Thursday, December 24, 2015

नारेड़ा गोत्र या गांव टोड़ी खोहरा का इतिहास

नारेड़ा गोत्र या गांव टोड़ी खोहर्रा(अजितखेड़ा) का इतिहास

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बड़े बुजुर्गो के अनुसार टोड़ी खोहर्रा के लोग कुम्भलगढ़ में रहते रहते थे ये वही के निवासी थे! इनका गोत्र सिसोदिया था और मीनाओ का बहुत बड़ा शासन हुआ करता था! राजा का नाम मुझे याद नही है किसी कारणवस दुश्मन राजा ने अज्ञात समय(बिना सुचना) के रात में आक्रमण कर दिया!


ये उस युद्ध को तो जीत गए लेकिन आदमी बहुत कम रह गए उस राजा ने दूसरा आक्रमण किया तो इनके पास उसकी सेना से मुकाबला करने लायक बल या सेना नही थी और हार झेलनी पड़ी!

इन्होंने उस राजा की गुलामी नही करने का फैसला किया और कुम्भलगढ़ को छोड़ कर सांगानेर(जयपुर) में आ बसे

और यही अपना जीवन यापन करने लगे यंहा के राजा ने इनको राज पाट के महत्व पूर्ण काम सोपे

इनको इनसे कर भी नही लिया जाता था राजा सारे महत्वपूर्ण काम इन मीनाओ की सलाह से ही करता था


नए राजा भारमल मीनाओ को बिलकुल भी पसन्द नही करता था और उन पर अत्याचार करता रहता था!

एक बार दीवाली के आस-पास जब मीणा पित्रों को पानी दे रहे थे तब उन निहत्तो पर अचानक वार कर दिया!

जिसमे बहुत लोग मारे गए भारमल ने अपनी बेटी अकबर को दे दी इस से अकबर भी उसका साथ देने लग गया!

ये कमजोर हो गए थे वँहा पर अन्य मीणा भी रहा करते थे और जिन मीनाओ ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली वे वही रहे और बाकि पलायन कर गए


सिसोदिया गोत्र के मीणा जो कुम्भलगढ़ से आये थे उन्होंने भी गुलामी स्वीकार नही की और टोड़ी खोहरा गांव में आकर बस गए

टोड़ी खोहरा गांव में जंहा आ कर वे बसे उस जगह को आज भी सांगानेर नाम से जाना जाता है

इस गांव में धाकडो का राज हुआ करता था और इन मीनाओ की संख्या लगभग 20-30 ही थी

ये भी अपना जीवन यापन करने लग गए!


एक दिन एक धाकडो का लड़का भैस को पानी पिलाने ले जा रहा था की भैस उसके हाथ से छुड़ा कर भाग गयी

पास में खेतो में काम कर रही मीनाओ की लड़की से कहता ह "छोरी या भैस कु रोक ज्यो" तो मीनाओ की छोरी ने जैसे साकल पर पैर रखा भैस गिर पड़ी अब तो धाकड़ उस लड़की पर फ़िदा हो गया था

उसके माँ बाप से जाकर कही की शादी करू तो उसी लड़की से करू वरना नही

राज धाकडो का था रिश्ता लेकर मीनाओ के पास आ गए मीनाओ ने एक शर्त रखते हुए रिश्ता स्वीकार किया की बारात में सभी बच्चे बूढ़े सब आने चाहिए घर एक भी आदमी या औरत नही रहनी नही चाहिए तो हम रिश्ता स्वीकार करते है

अब शादी की तारीख फिक्स हो गयी और बारात के दिन पुरे खाने में झहर मिला दिया

धाकड़ शर्त के अनुसार सभी आ गए सबको आते ही पहले भोजन पर बैठा दिया खाना खिलाते ही सबको काट काट कर कुए में डाल दिया आज भी उस कुए में से लाल मिटटी निकलती है

एक धाकडो की लेडीज बची थी जिसके पेट में बच्चा था उसने पैरो में पड़ कर दया की भीख मांगी तो उसे छोड़ दिया औरत ने कहा की यदि लड़की होगी तो तुमसे ही व्याह कर देगी और लड़का हुआ तो तुम्हारी जूती गाँठ कर खा लेगा संयोग से लड़का ही हुआ जिसका अभी भी वन्स चल रहा ह

मीनाओ की एक देवी हुआ करती थी हासिल माता जंहा ये रहते थे उसके पास ही एक छोटी सी डुंगरी थी उस पर उसको बिराजमान कर रखा था


देवी के पहले आदमी की बली चढ़ती थी तो एक बार ये नाहर खोहरा पडोसी गांव से एक लड़के को उठा लाये बली के लिए इस बात की खबर नाहर खोहर्रा के लोगो को हो गयी नाहर खोहरा के लोगो ने आस पास के गाँवो सहित चढाई कर दी!

अब टोड़ी खोहर्रा के मीणा देवी से कहने लगे देवी आज बचाये तो बचा नही तो आज तो मारे जायेंगे

उन्होंने बच्चे को ढकोला के निचे दबा दिया इतनी देर में नाहर खोहरा के लोग आ गए और जैसे ही ढकोला हटाया तो बकरे का बच्चा निकल तब से ही नाहर खोहरा में और टोड़ी खोहरा में भाई बन्धी है आपस में एक दूसरे गांव में शादी नही होती ना ही एक दूसरे गोत्र की लड़की लाते

और उसी दिन से देवी के बकरे की बली चढ़ने लगी

नोट:-वर्तमान में बली की व्यवस्था पूरी तरह बन्द है

इसी तरह जीवन जीते रहे पहले की महिलाये जल्दी जाग कर चाखी पर चुन पिसती थी ! बड़े बुजुर्ग कोउ(आग) जला कर बैठे रहते थे!

इसी तरह एकदिन एक महिला रोज की तरह अपने बच्चे को अपने ससुर को देकर चुन पिसती थी और ससुर बच्चे को कोउ पर लेकर बैठे रहता कोउ पर बहुत लोग इक्ट्ठा हो जाते थे

एक दिन महिला अपने बच्चे को ससुर को देने आई तो ससुर की जगह नाहर(शेर) आ गया महिला ने ससुर समझ कर नाहर को बच्चा दे दिया क्योकि पहले घूँघट गहरा होता था तो आर पार नही दीखता था और देकर चुन पीसने चली गई


अब ससुर बहु से कहने लगा की आज नाराज है क्या जो बच्चा नही दिया उसके बेटे से पूछने लगा क्या हुआ आज बच्चा नही दिया

इस पर महिला कहती ह मैंने तो दिया है बात बढ़ गयी बच्चे को ढूढने लगे पुरे गांव में ढूंढा पर नही मिला । बच्चे का नाम रतन था जो बाद में नाहरसिंह बाबा का उपासक बन गया।।

एक बुजुर्ग ने जब वो नाहर के निशान देखे तो कहा बच्चे को तो नाहर ले गया उन्होंने काफी जंगल में ढूंढा पर फिर भी नही मिला

दूसरे दिन एक छिराडे(बकरी चराने वाला) को बच्चा नाहर के ऊपर खेलता मिला जंगल में उसने ये बात घर आ कर बताई तो गांव के बड़े बुजुर्गो के अनुसार पुआ,खीर और बकरा लेकर गाजा बाजा के साथ गए और लगभग नाहर से 50-100 मीटर दूर रुक गए और महिला से कहने लगे तू जा और कह की महाराज तेरी भेट पूजा तो ये ले और मेरा बेटा वापस कर दे महिला डरती हुई चली गयी और जाते ही कहा की महाराज आपकी भेट पूजा ये लो और मेरा बेटा वापस कर दो


नाहर ने बेटे को वापस दे दिया और जो पुआ और खीर आदि पकवान थे उनमे से 8 पुए उठा लिए उसी दिन  नवमी और रविवार था !तब से ही रविवार को पूजा होती है और अठवाइ यानि 8 पुए से पूजा होती है महिला ने बच्चे को लेकर आई और सभी चलने लगे तो जैसे पीछे मुड कर देखा वंहा नाहर की मूर्ति थी नाहर गायब था आज भी मन्दिर उसी जगह है और उस दिन से ही अपना गोत्र बदल नारेड़ा रख लिया  एक बार करीरी गांव पर जो की गुर्जरो का था उस पर आस पास के गाँवों ने चढाई कर दी थी करीरी का साथ देने के लिए टोड़ी खोहरा गांव गया था और करीरी को बचाया और करीरी को बचाने के कारन मीनाओ की महापंचायत हुई और टोड़ी खोहरा गांव को 12 वर्ष तक जात बाहर कर दिया 12 वर्ष बाद दुबारा पंचायत हुई और ये शर्त रखी की यदि टोड़ी खोहरा गाँव निसुरा गांव के गढ़ को जीत आये तो हम इन्हें जाती में ले लेंगे!निसुरा का गढ़ को कोई जीत नही पाया था राजपूत और गुर्जरो का गांव था

टोड़ी खोहरा गांव ने निसुरा पर चढाई कर दी और गढ़ को तोड़ दिया जैसे तोड़ कर आ रहे तो रस्ते में रोसी के गढ़ को तोडा अब ये बड़े खुस हो कर आ रहे थे टोलियों में बट कर खुसी से आ रहे थे की भंडारी गांव जो की राजपूतो का था उसने धोखे से बहुत लोगो को मार दिया इस बात का पता पीछे आ रहे लोगो को चला तो वे एक साथ आये और भंडारी को तोडा लेकिन लगभग आधे से ज्यादा व्यक्ति मर चुके थे सबको उठा कर लाये और जलाया

और पंचायत ने टोड़ी खोहरा गांव को अजितखेड़ा नाम दिया

अजितखेड़ा मतलब जिसे कोई नही जीत सका हो और जाती में ले लिया टोड़ी खोहरा गांव में जो गढ़ है वह मीणा का ही है अब राजपूतो ने हथिया लिया है


मीनाओ का जो लीडर था जिसका नाम दयाराम था उस से एक महिला कहती है की सबको तो खा गया निसुरा ले जाकर और अब यंहा नेतो बनतो डोले

उस से इतनी बात सहन नही हुई और बैठा बैठा ही खत्म हो गया

नारेड़ाओ के गाँवो से रिश्ते या टोड़ी खोहरा गांव का अन्य गाँवो से रिश्ते

1-नाहर खोहरा-भाई        6-राजोर-भाई

2-मान्नोज-भाई।            

3-एदल पुर-भांजा

4-लाडपुर-भांजा

5-कैमा -भांजा

ज्यादा मुझे जानकारी नही है अतः क्षमा चाहता हु

ये सम्पूर्ण जानकारी बड़े बुजुर्गो के अनुसार है!

नारेड़ा गोत्र का यही संक्षिप्त इतिहास है

धन्यवाद


लेखक:- जयसिंह नारेड़ा

Monday, December 21, 2015

पाखण्डियो को खुली चुनौती:-तर्कशील सोसाईटी नांगल शेरपुर

~~~~~~~ खुली चुनौती ~~~~~~
तर्कशील सोसायटी ने पाखण्डियों को दी खुली चुनौती और 5 लाख का इनाम भी

जयपुर। राजस्थान के करौली जिले के नांगल शेरपुर से संचालित सामाजिक संस्था तर्कशील सोसायटी (रजिस्टर्ड) ने देश के सभी पाखण्डियों को खुली चुनौती देते हुए एक खुला पर्चा जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि उनकी सोसायटी की ओर से जारी किये गये पर्चे की सूची में शामिल किसी भी पाखण्ड को सही साबित करने वाले को सोसायटी की ओर से पांच लाख का इनाम दिया जायेगा।

पर्चे में खुली चुनौती दी गयी है कि निम्न पाखण्डों को साबित करने वाले को पांच लाख रुपये का इनाम मिलेगा।

1. भूत-प्रेत, जिन्न साबित करने वाले को।

2. तांत्रिक, स्याणा (घुड़ल्या) झाड़-फूंक द्वारा शक्ति दिखाना।

3. किसी शक्ति द्वारा किसी भी व्यक्ति पर मूठ (चौकी) छोड़ना।

4. किसी भी गण्डा, ताबीज, लोकेट, अंगूठी आदि द्वारा शक्ति दिखाना।

5. नजर, टोक लगाने व उतारने वाले को।

6. यंत्र, मंत्र, तंत्र, द्वारा कोई भी शक्ति साबित करने वाले को।

7. गुम हुई वस्तु को खेज सके।

8. पानी को शराब/पेट्रोल में बदल सके।

9. पानी के ऊपर पैदल चल सके।

10. योग/देव शक्ति से हवा में उड़ सके।

11. सील बंद नोट का नम्बर पढ सके।

12. ताला लगे कमरे में से शक्ति से बाहर आ सके।

13. अपने शरीर को एक स्थान पर छोड़ कर किसी दूसरे स्थान पर प्रकट हो सके।

14. जलती हुई आग पर, अपने देवता की सहायता से 1 मिनट तक खड़ा हो सके।

15. ऐसी वस्तु जिसे मांगें, उसे हवा में से प्रस्तुत कर सकता हो।

16. प्रार्थना, आत्मिक शक्ति, गंगा जल, या पवित्र राख (भभूत) से अपने शरीर के अंग को पांच इंच बढा सकता हो और शरीर का भार (वजन) बढा सकता हो।

17. पुनर्जन्म के कारण कोई अद्भुत भाषा बोल सकता हो।

18. ऐसी आत्मा या भूत-प्रेत को पेश कर सके, जिसकी फोटो ली जा सकती हो और फोटो लेने के बाद फोटो से गायब हो सकता हो। ऐसे ज्योतिषी जो यह कहकर लोगों को गुमराह करते हैं कि ज्योतिष और हस्त रेखा एक विज्ञान है, उपरोक्त ईनाम को जीत सकते हैं, यदि वे दस हस्त चित्रों व दस ज्योतिष पत्रिकाओं (जन्म कुण्डली) को देखकर आदमी और औरत की अलग-2 संख्या व जन्म का ठीक समय व स्थान अक्षांस रेखा के साथ बता दें।
जयसिंह नारेङा

Thursday, December 3, 2015

मेरे सपनो का समाज,मीणा समाज की जागृति के प्रयास,एक लेख समाज के नाम

:::::::::::::--मेरे सपनो का समाज--:::::::::::::
सभी बुद्दिजीवीओ और बड़े बुजुर्ग पञ्च पटेलों एवम् युवा साथियो
समाज सभी का होता है,समाज से हम है हम से समाज नही इसी कारण समाज के प्रति हमारे कुछ दायित्व होते उनको पूरा करना हमारा फर्ज है!
सभी को समाज के लिए अपना योगदान देना चाहिए सहयोग कुछ भी हो सकता है आप को स्वयं को चुनाव करना होता है आप समाज के लिए कैसा योगदान दे सकते है!
ज्यादा वक्त नही लेते हुए मै अपनी मूल बात पर आता हु!
हमारे समाज की सभी जगह प्रशंसा होती सुनी है मैंने लेकिन कुछ बुराईया अभी भी मौजूद है जो हमारे समाज को गन्दा कर रही है और अब इन समस्याओ ने विशाल रूप धारण कर लिया और इनको निकाल पाना बहुत कठिन हो रहा है!
सिर्फ शिक्षित होने को ही समाज की जागृति ही नही कहेंगे जागृति तब आएगी जब समाज इन छोटी छोटी समस्याओ से निजात पा लेगा
समाज की कुछ बुराईयॉ:-
----------------------- समाज में बहुत बुराईया है लेकिन मैं केवल उन समस्याओ के बारे चर्चा करूँगा जो समाज बिगाड़ रही है या यो कहे समाज को एक आदर्श समाज बनने से रोक रही हम ऐसा भी कह सकते है की समाज गरत में ले जाने में इन समस्याओ का महत्वपूर्ण योगदान है
मैं बात करूँगा इन समस्याओ के बारे में
(1)दहेज़
(2)शराब(दारु)
(3)अशिक्षा
(4)ब्राह्मण को महत्वता देना

(1)दहेज़:- हम कहते है कि नर और नारी दोनों समान है। तो इसका मतलब हुआ
               लड़का  =  लड़की     
लेकिन कालांतर में न जाने ऐसा क्या हुआ कि,
              लड़का   =  लड़की + दहेज़ 

हो गया! दहेज़ शब्द नारी से इस कदर जुड़ गया है जैसे इंसान से सांस! जैसे सांस लिए बिना इंसान जी नहीं सकता वैसे ही दहेज़ के बिना नारी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आश्चर्य तो तब होता है जब पढ़े-लिखें, सुशिक्षित लोग भी दहेज़ की कामना रखते है।
दहेज प्रथा ऐसी ही एक कुरीति बनकर उभरी है जिसने ना जाने कितने ही परिवारों को अपनी चपेट में ले लिया है । इन प्रथाओं का सीधा संबंध पुरुषों को महिलाओं से श्रेष्ठ साबित कर, स्त्रियों को किसी ना किसी रूप में पुरुषों के अधीन रखना था । सती प्रथा हो या फिर बहु विवाह का प्रचलन, परंपराओं का नाम देकर महिलाओं के हितों की आहुति देना कोई बुरी बात नहीं मानी जाती थी । भले ही वर्तमान समय में ऐसी अमानवीय प्रथाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं, लेकिन इन्हीं कुप्रथाओं में से एक दहेज प्रथा आज भी विवाह संबंधी रीति-रिवाजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । समय बदलने के साथ-साथ इस प्रथा के स्वरूप में थोड़ी भिन्नता अवश्य आई है लेकिन इसे समाप्त किया जाना दिनों-दिन मुश्किल होता जा रहा है ।
        हमारा समाज पुरुष प्रधान है । हर कदम पर केवल पुरुषों को बढ़ावा दिया जाता है । बचपन से ही लड़कियों के मन में ये बातें डाली जाती हैं कि बेटे ही सबकुछ होते हैं और बेटियां तो पराया धन होती हैं । उन्हें दूसरे के पर जाना होता है, इसलिए माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा होता है ना कि बेटियां समाज में सबकी नहीं पर ज्यादातर लोगों के सोच यही होती है कि लड़कियों की पढ़ाई में खर्चा करना बेकार है । उन्हें पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना बेकार है, आखिरकार उन्हें दूसरों के घर जाना है पर यदि बेटा कुछ बनेगा कमाएगा तो माता-पिता का सहारा बनेगा । यही नहीं लड़कों पर खर्च किए हुए पैसे उनकी शादी के बाद दहेज में वापस मिल जाता है । यही कारण है माता-पिता बेटों को कुछ बनाने के लिए कर्ज तक लेने को तैयार हो जाते हैं । पर लड़कियों की हालात हमेशा दयनीय रहती है, उनकी शिक्षा से ज्यादा घर के कामों को महत्व दिया जाता है । इस मानसिकता को हमे परिवर्तित करना होगा । ज्‍यादातर माता-पिता लड़कियों की शिक्षा के विरोध में रहते हैं । वे यही मानते हैं कि लड़कियां पढ़कर क्या करेगी । उन्हें तो घर ही संभालना है । परंतु माता-पिता समझना चाहिए कि � पढऩा-लिखना कितना जरूरी है वो परिवार का केंद्र विंदु होती है । उसके आधार पर पूरे परिवार की नींव होती है । उसकी हर भूमिका चाहे वो बेटी का हो, बहन का हो, पत्नी का हो बहू का हो या फिर सास पुरुषों की जीवन को वही सही मायने में अर्थ देती है ।
अब समय पूरी तरह बदल चुका हैं, और वर पक्ष के लोग मुंहमांगे धन की आशा करने लगे हैं जिसके ना मिलने पर स्त्री का शोषण होना, उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है । पुराने समय में शुरू हुई यह परंपरा आज अपने पूरे विकसित और घृणित रूप में हमारे सामने खड़ी है । यही कारण है कि हर विवाह योग्य युवती के पिता को यही डर सताता रहता है कि अगर उसने दहेज देने योग्य धन संचय नहीं किया तो उसके बेटी के विवाह में परेशानियां तो आएंगी ही, साथ ही ससुराल में भी उसे आदर नहीं मिल पाएगा ।
शिक्षा बुराईयों को खत्म करने का सबसे कारगर हथियार है। परंतु यही शिक्षा दहेज जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने में असफल साबित हुई है। दूसरे शब्दों में षिक्षित वर्ग में ही यह गंदगी सबसे ज्यादा पाई जाती है। आज हमारे समाज में जितने शिक्षित और सम्पन्न परिवार है, वह उतना अधिक दहेज पाने की लालसा रखता है। इसके पीछे उनका यह मनोरथ होता है कि जितना ज्यादा उनके लड़के को दहेज मिलेगा समाज में उनके मान-सम्मान, इज्जत, प्रतिष्‍ठा में उतनी ही चांद लग जाएगी। एक डॉक्टर, इंजीनियर लड़के के घरवाले दहेज के रूप में 15-20 लाख की मांग करते है, ऐसे में एक मजबूर बेटी का बाप क्या करे? बेटी के सुखी जीवन और उसके सुनहरे भविष्‍य की खातिर वे अपनी उम्र भर की मेहनत की कमाई एक ऐसे इंसान के हाथ में सौंपने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो शायद उनके बेटी से ज्यादा उनकी पैसों से शादी कर रहे होते है।
इस में सुधार आवश्यक है मै दहेज़ मुफ़्त समाज चाहता हु
(2)शराब(दारु):- नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे है । इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है । जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि युवा वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीडी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसती जा रही है । जिसके कारण उनका कैरियर चौपट हो रहा है । दुर्भाग्य है कि आजकल नौजवान शराब और धूम्रपान को फैशन और शौक के चक्कर में अपना लेते हैं । इन सभी मादक प्रदार्थों के सेवन का प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए बन्द होनी चाहिए ।
(3)अशिक्षा:- पुरष प्रधान समाज ने महिला शिक्षा पर ध्यान नही दिया जाता है मै ऊपर बता चूका हु पर एक बार फिर बता देता हु                                            
बचपन से ही लड़कियों के मन में ये बातें डाली जाती हैं कि बेटे ही सबकुछ होते हैं और बेटियां तो पराया धन होती हैं । उन्हें दूसरे के पर जाना होता है, इसलिए माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा होता है ना कि बेटियां समाज में सबकी नहीं पर ज्यादातर लोगों के सोच यही होती है कि लड़कियों की पढ़ाई में खर्चा करना बेकार है । उन्हें पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना बेकार है, आखिरकार उन्हें दूसरों के घर जाना है पर यदि बेटा कुछ बनेगा कमाएगा तो माता-पिता का सहारा बनेगा । यही नहीं लड़कों पर खर्च किए हुए पैसे उनकी शादी के बाद दहेज में वापस मिल जाता है । यही कारण है माता-पिता बेटों को कुछ बनाने के लिए कर्ज तक लेने को तैयार हो जाते हैं । पर लड़कियों की हालात हमेशा दयनीय रहती है, उनकी शिक्षा से ज्यादा घर के कामों को महत्व दिया जाता है । इस मानसिकता को हमे परिवर्तित करना होगा । ज्‍यादातर माता-पिता लड़कियों की शिक्षा के विरोध में रहते हैं । वे यही मानते हैं कि लड़कियां पढ़कर क्या करेगी । उन्हें तो घर ही संभालना है । परंतु माता-पिता समझना चाहिए कि � पढऩा-लिखना कितना जरूरी है वो परिवार का केंद्र विंदु होती है ।
(4)ब्राह्मण महत्वता पर रोक:- आज हमारे समाज में हर छोटे से छोटे काम में ब्राह्मण को बुलाया जाता है वो गलत है
जितने पढ़े लिखे है वे ही ज्यादा वे ही ज्यादा ढोंग करते है खुद को अच्छा साबित करने में लगे रहते है रामायण,भागवत और उलटे सुलटे काम करते है!
ये सिर्फ अन्धविश्वास फैलाना मात्र है यदि आपको श्रद्धा ही है तो उसे आप बड़ा चढ़ा कर दिखाने की जरुरत नही है अतः ऐसे फिजूल ख़र्चे को बन्द करे!
यदि आपको ये करवाने ही है तो आज हमारे समाज के लड़के भी इन सब में प्रवीण है आप उनसे सलाह ले सकते उनसे करवा सकते है
आज हम ब्राह्मण को खिला पिला कर इतना मजबूत कर रहे है की कल वो ही हमारे खिलाफ खड़ा मिलता है आज हमारे समाज के पीछे मनुवाद पूरी तरह पड़ा हुआ
इसमें परिवर्तन आना आवश्यक है परिवर्तन की आशा में
अब मै अपना लेख समाप्त करता हु
आपके विचार सादर आमंत्रित है शेयर करने वाले भाई लेख को तोड़े मरोड़े नही ना ही लेखक का नाम हटाये
धन्यवाद
जयसिंह नारेड़ा

Monday, November 30, 2015

एक पैगाम समाज के नाम,समाज सुधार की अपील

एक पैगाम समाज के नाम:-
                                     आदरणीय सभी पञ्च पटेल एवम् समस्त बुद्दिजीवी गण एवम् मेरे युवा साथियो
सभी पञ्च पटेलों और बुद्दीजीवीओ से विनम्र निवेदन है की आप DJ बन्द करने के तुगलकी फरमान जारी किये उन्हें वापस लेने का कष्ट करे  क्योकि युवाओ के साथ उनकी इच्छाओ को मारना या उन पर अपना नियम थोपना है आपको यदि ऐसा लगता है की dj बन्द होने से शराब बन्द हो जायेगी तो ये आपकी गलत सोच  या फिर यह कह सकते है की आपने शराब बन्द करने का गलत तरीका अपनाया है!
फिर भी यदि आपको लगता है की DJ बन्द होने से शराब बन्द हो जायेगी तो आप कृपया करके लिखित में अपने हस्ताक्षरित सहित दे साथ में अनुबन्ध होना चाहिए की यदि DJ बन्द होने के बाद भी शराब प्रचलन पाया जाता है अथवा देखा जाता है तो DJ की जुर्माना राशी एवम् शराब पर जो जुर्माना राशी समाज के सहायता कोष में जमा करेंगे!
यदि आप ऐसा करेंगे तो शायद शराब जरूर बन्द हो जायेगी अन्यथा कोई रास्ता नही है!
समाज प्रमुख समस्याए:-
                                  पञ्च पटेल और बुद्दिजीवी साथी इन विषयो पर भी अवश्य विचार-विमर्श करने का कष्ट करे
(1)दहेज़
(2)शराब
(3)ब्रामण को बुलाना बन्द करे
(4)अन्धविश्वास और पाखंडवाद
(5)छुआछुत

ये ऐसी समस्याए जो समाज को खोखला कर रही है!
(1)दहेज़:-
               समाज की मूल समस्या की जड़ है और इस समस्या ने गहरा रूप ले लिया है!
अपने बेटे को ऐसे बेचते है जैसे कोई भैंस का पाडा(बछड़ा) की बेच रहे हो
इतने से कम तो होगा ही नही अब बेचारा गरीब कहा से लाये इतना धन अरे भाई आपका पुत्र जी तो सर्विस में लग गया अब तो वही काफी कम लेगा पर नही लोगो को तो फ्री का खाने की आदत पड़ी हुई है जो अपने बेटे का मोल भाव करते है अतः आपसे निवेदन है इस समस्या पर अम्ल करे
(2)शराब:-
               शराब के बारे में ऊपर लिखा जा चूका है
(3)ब्राह्मण को बुलाना बन्द करे:-
                                            आज कल छोटे से छोटे काम में पंडित को बुलाना आम बात हो गयी है जो हमे अंदर ही अंदर मार रहा है!
ये लोग हमारे पैसे को हमसे ही लेकर हमारे ही विरोध में लगे रहते है ये ही लोग हमारे आरक्षण के विरोधी है! ये ही लोग हमे आगे नही बढ़ना देना चाहते और इन्हें पाल पोस कर बड़ा हम ही कर रहे है!

Note:-मीणा समाज में बहुत छात्रो ने संस्कृत में पीएचडी कर रखी है वे इन अनपढ़ बामणो से बेहतर है
इसी बहाने उन्हें रोजगार भी मिल जायेगा और आपके रूपये समाज के ही व्यक्ति के काम आएंगे!
(4)अंधविश्वास और पाखंडवाद:-
                                             धर्म के नाम अपने आप को लूटा रहा है! हमारा समाज आज कोई लड़का या लड़की अपनी मेहनत से नोकरी लगता ह फिर रामायण,भागवत और हवन पता नही क्या क्या
इन सब को बन्द करे इन में अपना पैसा बर्वाद करने से ज्यादा कुछ नही है! यदि आपको पढ़वाने ज्यादा ही शोक है तुलसीकृत रामचरित मानस को बन्द करे और वाल्मीकी रामायण पढ़वाये वो भी मीणा से ही
(5)छुआछुत:-
                    यह समस्या अभी तक पूरी तरह खत्म नही हुई है इस भी अपने विचार अवश्य रखे

आप से आशा करता हु की समाज में बदलाव होगा
यदि लेख कोई त्रुटि रह गयी हो तो क्षमा करे

Note:-शेयर करने वाले और आगे भेजने वाले भाइयो से निवेदन है लेख को तोड़-मोड़ कर इसकी ऐसी तैसी ना करे लेखक सन्दर्भ सहित भेजे,गुड़ गोबर कर देते हो
पोस्ट के लेखक के नाम को हटाकर या अपने हिसाब से तोड़ मरोड़कर अतः ऐसे ही रहने दे
®लेखक
जयसिंह नारेड़ा

Tuesday, September 29, 2015

माटी के लाल(आदिवासी कविता):-जयसिंह नारेड़ा

माटी के लाल-आदिवासी कविता:-जयसिंह नारेड़ा
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वो जो सभ्यताओं के जनक है, होमोफम्बर आदिवासी, संथाल-मुंडा-बोडो-भील, या फिर सहरिया-बिरहोर-मीण-उराव नामकृत , पड़े हैं निर्जन में, माटी के लाल ! जैसे कोई लावारिश लाश , मनुष्यत्व के झुरमुट से अलग-थलग,
बदनीयत सभ्यता ने काट फेंक दी हो !
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उन वन कबीलों में जँहा पाला था उन्होंने, सभ्यता का शैशव अपनी गोदी में , और चकमक के पत्थरों पर नचाई थी आग, वँही पसरा है तेजाबी अंधियाला , और कर रही लकड़बग्घे से आधुनिकता, बनवासियों का देहदहन ! जंगल अब मौकतल है , और दांडू मानो मॉडर्नटी पर मुर्दा इल्जाम !
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वो जिन्होंने दौड़ाई थी पृथ्वी, अपने उँगलियों के पहियों पर , और ढान्पी थी लाज अपने हुनर के पैबन्दो से, वही दौड़ रहे हैं भयभीत सहमे हुए नंगे बदन , अपने अस्तित्व के संघर्ष को , नंगे पाँव !
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लार टपका रहें उनकी बस्तियों पर , संविधान में बैठे कुछ अबूझे भूत, और लोकतन्त्रिया तांत्रिक कर रहे है , मुर्दहिया हैवानी अनुष्ठान ! आदि सभ्यता के अंतिम अवशेष , लुप्त हो रहे अत्विका , प्रगतिशील पैशाचिक भक्षण में , कर दिए गए है जंगल से ही तड़ीपार !
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वंहा सड़ चुका है कानून जाने कब से मरा पड़ा, सडांध मार रहा है चमगादड़ों सा लटका हुआ उलटा चिल्ला रहा है मै ज़िंदा हूँ ! एक मरहुआ ढोंगी तीमारदार ड्रगसिया हवस में, जंगल का जिस्म भोग रहा है !
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खिलते थे कभी वंहा सहजन की कली में पचपरगनिया-खड़िया-संताली- असुरिया जीवन के अनगिनत मधुर गीत बजते थे ढक-धमसा-दमना पर पर आदिवासियत के छऊ-सरहुल-बहा नृत्य राग और साथ आकर नाचता था सूरज चंद्रमा गीत गाता था वँही अब फैला है विलुप्तता का संत्रास !
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तुम भी कह दोगे ऐंठते हुए अरे वो दर्ज तो है तुम्हारा आदिवासी सविधान में मगर किस तरह महज एक ठूंठ सा शब्द अनुसूचित जाति किसी डरावनी खंडरिया धारा के अनुच्छेद में कैद एक गुनाह भर !
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पर मै कहूंगा , सावधान दांडू ! फिर ना कोई मांग बैठे एकलव्य का अंगूठा , सचेत रहो सहयोग से भी , जब तलक कोई भीलनी , कंही भी घुमाई जायेगी निर्वस्त्र , कोई केवट नहीं कराएगा , किसी राम को गंगा नदी पार !
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एक पहाड़िया विद्रोह का भस्म उठा लाओ बिरसा मुंडा-टन्टया की धधकती अस्थियों से तान लो जरा प्रत्यंचा पर विद्रोह करो महाजुटान महाक्रान्ति का अपनी कमान पर जरा देह-हड्डियों की सुप्त दहकन को सीधा करो साधो हुलगुलानो के ब्रह्म तीर और गिद्धई आँखे फोड़ दो ! के सुरहुलत्सव में ना चढाने पड़े टेशु के खून सने फूल !
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नदियों का हत्याकांड , शाल के कटे हुए जिस्म , सींच दो अपने बलिदानों से सारडा-कारो-खरकई सबको पुनर्जीवित करो है जंगल के पुजारी लोहे के प्रगालनी जरा जंगल की रंगोली को प्रतिरक्षित करो न रह जाए कंही पहाड़ भी महज शमशान का एक पत्थर !
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क्योंकि सजाए रखेंगे सरकारी दस्तावेज बड़ी संजीदगी- साफगोई से आदिवासियत के मुर्दा पथरीले माडल किसी ट्रेड फेयर में सजा देंगे शौकैस की तरह निर्जीव दांडू बिकने को खड़ा छोड़ दिया जाएगा और फिर दे दी जायेगी कंही दो मिनट की फरेब मौन श्रद्धांजली और भुला दिए जाओगे किसी किस्से की तरह !
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याद आयेंगे आप को भी बस , आप जो पढ़ रहे , किसी ऐसी ही कविता में आंसुओं से टपक जायेंगे , और फिर आप भी इस सदमे से बाहर !
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और फिर आयेगा कोई पुरातत्वेत्ता खोदेगा पांच-छह फूट जमीन और कहेगा आदिवासी ! हुलजोहर ! बस तभी आयेंगे दो पल को आदिवासी साइडलाइन के श्राप से मुक्त हमारी मेनस्ट्रीम में !
माटी के लाल(आदिवासी कविता):-जयसिंह नारेड़ा http://jsnaredavoice.blogspot.com/2015/09/blog-post_29.html
लेखक:-
©जयसिंह नारेड़ा

Monday, September 28, 2015

आदिवासी महिला:-एक संघर्ष की मिशाल:-जयसिंह नारेड़ा

~~आदिवासी महिला:-एक संघर्ष की मिशाल-~~
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देखा जाये तो बुआ गोलमा देवी जी को काम करने की न के बराबर भी जरुरत नही है
ये चाहे तो बस चुटकियो मे ही अपना काम किसी नौकर या अन्य व्यक्ति से करवा सकती है लेकिन ऐसा नही करती है क्योकि ये है आदिवासी
आदिवासियो को काम करने आदत नही लत होती है जो मरते मरते भी नही भुलते
इन्हे हर काम करना आता है संघर्ष करना तो जिन्दगी का जैसे एक आम पहलु हो
खैर छोड़ो मै ये पोस्ट गोलमा जी के लिए लिख रहा हु तो उनके बारे कुछ बताना जरुर चाहुंगा
गोलमा जी वैसे हमारे गाव टोड़ी खोहरा(टोडाभीम)से ही है गोत्र से नारेड़ा है
जन्म से ही संघर्ष मे जीवन गुजरा है गाव(पिहर) मे भी ज्यादा अमीर घर नही था जो कि आराम कि जिन्दगी गुजार सके!
बचपन से ही खेती-बाड़ी के काम काज को संभाला और खेती के साथ साथ घरेलु काम काज झाडु पोछा,बर्तन,भैसो का काम,रसोई ऐसे सारे काम करना शुरु से ही आता था
शादी के बाद भी सामान्य स्तर का परिवार मिला
डा साहब उस समय नौकरी भी नही लगे वे सिर्फ उस समय पढाई करते थे गोलमा जी के आने के बाद वे बीकानेर चले गये और डाक्टर बन गये
समय बीतता गया और आज इस मुकाम पर पहुच गये लेकिन गोलमा जी ने आज भी काम करना नही छोड़ा ये विधायक और मंत्री भी रह चुकी है वर्तमान मे भी विधायक है लेकिन आज भी अपना शौक और आदिवासी पहचान नही भुली
मैने ऐसे भी अधपर के ध्यापे नेता और नौकरी करने वाले व्यक्ति देखे है जो नौकरी लगने के बाद काम को ऐसे भुल जाते जैसे ये काम तो वे करना ही नही जानते हो
नौकरी और नेतागिरी की घमंड मे चुर रहते है काम करने मे तो अपनी बेइज्जती समझते है
लेकिन गोलमा जी ऐसे लोगो के लिए करारा जबाव है
जो विधायक होकर भी अपनी पहचान नही भुल पाई
ये रोजमर्रा के कामो को स्वयं करती है
रोटी बनाना,झाडु-पोछा करना इत्यादि कामो मे ही व्यस्त रहती है
ये एक मिशाल है आज की युवा पीढी के लिए

आदिवासी महिला:-एक संघर्ष की मिशाल:-जयसिंह नारेड़ा http://jsnaredavoice.blogspot.com/2015/09/blog-post_28.html

जयसिंह नारेडा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...