:::::::::::::--मेरे सपनो का समाज--:::::::::::::
सभी बुद्दिजीवीओ और बड़े बुजुर्ग पञ्च पटेलों एवम् युवा साथियो
समाज सभी का होता है,समाज से हम है हम से समाज नही इसी कारण समाज के प्रति हमारे कुछ दायित्व होते उनको पूरा करना हमारा फर्ज है!
सभी को समाज के लिए अपना योगदान देना चाहिए सहयोग कुछ भी हो सकता है आप को स्वयं को चुनाव करना होता है आप समाज के लिए कैसा योगदान दे सकते है!
ज्यादा वक्त नही लेते हुए मै अपनी मूल बात पर आता हु!
हमारे समाज की सभी जगह प्रशंसा होती सुनी है मैंने लेकिन कुछ बुराईया अभी भी मौजूद है जो हमारे समाज को गन्दा कर रही है और अब इन समस्याओ ने विशाल रूप धारण कर लिया और इनको निकाल पाना बहुत कठिन हो रहा है!
सिर्फ शिक्षित होने को ही समाज की जागृति ही नही कहेंगे जागृति तब आएगी जब समाज इन छोटी छोटी समस्याओ से निजात पा लेगा ।
समाज की कुछ बुराईयॉ:-
----------------------- समाज में बहुत बुराईया है लेकिन मैं केवल उन समस्याओ के बारे चर्चा करूँगा जो समाज बिगाड़ रही है या यो कहे समाज को एक आदर्श समाज बनने से रोक रही हम ऐसा भी कह सकते है की समाज गरत में ले जाने में इन समस्याओ का महत्वपूर्ण योगदान है
मैं बात करूँगा इन समस्याओ के बारे में
(1)दहेज़
(2)शराब(दारु)
(3)अशिक्षा
(4)ब्राह्मण को महत्वता देना
(1)दहेज़:- हम कहते है कि नर और नारी दोनों समान है। तो इसका मतलब हुआ
लड़का = लड़की
लेकिन कालांतर में न जाने ऐसा क्या हुआ कि,
लड़का = लड़की + दहेज़
हो गया! दहेज़ शब्द नारी से इस कदर जुड़ गया है जैसे इंसान से सांस! जैसे सांस लिए बिना इंसान जी नहीं सकता वैसे ही दहेज़ के बिना नारी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आश्चर्य तो तब होता है जब पढ़े-लिखें, सुशिक्षित लोग भी दहेज़ की कामना रखते है।
दहेज प्रथा ऐसी ही एक कुरीति बनकर उभरी है जिसने ना जाने कितने ही परिवारों को अपनी चपेट में ले लिया है । इन प्रथाओं का सीधा संबंध पुरुषों को महिलाओं से श्रेष्ठ साबित कर, स्त्रियों को किसी ना किसी रूप में पुरुषों के अधीन रखना था । सती प्रथा हो या फिर बहु विवाह का प्रचलन, परंपराओं का नाम देकर महिलाओं के हितों की आहुति देना कोई बुरी बात नहीं मानी जाती थी । भले ही वर्तमान समय में ऐसी अमानवीय प्रथाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं, लेकिन इन्हीं कुप्रथाओं में से एक दहेज प्रथा आज भी विवाह संबंधी रीति-रिवाजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । समय बदलने के साथ-साथ इस प्रथा के स्वरूप में थोड़ी भिन्नता अवश्य आई है लेकिन इसे समाप्त किया जाना दिनों-दिन मुश्किल होता जा रहा है ।
हमारा समाज पुरुष प्रधान है । हर कदम पर केवल पुरुषों को बढ़ावा दिया जाता है । बचपन से ही लड़कियों के मन में ये बातें डाली जाती हैं कि बेटे ही सबकुछ होते हैं और बेटियां तो पराया धन होती हैं । उन्हें दूसरे के पर जाना होता है, इसलिए माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा होता है ना कि बेटियां समाज में सबकी नहीं पर ज्यादातर लोगों के सोच यही होती है कि लड़कियों की पढ़ाई में खर्चा करना बेकार है । उन्हें पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना बेकार है, आखिरकार उन्हें दूसरों के घर जाना है पर यदि बेटा कुछ बनेगा कमाएगा तो माता-पिता का सहारा बनेगा । यही नहीं लड़कों पर खर्च किए हुए पैसे उनकी शादी के बाद दहेज में वापस मिल जाता है । यही कारण है माता-पिता बेटों को कुछ बनाने के लिए कर्ज तक लेने को तैयार हो जाते हैं । पर लड़कियों की हालात हमेशा दयनीय रहती है, उनकी शिक्षा से ज्यादा घर के कामों को महत्व दिया जाता है । इस मानसिकता को हमे परिवर्तित करना होगा । ज्यादातर माता-पिता लड़कियों की शिक्षा के विरोध में रहते हैं । वे यही मानते हैं कि लड़कियां पढ़कर क्या करेगी । उन्हें तो घर ही संभालना है । परंतु माता-पिता समझना चाहिए कि � पढऩा-लिखना कितना जरूरी है वो परिवार का केंद्र विंदु होती है । उसके आधार पर पूरे परिवार की नींव होती है । उसकी हर भूमिका चाहे वो बेटी का हो, बहन का हो, पत्नी का हो बहू का हो या फिर सास पुरुषों की जीवन को वही सही मायने में अर्थ देती है ।
अब समय पूरी तरह बदल चुका हैं, और वर पक्ष के लोग मुंहमांगे धन की आशा करने लगे हैं जिसके ना मिलने पर स्त्री का शोषण होना, उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है । पुराने समय में शुरू हुई यह परंपरा आज अपने पूरे विकसित और घृणित रूप में हमारे सामने खड़ी है । यही कारण है कि हर विवाह योग्य युवती के पिता को यही डर सताता रहता है कि अगर उसने दहेज देने योग्य धन संचय नहीं किया तो उसके बेटी के विवाह में परेशानियां तो आएंगी ही, साथ ही ससुराल में भी उसे आदर नहीं मिल पाएगा ।
शिक्षा बुराईयों को खत्म करने का सबसे कारगर हथियार है। परंतु यही शिक्षा दहेज जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने में असफल साबित हुई है। दूसरे शब्दों में षिक्षित वर्ग में ही यह गंदगी सबसे ज्यादा पाई जाती है। आज हमारे समाज में जितने शिक्षित और सम्पन्न परिवार है, वह उतना अधिक दहेज पाने की लालसा रखता है। इसके पीछे उनका यह मनोरथ होता है कि जितना ज्यादा उनके लड़के को दहेज मिलेगा समाज में उनके मान-सम्मान, इज्जत, प्रतिष्ठा में उतनी ही चांद लग जाएगी। एक डॉक्टर, इंजीनियर लड़के के घरवाले दहेज के रूप में 15-20 लाख की मांग करते है, ऐसे में एक मजबूर बेटी का बाप क्या करे? बेटी के सुखी जीवन और उसके सुनहरे भविष्य की खातिर वे अपनी उम्र भर की मेहनत की कमाई एक ऐसे इंसान के हाथ में सौंपने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो शायद उनके बेटी से ज्यादा उनकी पैसों से शादी कर रहे होते है।
इस में सुधार आवश्यक है मै दहेज़ मुफ़्त समाज चाहता हु
(2)शराब(दारु):- नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे है । इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है । जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि युवा वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीडी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसती जा रही है । जिसके कारण उनका कैरियर चौपट हो रहा है । दुर्भाग्य है कि आजकल नौजवान शराब और धूम्रपान को फैशन और शौक के चक्कर में अपना लेते हैं । इन सभी मादक प्रदार्थों के सेवन का प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए बन्द होनी चाहिए ।
(3)अशिक्षा:- पुरष प्रधान समाज ने महिला शिक्षा पर ध्यान नही दिया जाता है मै ऊपर बता चूका हु पर एक बार फिर बता देता हु
बचपन से ही लड़कियों के मन में ये बातें डाली जाती हैं कि बेटे ही सबकुछ होते हैं और बेटियां तो पराया धन होती हैं । उन्हें दूसरे के पर जाना होता है, इसलिए माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा होता है ना कि बेटियां समाज में सबकी नहीं पर ज्यादातर लोगों के सोच यही होती है कि लड़कियों की पढ़ाई में खर्चा करना बेकार है । उन्हें पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना बेकार है, आखिरकार उन्हें दूसरों के घर जाना है पर यदि बेटा कुछ बनेगा कमाएगा तो माता-पिता का सहारा बनेगा । यही नहीं लड़कों पर खर्च किए हुए पैसे उनकी शादी के बाद दहेज में वापस मिल जाता है । यही कारण है माता-पिता बेटों को कुछ बनाने के लिए कर्ज तक लेने को तैयार हो जाते हैं । पर लड़कियों की हालात हमेशा दयनीय रहती है, उनकी शिक्षा से ज्यादा घर के कामों को महत्व दिया जाता है । इस मानसिकता को हमे परिवर्तित करना होगा । ज्यादातर माता-पिता लड़कियों की शिक्षा के विरोध में रहते हैं । वे यही मानते हैं कि लड़कियां पढ़कर क्या करेगी । उन्हें तो घर ही संभालना है । परंतु माता-पिता समझना चाहिए कि � पढऩा-लिखना कितना जरूरी है वो परिवार का केंद्र विंदु होती है ।
(4)ब्राह्मण महत्वता पर रोक:- आज हमारे समाज में हर छोटे से छोटे काम में ब्राह्मण को बुलाया जाता है वो गलत है
जितने पढ़े लिखे है वे ही ज्यादा वे ही ज्यादा ढोंग करते है खुद को अच्छा साबित करने में लगे रहते है रामायण,भागवत और उलटे सुलटे काम करते है!
ये सिर्फ अन्धविश्वास फैलाना मात्र है यदि आपको श्रद्धा ही है तो उसे आप बड़ा चढ़ा कर दिखाने की जरुरत नही है अतः ऐसे फिजूल ख़र्चे को बन्द करे!
यदि आपको ये करवाने ही है तो आज हमारे समाज के लड़के भी इन सब में प्रवीण है आप उनसे सलाह ले सकते उनसे करवा सकते है
आज हम ब्राह्मण को खिला पिला कर इतना मजबूत कर रहे है की कल वो ही हमारे खिलाफ खड़ा मिलता है आज हमारे समाज के पीछे मनुवाद पूरी तरह पड़ा हुआ
इसमें परिवर्तन आना आवश्यक है परिवर्तन की आशा में
अब मै अपना लेख समाप्त करता हु
आपके विचार सादर आमंत्रित है शेयर करने वाले भाई लेख को तोड़े मरोड़े नही ना ही लेखक का नाम हटाये
धन्यवाद
जयसिंह नारेड़ा
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