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Showing posts from 2022

इश्कग्राम या इंस्टाग्राम की एक सच्चाई

आप सभी को मेरा ये अत्यंत बकवास और सत्यता से भरा लेख झेलने की हिम्मत प्रदान करें!  कुछ लोगों को बुरा भी लग सकता है, तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं होंगी क्यूंकि मेरा मानना है की जो लोग अच्छे होते है उन्हें सब जगह अच्छाई ही नजर आती है और जो लोग बुरे होते है उन्हें सब बुरा ही लगता है, इसलिये आप स्वयं चयन करें की अच्छे है की बुरे तो मैं क्या बता रहा हु, सच मे इतनी बकचोदी करते है फेसबुक पर की अलसी मतलब असली बात याद नही रहती ।। अच्छा आजकल सोशल मिडिया के सबसे चर्चित प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम ( इंस्टाग्राम नाम से तो सब परिचित ही होंगे ना, ये कोई बताने जैसे बात तो है नहीं की इंस्टाग्राम पर चैट की जा सकती है, वीडियो कॉल की जा सकती, वो भी सुन्दर का मुखौटा लगाकर, मेरा मतलब है फ़िल्टर ", दुनियां जहान के वीडियो देखे जा सकते है भाभियों की रील्स, टुंडी कनिया को आसानी से अपलोड भी किये जा सकते है, यहाँ तक की ऑनलाइन आशिकी भी की जा सकती है) का अब ये रील्स मे मीणाओ की नारियों की चर्चा करने वाला हु क्यूंकि ये ना आज कल दुनियां मे ऐसी छाई हुई है की भारत का नाम इतना ऊंचा हो गया की चीन की दीवार की जगह अब अंतरिक्...

मेरे गांव का चतर

मेरे गांव का चतर ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जो हमे संघर्ष की और प्रेरित करती है । टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! गांव की बसावट पहले पहाड़ों के मध्य हुआ हुआ करती थी जो की तीन दिशाओं से घिरा हुआ था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है। गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है। गांव में सभी साधारण परिवार थे कुछेक सक्षम परिवारों को छोड़ कर और उन्ही मे से एक चतर का घर भी था बहुत साधारण और पुराने तरीके से बना हुआ । दो गह पाटोड जो की कली से पुती हुई और गोबर से लेपी हुई जो की गांवों में बड़ी आसानी से मिल जाया करती है। चतर के पिताजी बचपन से ही मेहनती रहे है उन्होंने डूंगर से पत्थर खोद कर इन्हे पढ़ाया लिखाया । एक बात तो मैं बताना ही भूल गया चतर और अशोक दो भाई है लेकिन अशोक अधिकतर मामा के यहां रहा था जिसकी वजह से गांव में बहुत कम ही रहा है। ...

ERCP योजना

#ERCP  दरअसल बात ऐसी है की पानी तो सब चाहते है लेकिन मेहनत कोई नही करना चाहता । सब सोच रहे है कोई आगे आए और पानी ले आए बाद में तो हम बढ़िया खेती करेंगे और मौज उड़ाएंगे लेकिन खुद कुछ नही करेंगे । ERCP के पानी से क्या केवल मीणा ही पानी पियेंगे बाकी समाज क्या शरबत का इंतजाम करेंगे साथ क्यों नहीं लगते है ?? नेता इसमें राजनीति करना चाहते है वे अपना अस्तित्व बचाने के चक्कर में कांग्रेस बीजेपी कर रहे है। ये बात उन्हें भी पता है की चिंगारी लग चुकी है बस इसे भड़काना है और इसी आग से अपनी राजनैतिक कुर्सी बचाई जा सकती है। युवा नेता तो खैर है ही चूतिया उनके बारे में तो लिखना ही क्या ?? उनको ना तो टिकट मिल रहा है ना ही सहानुभूति तो वे ज्यादा इस मामले में इंटरेस्ट नहीं ले रहे है। और यदि वे इंटरेस्ट ले भी ले तो उनकी सुनता कौन है ??  और जो निस्वार्थी बनने का चोला ओढ़कर बकचोदी करते है ना फेसबुक पर लाइव आ कर वे चुनाव की तैयारी और थोबड़ा चमकाने की फिराक में है । कोई एक भी ऐसा चूतिया नही है जो अपनी जेब के पैसे खर्च करके लगेगा । सबका अपना स्वार्थ होता है भलई वो अपने मुंह से कुछ भी कहता हो..! हमारा ...

पांचना बांध

#पांचना_बांध  पांचना बांध करौली जिले में बना हुआ राजस्थान का मिट्टी का सबसे बड़ा बांध है जिसकी भराव क्षमता लगभग 258 गेज है  लगभग 15 साल यानी 2006 से पहले पांचना बाँध के पानी का मांड क्षेत्र के लोगों ने खूब सुख भोगा। सारा इलाका हरियाली से हरा भरा रहता था । किसान अपनी खेती करने में समर्थ था और अपनी खुशी में मस्त रहता था...!! लेकिन वर्ष 2006 में अचानक इनकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई और यहां के लोग फिर से पहले जैसी ही हालत हो गई इस बांध से लगभग 30–35 गांवों में पानी पहुंचता था । वर्ष 2006 में ही राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी सबसे पहली गाज इसी पांचना बांध पर गिरी ।। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में गुर्जर समाज के लोग अनुसूचित जनजाति वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहे थे। इस पर मीना समाज की तरफ से भी प्रतिक्रिया दी जिसकी वजह से ये आंदोलन खत्म हो गया दोनो समाजों में आपसी मन मुटाव हो गया इसी से गुस्साए गुर्जरों ने पांचना के पानी पर पहरा दे दिया ।। जहां पांचना बांध बना हुआ है, वहां गुर्जरों के 12 गाँव होने के कारण गुर्जर जाति का बाहुल्य है। जबकि पांचणा के ...

Facebook पर टिका टिप्पड़ी

नमस्कार लाडलो कैसे हो ?? फेसबुक एक ऐसा प्लेटफार्म है जहा आप सबसे एक साथ बात करने का सबसे बढ़िया ज़रिया है यहां रोज रोज नए मुद्दे मिलते है नही भी मिलते है तो हम तो असली डेढ़ है मुद्दा खोज लेते है हमेशा माहोल गर्म रहना चाहिए तभी तो हमे मजा आता है यानी कि सोशल मीडिया पर नए नए मुद्दे आना जो कि अब एक सामान्य सी बात हो गयी है, अब मैं बकवास लिखना शुरू नहीं कर दूंगा कि "अरे! आप सब तो जानते ही हैं कि सोशल मीडिया पर कैसे भसड़ बढ़ती जा रही है, हमें मिलकर इसे रोकना चाहिए!" क्या चूतियापा जैसी बात कर रहा हु है ना 🤪   इतने ज्ञान की बातें करनी होतीं या पोस्ट लिखना होता ।मैं कुछ ऐसी बातें बताऊंगा जो मैंने महसूस की हैं फेसबुक, व्हाटसएप्प या टविटर पर चलने वाले वाली किसी भी आनलाइन लड़ाई के बारे में....कि बात चाहे शुरू में जो हो रही हो लेकिन कई बार बात मुद्दे से भटककर या तो हिन्दू मुस्लिम पर आ जाती है, या भाजपा कांग्रेस पर या फिर गाली गलौज तो अब आम हो गया है। किसी दिन गलती से अगर मैं किसी फेसबुक पोस्ट के नीचे लोगों को आराम से किसी बात पर चर्चा करते और प्यार से सहमति या असहमति जताते देख लेता हूं ...

फोकटे नेता

#फोकटे_नेता 😛 अब वह दौर आ गया जहां नेता बनना एक कैरियर जैसा हो गया।हर बेरोजगार युवा स्वयं को नेता के रूप में देखने लगा है। इस दौड़ में महिलाए यानी भाभियां कहां पीछे रहने वाली है हलाकि युवाओं में जो बीमारी थी वह छूटी नहीं। युवाओं की सबसे बड़ी बीमारी यह थी और है कि वह इंतजार करना नहीं चाहते वह जन्मजात चिता की तरह दौड़ना चाहते हैं। युवा चाहते हैं कि वह रातों रात स्टार बन जाए, रातों-रात विधायक बन जाए या दुनिया भर में उनका नाम जाना जाए।  जब युवाओं ने नेता को कैरियर के रूप में देखा तो उन्होंने ने इसके बनने की विधि पर भी अमल किया। सबसे आसान तरीका जो काफी ट्रेंड में है आजकल फेसबुक पर लाइव आकर फोकट का ज्ञान झाड़ना चाहे मुद्दे के बारे उसे पता ही नही हो । इसमें ज्यादा मेहनत नही है बस फोकट का ज्ञान झाड़ कर लोगो मूर्ख बनाना है खुद को नेता के रूप में प्रमोट करना है। ये काम #भाभियों के लिए बहुत आसान है बस थोड़ी सेक्सी हो तो ये काम और भी आसान हो जाता है इनकी फैन फॉलोइंग बहुत ज्यादा मात्रा में होती है जो भाभी जी के थूक पर नाइस थूक लिखने से लेकर थूक चाटने वाले तक आपको आसानी से मिल जाएंगे बस भाभी को...

फेसबुक का राजनीति करण

वर्ष 2011 यही वह वर्ष था जब मैंने #फेसबुक जॉइन किया. जब फेसबुक का मतलब भी नही पता था उस टाइम ये सिर्फ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के कार्टून डालने के ही काम आती थी शुरू शुरू में काफी अच्छा लगा वैसे नई चीजे शुरू शुरु में काफी अच्छी ही लगतीं हैं । ऐसा लगा कि यह एक ऐसा मंच है जहां पर हम अपने पुराने साथियों को ढूंढ सकते हैं नए मित्र बना सकते हैं. और शुरू में हुआ भी ऐसा ही .. कई पुराने मित्र जिनका केवल नाम तक ही याद था उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि वर्तमान में कौन कहाँ होंगे फेसबुक की सहायता से करीब आ गए ..बढ़िया गपशप हो जाया करता था ।  शुरुआत के 2-3 वर्षों का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा ..शुरू शुरू में हमे भी 2013 में समाजसेवा का भूत सवार हो गया था हम भी भूतपूर्व समाजसेवी हुआ करते थे समाज के लिए दिन देखे न रात लेकिन मिला क्या ?? घंटा 🔔 मीना मीणा विवाद जब पनपा तो HRD नामक एक बड़ा संगठन को खड़ा किया जिसके बलबूते समाज के बड़े बड़े संगठनों को मीना मीणा विवाद पर बोलने पर मजबूर कर दिया था लेकिन उस समय फेसबुक भसड़ ना होने के बजाय एक सार्थक बहस हुआ करती थी जिसका कोई फायदा था अब तो सीधे बात...