Friday, February 2, 2024

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार

दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता है। जिसे कुछ वर्ष पूर्व बाहियाद कहा जाता था । ये शब्द पचवारा राजौटी क्षेत्र की बात नही कर रहा हु। लेकिन हमारे क्षेत्र में मीणा गीत को बाहियाद यानी की जिसे बदमाश लोगो की पहचान के रूप में जाना जाता था। जिन्हे ट्रैक्टर –जीप अथवा खुले में चलाने वाले को बदमाश समझा जाता था।

मीना गीत को #मां_बाप के सामने चलाना तो ऐसे था जैसे की बहुत गिनोना पाप कर दिया हो । हर किसी की हिम्मत नही होती थी जो मां बाप के सामने गीत चला दे। बाप उठाकर जूता मारने से नही चुकता यहा तक की गांव में बड़े बुजुर्ग या अपने से बड़े आदमी के सामने गीत सुनने में झिझक होती थी। 

इस टाइम कन्हैया दंगल,पद दंगल और सुड्डा दंगल को ही संस्कृति के रूप में देखा जाता था लेकिन पिछले 10 साल से बहुत बदलाव आया है आजकल मीना गीत को संस्कृति बनाने का ट्रेंड सा चलने लगा है। 

अब जरूरत से ज्यादा स्याने लोग कहेंगे पहले विष्णु ने वाहियाद या सेक्सी गीत गाए है तब तुम लोग कुछ क्यों नही कहते थे तो स्यानो पहली बात तो उस टाइम फेसबुक नही थी ना ये एंड्रॉयड फोन थे ना ही तुम्हारे जैसे वकील थे उस टाइम गीत सुनने के लिए केसिट हुआ करती थी और सुनने के लिए रेडियो हुआ करता था जो इतना वायरल होना संभव नहीं था और विष्णु ने भी उसमे सुधार कर लिया था उसके बाद से विष्णु ने अपनी एक अलग पहचान बना ली । 

अब मूसड चंद कहेंगे हनी सिंह के गीत तो सुनते अरे झंडू जब सुधर खुद के नही दूसरो को कहा से सुधारेंगे और हनी सिंह को भी थप्पड़ पड़ा था उसके बाद तो नही गाए ना उसने गान में दम है तो बंद करवा लो

अब कहेंगे गुर्जर तो रसियो में चड्डी उतार देते है तो रामधन गुर्जर को कलेक्टर नीरज के पवन ने मुर्गा बना कर ऐसा मारा था जो आज तक नजर नही आ रहा है तो अति का अंत सबका आता है। लेकिन सब के सफाई देने वाले सफाई कर्मी नही थे। 

कहते है सिक्का खुद का खोटा हो तो दूसरो से बोलना मूर्खता है । अब झंडू ये भी कहेंगे समाज का है गरीब है अरे तुम्हे क्या लगता है बस यही गरीब है बाकी सब तो अंबानी है ना । और 50 हजार महीने के कमाने वाला गरीब है तो फिर अमीर की परिभाषा क्या है ?? बाकी सारे सिंगर क्या अडानी के खानदान से है ??

गीतों का व्यापार करना गलत भी नहीं है और अपने व्यापार को फैलाने के लिए व्यापारी का नीचता पर उतरना भी ठीक है लेकिन शुरुआत अपनी घर की बहन बेटियों से करे तो व्यापार ज्यादा बढ़ेगा 🤪🤪

छिंगरो के अपने अपने चेले चमांटें होते है वे चेले भी व्यापारी से मिलकर छोटी मोटी ठेली लगाते है अपनी ठेली चलाने के लिए व्यापारी के गुणगान करने में कैसे चुकेंगे अन्यथा ठेली बंद नही हो जायेगी ?? 
आखिर ठेली पर सामान तो वही से आता है ना 😛😁

संस्कृति को व्यापार कहना गलत नही है।

✍️✍️जयसिंह नारेड़ा

Saturday, January 13, 2024

बचपन की मकर सक्रांति

बचपन की मकर संक्रांति ........!!
समय के साथ सब बदल गए,लेकिन नहीं बदली है तो वो गुड़ और तिल की गजक की खुशबू......ठंड के मौसम के साथ ही दस्तक देती है बाजारों में तिल और गुड़ की सजावट.....और उसके साथ ही आसमान में पक्षियों से भी ज्यादा नजर आने लगती हैं,रंग बिरंगी पतंग.....जो चारो आसमान को घेरे रहती है....ऐसा लगता है जैसे आसमान में रंगो की चादर बिछाई गई हो....

विभिन्न रंगों एवम् विभिन्न आकारों की ये पतंगे जब आसमान में एक साथ उड़ती हैं तो विभिन्नता में एकता का बोध कराती हैं ।

संक्रांत वाले दिन सुबह सुबह जीजी(मम्मी) घरों के आगे की झाड़ू लगाया करती थी सड़को को साफ करना परंपरा का हिस्सा रहा है...अच्छा सबको याद तो होगा ही अपने गांवो में एक कहावत काफी प्रचलत थी आपकी तरफ थी या भी हमारी तरफ तो थी ऐसा माना जाता था की संक्रांत वाले दिन जो नही नहाता है वो अगले जन्म में गधा बनता है इसका ऐसा खौफ बना दिया जाता है की न चाहते हुए भी उस दिन सभी नहा ही लेते है....कुछ आस्था को माने वाले नहाने के लिए मोराकुंड जाते थे कुछ अन्य जगह भी जाते थे..

वो संक्रांत वाले दिन सुबह सुबह नहा के सबका एक साथ बैठ कर आग पर चल पीड़ा करना और फिर तिलकुटे और विभिन्न प्रकार के भोजन दाल-बाटी,चूरमा, खीर-पुआ तो कही कही कड़ी बाजरा का अन्नुकूट और शाम को गर्मा गर्म पकोड़ी का स्वाद एक अलग ही एहसास दिलाता था।

बचपन के साथ ये बातें भी अब पुरानी लगती हैं।आज के बच्चों को ना दही चूरमा भाता है और ना तिलकुटे की गजक की खुशबू और मिठास ही इन्हे लुभाती है।

मुझे याद है जब हम जयपुर रहते थे तब तो महीने पहले से ही पतंग उड़ाना शुरू कर देते थे और जैसे जैसे संक्रांत नजदीक आती जाती माहौल बहुत ज्यादा बढ़ जाया करता था छत पर डीजे लगा कर नाचना और बस शोर शराबा करने में काफी मजा आता था। ( हमारे गांव में पतंग रक्षाबंधन पर उड़ाई जाती है) रात को चिमनी जलाकर आसमान में छोड़ना वाकई अलग ही लेवल का अहसास होता था।

छोटे छोटे दुकान वालों की भी खूब चांदी रहती थी,वे रंग बिरंगीपतंग सजा कर अपनी दुकान में सबसे आगे लगा देते थे,आते जाते नजर उस पे पड़ती और बच्चो का मन उन्हें लेने के लिए भटक जाया करता था ।

अब के शहरी जीवन में ये चंचलता विलुप्त होती जा रही है,बच्चे खुद मे,मोबाइल में और टीवी की दुनिया में सिमटते जा रहे हैं।अब तो त्योहार आते हैं और चले जाते हैं । बच्चों को भनक भी नहीं लगती.....क्योंकि उन्हें अब मोबाइल से ही फुर्सत नही मिलती उन खुशियों के लिए टाइम ही नही निकाल पाते है अब उन्हें बचपन जीने की आदत ही नही रही है....पहले त्योहारों पर दोस्तो का इंतजार हुआ करता की गांव के दोस्त जो बाहर रहते है वे आयेंगे लेकिन अब वो भी खत्म हो गया है।

त्यौहार का सबसे ज्यादा इंतजार मां बाप करते है की उनके बच्चे आयेंगे परिवार में चहल पहल होगी हंसी मजाक होगी एक दूसरे के साथ उठने बैठने के साथ साथ सुख दुख के पल बांटने का मौका मिलेगा क्योंकि बच्चो के बहाने ही मां बाप भी अच्छे पकवान बना कर खा लेते है थोड़ी खुशियों में शामिल होने का मौका मिल जाता है बिना बच्चो के मां बाप के लिए वो त्योंहार एक दम सुने हो गए है ...

अब के बच्चे हाथों से मोबाइल छोड़ना ही नही चाहते नोकरी से छुट्टी नही मिल पाती है...वो जिम्मेदारियों तले अपने बच्चन के हर उस खेल का और त्योहारों की खुशियों गला घोट कर रह जाते ह
ज़िंदगी में बड़े बड़े सपने देखने के चक्कर में बचपन को भूल गए है...!!

मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनाएं 🙏🙏
जयसिंह नारेड़ा 

Thursday, January 11, 2024

किसान कर्ज

किसान कर्ज
किसान कर्ज की प्रवृति रोकनी चाहिए ....हां बिलकुल रोकनी चाहिए इस से आदत लग गई है और किसान बिगड़ गए है। उन्हे लोन लेने की आदत पड़ चुकी है और इस प्रवृति के आदि हो चुके है। बिलकुल अब इस पर विराम लगना ही चाहिए।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जिस किसान परिवार से आप निकल कर आगे बढ़े हो सुना है आपकी माताजी ने भी जेवर गिरवी रख कर आपको बीकानेर पढ़ने के लिए भेजा था क्योंकि उनके हालात ऐसे नही थे की आपको उच्च शिक्षा दे सके....।।
                                                         ठीक ऐसे ही हालात हर किसान के होते है साहब कल तक आप किसानों की आवाज हुआ करते थे किसानों के हक के लिए आंदोलन किया करते थे कर्जमाफी के लिए धरना प्रदर्शन किया करते थे.....यानी वो सिर्फ छलावा मात्र था ।
                    यानी आपने भी सिद्ध कर दिया की सत्ता में आते ही आप उन सब परस्तिथियो को भूल गए जिन परस्तिथियों के लिए सड़कों पर उतरा करते थे। 

हर किसान के पास इतने पैसे नही होते है की अपने बच्चो को उच्चतम शिक्षा दे सके उन्हें बेहतर शिक्षा के लिए बाहर भेज सके...अरे किसान की बेटी की तो शादी भी साहब कर्जे से होती है वो कर्जा ले कर अपनी बच्ची को अच्छे घर में रिश्ता करना चाहता है हर वो खुशी देना चाहता है जो उसकी बेटी के लिए जरूरत है ताकि कल को कोई ये ना कहे की बाप ने बेटी को कुछ नही दिया। अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देकर आपकी ही तरह डॉक्टर बनाना चाहता है इंजिनियर बनाना चाहता है। 

खेतो में पानी के अभाव में आपसे रोज निवेदन करते है ERCP ले आओ सत्ता में आने से पूर्व आप कहते थे डबल इंजन की सरकार आने दो इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाएंगे और लाभ दिलाएंगे लेकिन लाभ तो छोड़ो आप तो किसानों के कर्ज लेने को उनकी आदत बताने लग गए।

ये कर्ज लेने की आदत नही है साहब ये मजबूरी है कोई नही चाहता अपनी जमीन को गिरवी रख कर कर्ज ले लेकिन हालात ऐसा करने पर मजबूर कर देते है।एक किसान अपने परिवार के पालन पोषण उनकी मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के लिए कर्ज ले ही लेता है। कर्ज भी चुकाता है और नही चुका पाता है तो ये बैंक वाले भी कम नहीं है उस जमीन को नीलाम कर देते है ये कोई नही चाहता की उसकी जमीन उसके जीते जी नीलाम हो और एक दिन किसान आत्महत्या कर लेता है।

साहब किसान फसल को अपने बच्चे की तरह पालता है हर कीट पतंगों से उसे बचाता है कभी सर्दी,धूप,छांव और गर्मी को नही देखता है जिस माइनस डिग्री में लोग घरों से निकलने में कतराते है उस ठंड में वो खेतो में पानी दे रहा होता है क्योंकि आपकी सरकार बिजली भी तो टाइम पर नही देती है । पूरी पूरी रात जाग कर खेतो की रखवाली करता है और बरसात के कारण फसल नष्ट हो जाए तो दुख होता है साहब बहुत दुख होता है उस फसल से जिस कर्जे की आप बात कर रहे हो उसे चुकाने का सपना देखता है सोचता है की कर्जे को चुकाने के बाद कुछ बचेगा तो अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करेगा बच्चो को कपड़े दिलाएगा ,बेटी को बेस करेगा,भात भरेगा ऐसे न जाने कितने ही सपनो को लेकर जीता है।

आप लोगो को दिक्कत अडानी अंबानी को कर्ज देने में दिक्कत नही होती क्योंकि वे पैसे वाले है नीरव मोदी,विजय माल्या जैसे लोग करोड़ों रुपयों को लेकर भाग जाए उस से आपको और आपकी सरकार को फर्क नही पड़ता लेकिन किसान लाख पचास हजार का लोन ले ले और चुका नही पाए तो नीलामी पर उतर जाते है और आप जैसे मंत्री उसे आदत कह देते है। बहुत फर्क होता है सत्ता और विपक्ष का ये आपने सिद्ध कर दिया । ये कुर्सी सारे दर्द को भुला देती है जो दर्द आप सड़को पर चल कर दिखाया करते थे।

धन्यवाद साहब इस प्रवृति को जल्द से जल्द बंद कीजिए ऐसे महान कार्य अपने कर कमलों से करके जाइए ताकि हम गर्व से कह सके की किसान परिवार से निकल कर मंत्री बने और किसानों को लिए ये तोहफा दिया है।

जयसिंह नारेड़ा

Tuesday, August 22, 2023

बीमार मानसिकता

बीमार मानसिकता
# सामाजिक मंच #
• बीमार मानसिकता *
' "चुन्नी में चुन्नी में परफ्यूम लगावे चुन्नी में...."
मीना गीत के साथ हाथ हिलाते हुए एक भाभीजी स्टेज पर आती है और अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करने लगती है इतने में ही स्टेज के दूसरे छोर खड़े लोग साथ में नाचने लगते है ऐसा लगता है जैसे मानो नृत्यांगना का साथ देने के लिए ही भिड़ जुटाई गई जिससे उसका हौसला बुलंदियों के आसमान को छू सके।

सामाजिक मंच परिसर का वातावरण पूरी तरह आनंद की भावना से सराबोर हो गया। तभी“चीज ब्रांड मीणा च”युवा नेता ने अपने साउंड वाले को यह निर्देश दिया।
“ जी भाई साहब।”साउंड वाले ने लं ... बा ... सलाम ठोका।
गाना बदल दिया और फिर सभी उस गाने पर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे ।

सुनो ... भेद-भाव किए बिना, सभी आगंतुकों को एक समान
समोसा जलेबी मिलनी चाहिए। ध्यान से कोई छूटे नहीं। "  मंच संचालक
आदेशात्मक स्वर में छोटे कार्यकर्ता से कहा।
“ ठीक है भाई साहब । ”
आदेशानुसार, कार्यकर्ता उसी प्रांगण के सभी लोगो को ... तत्परता से जलेबी समोसे की नाश्ता बांटने में व्यस्त हो गया।
मिलन समारोह का कार्यक्रम में डांस चलता रहा गाने बदलते गए और हर बार डांसर बदलता गया झुंड में नाचते रहे! वहाँ उपस्थित सभी लोग कार्यक्रम को देखने में आनंदमग्न, भाव विभोर थे।

कार्यक्रम से दू..र, परिसर के एक कोने में खड़े ..संगठन के
दो कार्यकर्ता, गणमान्य के स्वागत में में आए नाश्ते के पैकेटों में से
कुछ पैकेटों को निकाल कर, सभी की नजरों से बचाते हुए
अपनी-अपनी झोली में जल्दी से रख रहा था।

तभी, दर्शक दीर्घा के में बैठे कुछ लोगो की निगाह उन पर पड़ गई थी लेकिन उन्होंने इस तरह से रिएक्ट किया जैसे लोगो ने कुछ देखा ही नहीं.......।

थोड़ी देर में सब नाच गान से थक जाते है और सभा में सामाजिक चर्चाओं पर बात करने के लिए सभी आ गए जिनमें सबसे अहम मुद्दा था #डीजे_बंद किया जाए।
सभी का तर्क था की इस से समाज में गलत संदेश जा रहा है और लड़ाई को जड़ का काम कर रहा है इस से हमारे बच्चों पर गहरा असर पड़ रहा है।

वो अलग बात है की सामाजिक मंच पर नाच गान किया जा रहा था साथ ही कथा भगवतों में कथा वाचक के सामने नाचने की खुली छूट है वही पद यात्राओं में "हवा निकल गई पहिया की " जैसे गानों पर समाज की नाबालिग लड़की के साथ बड़ी बूढ़ी महिला भी नाच सकती है क्योंकि धर्म की जड़ सदा हरी रहती है।

दूसरा मुद्दा था #नुक्ता(मृत्यभोज) सभा में ये मुद्दा भी काफी चर्चाओं में रहा क्योंकि नई पीढ़ी काफी सजग हो चुकी है मृत्यु भोज नही करना चाहती जो की सही भी है लेकिन नुक्ता 12 वे दिन ना करके 13,14 या 15 दिन बाद किया जाता है तो पूरा गांव बड़े चाव से जीम सकता है क्योंकि वो नुक्ता की श्रेणी में नही आयेगा।।

#चोरी और #दहेज जैसे मुद्दे पर बात ही नही बन सकी क्योंकि पटेल का छोरा अभी IAS हुआ है और छोरा का रिश्ता 2 करोड़ में तय हुआ है किसी की हिम्मत नही की IAS के बाप से 2 शब्द कह जाए दूसरा पटेल इसलिए नही बोल रहा था वो अपने बेटे को कल बाइक चोरी से छुड़वा कर लाया था सुना है की उसका बेटा स्मैक के चक्कर में चैन छोरी करता फिर रहा है एक बार तो महिला का गले से चैन तोड़ते टाइम महिला गिर गई और गहरी चोट आई थीं जिसके चक्कर में पटेल जी ने 4 लाख में केस सुलझाया था ऊपर से छोरे के लिंक टपोरियों से था पटेल पर उंगली उठाने की हिम्मत किसकी हो सकती है ??

#रील्स बनाने वाली महिलाओं पर चर्चा करने वाले थे लेकिन जो चर्चा करने आई थी वे अभी स्टेज पर नाचने और रील्स बनाने ही बिजी थी उनके हैंसबैंड फोन पकड़े हुए थे इसलिए सभा में भी शामिल नही हो पाए

हा सभा में सभी सहानुभूति का पूरा ख्याल रखा गया था जिसकी जितनी फैन फॉलोइंग थी उसके साथ उतनी ही सेल्फी ली जा रही थी ऐसे में समाज की #हिरोइन (रील्स बनाकर अपने सुंदर सुशील और संस्कार रूपी शरीर से संस्कृति से एक महान पहचान दिलाने वाली) को सम्मानित किया गया उन्हे प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके बाद सभी ने सेल्फी खिंचवाई थी सेल्फी खिंचवाने वालो की संख्या को देखकर ऐसा लग रहा था गुड की भेली पर मक्खियां भिनभिना रही हो ।।

इनकी फैन फॉलोइंग को देखकर मेरी आंखों में आंसू भर आए थे कितनी महान हस्ती है हमारे समाज में जिनका मुझे अब अहसास हो रहा था ।
नोट: मैं सभा में नही था ये केवल परिकल्पना है ।

जयसिंह नारेड़ा

Wednesday, July 19, 2023

नौकरी

#नौकरी

अच्छा नौकरी शब्द सभी को अच्छा लगता है आखिर अच्छा लगे भी क्यों नही ? ये एक परिवार,दोस्त और अपनो को खुशियां देने वाला शब्द है वही जिसे नौकरी मिली है उसकी जीवन के सपनो को साकार करने वाला शब्द है..!!

हर कोई नोकरी के लिए कठोर मेहनत करता है चाहे वो प्राइवेट नोकरी हो या सरकारी लेकिन ये दोनो ही हर किसी के नसीब में नहीं होती है। नोकरी के लिए जितनी मेहनत करते है उतनी ही कम लगती है क्योंकि कंपीटीशन उतना ही ज्यादा हो गया है

कई बार दरवाजे पर दस्तक देकर वापस चली जाती है तो कई बार बिना मेहनत के भी मिल जाती है। खैर दोनो के अपनी मेहनत और लग्न छुपी हुई होती है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जो व्यक्ति नोकरी करता है क्या वो अपनी नोकरी के पूर्ण रूप से खुश है शायद नही.....

देखिए नोकरी चाहे कैसी भी हो परिवार से जुदा करवा देती है तुम्हे परिवार से अलग रहने को मजबूर कर देती है परिवार के साथ 2 वक्त का समय निकालने के लिए तरसना पड़ता है..!!

ऐसा जरूरी नहीं सभी के लिए हो किसी की नौकरी परिवार के साथ रहते हुए भी पूरी होती लेकिन वे कुछ प्रतिशत ही है अधिकतर लोग अपने परिवार को किश्तो में ही टाइम दे पाते है।

हर एक पल किसी त्योहार या घर परिवार के विशेष परियोजन(अवसर) की उम्मीद लगाए बैठे रहते है जैसे होली खत्म तो राखी पर जाने की सोचते है, राखी खत्म तो दिवाली पर और दिवाली खत्म होते ही शादियों का इंतजार करते है फिर वही होली दिवाली की रट लगाए रहते है...!

सुबह घर से तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलना और दिन भर ऑफिस में बॉस के ताने सुनना या फिर कामों में बिजी रहना और फिर शाम को थके हुए घर आना फिर खाना बनाकर खाना और सो जाना सुबह फिर वही रूटीन....कब सुबह का नाश्ता और रोटी भूल गए पता भी नही चलता...टाइम किसी का इंतजार थोड़ी करता है.!ऐसा लगता है जैसे यही रूटीन बन गया हो जैसे जीवन का बाकी मकसद तो मानो खत्म सा ही हो गया हो....बाहरी दुनिया को तो जैसे नजरंदाज कर दिया हो....इसमें फेसबुक ही एक मात्र आपके हंसने और हंसाने का जरिया बन चुकी होती है...!!

छुट्टियां होते हुए भी समय छुट्टी ना मिले तो बहुत गुस्सा आता है जब पूरा परिवार त्योहार या उस अवसर का इंतजार कर रहे हो वे सब खुशियां मना रहे हो आप सिर्फ वीडियो कॉल या कॉल पर उनके साथ सम्मलित हुए हो.....तब लगता है क्या यार क्या हम सिर्फ पेट भरने के लिए ही पैदा हुए है ?? क्या हमे परिवार की खुशियों में सांझा होने का हक नहीं है ??

लेकिन आपकी मजबूरियां( नोकरी की जंजीरो में बंधे आपके अरमान) आपसे ये सब करवा रहे होते है।

जो परिवार हंस रहा खेल रहा है वो कहीं न कही आपकी ही मेहनत और मजबूरियों का नतीजा है उनकी खुशियों की वजह तुम हो.....

हमेशा खुश रहे और मुस्कुराते हुए अपने परिवार को खुश रखने की कोशिश में लगे रहे यही तो जीवन है......परिवार के साथ ना सही परिवार के लिए ही सही.....!!

जयसिंह नारेड़ा

Saturday, April 29, 2023

राजपूतो ने मुगलों को अपनी बेटी दे कर बचाए थे राज्य

क्षत्रिय(राजपूत) जो अपने गौरवशाली इतिहास की बात करते है उनके इतिहास पर थोड़ी नजर डाल लिया जाए जो अकबर का इतिहास मिटाने की बात करते है उन्होंने अपनी बेटियां दे कर अपना साम्राज्य बचाया था ।।

1- जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की. (कछवाहा-अंबेर)

2-15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)

3- 1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया. (राठौर-जोधपुर)

4- 1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)

5-मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)

6-1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)

7-16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)

8-1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)

9-2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)

10- 28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)

11-पहली फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)

12-अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)

13-1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह(राठौर-नागौर)

14-17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से(राठौर-किशनगढ़)

15-5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे. (कछवाहा-आंबेर)

16-30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए(शेखावत-मनोहरपुर)

#नोट कुल मिलाकर अकबर के शासनकाल में कुल 34 शादियां हुई राजपूतों और मुगलों के बीच,
जहांगीर के वक्त कुल 7,
शाहजहां के वक्त 4 और औरंगजेब के वक्त कुल 8 सब मिलाकर 53 शादियां हुईं!

Friday, February 17, 2023

कला या चमत्कार

कला या चमत्कार

अच्छा आप लोगो ने जीवन में कही न कही हाथ देख कर भविष्य बताने वाले तो अवश्य देखे होंगे । वे 10 मिनट में हाथ देख कर भविष्य बता देते है ये उनकी कला है और इसे चमत्कार समझ लेना ही मंदबुद्धिता को दर्शाता है ||

सबसे अच्छा सेल्समैन आपने ट्रेन / बस में देखा होगा जिन्हे कोई ट्रेनिंग नही देता वे आपको 10 मिनट में इतना कुछ बता देते है की आप मन एक बार तो करता ही है की ये चीज ले लेनी चाहिए 
उनकी एक खास बात आपने नोटिस की तो वे चेन को घिस कर बताते है की इसका कलर नही जाता वही उसे पता होता है कि उसकी चेन नही बिकेगा या ये व्यक्ति नही लेगा फिर भी सबको चेक करवाते है ये उनकी एक कला है।

कला का उदाहरण तो आप बीमा वाले से भी ले सकते है जीने से ज्यादा मरने के फायदे बता देते है ये भी उनकी कला है को वे अपनी सर्विस को कैसे बेचते है ??

गांवो में जादू के खेल दिखाने वाले मदारी तो बहुत देखे होंगे वे लड़के को गायब करके सांप बना देते है तो कभी रेडियो टीवी तक निकाल देते है वो उसकी कला है हम समझ नही पाते और उसे जादू समझ बैठते है जबकि वो अपनी कला का चालाकी से  प्रदर्शन करता है। 

अच्छा थोड़े दिन पहले बालाजी की घाटी में नीम के पेड़ से दूध जैसा पदार्थ(द्रव) निकला था सभी उसे चमत्कार समझ कर उसकी पूजा करने लगे थे बहुत लोग तो उस दूध को लेकर गए थे क्योंकि वो तो चमत्कार था ना लेकिन आज उसकी पेड़ के नीचे दारू पीने वाले बोतल पटक कर जाते है क्योंकि वो चमत्कार अब खत्म हो गया । असल में पेड़ का कोई चमत्कार नहीं था बल्कि पेड़ की एक क्रिया ही थी जिसे लोग चमत्कार समझ बैठे थे।

ठीक उसी प्रकार से जिसे कला आती है वो उस कला का दुरुपयोग करके उसे चमत्कार का नाम दे सकता है लेकिन वो चमत्कार तभी होगा जब आप लोग भी उस कला को चमत्कार मानने लगोगे

कभी आपने ताश का खेल तो खेला हो होगा हमारे कुछ दोस्त इसे भी होते है की ताश बांटने में ही गड़बड़ी कर जाते है जिन्हे कोई पकड़ नही पाता असल में वो एक गणित होती है उनके माइंड में चल रही होती उन्हे पता होता है की ये ताश का पत्ता इसके ही आएगा उनकी केलकुलेशन दिमाग में चल रही होती है उसी हिसाब से वो ताश सेट करता है वही कुछ लोगो को ये अनुमान हो जाता है की वो पत्ता इसके पास है इसे भी माइंड की कैलकुलेशन ही माना जा सकता है।

फैसला तो आपको हो करना है की कला को चमत्कार समझना है या फिर कला को कला के रूप में ही देखना है।।

जयसिंह नारेड़ा

Monday, January 30, 2023

बस का सफर

आज ऑफिस से घर जाने के लिए देर हो रही थी इसलिए मैं जल्दी-जल्दी ऑफिस से घर के लिए निकल पड़ा. मेरा ऑफिस घर से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित है और मुझे वहाँ पहुचनें के लिए उत्तम नगर से रोज बस पकड़नी पड़ती है.

आज में बस स्टॉप पर थोड़ा देर से पहुँचा था और मेरी निगाह 817 नंबर वाली बस जा चुकी थी. कुछ ही पल में एक बस आई और मैं उसमें चढ़ गया.

आज बस में काफी ज्यादा भीड़ थी. बड़ी मुश्किल से मुझे बैठने के लिए थोड़ी सी जगह मिल पाई. बस रवाना हो चुकी थी और मैं अपने कान में लीड लगाकर गाने सुनने का मन करने लगा फिर भीड़ को देख कर मोबाइल निकालने की हिम्मत नही हुई क्योंकि मोबाइल चोरी के किस्से मैने बहुत सुन रखे थे.!! यहां कब मोबाइल,पर्स और पैसे गायब हो जाए पता नही लगता इस क्षेत्र में चोर बहुत ज्यादा है। इसलिए मोबाइल जेब पड़े रहने देना ही मैने ठीक समझा ।।

मेरे मन में तरह-तरह के विचारों ने उथल पुथल मचाना शुरू कर दिया. बस और रेल का सफर करनें पर असली भारत के दर्शन होते हैं, यहीं पर ही भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति का वास्तविक पता चल पाता है.

इनमें ही अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा, हिन्दू-मुस्लिम आदि सभी धर्मों, वर्णों और सभी तरह की हैसियत वाले लोग सफर करते हैं. कई लोग वक्त का सदुपयोग करने के लिए राजनीतिक चोसर को फैला कर कुछ न कुछ वाद विवाद का पासा फैंक देते हैं और सभी लोग इस राजनीतिक चर्चा और वाद विवाद के पासे को चटकारे के साथ खेलना शुरू कर देते हैं.

बस में कुछ युवा कानों में इयरफोन लगाकर गाने सुनने में मशगूल थे, तो कुछ लोग अपनी सहयात्री से बाते करने में मशगूल हो गए थे।

मेरे आगे की सीट पर तीन चालीस पैंतालीस वर्ष के आदमीं बैठे हुए थे तथा वो किसी बात पर वाद विवाद कर रहे थे. मैं भी बैठे-बैठे बोर हो रहा था सो मैंने उनकी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया. वो लोग आदर, संस्कार और परम्पराओं के बारे में बातें कर रहे थे.।
उनमे से एक बोला “अब तो समाज में किसी के लिए भी आदर नाम की कोई चीज नहीं बची है, आज पड़ौस में रहने वाली एक छोटी सी बच्ची मुझसे जबान लड़ाने लग गई.

उसके घरवालों को इतनी भी तमीज नहीं है कि वो उस बच्ची को आदर और संस्कारों के बारे में कुछ सिखाये. बड़ो से कैसे बात की जाती है? कैसे उनका आदर किया जाता है? अंकल न सही, कम से कम नाम के आगे जी तो लगा देती.“सीधे ही नाम से संबोधित कर रही थी तू तड़ाके से बात करने लगी थी.!

दूसरा आदमीं उसकी बात में हाँ से हाँ मिलाते हुए बोला “तुम सही कहते हो, अब तो बच्चों को क्या बच्चों के पेरेंट्स को भी संस्कारों का नहीं पता.।

वैसे बच्चों का भी अधिक दोष नहीं है क्योंकि बच्चे तो वही सीखेंगे जो वो घर में देखेंगे और जब घरों का वातावरण ही कुसंस्कारी हो रहा है तो फिर बच्चों का क्या दोष हैं. लोग अब बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान कहाँ करते हैं ?”

अब तीसरे की बारी थी सो वह भी बोल पड़ा “भाई, बात तो सही है, संस्कार तो पुरानी पीढ़ी से ही नई पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं और जब पुरानी पीढ़ी ही संस्कारों से महरूम रहे तो वो नई पीढ़ी को क्या संस्कार दे पायेगी.

अपने समय में तो ऐसा नहीं होता था, हम तो बड़े बुजुर्गों को उनके पैर छूकर सम्मान दिया करते थे. अब कहाँ किसी का सम्मान रह गया है? सब पाश्च्यात संस्कृति में रंगे जा रहे हैं और कोई किसी को सम्मान नहीं देता है, संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं.“।

अभी इनकी बातें चल ही रही थी कि अगले बस स्टॉप उत्तम नगर वेस्ट से एक औरत अपने एक हाथ में थैला और दूसरे हाथ में लगभग तीन साल के बच्चे को लेकर चढ़ी.

बस में सीट तो क्या पैर रखने की भी जगह नहीं थी परन्तु फिर भी उसने चारों तरफ ढूँढती हुई निगाहों से देखा और मेरे आगे वाली सीट के कुछ आगे खड़ी हो गई.

अचानक बस चालक ने ब्रेक लगाये और वो महिला बच्चे सहित आगे की तरफ गिरती गिरती बची और फिर से अपनी जगह पर खड़ी हो गई. उसने उन तीन संस्कारी आदमियों की तरफ देखा तो उनमें से एक फुसफुसाया “यहाँ तो हम पहले से ही तीन लोग बैठे हुए हैं, यहाँ पर जगह नहीं हैं.“

फिर कुछ देर पश्चात अगले बस स्टॉप नवादा से लगभग सत्तर वर्ष के एक बुजुर्ग बस में चढ़े. पीछे आकर वो भी उस महिला के पास में खड़े हो गए परन्तु किसी ने भी न तो उस बुजुर्ग के लिए और न ही उस महिला के लिए सीट छोड़ी.

मैं भी इस बारे में सोच रहा था परन्तु पता नहीं क्यों मैं भी ऐसा नहीं कर पाया. शायद में भी रोज-रोज एक सी परिस्थितियाँ देखकर संस्कारविहीन हो चुका था.

अगले स्टॉप द्वारका मोड़ पर लगभग बीस वर्ष की एक सुन्दर युवती बस में चढ़ी. उस युवती को बस में चढ़ता देखकर ऐसा लगा जैसे बस में बैठा हर पुरुष ये दुआ कर रहा हो कि काश ये मेरे पास आकर बैठे.।
बस में जगह नहीं थी सो वह भी पीछे आकर उन बुजुर्ग के पास खड़ी हो गई. उसे बस में खड़ा देखकर उन तीन आदमियों का जी जलता हुआ सा प्रतीत हो रहा था.।

जब रहा नहीं गया तो उनमे से एक बोला “आप यहाँ बैठ जाइये.” एक अजनबी के द्वारा सीट मिलने पर वह खुश हुई परन्तु फिर बोली “लेकिन यहाँ तो सीट खाली ही नहीं है?” दूसरा बोला “कोई बात नहीं, हम लोग थोड़ा-थोड़ा एडजस्ट कर लेंगे.“
लेकिन वो थोड़ा सकुचाते हुए बोली “नहीं नहीं, कोई बात नहीं.“ उसका ये उत्तर सुनकर तीसरे आदमी का पौरुष जागा और वह सीट पर से उठते हुए बोला “ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई महिला खड़े-खड़े सफर करे और हम देखते रहें.

ये हमारे आदर और संस्कार नहीं है कि हम महिलाओं का सम्मान नहीं करें. हमारी संस्कृति हमें महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाती है इसलिए आप कृपया यहाँ पर बैठिये.“ इतने आदर्श वाक्य सुनकर वह युवती मनमोहक मुस्कान के साथ उसकी सीट पर बैठ गई.

पास ही खड़े बुजुर्ग और बच्चे के साथ वाली महिला ये सब देखकर सोच में पड़ गए कि “हम भी तो इतनी देर से बस में खड़े थे फिर अचानक इनका सोया हुआ ये सम्मान कैसे जाग गया?”

इस प्रकार के आदर और सम्मान को देखकर मैं शर्म से पानी-पानी हुए जा रहा था और आखिर में मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपनी सीट पर उस महिला को बैठाया और स्वयं खड़ा हो गया. मैंने महसूस किया कि अब मेरे मन में एक अजीब सा गर्व हिलोरे मार रहा था.

मिलते है अगले किस्से के साथ......

जयसिंह नारेड़ा

Sunday, January 8, 2023

अच्छा हम इतने फ्री है

अच्छा हम इतने फ्री है

आपको नही लगता की हम अब इतने फ्री हो चुके है की फेसबुक पर सारे दिन बकचोदी कर लेते है,बहस भी उन मुद्दों पर कर लेते है जिनकी हमे जानकारी तक नही होती है, कई बार तो मैं तो सोचता हु यदि फेसबुक नही होती तो इतने विद्वान ,विदुषी अथवा स्याने लोगो से डिजिटल मुलाकात कैसे होती ??

हम आजकल क्रिकेट पर ज्ञान बांटने लगते है तो कभी हम देश की अर्थव्यवस्था को फेसबुक पर पोस्ट डालकर चांद पर ले जाते है । वही दूसरी और देखा जाए तो चंद लोगो को केवल हिंदू मुसलमान करने के लिए छोड़ रखा है। 

खैर छोड़ो कुछ लोगो को देखकर ऐसा लगता है मानो जैसे किसी पार्टी अथवा नेता ने भाड़े पर रखा हुआ है वे तो मानो जैसे पालतू जानवर की तरह अपने मालिक के हुकम का इंतजार करते है और उन्ही कहे अनुसार अपने कदम उठाते है।

आजकल फेसबुक पर देखो तो सबको एक ही काम नजर आता है वो है #HD 🤣 वाह नाम सुन कर वस वही पहुंच गए होंगे ख्यालों में पहुचोगे क्यों नही जब सारे दिन यही देखते और लिखते रहते हो। 

इनमे से आधे तो केवल चंद लाइक कमेंट के लिए डालते है और पुरानी वीडियो को ही उल्ट फेर करते रहते है खैर हम क्या लेना देना है ? हम तो इंस्टाग्राम पर टुंडी कनिया देखने वालो मे से है हमारी नई नई सस्ती अभिनेत्रियां अपने अंग प्रदर्शन करती रहती है वहां। खुद को सस्ते में प्रमोशन मिल जाता है अंग प्रदर्शन करने मात्र से ही ।

चलिए आपका ज्यादा माथा नही खाऊंगा मै भी अब इंस्टा पर जा रहा हु कोई भाभी कमर मटका रही होगी 🤣🤣🤣

जयसिंह नारेड़ा

Sunday, December 25, 2022

इश्कग्राम या इंस्टाग्राम की एक सच्चाई

आप सभी को मेरा ये अत्यंत बकवास और सत्यता से भरा लेख झेलने की हिम्मत प्रदान करें! 

कुछ लोगों को बुरा भी लग सकता है, तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं होंगी क्यूंकि मेरा मानना है की जो लोग अच्छे होते है उन्हें सब जगह अच्छाई ही नजर आती है और जो लोग बुरे होते है उन्हें सब बुरा ही लगता है, इसलिये आप स्वयं चयन करें की अच्छे है की बुरे तो मैं क्या बता रहा हु, सच मे इतनी बकचोदी करते है फेसबुक पर की अलसी मतलब असली बात याद नही रहती ।।

अच्छा आजकल सोशल मिडिया के सबसे चर्चित प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम ( इंस्टाग्राम नाम से तो सब परिचित ही होंगे ना, ये कोई बताने जैसे बात तो है नहीं की इंस्टाग्राम पर चैट की जा सकती है, वीडियो कॉल की जा सकती, वो भी सुन्दर का मुखौटा लगाकर, मेरा मतलब है फ़िल्टर ", दुनियां जहान के वीडियो देखे जा सकते है भाभियों की रील्स, टुंडी कनिया को आसानी से अपलोड भी किये जा सकते है, यहाँ तक की ऑनलाइन आशिकी भी की जा सकती है) का अब ये रील्स मे मीणाओ की नारियों की चर्चा करने वाला हु क्यूंकि ये ना आज कल दुनियां मे ऐसी छाई हुई है की भारत का नाम इतना ऊंचा हो गया की चीन की दीवार की जगह अब अंतरिक्ष से मीणाओ की लुगाईयो द्वारा बनाई गयी रील्स ज्यादा अच्छे से दिखाई देने लगीं है और उसके साथ अपने समाज का नाम भी दिखने लगा है !

"अब इस इश्क ग्राम सॉरी इंस्टाग्राम नामक सिनेमा है ना जस्ट जोकिंग 😃 सॉरी प्लेटफार्म है ना इसकी जन्म कहा से हुआ ये जान लेते है क्योंकि यहां आधे से ज्यादा लोगो को ये आया कहा से और इसकी लाने का खुरापाती टुंडी कनिया दिखाने वाला ऐप कब पैदा हुआ ?? वैसे तो ये पैदा 2010 में हो गया था ।लेकिन कुछ टेक्निकल टेस्टिंग के दो साल बाद, अप्रैल 2012 में जारी किया गया था, इसके बाद नवंबर 2012 में फीचर-सीमित वेबसाइट इंटरफ़ेस,और विंडोज़ 10 मोबाइल और विंडोज़ 2016 में एप्लिकेशन तैयार किये गए ।"॥

तो ये बात आपके समझ आ गया की ये इसकी उत्पत्ति कैसे हुई नही पढ़ी भी होगी तो आपने काई फर्क पड़े लेकिन पिछले 2 साल से इस इश्कग्राम यानी इंस्टाग्राम ने तबाही मचा रखी है सोशल मिडिया के जगत मे अब क्या बताये आपको, कभी कभी हमारा तो मन करता है की रील्स मे कूद के जान दे दे पर का फ़ायदा वहां भी लोगों को लाइक कमेंट लिखने के आलवा ये फ़िक्र ना रहेंगी की सामने वाले की जान चली गयी है ! एक दो तो कहेंगे और बना ले इंस्टा 🤪

2018 तक तो फिर भी सब ठीक ठाक चाल रहा था फिर आया एक ऐप ठोकमठोक वही अपना टिकटॉक करके हां वही जिसमे उल्टा सीधा पागलपन, चूतियापंती लोगो को सीखा कर अच्छी अच्छी सतवती नारियों को कूल्हे मटकाने पर मजबूर कर दिया और 30 सेकंड के वीडियो में तुम्हे स्वर्ग के आनंद करवा दिए अपने जैसे भाभियों को फॉलो करने वाले लोग लाइक फॉलो करके सुपर स्टार बना देते थे, वो तो मोदी जी
की कृपा भई सो उसको निपटा दिए मतलब बैन करवा दिए !
फिर हुआ कुछ यू की इंस्टाग्राम वाले भैया के दिमाग़ मे ये शॉर्ट
वीडियो वाला कीड़ा घुस गया, उसने अपने ऐप को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए रील्स नाम से एक सेक्शन बना डाला, जिसमे लोग अपनी शॉर्ट वीडियो क्लिप्स डाल सकते थे, अब यही से शुरुआत होती है असली तबाही की, क्यूंकि कोरोना महामारी की वजह से लगा हुआ था लॉकडाउन और लोगों को घर बैठे खा खाकर सूझति थी चूतियापंती अब क्या बोले तो मोदी जी वाले "अच्छे दिन आ गये " खैर लॉकडाउन हुआ खत्म सारे पुरुष वर्ग ने अपने काम धंधे मे फोकस करना शुरू कर दिया, लेकिन कोरोनो काल में कुछ आंटी,भाभियां और छछुंद्रियो को एक भ्रम हो चुका था की वे स्टार बन गई है उनकी भी गलती भी नही है क्योंकि उनके हम जैसे फालतू बैठे लोग फॉलोअर्स बन चुके थे ज़ब भैया ,पापा, हस्बैंड चले जाते काम पर तो आंटिया और आजकल की मॉर्डन जुग की कन्या और भाभियों ने फेमस होने की राह पर चलना स्टार्ट कर दिया !"

अब तो इंस्टाग्राम मे महिलाएं और लड़कियां फेमस होने के
चक्कर मे आधे कपड़े पहन के जिस्म की नुमाइश करके खुद को कटरीना कैफ समझने लगीं है, उन्हें अपने मान मर्यादा का
कोई ख्याल ही नहीं है, मुझे तो शर्म आती ऐसे नारियों पर जो
कुछ पैसे के चक्कर मे खुद को नुमाइश का सामान बनाये
बैठी हैं, मुझे तो समझ नहीं आता की इनके परिवार मे कोई
रोक टोक नहीं करता क्या ऐसी बेशर्मी को लेकर, हद हैं! क्या कहुँ लड़कियां इतनी गंदगी फैला रही हैं ना की छोटे बच्चों को मोबाइल देने मे ड़र लगता हैं की ये सब देखकर क्या सीखेगा!
आजकल एक गाना चाल रहा "पतली कमरिया मोरे" ऐसा लग रहा जैसे पूरा इंस्टाग्राम हिलाकर बाहर निकल आएगी की मॉर्डन जुग की कन्या.... यही नहीं इस गाने पर तो 14-15 साल की बच्चियों पर भारी असर आ गया हैं भाई की कसम लड़के भी लड़किया बने फिर रहे है देश का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है जबरदस्ती अपनी मम्मी को खड़ा कर करके फेमस होने के लिए बेचारी मम्मी की जान ले रही ये नहीं की पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे ले, पढ़ने लिखने की उम्र में इनको डिया के घर ( ससुराल) जाना हैं।।
हद हैँ भाई यहाँ पर मेरा फेवरेट डायलॉग बनता हैँ " जीजी खुदवा दे मोकु काई मतलब" पर दिल देखा बिना माने कोन
खैर हम तो बस इतना चाहते हैं या वीडियो बनाओ रील्स बनाओ खूबसूरत फेमस हो जाओ पर अपनी मान मर्यादा के
साथ,संस्कारो का ख्याल रखते हुए, क्यूंकि एक नारी ही पुरे
परिवार की अच्छे बुरे दोनों की नीव होती हैं, वैसे भी कहा जाता हैँ भारतीय नारी सब पर भारी इसलिए मॉर्डन जुग की कन्याओ पढ़ाई लिखाई करो आई एस वाय एस बनों खुद भी तरक्की करो और देश का गौरव बढ़ाओ बिना रील बनाये ही अच्छे काम करके रियल लाइफ मे फेमस हो तो जाने हम, हैँ की नहीं खैर जाने दो हमें क्या लेना देना हैं, वो तो हम अठाले बैठे रहते है इसलिए दिमाग़ खराब हो रहा था सोचा थोड़ा ज्ञान बाँट दे तो मन को सुकून मिल जाए ।
ज्ञान बहुत हुआ अब मैं चला रील्स देखने कोई भाभी कूल्हे हिला रही होगी ..!!

मिलते है अगली बार ऐसे ही और धमाकेदार टॉपिक के साथ

जयसिंह नारेड़ा

Saturday, November 12, 2022

मेरे गांव का चतर

मेरे गांव का चतर

ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जो हमे संघर्ष की और प्रेरित करती है । टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! गांव की बसावट पहले पहाड़ों के मध्य हुआ हुआ करती थी जो की तीन दिशाओं से घिरा हुआ था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है। गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है। गांव में सभी साधारण परिवार थे कुछेक सक्षम परिवारों को छोड़ कर और उन्ही मे से एक चतर का घर भी था बहुत साधारण और पुराने तरीके से बना हुआ ।

दो गह पाटोड जो की कली से पुती हुई और गोबर से लेपी हुई जो की गांवों में बड़ी आसानी से मिल जाया करती है। चतर के पिताजी बचपन से ही मेहनती रहे है उन्होंने डूंगर से पत्थर खोद कर इन्हे पढ़ाया लिखाया । एक बात तो मैं बताना ही भूल गया चतर और अशोक दो भाई है लेकिन अशोक अधिकतर मामा के यहां रहा था जिसकी वजह से गांव में बहुत कम ही रहा है। जबकि चतर शुरुआती शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई है 8 वी तक की शिक्षा हासिल करने के बाद गांव में 8 वी से बड़ी स्कूल नही होने की वजह से हाई स्कूल पदमपुरा से अपनी शिक्षा जारी रखी और उसके बाद दौसा चला गया। यहां तक का सफर तो एक आसान सा सफर तय किया था । लेकिन ग्रेजुएशन के साथ साथ अपनी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों के लिए जयपुर जाना चतर के लिए सबसे बड़ा मुस्किल काम था क्योंकि उसका परिवार इस खर्चे को वहन कर पाना मुस्किल था क्योंकि परिवार हालत ऐसी नही थी वो इसे जयपुर से अच्छी शिक्षा दिला सके ।

चतर ने इसी वजह से 2 साल अपने बड़े भाई के पास दौसा में ही ग्रेजुएशन करने में निकाल दिया । उसका बड़ा भाई का जीवन भी इसी तरह संघर्ष भरा हुआ था । ऐसा छोटा मोटा कोई नही था जिसे इन्होंने किया नही क्योंकि अपना खर्चा खुद चलाना था । बड़े भाई ने हलवाई के साथ काम करते हुए चतर की शिक्षा दिलाई खुद की शिक्षा को दरकिनार करते हुए चतर को प्रेरित किया ।

उस समय मैं जयपुर ही रहा करता था मैंने चतर को अपने पास बुला लिया हम 4 लोग एक कमरे में रहने लगे वो दौर हमारे लिए काफी अच्छा रहा ।

चतर हमारे साथ रहते हुए काम की तलाश करता था और उसने काम की तलाश करते करते कोचिंग के पर्चे बांटने का काम शुरू कर दिया जिसके लिए उसे 200 रुपए दिन के दिए जाते थे । अब इसका सुबह टोंक फाटक से निकलता और शाम को टोंक फाटक पर ही पर्चे बांटते हुए छिपने लगा रूम पर थका हारा हुआ आता था और कभी कभी तो रात में भी पोस्टर चिपकाने का काम करने लगा था ।
                                             हम तीनो ने बहुत मना किया था की ऐसे मत किया कर लेकिन इसने हिम्मत नही हारी कई बार पुलिस के द्वारा पोस्टर चिपकाने पर पकड़ लिया जाता और पुलिस के द्वारा कुछ रुपए ऐंठने के बाद छोड़ दिया जाता।

कोचिंग वाले ने इसे पैंपलेट बांटने के साथ साथ कोचिंग भी फ्री दी थी जिस से इसे अपनी पढ़ाई जारी करने का अवसर मिल गया । 4 जने रहने की वजह से मकान मालिक ने हमारा रूम खाली करवा दिया फिर हम आपस बिछड़ गए ।

एक वक्त ऐसा भी आया की चतर के पास रहने के लिए कमरा भी नही था वो किसी दूसरे के कमरे पर रुका रहा आखिर कितने दिन गुजार सकता था इसी के चलते काम मिल ही गया अब चतर को एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड की जॉब मिल चुकी थी । कहते है ना जब ईश्वर ने जन्म दिया है तो रहने के लिए छत भी देता है तो अब वो छत चतर के लिए एटीएम का कमरा बन चुका था एटीएम में सिक्योरिटी गार्ड के रहने के लिए छोटी सी जगह बनी हुई थी जिसमे सिर्फ लेट लायक जगह थी जो की चतर को सोने के लिए पर्याप्त थी। सुबह चतर कोचिंग के पर्चे बांटता और रात बसेरा एटीएम था ही नहाने के लिए सुलभ शौचालय का सहारा लेने लगा यही कुछ दिन की दिनचर्या बन चुकी थी लेकिन किस्मत से जल्द ही चतर ने रूम देख लिया क्योंकि उसकी पढ़ाई बिना कमरे के सुचारू रूप से नही चल पा रही थी ।।

चतर ने कोचिंग के पास ही रूम ले लिया क्योंकि इसे यहां से नजदीक भी था और कोचिंग करने का टाइम भी मिल जाता था । चतर को परिवार से आर्थिक सहायता नही मिल पाई क्योंकि परिवार भी इस हालत में नही था की चाहते हुए भी इसे शिक्षा दिला पाए ।

चतर के पिताजी पत्थर खोदने का काम छोड़ कर दौसा में मूंगफली बेचने लगे चतर की मां भी मजदूरी करने लगी लेकिन चतर ने फिर उनसे पैसा नही मांगा उसे खुद पर भरोसा होने लगा ।
चतर ने पैसे की तंगी को कम करने के लिए केटरिंग बॉय का काम भी किया इस काम से पेट भर जाता था और कुछ पैसे भी मिल जाता था। ऐसे समय अकसर सभी की हिम्मत जबाव दे जाती है लेकिन चतर ने अपनी हालातो को नजरंदाज करते हुए दिन रात मेहनत की ।

कहते है ना की किए की मजदूरी तो भगवान भी नही रखता और हुआ भी यही चतर का ग्रुप डी 2014 में सिलेक्शन विजयवाड़ा में हो गया यही से इसकी किस्मत ने पलटना शुरू कर दिया इस सिलेक्शन से मां बाप की आंखों में आशा की किरण छा गई । और अब डिपार्टमेंटली एग्जाम देकर गार्ड के पद पर पहुंच गया । जिन हालातो से चतर गुजरा है उन हालातो में अकसर हिम्मत टूट जाया करती है या फिर कमाई की आदत पड़ जाने से शिक्षा से किनारा हो जाता है लेकिन चतर अपने लक्ष्य से बिलकुल नहीं भटका और आज अपने परिवार के लिए आय का एक स्त्रोत बन कर खड़ा हो गया है। अब तो कद्र वे लोग भी करने लगे है जो लोग पहले किनारा कर चुके थे। वही अब तो कर्मचारी ग्रुप में भी जगह मिलने लगी है ।

इसी के साथ कहानी का अंत करते है ।।

✍️✍️ जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...