Sunday, December 25, 2022

इश्कग्राम या इंस्टाग्राम की एक सच्चाई

आप सभी को मेरा ये अत्यंत बकवास और सत्यता से भरा लेख झेलने की हिम्मत प्रदान करें! 

कुछ लोगों को बुरा भी लग सकता है, तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं होंगी क्यूंकि मेरा मानना है की जो लोग अच्छे होते है उन्हें सब जगह अच्छाई ही नजर आती है और जो लोग बुरे होते है उन्हें सब बुरा ही लगता है, इसलिये आप स्वयं चयन करें की अच्छे है की बुरे तो मैं क्या बता रहा हु, सच मे इतनी बकचोदी करते है फेसबुक पर की अलसी मतलब असली बात याद नही रहती ।।

अच्छा आजकल सोशल मिडिया के सबसे चर्चित प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम ( इंस्टाग्राम नाम से तो सब परिचित ही होंगे ना, ये कोई बताने जैसे बात तो है नहीं की इंस्टाग्राम पर चैट की जा सकती है, वीडियो कॉल की जा सकती, वो भी सुन्दर का मुखौटा लगाकर, मेरा मतलब है फ़िल्टर ", दुनियां जहान के वीडियो देखे जा सकते है भाभियों की रील्स, टुंडी कनिया को आसानी से अपलोड भी किये जा सकते है, यहाँ तक की ऑनलाइन आशिकी भी की जा सकती है) का अब ये रील्स मे मीणाओ की नारियों की चर्चा करने वाला हु क्यूंकि ये ना आज कल दुनियां मे ऐसी छाई हुई है की भारत का नाम इतना ऊंचा हो गया की चीन की दीवार की जगह अब अंतरिक्ष से मीणाओ की लुगाईयो द्वारा बनाई गयी रील्स ज्यादा अच्छे से दिखाई देने लगीं है और उसके साथ अपने समाज का नाम भी दिखने लगा है !

"अब इस इश्क ग्राम सॉरी इंस्टाग्राम नामक सिनेमा है ना जस्ट जोकिंग 😃 सॉरी प्लेटफार्म है ना इसकी जन्म कहा से हुआ ये जान लेते है क्योंकि यहां आधे से ज्यादा लोगो को ये आया कहा से और इसकी लाने का खुरापाती टुंडी कनिया दिखाने वाला ऐप कब पैदा हुआ ?? वैसे तो ये पैदा 2010 में हो गया था ।लेकिन कुछ टेक्निकल टेस्टिंग के दो साल बाद, अप्रैल 2012 में जारी किया गया था, इसके बाद नवंबर 2012 में फीचर-सीमित वेबसाइट इंटरफ़ेस,और विंडोज़ 10 मोबाइल और विंडोज़ 2016 में एप्लिकेशन तैयार किये गए ।"॥

तो ये बात आपके समझ आ गया की ये इसकी उत्पत्ति कैसे हुई नही पढ़ी भी होगी तो आपने काई फर्क पड़े लेकिन पिछले 2 साल से इस इश्कग्राम यानी इंस्टाग्राम ने तबाही मचा रखी है सोशल मिडिया के जगत मे अब क्या बताये आपको, कभी कभी हमारा तो मन करता है की रील्स मे कूद के जान दे दे पर का फ़ायदा वहां भी लोगों को लाइक कमेंट लिखने के आलवा ये फ़िक्र ना रहेंगी की सामने वाले की जान चली गयी है ! एक दो तो कहेंगे और बना ले इंस्टा 🤪

2018 तक तो फिर भी सब ठीक ठाक चाल रहा था फिर आया एक ऐप ठोकमठोक वही अपना टिकटॉक करके हां वही जिसमे उल्टा सीधा पागलपन, चूतियापंती लोगो को सीखा कर अच्छी अच्छी सतवती नारियों को कूल्हे मटकाने पर मजबूर कर दिया और 30 सेकंड के वीडियो में तुम्हे स्वर्ग के आनंद करवा दिए अपने जैसे भाभियों को फॉलो करने वाले लोग लाइक फॉलो करके सुपर स्टार बना देते थे, वो तो मोदी जी
की कृपा भई सो उसको निपटा दिए मतलब बैन करवा दिए !
फिर हुआ कुछ यू की इंस्टाग्राम वाले भैया के दिमाग़ मे ये शॉर्ट
वीडियो वाला कीड़ा घुस गया, उसने अपने ऐप को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए रील्स नाम से एक सेक्शन बना डाला, जिसमे लोग अपनी शॉर्ट वीडियो क्लिप्स डाल सकते थे, अब यही से शुरुआत होती है असली तबाही की, क्यूंकि कोरोना महामारी की वजह से लगा हुआ था लॉकडाउन और लोगों को घर बैठे खा खाकर सूझति थी चूतियापंती अब क्या बोले तो मोदी जी वाले "अच्छे दिन आ गये " खैर लॉकडाउन हुआ खत्म सारे पुरुष वर्ग ने अपने काम धंधे मे फोकस करना शुरू कर दिया, लेकिन कोरोनो काल में कुछ आंटी,भाभियां और छछुंद्रियो को एक भ्रम हो चुका था की वे स्टार बन गई है उनकी भी गलती भी नही है क्योंकि उनके हम जैसे फालतू बैठे लोग फॉलोअर्स बन चुके थे ज़ब भैया ,पापा, हस्बैंड चले जाते काम पर तो आंटिया और आजकल की मॉर्डन जुग की कन्या और भाभियों ने फेमस होने की राह पर चलना स्टार्ट कर दिया !"

अब तो इंस्टाग्राम मे महिलाएं और लड़कियां फेमस होने के
चक्कर मे आधे कपड़े पहन के जिस्म की नुमाइश करके खुद को कटरीना कैफ समझने लगीं है, उन्हें अपने मान मर्यादा का
कोई ख्याल ही नहीं है, मुझे तो शर्म आती ऐसे नारियों पर जो
कुछ पैसे के चक्कर मे खुद को नुमाइश का सामान बनाये
बैठी हैं, मुझे तो समझ नहीं आता की इनके परिवार मे कोई
रोक टोक नहीं करता क्या ऐसी बेशर्मी को लेकर, हद हैं! क्या कहुँ लड़कियां इतनी गंदगी फैला रही हैं ना की छोटे बच्चों को मोबाइल देने मे ड़र लगता हैं की ये सब देखकर क्या सीखेगा!
आजकल एक गाना चाल रहा "पतली कमरिया मोरे" ऐसा लग रहा जैसे पूरा इंस्टाग्राम हिलाकर बाहर निकल आएगी की मॉर्डन जुग की कन्या.... यही नहीं इस गाने पर तो 14-15 साल की बच्चियों पर भारी असर आ गया हैं भाई की कसम लड़के भी लड़किया बने फिर रहे है देश का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है जबरदस्ती अपनी मम्मी को खड़ा कर करके फेमस होने के लिए बेचारी मम्मी की जान ले रही ये नहीं की पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे ले, पढ़ने लिखने की उम्र में इनको डिया के घर ( ससुराल) जाना हैं।।
हद हैँ भाई यहाँ पर मेरा फेवरेट डायलॉग बनता हैँ " जीजी खुदवा दे मोकु काई मतलब" पर दिल देखा बिना माने कोन
खैर हम तो बस इतना चाहते हैं या वीडियो बनाओ रील्स बनाओ खूबसूरत फेमस हो जाओ पर अपनी मान मर्यादा के
साथ,संस्कारो का ख्याल रखते हुए, क्यूंकि एक नारी ही पुरे
परिवार की अच्छे बुरे दोनों की नीव होती हैं, वैसे भी कहा जाता हैँ भारतीय नारी सब पर भारी इसलिए मॉर्डन जुग की कन्याओ पढ़ाई लिखाई करो आई एस वाय एस बनों खुद भी तरक्की करो और देश का गौरव बढ़ाओ बिना रील बनाये ही अच्छे काम करके रियल लाइफ मे फेमस हो तो जाने हम, हैँ की नहीं खैर जाने दो हमें क्या लेना देना हैं, वो तो हम अठाले बैठे रहते है इसलिए दिमाग़ खराब हो रहा था सोचा थोड़ा ज्ञान बाँट दे तो मन को सुकून मिल जाए ।
ज्ञान बहुत हुआ अब मैं चला रील्स देखने कोई भाभी कूल्हे हिला रही होगी ..!!

मिलते है अगली बार ऐसे ही और धमाकेदार टॉपिक के साथ

जयसिंह नारेड़ा

Saturday, November 12, 2022

मेरे गांव का चतर

मेरे गांव का चतर

ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जो हमे संघर्ष की और प्रेरित करती है । टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! गांव की बसावट पहले पहाड़ों के मध्य हुआ हुआ करती थी जो की तीन दिशाओं से घिरा हुआ था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है। गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है। गांव में सभी साधारण परिवार थे कुछेक सक्षम परिवारों को छोड़ कर और उन्ही मे से एक चतर का घर भी था बहुत साधारण और पुराने तरीके से बना हुआ ।

दो गह पाटोड जो की कली से पुती हुई और गोबर से लेपी हुई जो की गांवों में बड़ी आसानी से मिल जाया करती है। चतर के पिताजी बचपन से ही मेहनती रहे है उन्होंने डूंगर से पत्थर खोद कर इन्हे पढ़ाया लिखाया । एक बात तो मैं बताना ही भूल गया चतर और अशोक दो भाई है लेकिन अशोक अधिकतर मामा के यहां रहा था जिसकी वजह से गांव में बहुत कम ही रहा है। जबकि चतर शुरुआती शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई है 8 वी तक की शिक्षा हासिल करने के बाद गांव में 8 वी से बड़ी स्कूल नही होने की वजह से हाई स्कूल पदमपुरा से अपनी शिक्षा जारी रखी और उसके बाद दौसा चला गया। यहां तक का सफर तो एक आसान सा सफर तय किया था । लेकिन ग्रेजुएशन के साथ साथ अपनी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों के लिए जयपुर जाना चतर के लिए सबसे बड़ा मुस्किल काम था क्योंकि उसका परिवार इस खर्चे को वहन कर पाना मुस्किल था क्योंकि परिवार हालत ऐसी नही थी वो इसे जयपुर से अच्छी शिक्षा दिला सके ।

चतर ने इसी वजह से 2 साल अपने बड़े भाई के पास दौसा में ही ग्रेजुएशन करने में निकाल दिया । उसका बड़ा भाई का जीवन भी इसी तरह संघर्ष भरा हुआ था । ऐसा छोटा मोटा कोई नही था जिसे इन्होंने किया नही क्योंकि अपना खर्चा खुद चलाना था । बड़े भाई ने हलवाई के साथ काम करते हुए चतर की शिक्षा दिलाई खुद की शिक्षा को दरकिनार करते हुए चतर को प्रेरित किया ।

उस समय मैं जयपुर ही रहा करता था मैंने चतर को अपने पास बुला लिया हम 4 लोग एक कमरे में रहने लगे वो दौर हमारे लिए काफी अच्छा रहा ।

चतर हमारे साथ रहते हुए काम की तलाश करता था और उसने काम की तलाश करते करते कोचिंग के पर्चे बांटने का काम शुरू कर दिया जिसके लिए उसे 200 रुपए दिन के दिए जाते थे । अब इसका सुबह टोंक फाटक से निकलता और शाम को टोंक फाटक पर ही पर्चे बांटते हुए छिपने लगा रूम पर थका हारा हुआ आता था और कभी कभी तो रात में भी पोस्टर चिपकाने का काम करने लगा था ।
                                             हम तीनो ने बहुत मना किया था की ऐसे मत किया कर लेकिन इसने हिम्मत नही हारी कई बार पुलिस के द्वारा पोस्टर चिपकाने पर पकड़ लिया जाता और पुलिस के द्वारा कुछ रुपए ऐंठने के बाद छोड़ दिया जाता।

कोचिंग वाले ने इसे पैंपलेट बांटने के साथ साथ कोचिंग भी फ्री दी थी जिस से इसे अपनी पढ़ाई जारी करने का अवसर मिल गया । 4 जने रहने की वजह से मकान मालिक ने हमारा रूम खाली करवा दिया फिर हम आपस बिछड़ गए ।

एक वक्त ऐसा भी आया की चतर के पास रहने के लिए कमरा भी नही था वो किसी दूसरे के कमरे पर रुका रहा आखिर कितने दिन गुजार सकता था इसी के चलते काम मिल ही गया अब चतर को एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड की जॉब मिल चुकी थी । कहते है ना जब ईश्वर ने जन्म दिया है तो रहने के लिए छत भी देता है तो अब वो छत चतर के लिए एटीएम का कमरा बन चुका था एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड के रहने के लिए छोटी सी जगह बनी हुई थी जिसमे सिर्फ लेट लायक जगह थी जो की चतर को सोने के लिए पर्याप्त थी। सुबह चतर कोचिंग के पर्चे बांटता और रात बसेरा एटीएम था ही नहाने के लिए सुलभ शौचालय का सहारा लेने लगा यही कुछ दिन की दिनचर्या बन चुकी थी लेकिन किस्मत से जल्द ही चतर ने रूम देख लिया क्योंकि उसकी पढ़ाई बिना कमरे के सुचारू रूप से नही चल पा रही थी ।।

चतर ने कोचिंग के पास ही रूम ले लिया क्योंकि इसे यहां से नजदीक भी था और कोचिंग करने का टाइम भी मिल जाता था । चतर को परिवार से आर्थिक सहायता नही मिल पाई क्योंकि परिवार भी इस हालत में नही था की चाहते हुए भी इसे शिक्षा दिला पाए ।

चतर के पिताजी पत्थर खोदने का काम छोड़ कर दौसा में मूंगफली बेचने लगे चतर की मां भी मजदूरी करने लगी लेकिन चतर ने फिर उनसे पैसा नही मांगा उसे खुद पर भरोसा होने लगा ।
चतर ने पैसे की तंगी को कम करने के लिए केटरिंग बॉय का काम भी किया इस काम से पेट भर जाता था और कुछ पैसे भी मिल जाता था। ऐसे समय अकसर सभी की हिम्मत जबाव दे जाती है लेकिन चतर ने अपनी हालातो को नजरंदाज करते हुए दिन रात मेहनत की ।

कहते है ना की किए की मजदूरी तो भगवान भी नही रखता और हुआ भी यही चतर का ग्रुप डी 2014 में सिलेक्शन विजयवाड़ा में हो गया यही से इसकी किस्मत ने पलटना शुरू कर दिया इस सिलेक्शन से मां बाप की आंखों में आशा की किरण छा गई । और अब डिपार्टमेंटली एग्जाम देकर गार्ड के पद पर पहुंच गया । जिन हालातो से चतर गुजरा है उन हालातो में अकसर हिम्मत टूट जाया करती है या फिर कमाई की आदत पड़ जाने से शिक्षा से किनारा हो जाता है लेकिन चतर अपने लक्ष्य से बिलकुल नहीं भटका और आज अपने परिवार के लिए आय का एक स्त्रोत बन कर खड़ा हो गया है। अब तो कद्र वे लोग भी करने लगे है जो लोग पहले किनारा कर चुके थे। वही अब तो कर्मचारी ग्रुप में भी जगह मिलने लगी है ।

इसी के साथ कहानी का अंत करते है ।।

✍️✍️ जयसिंह नारेड़ा

Tuesday, July 5, 2022

ERCP योजना

#ERCP 
दरअसल बात ऐसी है की पानी तो सब चाहते है लेकिन मेहनत कोई नही करना चाहता । सब सोच रहे है कोई आगे आए और पानी ले आए बाद में तो हम बढ़िया खेती करेंगे और मौज उड़ाएंगे लेकिन खुद कुछ नही करेंगे ।

ERCP के पानी से क्या केवल मीणा ही पानी पियेंगे बाकी समाज क्या शरबत का इंतजाम करेंगे
साथ क्यों नहीं लगते है ??

नेता इसमें राजनीति करना चाहते है वे अपना अस्तित्व बचाने के चक्कर में कांग्रेस बीजेपी कर रहे है। ये बात उन्हें भी पता है की चिंगारी लग चुकी है बस इसे भड़काना है और इसी आग से अपनी राजनैतिक कुर्सी बचाई जा सकती है।

युवा नेता तो खैर है ही चूतिया उनके बारे में तो लिखना ही क्या ?? उनको ना तो टिकट मिल रहा है ना ही सहानुभूति तो वे ज्यादा इस मामले में इंटरेस्ट नहीं ले रहे है। और यदि वे इंटरेस्ट ले भी ले तो उनकी सुनता कौन है ?? 

और जो निस्वार्थी बनने का चोला ओढ़कर बकचोदी करते है ना फेसबुक पर लाइव आ कर वे चुनाव की तैयारी और थोबड़ा चमकाने की फिराक में है । कोई एक भी ऐसा चूतिया नही है जो अपनी जेब के पैसे खर्च करके लगेगा । सबका अपना स्वार्थ होता है भलई वो अपने मुंह से कुछ भी कहता हो..!

हमारा क्षेत्र वाले सोचते है 20 साल तक तो पानी नही आयेगा तब भी दिक्कत है नही बाकी बाद में देखेंगे इसलिए वे ज्यादा भाग नही ले रहे है। 

असल में जिनको दिक्कत है वे भी नहीं चाहते की पानी आए क्योंकि सब ये सोचते है छोरो नोकरी लग गो तो गांवमे काई करेंगे वही ड्यूटी पर रहेंगे ।

सिंगरो का क्या है उन्हे सिर्फ कमाई से मतलब है भाड़ में गई ERCP 2 गीत और काढ़ेंगे और बढ़िया व्यूज आ गए तो एकाध और काढ देंगे और व्यूज कम आए तो वे 2 में से 1 को ही डालेंगे ।

कुछ संगठन है जो सिर्फ नेताओ के इशारे पर चलते है वो उनके अनुसार ही अपना गीत गाते है नेता कहा ऊंट को गधा बता दिया तो वे भी ऊंट को गधा ही बताएंगे

#पांचना_बांध के लिए एक भी नही बोलता क्यों ?? किसी ने मना किया है क्या ??? या फिर बोलने से डरते है ??

पिछले 15 साल से पांचना का पानी कोई काम नही आ रहा है गुर्जर आंदोलन के समय से ही बंद है जिससे आस पास के गांव वालो यानी माड़ क्षेत्र को पानी नही मिल पा रहा है ।

कुछ जरूरत से ज्यादा स्याने जिन्हे गान मूंड का होश नही है वे दूसरो की बातो में आकर बोल देते है पांचना में छिचो लेवा लायक पानी है अरे wow भेंचाें दुनिया वहा वोटिंग कर रही है तुम छीचो नही ले पा रहे हो गजब है ऐसा कितना पानी चाहिए तुम्हे सालो फिर तो तुम घर में बगैर छीचों लिए ही रहते होंगे 

दरअसल पांचना बांध मिट्टी का बना हुआ राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है जिसकी भराव क्षमता 258.60 है  जिसमे अभी भी पर्याप्त मात्रा में पानी है। और यदि ERCP आती है तो इसे बहुत लाभ मिलेगा।

बाकी सबकी अपनी डफली अपना राग है
✍️✍️जयसिंह नारेड़ा

पांचना बांध

#पांचना_बांध 

पांचना बांध करौली जिले में बना हुआ राजस्थान का मिट्टी का सबसे बड़ा बांध है जिसकी भराव क्षमता लगभग 258 गेज है 
लगभग 15 साल यानी 2006 से पहले पांचना बाँध के पानी का मांड क्षेत्र के लोगों ने खूब सुख भोगा। सारा इलाका हरियाली से हरा भरा रहता था । किसान अपनी खेती करने में समर्थ था और अपनी खुशी में मस्त रहता था...!!

लेकिन वर्ष 2006 में अचानक इनकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई और यहां के लोग फिर से पहले जैसी ही हालत हो गई इस बांध से लगभग 30–35 गांवों में पानी पहुंचता था । वर्ष 2006 में ही राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी सबसे पहली गाज इसी पांचना बांध पर गिरी ।।

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में गुर्जर समाज के लोग अनुसूचित जनजाति वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहे थे। इस पर मीना समाज की तरफ से भी प्रतिक्रिया दी जिसकी वजह से ये आंदोलन खत्म हो गया दोनो समाजों में आपसी मन मुटाव हो गया इसी से गुस्साए गुर्जरों ने पांचना के पानी पर पहरा दे दिया ।।

जहां पांचना बांध बना हुआ है, वहां गुर्जरों के 12 गाँव होने के कारण गुर्जर जाति का बाहुल्य है। जबकि पांचणा के पानी से सिंचित क्षेत्र के सभी 30–35 गांवों में मीणा जाति का बाहुल्य है। गौरतलब है कि गुर्जर जाति के लोगों को वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2006 यानि 16 साल तक नहरों के जरिए कमाण्ड क्षेत्र में पानी पहुंचाने पर कोई आपत्ति नहीं थी। बांध का निर्माण कार्य दस साल चला, तब भी वहां बसे गुर्जरों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। जिनकी भूमि बांध के डूब क्षेत्र में आई, क्योंकि वे सभी मुआवजा लेकर संतुष्ट थे। लेकिन गुर्जर आंदोलन के दौरान मीणा जाति के लोगों से हुए टकराव के बाद बांध के आसपास 12 गांवों में बसे गुर्जरों का नजरिया ही बदल गया।

गुर्जरों ने पांचना के पानी पर पहला हक अपना बताते हुए न सिर्फ बांध पर क़ब्ज़ा कर लिया, बल्कि नहरों में जलापूर्ति भी ठप्प कर डाली। सरकार ने कई बार अपने मंत्री और आला अधिकारी गुर्जरों से वार्ता के लिए भेजे, लेकिन जिद पर अडे़ गुर्जर पांचना के पानी की रिहाई के लिए राजी नहीं हुए। 

आज भी पांचना के कैद पानी की रिहाई के लिए राजी नहीं हैं। वहीं कमाण्ड क्षेत्र की तमाम नहरें बीते एक दशक से उपयोग में नहीं आने के कारण जर्जर हो चुकी हैं। उनमें उग आई खरपतवार वनस्पति और झाड़ियों ने नहरों को पूरी तरह बदहाल कर दिया है।

कोई नेता इस मामले में इसलिए नही बोलना चाहता क्योंकि उसे भी तो गुर्जर वोट लेने है । फिर गुर्जरों से बुरा क्यों बनेगा ??

जयसिंह नारेड़ा

Sunday, March 27, 2022

Facebook पर टिका टिप्पड़ी

नमस्कार लाडलो कैसे हो ??

फेसबुक एक ऐसा प्लेटफार्म है जहा आप सबसे एक साथ बात करने का सबसे बढ़िया ज़रिया है यहां रोज रोज नए मुद्दे मिलते है नही भी मिलते है तो हम तो असली डेढ़ है मुद्दा खोज लेते है हमेशा माहोल गर्म रहना चाहिए तभी तो हमे मजा आता है

यानी कि सोशल मीडिया पर नए नए मुद्दे आना जो कि अब एक सामान्य सी बात हो गयी है, अब मैं बकवास लिखना शुरू नहीं कर दूंगा कि "अरे! आप सब तो जानते ही हैं कि सोशल मीडिया पर कैसे भसड़ बढ़ती जा रही है, हमें मिलकर इसे रोकना चाहिए!" क्या चूतियापा जैसी बात कर रहा हु है ना 🤪
 
इतने ज्ञान की बातें करनी होतीं या पोस्ट लिखना होता ।मैं कुछ ऐसी बातें बताऊंगा जो मैंने महसूस की हैं फेसबुक, व्हाटसएप्प या टविटर पर चलने वाले वाली किसी भी आनलाइन लड़ाई के बारे में....कि बात चाहे शुरू में जो हो रही हो लेकिन कई बार बात मुद्दे से भटककर या तो हिन्दू मुस्लिम पर आ जाती है, या भाजपा कांग्रेस पर या फिर गाली गलौज तो अब आम हो गया है। किसी दिन गलती से अगर मैं किसी फेसबुक पोस्ट के नीचे लोगों को आराम से किसी बात पर चर्चा करते और प्यार से सहमति या असहमति जताते देख लेता हूं तो यकीन नहीं होता कि आज की डेट में भी इतने समझदार लोग होते हैं क्या?? 

सवाल ये है कि हम मनुष्य ऐसे आभासी दुनिया ऐसी राजनीति या बॉलीवुड से संबंधित बहस में पड़ना क्यों चाहते हैं? वो भी तब जब हमारे पास उस मुद्दे की आधी अधूरी जानकारी भी नहीं होती, बस अखबार में एक हेडलाइन कहीं से पढ़ लेते हैं या फिर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर पढ़ लेते है और उस पर अपनी राय देना शुरू कर देते हैं। मैं ये नहीं कह रहा कि किसी भी मुद्दे पर राय देना सही है या गलत। मैंने भी कई बार ठाले मुद्दो पर बहस की है जिनका कोई लेना देना नही अब तुम लोग हँसने लग जाओगे जब सुनोगे कि मैंने कैसे कैसे मुद्दों पर लोगों से बहस की है।

कोण सी भाभी टिकटोक पर #कनिया ज्यादा मटकाती है?? कोनसी भाभी की टुंडी ज्यादा मस्त है ?? 😀😀 आज कोण सी भाभी की HD आई है ??😛
देव बाबू छिएम बनेगा की नही ?? बाबा अबकी बार पी एम बनेगा या छचुंदरा इस बार भी भज्जी को दे ?? घासलेट को तोतला ले बैठेगा या घासलेट अकेला कब्बड़ी खेल जाएगा 🤩🤩 अच्छा HD से याद आया HD के नाम से फेसबुक पर मुर्दे भी जिंदे हो जाते है जिसने कभी फेसबुक पर राम राम नही किया वो भी HD के लिए भाई साहब भाई साहब कहने लग जाता है😂

अब कुछ गधे चार नई लाइन पढ़कर ज्ञान देने है और ऑनलाइन ही ज्ञानी होने का दावा करते है।

ज़रूरी नहीं कि मेरे तर्क सामने वाले व्यक्ति से ज़्यादा सही हैं या नहीं, अगर मैं उसे एक आनलाइन बहस में हरा भी देता हूं तो उससे मेरे जीवन में घंटा भी फर्क नहीं पड़ने वाला। अगर मैं फेसबुक कमेंट में धड़ाधड़ रिप्लाई करके फेसबुक पर बाबा को पीएम ,टोपी को छियम बना दू  तो उससे इनको कोई फायदा या नुकसान नहीं होने वाला है। उन्हें पता भी नहीं चलेगा कि उनके बारे में रोज़ फेसबुक पर कितने तरह की क्या क्‍या बहस होती है, उन्हें जो साबित करना था, वो अपनी मेहनत से साबित कर चुके हैं। 
अब देखना लोग #आईपीएल की टीमों को लेकर भीड़ मरेंगे और हैरानी की बात ये कि गाली गलौज पर दो सेकंड में उतर आते हैं....दो काल्पनिक किरदारों के मुद्दे पर। ऐसा लगता है जैसे सारे दिन लुगाई ,मां बाप और फालतू का गुस्सा यहीं सोशल मीडिया पर निकाल देते हैं। 

फेसबुक के बाद ट्विटर भी अब इस भसड़ से अछूता नहीं है। कोई किसी पोस्ट में किसी की बुराई कर देगा, फिर दूसरा भी उसकी बुराई कर देगा और जनता भी बंट जाएगी। कोई बोलेगा अरे मैं शेर हूं तू गीदड़ है, फिर दूसरा बोलेगा नहीं मैं शेर हूं गीदड़ तो तू है। इंसान बनकर आपस में मुद्दा सुलझाने की कोशिश कोई नहीं करेगा।

अबे खाओ पियो मौज करो, काहे बवाल कर रहे हो बेकार का लेकिन मुझे अब थोड़ा आईडिया लग रहा है कि ऐसा क्‍यों होता है। ड्रामा हर जगह बिकता है भाई भारत में, जब सड़क पर दो लोग की लड़ाई होती है तो आपने देखा ही होगा कि लोग कैसे झुंड बनाकर खड़े हो जाते हैं। यूट्यूब इंस्टाग्राम और टिकटोक भी इसीलिए इतना हिट हुआ। ठीक है, अगर ड्रामे से किसी की ग्रोथ हो रही है तो क्या बुराई है?? भाभी की कमर लचक मार रही है तो हमे तो आंख सेकनी है ना 🤔😶

खैर मैं यहां किसी को रोस्ट करने नहीं आया लड़ाई शुरू भी हम लोग ही तो करते है मुद्दा बनाने के लिए उदाहरण के लिए अगर कोई कहता है कि टोपी के बजाय टकला सही है और वो #डांगवाला और दाढ़ीवाला तो घटिया है इससे बढ़िया तो भाभी की टुंडी कनिया ही अच्छी है तो उसका रिप्लाई देने के दो तरीके हैं। 

पहला ऐ। तूने #डांग वाला और दाढ़ीवाले को घटिया कैसे बोला बे? पगला गया है क्या? अक्ल बेच खाई है क्या तूने? 

दूसरा आपकी बात से मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं भाई। 

पहले वाले रिप्लाई देने से वही होगा जो फेसबुक के 90% कमेंटस में होता है, लड़ाई और गाली गलौज। दूसरा रिप्लाई देने से भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि सामने वाला गाली नहीं देगा लेकिन उसकी संभावना थोड़ी कम होगी। एकाध तो लाड़ा की बुआ बनने आयेंगे

चलिए भाषणबाजी बहुत हो गयी, अब तुम अपना ज्ञान कमेंट में झाड़ो और मेरी बात को सिरियस मत लेना और ले भी लोगे तो मेरा क्या कर लोगे भाई ??

©जयसिंह नारेड़ा 

Friday, January 7, 2022

फोकटे नेता

#फोकटे_नेता 😛

अब वह दौर आ गया जहां नेता बनना एक कैरियर जैसा हो गया।हर बेरोजगार युवा स्वयं को नेता के रूप में देखने लगा है। इस दौड़ में महिलाए यानी भाभियां कहां पीछे रहने वाली है हलाकि युवाओं में जो बीमारी थी वह छूटी नहीं। युवाओं की सबसे बड़ी बीमारी यह थी और है कि वह इंतजार करना नहीं चाहते वह जन्मजात चिता की तरह दौड़ना चाहते हैं। युवा चाहते हैं कि वह रातों रात स्टार बन जाए, रातों-रात विधायक बन जाए या दुनिया भर में उनका नाम जाना जाए। 

जब युवाओं ने नेता को कैरियर के रूप में देखा तो उन्होंने ने इसके बनने की विधि पर भी अमल किया। सबसे आसान तरीका जो काफी ट्रेंड में है आजकल फेसबुक पर लाइव आकर फोकट का ज्ञान झाड़ना चाहे मुद्दे के बारे उसे पता ही नही हो । इसमें ज्यादा मेहनत नही है बस फोकट का ज्ञान झाड़ कर लोगो मूर्ख बनाना है खुद को नेता के रूप में प्रमोट करना है। ये काम #भाभियों के लिए बहुत आसान है बस थोड़ी सेक्सी हो तो ये काम और भी आसान हो जाता है इनकी फैन फॉलोइंग बहुत ज्यादा मात्रा में होती है जो भाभी जी के थूक पर नाइस थूक लिखने से लेकर थूक चाटने वाले तक आपको आसानी से मिल जाएंगे बस भाभी को एक सेल्फी डालनी होती है। फिर देखो कमाल फैंस इन्हे विधायक सांसद फेसबुक पर ही बना देंगे क्योंकि युवाओं में भेड़ चाल पनप चुका

आपको बहस करनी हो जाती है और दूसरी बात कि आप सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। फिर लोगो भी लगने लगता है की ये भाई साहब या भाभी जी सच में मेहनत कर रहा है और वही भाभी जी और भाई साहब नेताओ के गले में माला पहनाते नजर आते है इस कदम में भी भाभियां लडको से 4 कदम आगे ही नजर आती है वे नेताओ के गले में माला ही नही डालती अपितु कमरे की सजावट भी बनती है हालांकि लोगो को तो वीडियो वायरल होने पर ही पता लगता है अन्यथा भाभी जी पवित्रता पर कोई कैसे उंगली उठा सकता है उनके फैंस तो उन्हे अपनी आदर्श मानते है। 

इन फोकट के नेताओ को मेहनत तो करनी नहीं है। जब मेहनत नहीं करनी है तो पढ़ाई कहां से करनी है। बिना पढ़े बहस तो कर नहीं सकते या कुछ नया सोच नहीं सकते। भेड़ चाल चलना है। तो अपना यह पुराना पैटर्न, ऊपर जो बताया गया उसको अपनाते हैं और राजनीति करते हैं। युवा नेता के लिए फेसबुक के लाइक और कमेंट उनके वोट की तरह होते हैं। जिसको जितना लाइक और कमेंट वह अपने आप को उतना बड़ा नेता मानता है। लाइक्स के मामले में भी बाजी भाभियां मार जाती है मारे भी क्यों नही मक्खी भी मीठे पर ही बैठती है साहब और अंत में यह कहा जा सकता है कि अधिकतर बेरोजगार युवा ' युवा नेता' बनने को इक्छुक हैं।

आजकल तो IAS अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद नेता बनने का इच्छुक रहता है काला धन तो पहले से ही जमा होता है इनकी नेता पकड़ होती है लेकिन जनता के साथ इनका अटेचमेंट केवल चुनाव के समय होता है। इन्हे समाजसेवा भी रिटायरमेंट के बाद ही नजर आती है भलेई उसी जनता को नोकरी के टाइम गेट से ही भगा दिया हो लेकिन चुनाव के टाइम वही भगवान के रूप में नजर आने लगती है।

खैर अपने को तो मजा लेना तो मजा लेने में कसर नहीं रहनी चाहिए...!!!

जयसिंह नारेङा

फेसबुक का राजनीति करण

वर्ष 2011 यही वह वर्ष था जब मैंने #फेसबुक जॉइन
किया. जब फेसबुक का मतलब भी नही पता था उस टाइम ये सिर्फ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के कार्टून डालने के ही काम आती थी शुरू शुरू में काफी अच्छा लगा वैसे नई चीजे शुरू शुरु में काफी अच्छी ही लगतीं हैं ।

ऐसा लगा कि यह एक ऐसा मंच है जहां पर हम अपने पुराने साथियों को ढूंढ सकते हैं नए मित्र बना सकते हैं. और शुरू में हुआ भी ऐसा ही .. कई पुराने मित्र जिनका केवल नाम तक ही याद था उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि वर्तमान में कौन कहाँ होंगे फेसबुक की सहायता से करीब आ गए ..बढ़िया गपशप हो जाया करता था । 

शुरुआत के 2-3 वर्षों का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा ..शुरू शुरू में हमे भी 2013 में समाजसेवा का भूत सवार हो गया था हम भी भूतपूर्व समाजसेवी हुआ करते थे समाज के लिए दिन देखे न रात लेकिन मिला क्या ?? घंटा 🔔 मीना मीणा विवाद जब पनपा तो HRD नामक एक बड़ा संगठन को खड़ा किया जिसके बलबूते समाज के बड़े बड़े संगठनों को मीना मीणा विवाद पर बोलने पर मजबूर कर दिया था लेकिन उस समय फेसबुक भसड़ ना होने के बजाय एक सार्थक बहस हुआ करती थी जिसका कोई फायदा था अब तो सीधे बात ही गाली गलौच से होती है। 
                 खैर हमको भी कहा पता था की ये जो समाज के मठाधीश बने बैठे है वो सिर्फ हमे यूज कर रहे थे क्योंकि खून में जोश था ना समाजसेवा का भेंचो समाजसेवा के चक्कर में पढ़ाई को इतनी पीछे छोड़ आए की अब लौटना बहुत कठिन लगता है जहां दिन रात इधर उधर की भाग दौड़ थी। रोज रोज समाज की मीटिंग में भाग लेना तो जैसे जिंदगी का हिस्सा ही बन चुका था । घरवालों से तक बहस हो जाया करती थी बहुत सुननी पड़ती थी कभी कभी तो खर्चा पानी तक बंद हो गया था लेकिन स्टूडेंट लाइफ बड़ी ही सेटलमेंट लाइफ होती है मीटिंग में भाग लेने के लिए कही से भी सहारा लेना पड़े लेकिन आदत से मजबूर मीटिंग में ले ही लेते थे । लेते भी क्यों नही काफी बड़ा नाम जो हो गया था हमारा उस दौर में ये अलग बात है की अब कोई पहचानता नहीं है हमारी सारी मेहनत को अकेला आदमी हड़प गया तब हम टूट गए थे खैर छोड़ो आगे की बात करते है लेकिन वर्ष 2015-16 के बाद पता नहीं ऐसा क्या हो गया कि फेसबुक और अन्य सभी सोशल मीडिया का राजनीति करण हो गया है ..।

एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक माध्यम हो गया है .. जैसे ही ऐप खोलते हैं उसपे आपके मित्र या परिजन के कोई अपडेट नहीं मिलेगें ... मिलेगें तो सिर्फ राजनीतिक पोस्ट .. और ये राजनीतिक पोस्ट आपके मित्र द्वारा ही फॉरवर्ड की गयी होगी ...।
                         यदि आज वर्तमान में औसत निकाला जाए तो लगभग 50 % से ज्यादा से राजनीतिक पोस्ट देखने को मिलती है और पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ ही रहा है .. राजनीतिक पार्टियों के IT CELL ने पूरे सोशल मीडिया को कवर कर लिया है ..।।

और यदि आप इस उम्मीद से फेसबुक मे लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया मिलेगा या किसी मित्र के बारे में कोई अच्छी अपडेट मिलेगी तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी आपको मिलेगी तो सिर्फ़ कोई ना कोई राजनीतिक पोस्ट या ऐसी कोई पोस्ट जिससे कोई राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि हो सके ... ऐसे तमाम लोग जो ये उम्मीद से लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया होगा तो उनके लिए फेसबुक मे अब कुछ नहीं बचा ....।।

जिस तरह से पुरानी चीजें कुछ बदलाव के साथ नयी होकर दुबारा लौटती हैं उम्मीद करेंगे जल्द ही फेसबुक मे कुछ अच्छा हो जिससे यह एक राजनीतिक मंच ना रहकर एक सामाजिक मंच कहलाए क्यों कि इसकी पहचान खत्म होती जा रही है .....।।

जयसिंह नारेङा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...