#गलतफहमी
शब्द सुनने जितना आसान लगता है ये असल मे उतना ही उलझा हुआ है किसी बात को लेकर हुए मतभेद से उपझे ख्यालो को मनभेद के रूप में जन्म दे देता है।
अक्सर लोग मानते हैं कि फला व्यक्ति से मेरी नहीं बन सकती क्यूंकि उसकी सोच-विचारधारा मुझसे बिलकुल भिन्न है ।
वैचारिक सम्बन्ध अलग चीज़ हैं और व्यक्तिगत सम्बन्ध अलग । वैचारिक रूप से तो कर्ण और दुर्योधन भी एकदम विपरीत थे किन्तु फिर भी आज तक दोनों की मित्रता की मिशाल दी जाती हैं। बहुधा मतभेद से हम अज्ञान के कारण मनभेद उत्पन्न कर बैठते है यह मनभेद वास्तव में स्वार्थ का पर्याय है और इसका उदय भी अज्ञान के कारण होता है। आवश्यकता इस बात कि है कि हम हर परिस्थिति और कर्म को अलग दृष्टीकोण से भी सोच कर देखें, शायद यहीं से आपको अच्छे-ख़राब का असल भेद ज्ञात होगा। मगर किसी भी हाल में मतभेद के कारणों को मनभेद तक ना आने दें,अन्यथा आपकी तमाम क्रियाशीलता एक स्वार्थ, जलन और हीन भावना का रूप ले बैठेगी और आपका विकास मार्ग स्वयं अवरुद्ध हो जायेगा ।
मेरे लिए व्यवहार सर्वोपरि है भलेई उससे मेरे वैचारिक मतभेद ही क्यो ना हो । फेसबुक पर रोज किसी न किसी से किसी कारण वश न जाने कितनी बार मतभेद होते रहते है लेकिन उन्हें दैनिक जीवन मे उतरना मूर्खता शिवाय कुछ नही है !
लेखक
©जयसिंह नारेङा
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