Thursday, April 27, 2017

अधूरी प्रेम कहानी -भाग-3

उसके पिता उसके लिए लड़का ढूंढ रहे थे,वो अक्सर बताया कहती थी कि "पिताजी सरकारी नोकरी वाला लड़का ढूंढ कर मेरी शादी करने वाले है तुम आकर मेरे घरवालो से बात करो"! ऐसा कहते कहते रोने लग जाया करती थी!
प्यार तो मैं भी बहुत करता था उससे लेकिन उसके ओर मेरे घरवालो से बात करने की हिम्मत मेरी नही हो रही थी!
आखिर किस तरह से बात करू ये समझ नही पा रहा था एक उसे खोने का डर ऊपर से घरवालो से बात करने का डर मुझे अपने आप मे कमजोर बनाये जा रहा था!
खाली बैठे दिमाग मे हर वक्त यही चलता रहता कि किस तरह बात करु घरवालो से,कैसे राजी करू ओर नही माने तो मेरा क्या होगा"!
शाम का समय था मैं अपने कमरे में सो रहा था,मन्द गति से ठंडी ठंडी हवाएं नींद से खड़े होने नही दे रही थी! मन मेरा भी नही था खड़ा होने मुझे तो बस नींद में कविता ही नजर आ रही थी!
अचानक मेरी नींद को खदेड़ते हुए मोबाइल की घण्टी बजी!
देखा तो कविता का ही कॉल आ रहा था,कविता का कॉल देखकर नींद कहा गायब हो गयी पता ही नही चला!
हेलो!कविता कैसी हो.........
कविता फ़ोन पर रो रही थी कुछ बोल नही पा रही थी!
"क्या हुआ कविता तुम रोई तो तुम्हे मेरी कसम है"मैंने अपनी आवाज को तेज करते हुए कहा!
एक दम सन्नाटा सा छा गया कविता कसम देते ही चुप हो गयी थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी!
"बताओ कविता क्या हुआ कुछ बोल तो सही यार आखिर हुआ क्या है??मैंने जोर देते हुए कहा
कविता ने दुखी मन से रुन्दे गले से अपनी बात कह दी"आज पापा मेरे लिए लड़का देख कर आये है तुम कब बात करोगे,मैं सिर्फ तुमसे शादी करना चाहती हु ओर ऐसा नही हुआ तो मैं मर जाऊंगी"!
इतना कहकर कविता ने फ़ोन काट दिया
मेरा मन भी अब रोने का होने लगा था मैं नही चाहता था कि कविता मेरे से दूर जाए लेकिन बात करने की हिम्मत मेरे अंदर नही थी!
कविता भी समझ रही थी कि मैं बात नही कर पाऊंगा
इसलिए उसने अब अपना फ़ोन बन्द कर लिया था!
मैं बहुत परेसान था!
एक दिन कविता के घरवाले गाड़ी में अपना सामान जमा रहे थे!
मैने उत्सुकता से पूछ ही लिया"अंकल कहा जा रहे हो सुबह सुबह??
अंकल"बेटा कविता की शादी है तो गांव से ही करने का विचार है इसलिए 2 महीनों के लिए गांव ही जा रहे है तुम्हारे पापा को मैंने बोल दिया है तुम भी साथ आना उनके"
ये सब सुनकर मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी थी कविता को देखा तो मुझसे नजरे नही मिला रही थी!
उसका बेरुखापन मुझे अंदर ही अंदर जला रहा था आंखों आंसू आने की देरी थी मन ही मन बहुत रो रहा था!
ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सब कुछ मेरे सामने ही खत्म हो रहा हो जैसे कोई मेरी सांसो को मुझसे छीन रहा हो!
एक बार पुनः मैने अंकल से पूछा"अंकल लड़का क्या करता है क्या कविता राजी है शादी के लिए,अभी तो इतनी ज्यादा उम्र भी नही हुई है!"एक स्वास में अपनी बात कह दी!
अंकल ने बड़े प्यार से कहा"बेटा लडकिया पराया धन होती है इनकी खुशी के लिए ही मा बाप इतनी मेहनत करता है, लड़का अध्यापक है इसे बहुत खुश रखेगा"!
"अंकल मैं भी तो जवान हु मेरे ही शादी कर दो इसकी मैं भी तो खुश रखूंगा ओर तुम्हारे पास भी रहेगी जब चाहो मिल लेना"मजाकिया अंदाज में एक तरह से मैने अपनी बात कह दी!
इस बार अंकल ने भी जबाव मजाकिया अंदाज में दिया"बात तो सही है लेकिन तुम तो बेरोजगार हो और इसके नखरे कैसे उठाओगे,पढ़ लिख कर नोकरी लग जाओ तब जाकर तुम्हारा भी ब्याह हो जाएगा,इतनी जल्दी क्यो हो रही है तुम्हे?'"
अब अंकल की बातों का मेरे पास कोई जबाव नही था समझ नही आ रहा था किस तरह समझाऊ की मैं कविता से बहुत प्यार करता हु उसके बिना खुश नही रह पाऊंगा!
मैं कविता की एक झलक पाने के लिए बेताब हो रहा था और वो मुझे देखना तक नही चाह रही थी!
उसका इस तरह का व्यवहार मुझे अंदर ही अंदर तोड़ रहा था मन ही मन दुःखी हो रहा था!
लगभग सारा सामान रख दिया था अब बस जाने की तैयारी थी!
अंकल गाड़ी में बैठकर हॉर्न देने लगे और जोर से आवाज लगाई"अरे जल्दी करो फिर दोपहर हो जाएगी"
इतने में ही कविता का दीदार हो चुके थे!
उसके चेहरे की मुस्कुराहट तो मानो गायब ही हो चुकी थी मेरे से नजरे नही मिला पा रही थी!
हल्का पिले रंग का सूट सलवार उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे!हाथ मे लाल रुमाल लिए हुए अपनी आंखों को पोछ रही थी!
उसके चेहरे को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बहुत रो रही हो लेकिन मेरे सामने सामान्य रहने का नाटक कर रही हो!
तभी मैने उससे बात करने के बहाने कहा"कविता मेरी एक बुक है तुम्हारे पास उसे दे दो मैं पढ़ लूंगा तुम तो पता नही आओगी या नही"!
वो बुक लेने अंदर गयी मैं उसके पीछे ही अंदर चला गया!


जाइयेगा नही कहानियों का सफर जारी रहेगा.........


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

परीत का बदला भाग-2

शनिवार का दिन था,शाम के समय सभी लोग भोमिया के थान(स्थान) पर इकट्ठा हो गए थे!इकट्ठा क्यो ना हो खौफ जो था भोमिया का लोगो के मन मे!
कहा जाता है कि भोमिया बाबा के थान पर घर मे से एक व्यक्ति का आना आवश्यक है!
लोगो के दिल और दिमाग मे भोमिया बाबा के प्रति अटूट प्रेम और श्रद्धा देखने को मिल रही थी! अजीब सी खुशी लोगो के मन को ओर प्रफुल्लित कर रही थी वो खुशी थी कि आज उन्हें भोमिया बाबा की झलक देखने को मिल पाएगी!
रामु काका भी अपने परिवार के साथ बाबा के थान पर आ गए!
काका को आज उम्मीद थी कि सारी समस्या खत्म हो जाएगी!
काका आज अटवाई(8 पूआ) ओर खीर का प्रसाद के साथ गोठिया द्वारा बताई गई सभी सामग्री बड़े ढंग से सजाकर दोड़ली(टोकरी) में लाल कपड़े से ढक कर लाये थे!
थान पर सभी भक्त घेरा बनाकर बैठे हुए थे बाकी आम जन नीचे बैठी थी!
थान एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे था जो लोगो को धूप से भी बचाता था!
ऐसा भी कहा जाता है इस नीम के पेड़ के पत्ते आमजन के लिए तोड़ना भी मना है यदि ऐसा किया जाता है तो भोमिया बाबा नाराज हो जाता है!माना जाता है कि भोमिया बाबा इसी में निवास करते है!
जैसे जैसे शाम ढल रही थी वैसे वैसे लोगो की भीड़ बाबा के थान की ओर उमड़ रही थी!
अच्छी खासी भीड़ आ चुकी थी भीड़ का नजारा देखते हुए भक्तो ने भजन गाना शुरू दिया था,जिन लोगो के समस्या थी उन्हें आगे बैठाया गया था ताकि फरयाद सुनने में आसानी हो!
ढांक बज रही थी भक्तो के भजन काफी तेज आवाज में सुनने को मिल रहा था!तभी एक बूढ़े बुजुर्ग ने गोठिया के माथे(सर) पर भभूत लगा दी!
भभूत भोमिया बाबा को बुलाने की प्रयोजन से लगाई गई थी!
कुछ क्षण बाद भजन की रफ्तार थोड़ी तेज हो चुकी थी
गोठिया के शरीर मे अजीब से परिवर्तन हो रहे थे,उसकी आंखें तन चुकी थी!गोठिया ने अपना आसन बदला और जो भक्तो द्वारा लगाया गया गद्दे का आसन उस पर जाकर घुटने के बल बैठ गया!अपने दोनों हाथ घुटने पर थे आंखों की भृकुटि चढ़ चुकी थी!
गोठिया शरीर कंपकपा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे ढांक की आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन पैदा कर रही हो जिससे गोठिया का शरीर अपने वश से बाहर होता जा रहा हो!
ढांक की हर आवाज गोठिया के शरीर मे कम्पन की सिरहन सी छोड़ रहा थी लग रहा था जैसे उसका शरीर ढांक की आवाज से ही हिल रहा हो,
गोठिया ने अपने दोनों हाथ घुटने पर रख लिए नीम की तरफ अपनी लाल हुए आंखों के सहारे देख रहा था!
इतने में एक भक्त खड़ा हो गया और कुछ नीम की डालिया तोड़ने लग गया,भक्तो ने भी अपने भजन की सुर को रफ्तार देना शुरू कर दिया था जिससे गोठिया अपने शरीर को अपने वश से बाहर होता महशुस कर रहा था!लोगो के चेहरे पर भी मुस्कान की एक लहर सी दौड़ रही थी उनको भोमिया का बाबा का काफी बेसब्री से इंतजार था!
बूढ़े बुजुर्ग ने रामु काका को आगे आने का इसारा किया रामु काका आगे आकर बैठ गया!
भक्त ने नीम की डालिया गोठिया के हाथों में थमा दी,गोठिया अपने माथे को हिला रहा था कभी कभी किलकारियां निकाल रहा था!अजीब सी आवाज उसके मुंह से निकल रही थी!गोठिया मुह से हुंकार भर रहा था तभी बूढा बुजुर्ग गोठिया के पास आकर बैठ गया कहने लगा "बाबा शन्ति सु आओ हम तो थ्यारा ही बालक है हम सु काई कु नाराज होवे कुछ गलती हुई हो तो माफ कर दो आप तो बड़े देव हो"बूढ़े बुजुर्ग ने विनम्रता पूर्वक अपनी बात रखी!
इस बात को सुनकर गोठिया ने एक लंबी हुंकार भरी ओर एक दम शांत भाव मे आ गया
बूढ़े बुजुर्ग ने लोगो की तरफ देखते हुए कहा"बोलो भोमिया बाबा की जय"!
लोग तो बाबा के दर्शन के लिए कब से उतावले थे उन्होंने नतमस्तक हो कर बड़े आदर पूर्वक जय कार लगाई!
"भोमिया बाबा की जय"

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त मिलते है अगली क़िस्त में


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Wednesday, April 26, 2017

परीत का बदला-भाग-1

रामगढ़ गांव डूंगर(पहाड़) की तलहटी में बसा हुआ है! ये छोटा सा गांव अपनी अलग पहचान लिए हुए था!
गांव तीन ओर से डूंगर से घिरा हुआ था जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहा था!
डूंगर से गांव को देखने पर कश्मीर की वादिया भी फीकी पड़ती नजर आती थी!
वैशाख का महीना था गर्मी अपनी आग बरसा रही थी,
गांव के अंदर बिजली की कोई खास व्यवस्था नही थी इसलिए लोग पेड़ो के नीचे ही गर्मी से बचाव करते थे!
रामु काका हुक्का कस ले रहे थे,आज उनका मन बिचलित हो रहा था!हुक्के की आग हल्की हल्की सुलग रही थी वे अपने बिचलित मन को हुक्के के कस के साथ पीना चाह रहे थे!
आज उनकी उनकी बैचनी भी जायज थी अपने छोटे बेटे को काफी डॉक्टरों ओर वैध के पास इलाज के लिए ले जाने के बावजूद भी कोई आराम नही मिल पा रहा था!
रामु काका के 3 बेटे थे! 1 बेटे ही शादी कर दी थी जिसके एक पुत्री थी! काका ओर छोटे भाई उस पुत्री को बहुत प्यार करते थे!
प्यार तो स्वाभाविक ही थी क्योंकि उनके परिवार का सबसे छोटी सदस्य थी!
शाम का समय हो चुका था लोगो की चहल पहल ज्यादा हो गयी थी! कुछ लोग बेटे सोनू को देखने आते और उसका हाल चाल पूछने के साथ कहते "किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ ओर कही पार नही पड़े तो अपने भोमिया बाबा की शरण मे ले चलो जल्दी ठीक हो जाएगा"
"छोरा कु यहां रख के मत बैठो!"
"अरे पटेल या काई बना दियो छोरा को या कु कब तक धर के बैठेगो गोठिया ओर भक्त न कु इकट्ठा कर ले आज भोमिया कु बुला लेंगे आज की आज या बीमारी को पातक कट जायेगो"भीड़ से निकल कर नारायणा पटेल रामु काका की ओर देखते हुए बोले!
रामु काका चिंतित भाव लिए हुए थे उनके चेहरे की मुस्कराहट तो मानो जैसे गायब हो गई थी!नारायणा पटेल की बात सुनकर उनका मन भी कुछ कुछ कहने लगा कि शायद भोमिया बाबा ही कुछ कर सकता है!
रामु काका निराशा पूर्ण भाव से "काई करू!सब डॉक्टरों को दिखा लिया जयपुर भी दिखा लायो पर छोरा के काई फर्क को दिख रो अब थ्यारा कहवा सु भोमिया कु भी बुला कर देख लू" काका ने अपनी बात रूखे मन से कह दी!
इतना कह कर काका बेजान पैरो से गोठिया के घर का रुख किया!
"बाबा,गोठिया बाबा काई हो रहा है?? काका ने बिचलित मन से पूछा!
"अरे आ पटेल आज तो घना दिन में आओ ओर छोरा का हाल किस्या है अब"गोठिया ने स्वागत रूपी भाव से आने के लिए कहा!
काका का मन अभी भी निराश था कुछ कहना भी चाहते थे पर शब्द नही मिल पा रहे थे,अपने रुन्दे हुए गले से बेटे के लिए करुणा रूपी भाव चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे!उनकी बेजान हो चुकी आवाज बाहर नही निकल पा रही थी!
गोठिया ने एक बार फिर पूछा"पटेल काई हाल है छोरा का किस्या चुप होगो??
इस बार काका की चुप्पी टूटी"बाबा कछु(कुछ) लाज रखे तो रख दे अब तो बस भोमिया बाबा ही कुछ कर सके है सब जगह दिखा लायो कोई फर्क नही पड़ रहा"इतना कह कर काका फिर से चुप्पी साध गए!
"देख पटेल,मैं तो बाबा सु अर्जी कर सकू हु बाबा जो कहेगा वही मैं कहूंगा अपनी ओर से जोड़ कर कहना नही आता!
कल भक्तन को भेड़ा(इकट्ठा) कर ले थान(स्थान) पर वही तेरा छोरा को इलाज हो जायेगो और तेरे श्रद्धानुसार जो बने वो कर दीज्यो"गोठिया ने एक लंबी स्वास भरते हुए कहा!
काका:- बाबा काई काई सामग्री लानी है वा भी बता दे हम तो अनजान है!
गोठिया:-अगरबत्ती का पैकेट,पताशा ओर लड्डू का प्रसाद ले आना और तेरे से श्रद्धानुसार जो बने वो ले आना!
काका:- ठीक है बाबा ले आएंगे पर छोरा को ख्याल रख ज्यो अब थ्यारी ही शरण न में आया हु!लाज रख दीज्यो म्हारी!
काका अपने बेजान पैरो से घर की तरफ चल दिया और रास्ते की दुकान से बताई गई सामग्री घर ले आया!
"बाबा ने काई बताई अब ठीक हो जायेगो का सोनू"काकी ने बिलखती हुई बोली!
काका ने प्रतिउत्तर देते हुए कहा" हा हो जायेगो कल भक्तन को इकट्ठा करेंगे और गोठिया बाबा के भोमिया बाबा आयगो सब इलाज कर देगो!
साोनु की तरफ देखते हुए काका बोले"बेटा अब काई दुखे है कुछ बता तो सही,कुछ खाने पर मन कर रहा हो तो बता दे!
साोनु काका के करुणा रूपी चेहरे को पढ़ रहा था हल्की सी मुस्कान लिए हुए चेहरे से कहा"काका अब तो सर दर्द कर रहा है बस,भूख नही है अभी होयगी तो कह दूंगा!
इतनी बात को सुनकर काका कर मन को कुछ प्रतिशत शुकुन मिला,मन ही मन भोमिया बाबा को शुक्रियादा करने लगे थे
अब उनको लग रहा था कि भोमिया बाबा ही इसे ठीक कर सकते है!


जाइयेगा नही कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मिलते है अगली क़िस्त में......


लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Tuesday, April 25, 2017

अधूरी प्रेम कहानी - भाग-2

रात को जब सब सो गए तब मैंने वो पर्चा निकाला |
"जय,
तुम तो जानते हीं को मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूँ | तुम्हारे सामने आते हीं मेरी धड़कने बढ़ जाती हैं | तुम सब जानकार भी क्यों अनजान बने रहते हो ? मैं लाख तुम्हे दिल से निकालने की कोशिश करती हूँ फिर भी बार बार मेरा मन तुम्हारी तरफ खिंच जाता है |
शायद मैं तुम्हारे काबिल नहीं इसीलिए तुम हमेशा रुखा रुखा बर्ताव करते हो |ठीक है तुम्हारी यही मर्ज़ी तो यही सही | अब ये तड़पन हीं मेरा नसीब है |
तुम्हारी
तुम जानते हो |"
मैंने उसके ख़त को सैकड़ो बार पढ़ा और हर बार मुझे कोई घटना याद आ जाती कि कैसे प्यार से मेरी तरफ देखी थी या बात करने की कोशिश की थी और हर बार उसे मायूसी झेलनी पड़ी थी |एक दिन उसके पिताजी अपने भाई के साथ काम से बहार गए हुए थे |
कविता की माँ ने बड़े संकोच से आकर कहा " देखो न कविता की आज अंतिम परीक्षा है और ऑटो की हड़ताल हो गयी है | क्या तुम उसे कॉलेज छोड़ दोगे ?" "हाँ हाँ क्यों नहीं |चाचीजी आप चिंता मत कीजिये |
मैं उसे ले भी आऊंगा | मैंने अपनी मोटरसाईकिल निकाली और उसे लेकर कॉलेज के तरफ चल पड़ा |
पुरे रास्ते हम दोनों में से किसी ने मुह नहीं खोला | वह थोड़ी परेशान लग रही थी | शायद परीक्षा की वजह से | उसे कॉलेज उतार कर गेट के बाहर हीं प्रतीक्षा करने लगा |थोड़ी देर बाद एक सिपाही चीखता हुआ मेरी तरफ दौड़ा |
"ऐ लड़के तुम गिर्ल्स कॉलेज के सामने क्या कर रहे हो ?चलो भागो यहाँ से नहीं तो ये डंडा देखा है| इसने बड़ों बड़ों के आशकी के भूत उतारे हैं |
"बाबा मैं यहाँ किसी को परीक्षा दिलाने आया हूँ |
" झूठ मत बोलो |
नहीं मैं सच कह रहा हूँ |
नाम बताओ उसका |
मैंने अकड़ के कहा कविता | रोल नंबर ?"1234567"
ठीक है साइड में खड़े रहो |
तीन घंटे बाद जब वो परीक्षा देकर बाहर निकली उसका चेहरा गुलाब सा खिला हुआ था | आज मैंने ध्यान दिया कि कितनी सुंदर है वो | उसकी आँखें ,उसके गाल , उसके होंठ रेशमी जुल्फे सब से जैसे सौंदर्य टपक रहा हो | शायद पेपर अच्छा हुआ था पर पास आते हीं फिर से शांत हो गई | मैंने भी चुपचाप बाइक स्टार्ट कि और उसे बैठाकर चल दिया | आधे रास्ते में अचानक एक साइकल वाला सामने आ गया | उसे बचाने के चक्कर में मुझे बाए मोड़ना पड़ गया |
वो रास्ता नेहरू गार्डन को जाता था |
पुरे शहर में दिवानों के मिलने की एक मात्र सुरक्षित जगह थी | मैंने बाइक वापस नहीं ली ,चलता रहा | गार्डन पहुँचते ही जोर से ब्रेक मारी | अपने दोस्तों को कई बार ऐसा करते देखा था जो मेरे से भी अपने आप ब्रेक लग गई थी | वो गिरते गिरते बची | बाइक साइड लगा कर हम पार्क में घुस गए | वो अब भी शांत थी |
मैंने चुप्पी तोड़ी " आज इतनी शांत क्यों हो ?
कुछ बोलती क्यों नहीं ?"
वो फिर भी चुप रही |
कविता तुम जानती नहीं हो | जैसा मैं दिखाने की कोशिश करता हूँ वैसा हूँ नहीं | भले मैं तुमसे बात ना करूँ | तुम्हे देख कर नज़रंदाज़ करूँ पर सच कहूँ तो तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो | जाने कितनी रातें तुम्हारे बारे में सोचते हुए काटीं है | तुम्हारे सपने देखता हूँ ,तुमसे अकेले में बात किया करता हूँ पर तुम्हारे सामने आते हीं जाने क्या हो जाता है | तुम्हे ये क्यों लगता है कि तुम मेरे काबिल नहीं हो | तुम इतनी सुंदर इतनी अच्छी हो बल्कि मैं हीं तुम्हारे लायक नहीं हूँ |
"नहीं नहीं ऐसा मत कहो "| आखिरकार कविता का मौन टूटा |"
इतना कह के वो फिर चुप हो गई | उसे अब भी मुझ पर भरोसा नहीं था | मैंने सबके सामने उसका हाथ थाम लिया | उसने छुडाने की कोशिश की तो मैंने पकड़ मजबूत कर ली | सभी हमारी तरफ देखने लगे | भीड़ से अलग गुलमोहर के पेड़ के नीचे एक बेंच था | हम वहीँ जाकर बैठ गए | उसके नैनों में एक नई चमक और कपोलों पर हया छाने लगी | आज पहली बार मैंने उसे शर्माते हुए देखा था | उसकी चन्दन काया से सर्प की भाँती लिपट जाने का मन कर रहा था | 
उसका यौवन रह रह के मुझसे शरारत कर रहा था पर मैं विवश था | बातों का दौर चलता रहा | उसने जमकर मुझ पर भड़ास निकाली फिर शुरू हुआ प्यार भरी बातों का सिलसिला | ऐसी मदहोशी छाई कि घंटो बीत गए पता हीं नहीं चला | अँधेरा छाने पर गार्ड ने आकर सिटी बजाई | हम घबराए से बाइक की तरफ दौड़े | घर जाकर क्या बहाना बनाएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था | घर पहुँचते हीं कविता की माँ मिल गयीं | बड़ी घबराई सी लग रहीं थी |
"सब ठीक तो है ? इतनी देर कहाँ लगा दी ? मेरा कलेजा पानी पानी हुआ जा रहा था |"
कविता कुछ बोलना चाही पर मैं बीच में हीं बात काटते हुए बोला "ऑटो यूनियन वालों ने रास्ता जाम कर रखा था | किसी को जाने हीं नहीं दे रहे थे | हड़ताल जब ख़त्म हुई तब जाकर रास्ता खुला और हम आ सके |
"ओहो बेटा हमारी बजह सु तोकु इतनी परेसानी झेलनी पड़ी है"
कोई बात नही चाची काई फर्क पड़े

हमारी प्रेम कहानी जाने कब से धीमे धीमे सुलग रही थी पर उसे आग का रूप दिया उस पार्क वाली मुलाक़ात ने | अब हम अक्सर कभी पार्क तो कभी सिनेमा जाने लगे | खूब बातें होती | एक दुसरे को छेड़ते, शरारतें करते | हमारे बीच इतनी निकटता आ गई कि एक दुसरे को कुछ कहने के लिए शब्दों का सहारा नहीं लेना पड़ता | आँखों आँखों में हीं आधे से ज्यादा बातें हो जातीं |किसी दिन अगर लड़ाई हो जाती तो अगले दिन खुद हीं मान जाते |कभी एक दुसरे को मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती |कितने खुश थे हम | कहते है ना कि खुशी ज्यादा दिन नही टिकती यही हाल हमारे साथ होने जा रहा था!

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मिलते अगले भाग में...........

लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Sunday, April 16, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार....भाग-5(अंतिम भाग)

रात को खाने के बाद दोनों बालकनी में खड़े हो गए मगर खामोश, इस बार जैसे दोनों को ही एक अजनबीपन का एहसास हो रहा था राजेश नहीं समझ पा रहा था की वो उसे कैसे समझाए न ही अनुष्का ये बात समझ पा रही थी | दोनों जान चुके थे की दूरियां तो आ गयी हैं मगर इन दूरियों का जिम्मेवार कौन है वो या अनुष्का , मगर राजेश अभी भी अनुष्का को दिलोजान से चाहता था वो चाहता था की अनुष्का वापिस अपने शहर आ जाये लेकिन वो उसे मजबूर नहीं करना चाहता था |
अचानक फिर से घंटी बजी, राजेश की शून्यता टूटी मगर इस बार घंटी फ़ोन की थी ,घंटी लगातार बज रही थी और उसकी गूंज कमरे में पसरी ख़ामोशी और राजेश के दिल में बसी ख़ामोशी दोनों में खलल डाल रही थी , उसने चाय का गिलास टेबल पर रखा और रिसीवर उठाया और भरी आवाज में कहा "हेलो" दूसरी तरफ आवाज किसी औरत की थी कुछ जानी पहचानी ,दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "हेलो, हेलो, कौन? राजेश, मैं रश्मि बोल रही हूँ " थोड़ा विस्मय भरे अंदाज में राजेश ने कहा "अरे बुआ आप, आप कैसी हैं?" रश्मि की आवाज फिर आई " मैं अच्छी हूँ बहुत दिन हो गए थे तुमसे बात किये आजकल कॉलेज भी नहीं आ रहे हो, किसी ने बताया तुमने छुट्टी ले रखी है इसलिए सोचा फ़ोन कर के पूछ लूं कहीं तबियत खराब तो नहीं ?"
राजेश हंसने लगा "नहीं बुआ ऐसी कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ " रश्मि कुछ कहना चाह रही थी मगर हिम्मत नहीं हो रही थी बस इतना ही कहा " राजेश मैं तुम्हें और तुम्हारे हालातों को समझ सकती हूँ बस दुःख तो इस बात का है कि कुछ कर नहीं सकती जो भी हुआ बेहद बुरा हुआ " राजेश कुछ सकते में आ गया वो शायद इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था और आगे कुछ सुनना नहीं चाहता था रश्मि की बात काट कर बस इतना ही कहा "बुआ जी आप मेरी चिंता न कीजिये अभी कुछ काम है मैं आपसे बाद में बात करता हूँ" और रिसीवर रख दिया |
रिसीवर के रखते ही राजेश ज्यादा परेशान हुआ उसने बड़ी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरा और धड़ाम से पलंग पर आ गिरा और फिर वहीं सब बातें सोचने लगा, कैसे ये सब हो गया ये तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनुष्का इतनी बेरुखी से उसे ठुकरा कर चली जाएगी आखिर उसके प्यार में क्या कमी रह गयी थी ? अनुष्का अब एक प्रोफेसर बन चुकी थी क्या यही वजह थी ? या राजेश का कलर्क होना अब उसे अखरने लगा था आखिर अनुष्का ने ऐसा क्यों किया ? ये सब सवाल एक बड़ी पहेली बन गए थे राजेश के लिए | वो झट से उठा और टेबल पर पड़ी डायरी के बीच रखे उस अनुष्का के खत को अपने कांपते हाथों से निकाला और इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक बार फिर पढ़ने लगा वो जानता था कि जब से उसे अनुष्का का खत उसे मिला है वो कितनी बार उसे पढ़ चुका है ..
करीब एक महीना पहले उस दिन राजेश कॉलेज से लौटा ही था कि लैटरबॉक्स में खत मिला , ना जाने किसका था समझ नहीं पा रहा था वो अंदर आकर आराम कुर्सी पर बैठ गया थोड़ा सुस्ताने लगा फिर उस खत को खोला तो सबसे ऊपर अपना नाम पढ़ा, फिर ..क्या था धीरे धीरे उसे उसकी जिंदगी उससे दूर जाती दिखी ,जैसे जैसे वो उस खत को पढ़ रहा था उसे सब कुछ ख़त्म होता दिखाई दे रहा था...
"प्रिय राजेश
मैं इस खत को लिखने के लिए बहुत मजबूर हूं मैं जानती हूं इसे पढ़ कर तुम्हें बेहद दुःख होगा मुझे इसके लिए माफ़ कर देना मगर मुझे ये लिखना बेहद जरुरी लग रहा है , समय रहते ही मैं आपको सारी बातें कहना चाहती हूं मैं नहीं चाहती कि बाद में हम दोनों को कोई पछतावा महसूस हो | राजेश हमारी शादी को सात साल हो गए और एक दूसरे को समझने के लिए ये काफी होते हैं , मैं जानती हूं आप मुझे अच्छे से समझते हैं इसलिए इस खत में लिखी मेरी हर बात को आप समझोगे, मैं क्या सोचती हूं उसको भी | राजेश जब आप से मेरी शादी हुई तब मैं बेहद छोटी थी सिर्फ अठारह बरस की,उस वक्त मैं कितनी अल्हड और नादान थी आज मुझे लगता है , मैं उस वक्त नहीं जानती थी कि जिंदगी क्या है ,जीना किसे कहते हैं, मैं उस वक्त पढ़ना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी कि अचानक से आप मेरी जिंदगी में आ गए, आप मुझसे प्यार करते थे इसलिए मुझे भी आप से प्यार हो गया ,मगर मेरा वो प्यार शायद मेरा बचपना था आप ही सोचिये उस उम्र में तो शायद कोई भी लड़की बहक जाये क्यों कि वो उम्र ही ऐसी होती है |
आज मैं परिपक्व अवस्था में हूं जीवन के बारे में खुद के बारे में सोच सकती हूं, मैं अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूं जिंदगी को नए आयाम देना चाहती हूं,जीवन में अपने लक्षय को प्राप्त करना चाहती हूं ,इस लिए मैं ज्यादा ना लिखते हुए यही बात स्पष्ट कहना चाहती हूं कि मैं आपसे अलग होना चाहती हूं और कानूनी तौर पर आपसे तलाक लेना चाहती हूं | ये मेरी निजी राय है और इच्छा भी, आशा है आप मेरे इस फैसले का सम्मान करोगे और मुझे समझेंगे | आप अपने जीवन में हमेशा खुश रहिये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ!
अनुष्का"
दोनों के कानूनी तौर पर अलग हो जाने के तक़रीबन साल भर बाद खबर आई कि अनुष्का ने शहर के एक जाने माने उद्योगपति राजकुमार उर्फ राजू से शादी कर ली और हमेशा के लिए अमेरिका चली गयी ,लेकिन राजेश का कोई पता नहीं था उसको लेकर भी कई तरह की बातें सामने आई ,कोई कहता कि मानसिक संतुलन खो बैठा है ...
कोई कहता कि वो अपने गावं वापिस चला गया |
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मेरी कहानी का अंतिम पड़ाव यही तक था उम्मीद है आपको पसंद आई होगी!
कहानी में गलतिया राह गयी हो तो क्षमा करें और मार्गदर्शन देने का कष्ट करें!

-:लेखक:-
जायसिंह नारेड़ा

Tuesday, April 11, 2017

अंधविश्वास में जकड़ा समाज

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा समाज धार्मिक ठोंग पाखंड और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोभी और गुमराह मुल्लाओं , पंडितों ,भगवानो द्वारा जकड़ा हुआ समाज है | अधिकतर तो जाहिल इनका शिकार होते हैं लेकिन मैंने धर्म और आस्था के नाम पे बड़े बड़े पढ़े लिखे लोगो को इसका शिकार होते देखा है |चमत्कारी बाबाओं और भगवानो द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से सामने में आती रही हैं और धन तो इनके पास  दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते | इसके दोषी केवल यह बाबा ,मुल्ला या  भगवान् नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ  समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान् को पहचानने की गलती किया करता है| 

शायद हम आज यह ही नहीं पहचान पा रहे हैं की हमारा अल्लाह, भगवान् या ईश्वर कौन है ? हर वो ताकात जिससे हम डर जायें या हर वो चमत्कार जो हमारी समझ में ना आये उसे भगवान् या खुदा अथवा देवी-देवता बना लेने की गलती ही हमें गुमराह करती है | कल का चमत्कार हकीकत में आज का विज्ञान है यह बात हर पढ़े लिखे को समझनी चाहिए | इस्लाम ओर हिन्दू धर्म ने इसी लिए बार बार समझया की अल्लाह ओर भगवान एक है और उसी ने सबको पैदा किया है वही सबका दाता है और हर चमत्कार केवल उसी की ताक़त है और जो ऐसा यकीन ना करें किसी और के चमत्कार को देख उसको भगवान् या अल्लाह मान ले | बावजूद इस यकीन के और अल्लाह की हिदायत के मुसलमान भी गुमराह हो जाता है और दुनिया के ढोंगी  और चमत्कारी बाबाओं, मुल्लाओं के चक्कर में परेशानी के समय पड़  जाया करता है | 
बाबाओं द्वारा दिखाए चमत्कार जादू ,सहर, नजर बंद (नज़रों का धोका ) हुआ करता है जो की एक ज्ञान है|

यह बात साफ़ है की यह सारे ढोंग ,पाखंड धर्म का हिस्सा नहीं और इनपे विश्वास अंधविश्वास है | आप कह सकते हैं की जिस बात का कोई सम्बन्ध धर्म से ना हो उसी को ढोंग और पाखंड कहते हैं और अपने फायदे के लिए धर्म की आड़ में बनाए कानून को पाखंडवाद कहते हैं | धर्म से भटकाव सामाजिक कुरीतियों को और ढोंगी ,पाखंडियों पर अंधविश्वास को जन्म देता है | इसी कारण जब कोई इंसान समाज से कुरीतियों को दूर करने के नाम पर, ढोंग पाखंड और अंधविश्वास मिटाने के नाम पर अधर्मी मुल्लाओं ,पंडितों, चमत्कारियों, बाबाओं के शक्ति प्रदर्शन को देख उनको  बेनकाब करता दिखे तो ठीक क्यूंकि यह जो कर रहे है ये अंधविश्वास ओर पाखंडवाद की श्रेणी में आता है!
इन सब कुरूतियो से समाज को बचाना है!

आखिर कब तक इन जंझालो मे जकड़ा रहेगा हमारा समाज??

-:लेखक:-
#जयसिंह_नारेड़ा

Monday, April 10, 2017

वो कॉलेज वाला प्यार.....भाग-4

साल दर साल फिर बीतते गए और पढाई का सिलसिला आगे चलता रहा ,एम.फिल करने के दौरान अनुष्का को एक प्राइवेट कॉलेज में नौकरी मिल गयी ,अनुष्का के पंखों को तो जैसे नयी उड़ान मिल गयी थी | बेहद खुश थी अनुष्का इस नौकरी के मिलने से मगर एक छोटी सी परेशानी थी वो ये की उसका कॉलेज दूसरे शहर में था | इस परेशानी का हल भी राजेश ने ही निकाला ,उसने अनुष्का से कहा कि वो वहां जाना चाहे तो जा सकती है अगर नौकरी नहीं भी करना चाहती है तो वो भी ठीक है ,मगर अनुष्का जाना चाहती थी वो हरगिज़ भी इस नौकरी को ठुकराना नहीं चाहती थी, इसलिए जाने का निश्चय किया, मगर अकेले रहने में उसे थोड़ा डर लग रहा था इसलिए राजेश ने ढांढस बंधाया कि वो हर शनिवार उसके पास आ जाया करेगा सप्ताह में दो दिन वो साथ बिताएंगे फिर अनुष्का नौकरी के लिए दूसरे शहर चली गयी |
यही वो मोड़ था जहां से राजेश और अनुष्का के रास्ते अलग अलग होने शुरू हुए ,एक कहावत भी है कि नजरों से दूर तो दिल से दूर वो यहां चरितार्थ होती दिख रही थी | राजेश तो अपने काम में व्यस्त हो गया मगर अनुष्का के लिए हर बात नयी थी नयी नौकरी, नया कॉलेज नए दोस्त और सबसे ज्यादा उसके नए सपने ,उसका मिलनसार और चंचल स्वभाव सभी को आकर्षित करता था कुछ ही समय में वो कॉलेज की प्रिय लेक्चरर बन गयी | इसी दौरान उसकी दोस्ती पूजा से हुई जो हिंदी की लेक्चरर थी ,दोनों जल्दी ही अच्छी सहेलियां बन गयी पूजा तलाकशुदा थी इसलिए वो भी अकेली ही रहती थी आजाद ख्याल की पूजा ने जैसे अनुष्का का दिल जीत लिया था पूजा अपनी कार से कॉलेज जाती थी , जब से दोनों अच्छी सहेलियां बनी थी दोनों का उठना बैठना आना जाना इकट्ठा था |
अभी अनुष्का को आये तीन महीने हो चले थे अचानक से एक दिन उसकी तबियत खराब हुई तो कॉलेज से छुट्टी ले कर घर जल्दी आ गयी ,दो दिन तक अजीब सी तबियत रहने के वाबजूद उसने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला अनुष्का गर्भ से है ,अनुष्का पर तो जैसे कोई बज्रपात हुआ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे वो राजेश को ये बात बताये या नहीं, उसने ये बात पूजा को कही और साथ में ये भी बताया वो अभी माँ नहीं बनना चाहती पूजा ने प्रतिउत्तर में यही कहा कि वो अपने फैसले खुद ले सकती है अगर वो नहीं चाहती तो वो गर्भ गिरा दे, पूजा की गर्भ गिराने वाली बात सुन कार अनुष्का अंदर तक कांप गयी उसने फ़ौरन ये बात राजेश को बताने का निश्चय किया और उसने यही सोचा कि वो राजेश से कुछ नहीं छिपायेगी वो जानती थी राजेश उसकी हर बात मान जाता है इस बार भी वो उसे समझेगा और मान लेगा |
उस दिन शनिवार था राजेश करीब तीन बजे तक पहुंच गया अनुष्का की अजीब सी हालत देखकर वो कुछ परेशान हुआ और उसकी हालत का कारण पूछा अनुष्का ने पहले तो यही कहा की तबियत कुछ ठीक नहीं मगर राजेश ने डॉक्टर के पास जाने की बात कहीं तो अनुष्का से रहा नहीं गया और कहा "राजेश मैं अभी बच्चा नहीं चाहती "और गहरे संतोष भरे भाव से राजेश को देखने लगी पहले तो राजेश कहने का मतलब समझा नहीं जब अनुष्का ने फिर से कहा की वो डॉक्टर के पास गयी थी तो पता चला की वो गर्भ से है मगर वो अभी बच्चा नहीं चाहती |
राजेश पहले तो बेहद खुश हुआ मगर जल्दी ही वो अनुष्का कि कहीं गयी बात से कुछ आक्रोश से भर गया मगर फिर भी खुद को सहज करते हुए एक समझदार इंसान की भांति अनुष्का को समझने की कोशिश की और कहा "अनुष्का हमारी शादी को सात साल होने को आ गए अब तो तुम्हारी पढाई भी पूरी हो गयी है अच्छी खासी नौकरी भी है फिर अब तो हम अपने परिवार के बारे में सोच सकते हैं" मगर अनुष्का राजेश की सारी बातों को अनसुना कर रही थी जैसे उसने फैसला ले लिया हो |


कहानियों का सफर अभी अधूरा है!
शेष अगली क़िस्त में

-:लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा 

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...