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मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार

दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता है। जिसे कुछ वर्ष पूर्व बाहियाद कहा जाता था । ये शब्द पचवारा राजौटी क्षेत्र की बात नही कर रहा हु। लेकिन हमारे क्षेत्र में मीणा गीत को बाहियाद यानी की जिसे बदमाश लोगो की पहचान के रूप में जाना जाता था। जिन्हे ट्रैक्टर –जीप अथवा खुले में चलाने वाले को बदमाश समझा जाता था।

मीना गीत को #मां_बाप के सामने चलाना तो ऐसे था जैसे की बहुत गिनोना पाप कर दिया हो । हर किसी की हिम्मत नही होती थी जो मां बाप के सामने गीत चला दे। बाप उठाकर जूता मारने से नही चुकता यहा तक की गांव में बड़े बुजुर्ग या अपने से बड़े आदमी के सामने गीत सुनने में झिझक होती थी। 

इस टाइम कन्हैया दंगल,पद दंगल और सुड्डा दंगल को ही संस्कृति के रूप में देखा जाता था लेकिन पिछले 10 साल से बहुत बदलाव आया है आजकल मीना गीत को संस्कृति बनाने का ट्रेंड सा चलने लगा है। 

अब जरूरत से ज्यादा स्याने लोग कहेंगे पहले विष्णु ने वाहियाद या सेक्सी गीत गाए है तब तुम लोग कुछ क्यों नही कहते थे तो स्यानो पहली बात तो उस टाइम फेसबुक नही थी ना ये एंड्रॉयड फोन थे ना ही तुम्हारे जैसे वकील थे उस टाइम गीत सुनने के लिए केसिट हुआ करती थी और सुनने के लिए रेडियो हुआ करता था जो इतना वायरल होना संभव नहीं था और विष्णु ने भी उसमे सुधार कर लिया था उसके बाद से विष्णु ने अपनी एक अलग पहचान बना ली । 

अब मूसड चंद कहेंगे हनी सिंह के गीत तो सुनते अरे झंडू जब सुधर खुद के नही दूसरो को कहा से सुधारेंगे और हनी सिंह को भी थप्पड़ पड़ा था उसके बाद तो नही गाए ना उसने गान में दम है तो बंद करवा लो

अब कहेंगे गुर्जर तो रसियो में चड्डी उतार देते है तो रामधन गुर्जर को कलेक्टर नीरज के पवन ने मुर्गा बना कर ऐसा मारा था जो आज तक नजर नही आ रहा है तो अति का अंत सबका आता है। लेकिन सब के सफाई देने वाले सफाई कर्मी नही थे। 

कहते है सिक्का खुद का खोटा हो तो दूसरो से बोलना मूर्खता है । अब झंडू ये भी कहेंगे समाज का है गरीब है अरे तुम्हे क्या लगता है बस यही गरीब है बाकी सब तो अंबानी है ना । और 50 हजार महीने के कमाने वाला गरीब है तो फिर अमीर की परिभाषा क्या है ?? बाकी सारे सिंगर क्या अडानी के खानदान से है ??

गीतों का व्यापार करना गलत भी नहीं है और अपने व्यापार को फैलाने के लिए व्यापारी का नीचता पर उतरना भी ठीक है लेकिन शुरुआत अपनी घर की बहन बेटियों से करे तो व्यापार ज्यादा बढ़ेगा 🤪🤪

छिंगरो के अपने अपने चेले चमांटें होते है वे चेले भी व्यापारी से मिलकर छोटी मोटी ठेली लगाते है अपनी ठेली चलाने के लिए व्यापारी के गुणगान करने में कैसे चुकेंगे अन्यथा ठेली बंद नही हो जायेगी ?? 
आखिर ठेली पर सामान तो वही से आता है ना 😛😁

संस्कृति को व्यापार कहना गलत नही है।

✍️✍️जयसिंह नारेड़ा

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