Sunday, June 20, 2021

#फादर्स_डे_या_दिखावा

    #फादर्स_डे_या_दिखावा

आज सभी फेसबुक के दिखावटी प्राणी " फादर्स डे" मना रहे है। मनाना भी चाहिए लेकिन एक ही दिन क्यो ?? हर रोज क्यो नही ??

आज आभासी दुनिया के आभासी प्राणी फेसबुक पर जमकर बधाई दे रहे है क्या बाकई आज बाप के लिए कुछ स्पेशल किया या फिर उन्होंने वास्तविक रूप से बाप को नमस्कार भी किया लगभग किसी ने नही.....
खैर छोड़िये जो आप फेसबुक पर पोस्ट डालकर बाप प्रति प्यार जता रहे है वो उन्हें दिखाया या फिर आपके पिताजी फेसबुक पर आपकी प्रतिक्रिया देख पा रहे है शायद ये भी नही ......फिर ये दिखावा क्यो जब बाप इन सब आडम्बरो को देख ही नही पा रहा हो ।।
                                                आज भी बाप के लिए तो वही आम दिन है जो हर रोज हुआ करता था ।

जबकि माँ बाप के लिए तो बेटा बेटी हर रोज स्पेशल होता है वो अलग बात है कि छोटी मोटी लड़ाई होती रहती है!

बचपन से लेकर आजतक हर दिन, हर घण्टे, हर मिनट और हर सेकेण्ड जो भी हमने सांसे गिनी है, वो सब पापा की बदौलत है। हम और हमारा अस्तित्व तो सिर्फ उनकी बदौलत, हमारी एक पहचान है यहां तक कि सर नेम भी हमारा उनकी बदौलत है।

माँ हमे जन्म देती है लेकिन माँ के साथ साथ हमारा भरण पोषण करने वाला और कोई नही हमारा बाप ही होता है परिवार के वजन को अपने सर पर लेकर हमे किसी चीज की कमी होने देता । परिवार रूपी बगिया के माली हमारे पिता होते हैं, जो इस बगिया की देखभाल पुरे तन मन धन से करते हैं वो भी निःस्वार्थ।

एक ऐसे इंसान जो सारी जिंदगी सिर्फ हमारे लिए मेहनत
करते हैं, पैसे कमाते है, हमारे और हमारे परिवार के सपनो को पूरा करने में वो कभी नहीं थकते, वो पिता होते हैं।

माँ के बाद जो हमारे दूसरे भगवान होते हैं, जिनकी वजह से पूरे हमारे अरमान होते हैं, वो पिता होते हैं।

लाखों कष्ट सहकर उफ़्फ़ भी नहीं करते, और हमारी छोटी सी खरोंच पर भी परेशान हो जाने, पिता होते हैं।
खुद तकलीफ में हों लेकिन, हमारे आँखों को देखकर हमारे मन की आवाज सुनने वाले, पिता होते हैं।

हमारी ख़ुशी में अपनी खुशी ढूंढने वाले सिर्फ और सिर्फ हमारे पिता होते हैं। पर आज अफ़सोस इस बात का है कि वो बाग जिसे कभी किसी पिता ने बसाया था, उन छोटे छोटे नाजुक से पौधों  को जिसने पेड़ बनाया था, उसी वृक्ष के छाँव की उन्हें जब जरूरत होती है, तो न जाने कहाँ से उस विशाल वृक्ष के सारे पत्ते ये कहकर झड़ जाते हैं कि अब तो पतझड़ का मौसम है, आपको
किसी और के बगीचे में चले जाना चाहिए। कितना दुःखी
होता होगा वो माली, जिसने खून पसीने से सींच कर एक छोटे पौधे से इतना विशाल वृक्ष बनाया, आज वही उन्हें छाँव भी नहीं दे पा रहा, उनके दुःख की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

लेखक

जयसिंह नारेङा

No comments:

Post a Comment

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...