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शाम ए-मोहब्बत

किरणे सुबह की निकली ही थी,
उनका आना हुआ इस कदर,
हमारे अंदर मन मे चुलबुलाहट जारी थी,
मिल ही जायेंगे वे हमसे इसी बात की बारी थी...!!

हवाओ ने भी अपनी फिजायें बदली हुई थी,
मुस्कान होंठो पर ऐसी थी जैसे लिपस्टिक बदली थी,
मौसम की खुमारी इस कदर छाई हुई थी,
घायल तो हम हो गए अब उनकी बारी थी...!!

ये कैसी तन्हाई है तेरे जाने के बाद,
मिलने का बार बार मन करता है तुझसे मिलने के बाद,
मेरे पास तेरी यादों का खजाना है जो मैं संजोए हु,
देखता हूं तेरे आने से पहले ओर तेरे जाने के बाद...!!

किस्सों से कहानी बन जाती है,
एक मुलाकात से तश्वीर बदल जाती है,
फ्रेम वही रहता है लेकिन,
तश्वीर की रंगत बदल जाती है...!!

लेखक
जयसिंह नारेड़ा

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