~~आदिवासी महिला:-एक संघर्ष की मिशाल-~~
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देखा जाये तो बुआ गोलमा देवी जी को काम करने की न के बराबर भी जरुरत नही है
ये चाहे तो बस चुटकियो मे ही अपना काम किसी नौकर या अन्य व्यक्ति से करवा सकती है लेकिन ऐसा नही करती है क्योकि ये है आदिवासी
आदिवासियो को काम करने आदत नही लत होती है जो मरते मरते भी नही भुलते
इन्हे हर काम करना आता है संघर्ष करना तो जिन्दगी का जैसे एक आम पहलु हो
खैर छोड़ो मै ये पोस्ट गोलमा जी के लिए लिख रहा हु तो उनके बारे कुछ बताना जरुर चाहुंगा
गोलमा जी वैसे हमारे गाव टोड़ी खोहरा(टोडाभीम)से ही है गोत्र से नारेड़ा है
जन्म से ही संघर्ष मे जीवन गुजरा है गाव(पिहर) मे भी ज्यादा अमीर घर नही था जो कि आराम कि जिन्दगी गुजार सके!
बचपन से ही खेती-बाड़ी के काम काज को संभाला और खेती के साथ साथ घरेलु काम काज झाडु पोछा,बर्तन,भैसो का काम,रसोई ऐसे सारे काम करना शुरु से ही आता था
शादी के बाद भी सामान्य स्तर का परिवार मिला
डा साहब उस समय नौकरी भी नही लगे वे सिर्फ उस समय पढाई करते थे गोलमा जी के आने के बाद वे बीकानेर चले गये और डाक्टर बन गये
समय बीतता गया और आज इस मुकाम पर पहुच गये लेकिन गोलमा जी ने आज भी काम करना नही छोड़ा ये विधायक और मंत्री भी रह चुकी है वर्तमान मे भी विधायक है लेकिन आज भी अपना शौक और आदिवासी पहचान नही भुली
मैने ऐसे भी अधपर के ध्यापे नेता और नौकरी करने वाले व्यक्ति देखे है जो नौकरी लगने के बाद काम को ऐसे भुल जाते जैसे ये काम तो वे करना ही नही जानते हो
नौकरी और नेतागिरी की घमंड मे चुर रहते है काम करने मे तो अपनी बेइज्जती समझते है
लेकिन गोलमा जी ऐसे लोगो के लिए करारा जबाव है
जो विधायक होकर भी अपनी पहचान नही भुल पाई
ये रोजमर्रा के कामो को स्वयं करती है
रोटी बनाना,झाडु-पोछा करना इत्यादि कामो मे ही व्यस्त रहती है
ये एक मिशाल है आज की युवा पीढी के लिए
आदिवासी महिला:-एक संघर्ष की मिशाल:-जयसिंह नारेड़ा http://jsnaredavoice.blogspot.com/2015/09/blog-post_28.html
जयसिंह नारेडा
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