से जोड़ने का काम सोशल मीडिया कर रहा है। युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है।

युवाओं के  उसी क्रेज़ के कारण आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर मैं इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि बन गया है। एक परिभाषा के अनुसार, 'सोशल  मीडिया को परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच कहा जा सकता है जिसके माध्यम से लोग संवाद करते हैं, आपसी  जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ता जनित सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रक्रिया के एक अंश के रूप में संशोधित  करते हैं।' सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की जिंदगी का एक अहम अंग बन गया है। यह सही है कि इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना  किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकते हैं, परन्तु इससे अपराधों में भी वृद्धि हुई है। रोज नए नए दादा इस सोश्ल साइट पर जन्म ले रहे है ऐसे रोज लाइव आकर धमकिया देना तो आम प्रवती हो गयी है ! खैर दादाओ के बारे मे मैं ज्यादा नही लिखुंगा बाकी आप सब समझ दार हैं असल मे ये दादा नहीं होते है ये मोटर साइकल चोर हो सकते है ,बदमाश हो सकते है या यू कहे किसी बड़े चोर के चेले हो सकते है अभी के दौर मे स्मेक पीने वाले भी नशे मे धमकिया दे देते है

सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है।  सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी  बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। 

आज दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हैं।  वर्तमान मैं यह सोशल मीडिया लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया हैं। हम अगर किसी से नाराज हैं, किसी की बातों का प्रत्यक्ष  प्रत्युत्तर नहीं दे पाते हैं, आज सोशल मीडिया पर सभी लोग खाने ,पीने ,व कही घूमने फिरने से लेकर हर वक्तअपना स्टेटस अपडेट करता रहता है। कमी ये रह जाती है की वे ह्ंग्ते वक्त फोटो अपडेट नही करते है हमें जिसकी अज्ञानता पर आश्चर्य होता रहता है, वह भी पचास तरह की फालतू पोस्ट से अपना प्रोफाइल भर देता है।  सोसल साइट्स आज मन की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं, मन को जोड़ने का भी साधन है। सोशल मीडिया पर केवल मस्ती मज़ाक ही पोस्ट ना करके कुछ व्यक्ति अपना मत व जानकारी उपलब्ध करवाता है जो कही न कही आपके और हमारे दैनिक जीवन मे काम आती है । युवाओं के जीवन में  सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है।  आज सोश्ल मीडिया प्लैटफ़ार्म पर बच्चो से लेकर बूढ़े तक सभी जुड़े हुये है जिनमे से 65 % से भी अधिक मात्रा मे युवाओ की संख्या का आंकलन किया गया है इस प्लैटफ़ार्म के माध्यम से कुछ साथी इतने अच्छे मिले है  जिनसे प्रत्यक्ष रूप से कभी मिला नहीं। परन्तु हमारी आदतें, हमारी अभिरूचि, हमारा सोच आदि में मेल है और हम चैटिंग, व्हाट्सएप आदि पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मेरे कई साथी मित्र ऐसे है जो की साहित्य और सामाजिक सेवा मे लगे हुये ऐसे मित्रों की प्रतिक्रियाएँ मुझे प्रभावित करती हैं और कुछ मित्रो के विचारों का मैं समर्थन भी करता हूँ। फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम,ब्लॉग आदि सोशल मीडिया के और न जाने कितने ही रूप इन दिनों इंटरनेट की मायावी दुनिया में शुमार हो चुके हैं और इनके उपयोग करने बालों की संख्या भी रोज बढ़ती जा रही है। कभी कभी सोशल मीडिया पर आपसी मनभेद और मतभेद हो जाते है जो की एक विकराल रूप ले लेते है  एक- दूसरे में हाथापाई या जान जोखिम हो सकता है । इससे बेलगाम तरीके से एक-दूसरे को कुछ भी कहने, गाली-गलौज तक की सुविधा आसान है। ये भी सुविधा है कि ऐसी स्थिति में जिससे बात करना या जिसकी बात सुनना न चाहें, उसे अनफ्रेंड कर दें, या ब्लॉक कर दें।

कल्पनाओं को दिखाने में लगे रहते हैं। देश में कई ऐसी घटनाएँ सामने आयी हैं कि एक 40-45 साल का युवा 20-22 साल अपनी उम्र डालकर तथा कोई स्मार्ट सा फोटो डाल कर अपना प्रोफाइल बनाता है जिनमे अधिकतर फोटो एडिटिंग किए हुये होते है । उससे आकर्षित होकर कई लड़कियाँ मित्र बना लेती हैं, बन जाती हैं। बात में मिलना-मिल्राना, शादी का झाँसा और
फिर शारीरिक संबंध। ऐसे युवाओं से कहना चाहूँगा कि यार दोस्ती ही करनी है तो परिचितों से क्‍यों नहीं? नए-नए पोज़ का सेल्फी हर सेकेण्ड में सोशल साइट्स पर डाल दिया जाता है। किसी अपरिचित मित्र का कमेन्ट आता है 'बॉउ'। आप रिप्लाई करते हो 'थैंक यू। फिर अनाप-सनाप कमेंट। जरा सोचो कि क्‍या राह चलते कोई लड़का तुम्हें देखकर 'बॉउ' 'नाइस' करे तो तुम
'थैंक यू' बोलोगे? अगर कोई आपके प्रोफाइल फोटो पर 'क्या हॉट है" कमेंट करता है तो आप दिल या स्माइल का
सिममबल्र भेजते हो, मगर वहीं लड़का आपके सामने आकर किसी लड़की को बोले तो आप उसे छेड़ने की जुर्म में अंदर करवा दोगे। और वैसे भी फेसबूक पर आजकल FIR करवाने का दौर चल रहा है  जरा सोचिए कि क्‍या हम इतना भी रियल नहीं रह गए। सोशल साइट्स पर अभद्र कमेंट करना उतना ही अपराध है जितना प्रत्यक्ष। अक्सर युवावर्ग मैं ऐसा देखा जाता है कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रहता है। दोस्तों से गप्पें लड़ाने में, लड़कियों को पटाने की कोशिश में, या फिर गेमिंग और ऐसी हरकतों में जिनसे उनके करियर या जिंदगी में कोई फायदा तो नहीं ही हो सकता। ऐसे चंद, बिरले ही युवा हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर सक्रियता उनके लिए किसी तरह से लाभकारी साबित हई हो, चाहे काम-काज या नौकरी के सिलसिले में या फिर निजी जीवन के किसी पहलू में। ऐसे उदाहरण
कम ही मिलते हैं, जिनमें सोशल मीडिया के अधिकाधिक इस्तेमाल से किसी व्यक्ति का भला हुआ हो। सोशल मीडिया पर दोस्ती बढ़ाकर लड़के -लड़कियों को ठगे जाने के मामले रोज ही सामने आते हैं। दो-चार दिल सोशल मीडिया के जरिए भल्ले ही आपस में जुड़ गए हों, लेकिन न जाने कितने ही दिल टूटने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। 

खैर ये विषय कभी खत्म नही होने वाले है आजकल फेस्बूक नया ट्रेंड चला है फेसबूक पर चुनाव लडने का इस पर मैं पहले भी एक पोस्ट डाल चुका हु लेकिन फिर भी दुबारा लिख रहा हु आजकल चुनाव आओगे के द्वारा चुनाव आयोजित नही होते उस से ज्यादा तो फेसबूक पर फोक्टे नेताओ के द्वारा करवा दिये जाते है आजकल चुनाव भी पैसो मे होने लगे है ये अपने आप मे सोचने का विषय है की हम किस और जा रहे है ये कही न कही युवाओ को भटकने की आदत लगा रही है जिनहे गाँव मे कोई नही जानता है वह फेसबूक पर नेता बन रहा है 

बाकी चर्चा अगली किश्त मे करेंगे .....

© जयसिंह नारेङा

गलतफहमी

#गलतफहमी

शब्द सुनने जितना आसान लगता है ये असल मे उतना ही उलझा हुआ है किसी बात को लेकर हुए मतभेद से उपझे ख्यालो को मनभेद के रूप में जन्म दे देता है।
                                            अक्सर लोग मानते हैं कि फला व्यक्ति से मेरी नहीं बन सकती क्यूंकि उसकी सोच-विचारधारा मुझसे बिलकुल भिन्न है ।

वैचारिक सम्बन्ध अलग चीज़ हैं और व्यक्तिगत सम्बन्ध अलग । वैचारिक रूप से तो कर्ण और दुर्योधन भी एकदम विपरीत थे किन्तु फिर भी आज तक दोनों की मित्रता की मिशाल दी जाती हैं।  बहुधा मतभेद से हम अज्ञान के कारण मनभेद उत्पन्न कर बैठते है यह मनभेद वास्तव में स्वार्थ का पर्याय है और इसका उदय भी अज्ञान के कारण होता है। आवश्यकता इस बात कि है कि हम हर परिस्थिति और कर्म को अलग दृष्टीकोण से भी सोच कर देखें, शायद यहीं से आपको अच्छे-ख़राब का असल भेद ज्ञात होगा। मगर किसी भी हाल में मतभेद के कारणों को मनभेद तक ना आने दें,अन्यथा आपकी तमाम क्रियाशीलता एक स्वार्थ, जलन और हीन भावना का रूप ले बैठेगी और आपका विकास मार्ग स्वयं अवरुद्ध हो जायेगा । 
     
                         मेरे लिए व्यवहार सर्वोपरि है भलेई उससे मेरे वैचारिक मतभेद ही क्यो ना हो  । फेसबुक पर रोज किसी न किसी से किसी कारण वश न जाने कितनी बार मतभेद होते रहते है लेकिन उन्हें दैनिक जीवन मे उतरना मूर्खता शिवाय कुछ नही है ! 

लेखक
©जयसिंह नारेङा

Tuesday, July 6, 2021

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी

नमस्कार फेसबूक के विद्वानो   ! 
आप सभी शोधार्थियों,ज्ञानार्थियों, मनोरंजनार्थियों को।
व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी  के प्रधान कार्यालय फेसबूक 
में आपका हार्दिक स्वागत है ?
 इस यूनिवर्सिटी  में प्रवेश करने का सीधा सा फ़ण्डा है। 
कुछ प्रमुख शर्तें जो हैं-
1-आपके पास एक स्मार्ट फ़ोन हो।
2- आप फेसबुक,व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम,ट्विटर आदि-आदि के खाताधारक हों।
3- आपके मोबाइल में इंटर नेट पैक हो।
4- इसके लिए बर्बाद करने के लिए आपके पास भरपूर वक्‍त हो।
यदि आप उपरोक्त शर्तों को पूरा करते हैं तो व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी आपको पूरा यकीन दिलाता है कि विविध
विषयों और मुद्दो के व्याखाता  (जिनकी बैध डिग्री की कोई गारण्टी नहीं है) आपको ऐसा-ऐसा ज्ञान बांटेंगे की अच्छे-अच्छों के दिमाग की बत्ती गुल हो जाएगी।
व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी के इस ज्ञान से और कुछ हो न हो आपका समय अवश्य व्यतीत हो जाएगा । व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी यहाँ प्रकाशित ज्ञान की न तो पुष्टि करता है न ही समर्थन करता है। 
                         यह ज्ञान विभिन्‍न माध्यमों से एकत्र है। इसकी सच्चाई में कितना दम है यह या तो आप जैसे शोधार्थियों के दिमाग़ की परीक्षा है या इसे आप केवल मनोरंजन के लिए ही देंखें तो यह आप सभी के लिए बेहतर होगा मजे की बात तो यह भी है की लोग इसे इतना प्रचारित करते है जिसकी कोई सीमा नही है ।
जितनी जल्दी आप इस यूनिवर्सिटी  से जुड़ैंगे उतनी जल्दी आप ज्ञानी से महाज्ञानी बन पाएँगे और यदि तुम्हारे पास सरकारी नोकरी है तो फिर तुमसे बड़ा विद्वान कोई नही हो सकेगा लोग तुम्हें लेखक से विद्वान कहने से नही चूकेंगे और यहा तक की तुम्हारे भी भक्त और अंधभक्त बनेंगे जो समय समय पर तुम्हारा मुफ्त प्रचार करते रहेंगे । 
इस यात्रा में हम सोशल मीडिया पर मुफ़्त मैं प्रचारित ज्ञान को आपके लिए पुनः प्रकाशित करेंगे।

© जयसिंह नारेङा

Sunday, June 27, 2021

राजेश पायलट ने किरोड़ी लाल को हराया

राजेश पायलट ने किरोड़ी लाल को हराया

चुनाव का मैदान भी कुश्ती के दंगल की तरह होता है दांव पेंच तो दोनों ही लगाते है लेकिन एक की कुश्ती ने हार होती है। 
ठीक उसी प्रकार चुनाव में भी यही हाल होता है #राजेश_पायलट गुर्जर ही नही सर्व समाज के चहेते नेता थे और वे कांग्रेस जैसी दिग्गज पार्टी के नेता थे । वो समय ही कांग्रेस का था उस समय बीजेपी को वोट कोई नही देता था यहाँ तक कि बीजेपी का टिकट भी कोई लाना नही चाहता था ऐसा तो बहुत बार हुआ था जब बीजेपी को कोई टिकट लेने वाला नही मिला । राजस्थान तो कांग्रेस मय था ही !!
                            
दौसा का चुनावी आखाड़ा गुर्जर मीणा बाहुल्य था इसमे राजेश पायलट जो पहले से ही लोगो के चहेते बन चुके थे बने भी क्यो नही आखिर वे सर्व समाज के लिए तत्पर रहते थे दीन हिनो की आवाज बनते थे और दूसरी तरफ वे कांग्रेस के बड़े नेता थे उस समय कांग्रेस का एक तरफा राज हुआ करता था यू कह सकते है कांग्रेस की आंधी थी।
                    
        ऐसे में दौसा से बीजेपी ने किरोड़ी लाल को मोहरा बना कर मैदान में उतार दिया डॉ किरोड़ी लाल के लिए ये अपना ग्रह जिला था लेकिन बीजेपी को वोट मिल पाना बड़ा कठिन था क्योंकि बीजेपी से हर समाज नफरत करता था कोई बीजेपी को वोट देना नही चाहता था ऐसे में राजेश पायलट के सामने लड़ना भी एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि राजेश पायलट यहां के दिग्गज नेता थे

हुआ भी कुछ ऐसा ही डॉ किरोड़ी लाल चुनाव लड़े भी लेकिन बीजेपी को समर्थन नही मिलने से वे चुनाव हार गए लेकिन अपनी छाप छोड़ गए 

डॉ साहब ने राजनीतिक जीवन मे जीत से ज्यादा हार का सामना किया है लेकिन कभी जनता से दूरी नही बनाई वे इसी बजह से आज इस दौर के एक बहुत बड़े दिग्गज नेता है आज वे अच्छे पद पर जगह नही बना पाए लेकिन जनता के दिलो में आज भी किरोड़ी लाल धड़कता है। 

समाज चाहे कोई भी हो किरोड़ी लाल ने हर वक्त साथ दिया है उन्होंने हर समाज के लिए जन आंदोलन किये है वे कभी भी जातिवाद नही करते है लेकिन समाज कंटको यानी असामाजिक तत्वों ने और मीडिया ने उन पर जातिवाद का धब्बा लगा दिया ।

                                 किरोड़ी लाल के बंगले पर कभी भी जा कर देख सकते है जितनी भीड़ मुख्यमंत्री आवास पर देखने को नही मिलेगी उससे कही ज्यादा भीड़ किरोड़ी लाल के बंगले पर हमेशा रहती है और उस भीड़ में हर समाज का चेहरा नजर आएगा ।

डॉ साहब को कभी पार्टी ने तबज्जो नही दी लेकिन जनता ने उन्हें अकेला नही छोड़ा इसी की बदौलत है की किरोड़ी लाल कुछ नही होने के बावजूद भी सरकार से भीड़ जाते है और उनकी समस्याओं को दूर करके ही दम लेते है । 
          जनता के लिए 24*7 खड़े रहने वाले नेता है तो वो है किरोड़ी लाल

लेखक
जयसिंह नारेङा

Sunday, June 20, 2021

#फादर्स_डे_या_दिखावा

    #फादर्स_डे_या_दिखावा

आज सभी फेसबुक के दिखावटी प्राणी " फादर्स डे" मना रहे है। मनाना भी चाहिए लेकिन एक ही दिन क्यो ?? हर रोज क्यो नही ??

आज आभासी दुनिया के आभासी प्राणी फेसबुक पर जमकर बधाई दे रहे है क्या बाकई आज बाप के लिए कुछ स्पेशल किया या फिर उन्होंने वास्तविक रूप से बाप को नमस्कार भी किया लगभग किसी ने नही.....
खैर छोड़िये जो आप फेसबुक पर पोस्ट डालकर बाप प्रति प्यार जता रहे है वो उन्हें दिखाया या फिर आपके पिताजी फेसबुक पर आपकी प्रतिक्रिया देख पा रहे है शायद ये भी नही ......फिर ये दिखावा क्यो जब बाप इन सब आडम्बरो को देख ही नही पा रहा हो ।।
                                                आज भी बाप के लिए तो वही आम दिन है जो हर रोज हुआ करता था ।

जबकि माँ बाप के लिए तो बेटा बेटी हर रोज स्पेशल होता है वो अलग बात है कि छोटी मोटी लड़ाई होती रहती है!

बचपन से लेकर आजतक हर दिन, हर घण्टे, हर मिनट और हर सेकेण्ड जो भी हमने सांसे गिनी है, वो सब पापा की बदौलत है। हम और हमारा अस्तित्व तो सिर्फ उनकी बदौलत, हमारी एक पहचान है यहां तक कि सर नेम भी हमारा उनकी बदौलत है।

माँ हमे जन्म देती है लेकिन माँ के साथ साथ हमारा भरण पोषण करने वाला और कोई नही हमारा बाप ही होता है परिवार के वजन को अपने सर पर लेकर हमे किसी चीज की कमी होने देता । परिवार रूपी बगिया के माली हमारे पिता होते हैं, जो इस बगिया की देखभाल पुरे तन मन धन से करते हैं वो भी निःस्वार्थ।

एक ऐसे इंसान जो सारी जिंदगी सिर्फ हमारे लिए मेहनत
करते हैं, पैसे कमाते है, हमारे और हमारे परिवार के सपनो को पूरा करने में वो कभी नहीं थकते, वो पिता होते हैं।

माँ के बाद जो हमारे दूसरे भगवान होते हैं, जिनकी वजह से पूरे हमारे अरमान होते हैं, वो पिता होते हैं।

लाखों कष्ट सहकर उफ़्फ़ भी नहीं करते, और हमारी छोटी सी खरोंच पर भी परेशान हो जाने, पिता होते हैं।
खुद तकलीफ में हों लेकिन, हमारे आँखों को देखकर हमारे मन की आवाज सुनने वाले, पिता होते हैं।

हमारी ख़ुशी में अपनी खुशी ढूंढने वाले सिर्फ और सिर्फ हमारे पिता होते हैं। पर आज अफ़सोस इस बात का है कि वो बाग जिसे कभी किसी पिता ने बसाया था, उन छोटे छोटे नाजुक से पौधों  को जिसने पेड़ बनाया था, उसी वृक्ष के छाँव की उन्हें जब जरूरत होती है, तो न जाने कहाँ से उस विशाल वृक्ष के सारे पत्ते ये कहकर झड़ जाते हैं कि अब तो पतझड़ का मौसम है, आपको
किसी और के बगीचे में चले जाना चाहिए। कितना दुःखी
होता होगा वो माली, जिसने खून पसीने से सींच कर एक छोटे पौधे से इतना विशाल वृक्ष बनाया, आज वही उन्हें छाँव भी नहीं दे पा रहा, उनके दुःख की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

लेखक

जयसिंह नारेङा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...