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फेसबुक का राजनीति करण

वर्ष 2011 यही वह वर्ष था जब मैंने #फेसबुक जॉइन
किया. जब फेसबुक का मतलब भी नही पता था उस टाइम ये सिर्फ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के कार्टून डालने के ही काम आती थी शुरू शुरू में काफी अच्छा लगा वैसे नई चीजे शुरू शुरु में काफी अच्छी ही लगतीं हैं ।

ऐसा लगा कि यह एक ऐसा मंच है जहां पर हम अपने पुराने साथियों को ढूंढ सकते हैं नए मित्र बना सकते हैं. और शुरू में हुआ भी ऐसा ही .. कई पुराने मित्र जिनका केवल नाम तक ही याद था उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि वर्तमान में कौन कहाँ होंगे फेसबुक की सहायता से करीब आ गए ..बढ़िया गपशप हो जाया करता था । 

शुरुआत के 2-3 वर्षों का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा ..शुरू शुरू में हमे भी 2013 में समाजसेवा का भूत सवार हो गया था हम भी भूतपूर्व समाजसेवी हुआ करते थे समाज के लिए दिन देखे न रात लेकिन मिला क्या ?? घंटा 🔔 मीना मीणा विवाद जब पनपा तो HRD नामक एक बड़ा संगठन को खड़ा किया जिसके बलबूते समाज के बड़े बड़े संगठनों को मीना मीणा विवाद पर बोलने पर मजबूर कर दिया था लेकिन उस समय फेसबुक भसड़ ना होने के बजाय एक सार्थक बहस हुआ करती थी जिसका कोई फायदा था अब तो सीधे बात ही गाली गलौच से होती है। 
                 खैर हमको भी कहा पता था की ये जो समाज के मठाधीश बने बैठे है वो सिर्फ हमे यूज कर रहे थे क्योंकि खून में जोश था ना समाजसेवा का भेंचो समाजसेवा के चक्कर में पढ़ाई को इतनी पीछे छोड़ आए की अब लौटना बहुत कठिन लगता है जहां दिन रात इधर उधर की भाग दौड़ थी। रोज रोज समाज की मीटिंग में भाग लेना तो जैसे जिंदगी का हिस्सा ही बन चुका था । घरवालों से तक बहस हो जाया करती थी बहुत सुननी पड़ती थी कभी कभी तो खर्चा पानी तक बंद हो गया था लेकिन स्टूडेंट लाइफ बड़ी ही सेटलमेंट लाइफ होती है मीटिंग में भाग लेने के लिए कही से भी सहारा लेना पड़े लेकिन आदत से मजबूर मीटिंग में ले ही लेते थे । लेते भी क्यों नही काफी बड़ा नाम जो हो गया था हमारा उस दौर में ये अलग बात है की अब कोई पहचानता नहीं है हमारी सारी मेहनत को अकेला आदमी हड़प गया तब हम टूट गए थे खैर छोड़ो आगे की बात करते है लेकिन वर्ष 2015-16 के बाद पता नहीं ऐसा क्या हो गया कि फेसबुक और अन्य सभी सोशल मीडिया का राजनीति करण हो गया है ..।

एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक माध्यम हो गया है .. जैसे ही ऐप खोलते हैं उसपे आपके मित्र या परिजन के कोई अपडेट नहीं मिलेगें ... मिलेगें तो सिर्फ राजनीतिक पोस्ट .. और ये राजनीतिक पोस्ट आपके मित्र द्वारा ही फॉरवर्ड की गयी होगी ...।
                         यदि आज वर्तमान में औसत निकाला जाए तो लगभग 50 % से ज्यादा से राजनीतिक पोस्ट देखने को मिलती है और पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ ही रहा है .. राजनीतिक पार्टियों के IT CELL ने पूरे सोशल मीडिया को कवर कर लिया है ..।।

और यदि आप इस उम्मीद से फेसबुक मे लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया मिलेगा या किसी मित्र के बारे में कोई अच्छी अपडेट मिलेगी तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी आपको मिलेगी तो सिर्फ़ कोई ना कोई राजनीतिक पोस्ट या ऐसी कोई पोस्ट जिससे कोई राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि हो सके ... ऐसे तमाम लोग जो ये उम्मीद से लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया होगा तो उनके लिए फेसबुक मे अब कुछ नहीं बचा ....।।

जिस तरह से पुरानी चीजें कुछ बदलाव के साथ नयी होकर दुबारा लौटती हैं उम्मीद करेंगे जल्द ही फेसबुक मे कुछ अच्छा हो जिससे यह एक राजनीतिक मंच ना रहकर एक सामाजिक मंच कहलाए क्यों कि इसकी पहचान खत्म होती जा रही है .....।।

जयसिंह नारेङा

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