Thursday, July 15, 2021

सामान का बहिष्कार करो

एक समय हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाने लगा था  । हमारे देश के अवसरवादी लोग बहुत बड़े देश भक्त होने का ढोंग किया करते है।

एक बार उस देश पर किसी पड़ोसी देश ने हमला कर देता है । हमारे देश के लोगो के द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना शुरू कर दिया जाता है कि पड़ोसी देश के समान (चाइना का माल )का बहिष्कार करो।

उन लोगो को काफी ज्यादा लाइक आ गए पोस्ट पर और फॉलोवर भी बढ़ गए। लेकिन जब हालात सामान्य हो गए तब वो ही लोग दूसरे देश की चीजें बाजार से सस्ते में खरीदने लग गए।

नोट-यह घटना पूरी तरह से काल्पनिक है। इसका किसी सत्यता से सम्बन्ध मिलता है तो इसे संयोग मात्र माना जायेगा ।
© जयसिंह नारेङा

Tuesday, July 13, 2021

सोशल मीडिया

आजकल सोशल मीडिया का दौर है! चैटिंग तो जोरों शोरों पर रहती है आज के दौर में सब मोह माया के चक्कर में फंसे हुए हैं | 
बाबू सोना से चैटिंग करने का टाइम है पर अगर माँ बाप कुछ काम की बोल दे तो पढ़ाई का बहाना / नोकरी का बहाना या अन्य किसी काम का बहाना बना लेंगे

आजकल सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा तो सोशल मीडिया पर
देखने को मिलती है ..
फोटो पोस्ट करते ही चेक करने लगते हैं अरे उन फलाने का लाइक कमेंट नहीं आया! आज से मै भी इनकी पोस्ट पर लाइक कमेंट नही करूँगा! कहीं स्टेट्स देखने की प्रतिस्पर्धा तो कहीं वो पहले मैसेज नहीं करते हैं तो मैं क्यों करूँ!

वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल साइड पर ही अगले व्यक्ति की निजी जिंदगी का आकलन कर लेते हैं ..
अगर कोई व्यक्ति थोड़ा रोमांटिक स्टेटस लगा दे तो प्यार का चक्कर है, अगर गम भरे लगा दे तो भैय्या पक्का छोरी छोड़ गयी है 
आजकल लाइक कमेंट की भी होड हो चुकी है 
आगे फ्लाना ढीकाना , etc ....

                                     कोई किसी के वाट्सऐप स्टेटस से उसके करेंट स्टेट्स का अंदाजा नहीं लगा सकता कि वो किस परिस्थिति से गुजर रहा है ।

© जयसिंह नारेङा

Saturday, July 10, 2021

सोशल मीडिया और हम

सोशल मीडिया और हम

आज का दौर युवाशक्ति का दौर है। भारत में इस समय 65 प्रतिशत के करीब युवा हैं। इन युवाओं को बड़ी  ही सक्रियता से जोड़ने का काम सोशल मीडिया कर रहा है। युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है।

युवाओं के  उसी क्रेज़ के कारण आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर मैं इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि बन गया है। एक परिभाषा के अनुसार, 'सोशल  मीडिया को परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच कहा जा सकता है जिसके माध्यम से लोग संवाद करते हैं, आपसी  जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ता जनित सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रक्रिया के एक अंश के रूप में संशोधित  करते हैं।' सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की जिंदगी का एक अहम अंग बन गया है। यह सही है कि इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना  किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकते हैं, परन्तु इससे अपराधों में भी वृद्धि हुई है। रोज नए नए दादा इस सोश्ल साइट पर जन्म ले रहे है ऐसे रोज लाइव आकर धमकिया देना तो आम प्रवती हो गयी है ! खैर दादाओ के बारे मे मैं ज्यादा नही लिखुंगा बाकी आप सब समझ दार हैं असल मे ये दादा नहीं होते है ये मोटर साइकल चोर हो सकते है ,बदमाश हो सकते है या यू कहे किसी बड़े चोर के चेले हो सकते है अभी के दौर मे स्मेक पीने वाले भी नशे मे धमकिया दे देते है

सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है।  सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी  बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। 

आज दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हैं।  वर्तमान मैं यह सोशल मीडिया लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया हैं। हम अगर किसी से नाराज हैं, किसी की बातों का प्रत्यक्ष  प्रत्युत्तर नहीं दे पाते हैं, आज सोशल मीडिया पर सभी लोग खाने ,पीने ,व कही घूमने फिरने से लेकर हर वक्तअपना स्टेटस अपडेट करता रहता है। कमी ये रह जाती है की वे ह्ंग्ते वक्त फोटो अपडेट नही करते है हमें जिसकी अज्ञानता पर आश्चर्य होता रहता है, वह भी पचास तरह की फालतू पोस्ट से अपना प्रोफाइल भर देता है।  सोसल साइट्स आज मन की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं, मन को जोड़ने का भी साधन है। सोशल मीडिया पर केवल मस्ती मज़ाक ही पोस्ट ना करके कुछ व्यक्ति अपना मत व जानकारी उपलब्ध करवाता है जो कही न कही आपके और हमारे दैनिक जीवन मे काम आती है । युवाओं के जीवन में  सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है।  आज सोश्ल मीडिया प्लैटफ़ार्म पर बच्चो से लेकर बूढ़े तक सभी जुड़े हुये है जिनमे से 65 % से भी अधिक मात्रा मे युवाओ की संख्या का आंकलन किया गया है इस प्लैटफ़ार्म के माध्यम से कुछ साथी इतने अच्छे मिले है  जिनसे प्रत्यक्ष रूप से कभी मिला नहीं। परन्तु हमारी आदतें, हमारी अभिरूचि, हमारा सोच आदि में मेल है और हम चैटिंग, व्हाट्सएप आदि पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मेरे कई साथी मित्र ऐसे है जो की साहित्य और सामाजिक सेवा मे लगे हुये ऐसे मित्रों की प्रतिक्रियाएँ मुझे प्रभावित करती हैं और कुछ मित्रो के विचारों का मैं समर्थन भी करता हूँ। फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम,ब्लॉग आदि सोशल मीडिया के और न जाने कितने ही रूप इन दिनों इंटरनेट की मायावी दुनिया में शुमार हो चुके हैं और इनके उपयोग करने बालों की संख्या भी रोज बढ़ती जा रही है। कभी कभी सोशल मीडिया पर आपसी मनभेद और मतभेद हो जाते है जो की एक विकराल रूप ले लेते है  एक- दूसरे में हाथापाई या जान जोखिम हो सकता है । इससे बेलगाम तरीके से एक-दूसरे को कुछ भी कहने, गाली-गलौज तक की सुविधा आसान है। ये भी सुविधा है कि ऐसी स्थिति में जिससे बात करना या जिसकी बात सुनना न चाहें, उसे अनफ्रेंड कर दें, या ब्लॉक कर दें।

कल्पनाओं को दिखाने में लगे रहते हैं। देश में कई ऐसी घटनाएँ सामने आयी हैं कि एक 40-45 साल का युवा 20-22 साल अपनी उम्र डालकर तथा कोई स्मार्ट सा फोटो डाल कर अपना प्रोफाइल बनाता है जिनमे अधिकतर फोटो एडिटिंग किए हुये होते है । उससे आकर्षित होकर कई लड़कियाँ मित्र बना लेती हैं, बन जाती हैं। बात में मिलना-मिल्राना, शादी का झाँसा और
फिर शारीरिक संबंध। ऐसे युवाओं से कहना चाहूँगा कि यार दोस्ती ही करनी है तो परिचितों से क्‍यों नहीं? नए-नए पोज़ का सेल्फी हर सेकेण्ड में सोशल साइट्स पर डाल दिया जाता है। किसी अपरिचित मित्र का कमेन्ट आता है 'बॉउ'। आप रिप्लाई करते हो 'थैंक यू। फिर अनाप-सनाप कमेंट। जरा सोचो कि क्‍या राह चलते कोई लड़का तुम्हें देखकर 'बॉउ' 'नाइस' करे तो तुम
'थैंक यू' बोलोगे? अगर कोई आपके प्रोफाइल फोटो पर 'क्या हॉट है" कमेंट करता है तो आप दिल या स्माइल का
सिममबल्र भेजते हो, मगर वहीं लड़का आपके सामने आकर किसी लड़की को बोले तो आप उसे छेड़ने की जुर्म में अंदर करवा दोगे। और वैसे भी फेसबूक पर आजकल FIR करवाने का दौर चल रहा है  जरा सोचिए कि क्‍या हम इतना भी रियल नहीं रह गए। सोशल साइट्स पर अभद्र कमेंट करना उतना ही अपराध है जितना प्रत्यक्ष। अक्सर युवावर्ग मैं ऐसा देखा जाता है कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रहता है। दोस्तों से गप्पें लड़ाने में, लड़कियों को पटाने की कोशिश में, या फिर गेमिंग और ऐसी हरकतों में जिनसे उनके करियर या जिंदगी में कोई फायदा तो नहीं ही हो सकता। ऐसे चंद, बिरले ही युवा हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर सक्रियता उनके लिए किसी तरह से लाभकारी साबित हई हो, चाहे काम-काज या नौकरी के सिलसिले में या फिर निजी जीवन के किसी पहलू में। ऐसे उदाहरण
कम ही मिलते हैं, जिनमें सोशल मीडिया के अधिकाधिक इस्तेमाल से किसी व्यक्ति का भला हुआ हो। सोशल मीडिया पर दोस्ती बढ़ाकर लड़के -लड़कियों को ठगे जाने के मामले रोज ही सामने आते हैं। दो-चार दिल सोशल मीडिया के जरिए भल्ले ही आपस में जुड़ गए हों, लेकिन न जाने कितने ही दिल टूटने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। 

खैर ये विषय कभी खत्म नही होने वाले है आजकल फेस्बूक नया ट्रेंड चला है फेसबूक पर चुनाव लडने का इस पर मैं पहले भी एक पोस्ट डाल चुका हु लेकिन फिर भी दुबारा लिख रहा हु आजकल चुनाव आओगे के द्वारा चुनाव आयोजित नही होते उस से ज्यादा तो फेसबूक पर फोक्टे नेताओ के द्वारा करवा दिये जाते है आजकल चुनाव भी पैसो मे होने लगे है ये अपने आप मे सोचने का विषय है की हम किस और जा रहे है ये कही न कही युवाओ को भटकने की आदत लगा रही है जिनहे गाँव मे कोई नही जानता है वह फेसबूक पर नेता बन रहा है 

बाकी चर्चा अगली किश्त मे करेंगे .....

© जयसिंह नारेङा

गलतफहमी

#गलतफहमी

शब्द सुनने जितना आसान लगता है ये असल मे उतना ही उलझा हुआ है किसी बात को लेकर हुए मतभेद से उपझे ख्यालो को मनभेद के रूप में जन्म दे देता है।
                                            अक्सर लोग मानते हैं कि फला व्यक्ति से मेरी नहीं बन सकती क्यूंकि उसकी सोच-विचारधारा मुझसे बिलकुल भिन्न है ।

वैचारिक सम्बन्ध अलग चीज़ हैं और व्यक्तिगत सम्बन्ध अलग । वैचारिक रूप से तो कर्ण और दुर्योधन भी एकदम विपरीत थे किन्तु फिर भी आज तक दोनों की मित्रता की मिशाल दी जाती हैं।  बहुधा मतभेद से हम अज्ञान के कारण मनभेद उत्पन्न कर बैठते है यह मनभेद वास्तव में स्वार्थ का पर्याय है और इसका उदय भी अज्ञान के कारण होता है। आवश्यकता इस बात कि है कि हम हर परिस्थिति और कर्म को अलग दृष्टीकोण से भी सोच कर देखें, शायद यहीं से आपको अच्छे-ख़राब का असल भेद ज्ञात होगा। मगर किसी भी हाल में मतभेद के कारणों को मनभेद तक ना आने दें,अन्यथा आपकी तमाम क्रियाशीलता एक स्वार्थ, जलन और हीन भावना का रूप ले बैठेगी और आपका विकास मार्ग स्वयं अवरुद्ध हो जायेगा । 
     
                         मेरे लिए व्यवहार सर्वोपरि है भलेई उससे मेरे वैचारिक मतभेद ही क्यो ना हो  । फेसबुक पर रोज किसी न किसी से किसी कारण वश न जाने कितनी बार मतभेद होते रहते है लेकिन उन्हें दैनिक जीवन मे उतरना मूर्खता शिवाय कुछ नही है ! 

लेखक
©जयसिंह नारेङा

Tuesday, July 6, 2021

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी

नमस्कार फेसबूक के विद्वानो   ! 
आप सभी शोधार्थियों,ज्ञानार्थियों, मनोरंजनार्थियों को।
व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी  के प्रधान कार्यालय फेसबूक 
में आपका हार्दिक स्वागत है ?
 इस यूनिवर्सिटी  में प्रवेश करने का सीधा सा फ़ण्डा है। 
कुछ प्रमुख शर्तें जो हैं-
1-आपके पास एक स्मार्ट फ़ोन हो।
2- आप फेसबुक,व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम,ट्विटर आदि-आदि के खाताधारक हों।
3- आपके मोबाइल में इंटर नेट पैक हो।
4- इसके लिए बर्बाद करने के लिए आपके पास भरपूर वक्‍त हो।
यदि आप उपरोक्त शर्तों को पूरा करते हैं तो व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी आपको पूरा यकीन दिलाता है कि विविध
विषयों और मुद्दो के व्याखाता  (जिनकी बैध डिग्री की कोई गारण्टी नहीं है) आपको ऐसा-ऐसा ज्ञान बांटेंगे की अच्छे-अच्छों के दिमाग की बत्ती गुल हो जाएगी।
व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी के इस ज्ञान से और कुछ हो न हो आपका समय अवश्य व्यतीत हो जाएगा । व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी यहाँ प्रकाशित ज्ञान की न तो पुष्टि करता है न ही समर्थन करता है। 
                         यह ज्ञान विभिन्‍न माध्यमों से एकत्र है। इसकी सच्चाई में कितना दम है यह या तो आप जैसे शोधार्थियों के दिमाग़ की परीक्षा है या इसे आप केवल मनोरंजन के लिए ही देंखें तो यह आप सभी के लिए बेहतर होगा मजे की बात तो यह भी है की लोग इसे इतना प्रचारित करते है जिसकी कोई सीमा नही है ।
जितनी जल्दी आप इस यूनिवर्सिटी  से जुड़ैंगे उतनी जल्दी आप ज्ञानी से महाज्ञानी बन पाएँगे और यदि तुम्हारे पास सरकारी नोकरी है तो फिर तुमसे बड़ा विद्वान कोई नही हो सकेगा लोग तुम्हें लेखक से विद्वान कहने से नही चूकेंगे और यहा तक की तुम्हारे भी भक्त और अंधभक्त बनेंगे जो समय समय पर तुम्हारा मुफ्त प्रचार करते रहेंगे । 
इस यात्रा में हम सोशल मीडिया पर मुफ़्त मैं प्रचारित ज्ञान को आपके लिए पुनः प्रकाशित करेंगे।

© जयसिंह नारेङा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...