Sunday, December 25, 2022
इश्कग्राम या इंस्टाग्राम की एक सच्चाई
Saturday, November 12, 2022
मेरे गांव का चतर
मेरे गांव का चतर
ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जो हमे संघर्ष की और प्रेरित करती है । टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! गांव की बसावट पहले पहाड़ों के मध्य हुआ हुआ करती थी जो की तीन दिशाओं से घिरा हुआ था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है। गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है। गांव में सभी साधारण परिवार थे कुछेक सक्षम परिवारों को छोड़ कर और उन्ही मे से एक चतर का घर भी था बहुत साधारण और पुराने तरीके से बना हुआ ।
दो गह पाटोड जो की कली से पुती हुई और गोबर से लेपी हुई जो की गांवों में बड़ी आसानी से मिल जाया करती है। चतर के पिताजी बचपन से ही मेहनती रहे है उन्होंने डूंगर से पत्थर खोद कर इन्हे पढ़ाया लिखाया । एक बात तो मैं बताना ही भूल गया चतर और अशोक दो भाई है लेकिन अशोक अधिकतर मामा के यहां रहा था जिसकी वजह से गांव में बहुत कम ही रहा है। जबकि चतर शुरुआती शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई है 8 वी तक की शिक्षा हासिल करने के बाद गांव में 8 वी से बड़ी स्कूल नही होने की वजह से हाई स्कूल पदमपुरा से अपनी शिक्षा जारी रखी और उसके बाद दौसा चला गया। यहां तक का सफर तो एक आसान सा सफर तय किया था । लेकिन ग्रेजुएशन के साथ साथ अपनी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों के लिए जयपुर जाना चतर के लिए सबसे बड़ा मुस्किल काम था क्योंकि उसका परिवार इस खर्चे को वहन कर पाना मुस्किल था क्योंकि परिवार हालत ऐसी नही थी वो इसे जयपुर से अच्छी शिक्षा दिला सके ।
चतर ने इसी वजह से 2 साल अपने बड़े भाई के पास दौसा में ही ग्रेजुएशन करने में निकाल दिया । उसका बड़ा भाई का जीवन भी इसी तरह संघर्ष भरा हुआ था । ऐसा छोटा मोटा कोई नही था जिसे इन्होंने किया नही क्योंकि अपना खर्चा खुद चलाना था । बड़े भाई ने हलवाई के साथ काम करते हुए चतर की शिक्षा दिलाई खुद की शिक्षा को दरकिनार करते हुए चतर को प्रेरित किया ।
उस समय मैं जयपुर ही रहा करता था मैंने चतर को अपने पास बुला लिया हम 4 लोग एक कमरे में रहने लगे वो दौर हमारे लिए काफी अच्छा रहा ।
चतर हमारे साथ रहते हुए काम की तलाश करता था और उसने काम की तलाश करते करते कोचिंग के पर्चे बांटने का काम शुरू कर दिया जिसके लिए उसे 200 रुपए दिन के दिए जाते थे । अब इसका सुबह टोंक फाटक से निकलता और शाम को टोंक फाटक पर ही पर्चे बांटते हुए छिपने लगा रूम पर थका हारा हुआ आता था और कभी कभी तो रात में भी पोस्टर चिपकाने का काम करने लगा था ।
हम तीनो ने बहुत मना किया था की ऐसे मत किया कर लेकिन इसने हिम्मत नही हारी कई बार पुलिस के द्वारा पोस्टर चिपकाने पर पकड़ लिया जाता और पुलिस के द्वारा कुछ रुपए ऐंठने के बाद छोड़ दिया जाता।
कोचिंग वाले ने इसे पैंपलेट बांटने के साथ साथ कोचिंग भी फ्री दी थी जिस से इसे अपनी पढ़ाई जारी करने का अवसर मिल गया । 4 जने रहने की वजह से मकान मालिक ने हमारा रूम खाली करवा दिया फिर हम आपस बिछड़ गए ।
एक वक्त ऐसा भी आया की चतर के पास रहने के लिए कमरा भी नही था वो किसी दूसरे के कमरे पर रुका रहा आखिर कितने दिन गुजार सकता था इसी के चलते काम मिल ही गया अब चतर को एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड की जॉब मिल चुकी थी । कहते है ना जब ईश्वर ने जन्म दिया है तो रहने के लिए छत भी देता है तो अब वो छत चतर के लिए एटीएम का कमरा बन चुका था एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड के रहने के लिए छोटी सी जगह बनी हुई थी जिसमे सिर्फ लेट लायक जगह थी जो की चतर को सोने के लिए पर्याप्त थी। सुबह चतर कोचिंग के पर्चे बांटता और रात बसेरा एटीएम था ही नहाने के लिए सुलभ शौचालय का सहारा लेने लगा यही कुछ दिन की दिनचर्या बन चुकी थी लेकिन किस्मत से जल्द ही चतर ने रूम देख लिया क्योंकि उसकी पढ़ाई बिना कमरे के सुचारू रूप से नही चल पा रही थी ।।
चतर ने कोचिंग के पास ही रूम ले लिया क्योंकि इसे यहां से नजदीक भी था और कोचिंग करने का टाइम भी मिल जाता था । चतर को परिवार से आर्थिक सहायता नही मिल पाई क्योंकि परिवार भी इस हालत में नही था की चाहते हुए भी इसे शिक्षा दिला पाए ।
चतर के पिताजी पत्थर खोदने का काम छोड़ कर दौसा में मूंगफली बेचने लगे चतर की मां भी मजदूरी करने लगी लेकिन चतर ने फिर उनसे पैसा नही मांगा उसे खुद पर भरोसा होने लगा ।
चतर ने पैसे की तंगी को कम करने के लिए केटरिंग बॉय का काम भी किया इस काम से पेट भर जाता था और कुछ पैसे भी मिल जाता था। ऐसे समय अकसर सभी की हिम्मत जबाव दे जाती है लेकिन चतर ने अपनी हालातो को नजरंदाज करते हुए दिन रात मेहनत की ।
कहते है ना की किए की मजदूरी तो भगवान भी नही रखता और हुआ भी यही चतर का ग्रुप डी 2014 में सिलेक्शन विजयवाड़ा में हो गया यही से इसकी किस्मत ने पलटना शुरू कर दिया इस सिलेक्शन से मां बाप की आंखों में आशा की किरण छा गई । और अब डिपार्टमेंटली एग्जाम देकर गार्ड के पद पर पहुंच गया । जिन हालातो से चतर गुजरा है उन हालातो में अकसर हिम्मत टूट जाया करती है या फिर कमाई की आदत पड़ जाने से शिक्षा से किनारा हो जाता है लेकिन चतर अपने लक्ष्य से बिलकुल नहीं भटका और आज अपने परिवार के लिए आय का एक स्त्रोत बन कर खड़ा हो गया है। अब तो कद्र वे लोग भी करने लगे है जो लोग पहले किनारा कर चुके थे। वही अब तो कर्मचारी ग्रुप में भी जगह मिलने लगी है ।
इसी के साथ कहानी का अंत करते है ।।
✍️✍️ जयसिंह नारेड़ा
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