Sunday, June 27, 2021

राजेश पायलट ने किरोड़ी लाल को हराया

राजेश पायलट ने किरोड़ी लाल को हराया

चुनाव का मैदान भी कुश्ती के दंगल की तरह होता है दांव पेंच तो दोनों ही लगाते है लेकिन एक की कुश्ती ने हार होती है। 
ठीक उसी प्रकार चुनाव में भी यही हाल होता है #राजेश_पायलट गुर्जर ही नही सर्व समाज के चहेते नेता थे और वे कांग्रेस जैसी दिग्गज पार्टी के नेता थे । वो समय ही कांग्रेस का था उस समय बीजेपी को वोट कोई नही देता था यहाँ तक कि बीजेपी का टिकट भी कोई लाना नही चाहता था ऐसा तो बहुत बार हुआ था जब बीजेपी को कोई टिकट लेने वाला नही मिला । राजस्थान तो कांग्रेस मय था ही !!
                            
दौसा का चुनावी आखाड़ा गुर्जर मीणा बाहुल्य था इसमे राजेश पायलट जो पहले से ही लोगो के चहेते बन चुके थे बने भी क्यो नही आखिर वे सर्व समाज के लिए तत्पर रहते थे दीन हिनो की आवाज बनते थे और दूसरी तरफ वे कांग्रेस के बड़े नेता थे उस समय कांग्रेस का एक तरफा राज हुआ करता था यू कह सकते है कांग्रेस की आंधी थी।
                    
        ऐसे में दौसा से बीजेपी ने किरोड़ी लाल को मोहरा बना कर मैदान में उतार दिया डॉ किरोड़ी लाल के लिए ये अपना ग्रह जिला था लेकिन बीजेपी को वोट मिल पाना बड़ा कठिन था क्योंकि बीजेपी से हर समाज नफरत करता था कोई बीजेपी को वोट देना नही चाहता था ऐसे में राजेश पायलट के सामने लड़ना भी एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि राजेश पायलट यहां के दिग्गज नेता थे

हुआ भी कुछ ऐसा ही डॉ किरोड़ी लाल चुनाव लड़े भी लेकिन बीजेपी को समर्थन नही मिलने से वे चुनाव हार गए लेकिन अपनी छाप छोड़ गए 

डॉ साहब ने राजनीतिक जीवन मे जीत से ज्यादा हार का सामना किया है लेकिन कभी जनता से दूरी नही बनाई वे इसी बजह से आज इस दौर के एक बहुत बड़े दिग्गज नेता है आज वे अच्छे पद पर जगह नही बना पाए लेकिन जनता के दिलो में आज भी किरोड़ी लाल धड़कता है। 

समाज चाहे कोई भी हो किरोड़ी लाल ने हर वक्त साथ दिया है उन्होंने हर समाज के लिए जन आंदोलन किये है वे कभी भी जातिवाद नही करते है लेकिन समाज कंटको यानी असामाजिक तत्वों ने और मीडिया ने उन पर जातिवाद का धब्बा लगा दिया ।

                                 किरोड़ी लाल के बंगले पर कभी भी जा कर देख सकते है जितनी भीड़ मुख्यमंत्री आवास पर देखने को नही मिलेगी उससे कही ज्यादा भीड़ किरोड़ी लाल के बंगले पर हमेशा रहती है और उस भीड़ में हर समाज का चेहरा नजर आएगा ।

डॉ साहब को कभी पार्टी ने तबज्जो नही दी लेकिन जनता ने उन्हें अकेला नही छोड़ा इसी की बदौलत है की किरोड़ी लाल कुछ नही होने के बावजूद भी सरकार से भीड़ जाते है और उनकी समस्याओं को दूर करके ही दम लेते है । 
          जनता के लिए 24*7 खड़े रहने वाले नेता है तो वो है किरोड़ी लाल

लेखक
जयसिंह नारेङा

Sunday, June 20, 2021

#फादर्स_डे_या_दिखावा

    #फादर्स_डे_या_दिखावा

आज सभी फेसबुक के दिखावटी प्राणी " फादर्स डे" मना रहे है। मनाना भी चाहिए लेकिन एक ही दिन क्यो ?? हर रोज क्यो नही ??

आज आभासी दुनिया के आभासी प्राणी फेसबुक पर जमकर बधाई दे रहे है क्या बाकई आज बाप के लिए कुछ स्पेशल किया या फिर उन्होंने वास्तविक रूप से बाप को नमस्कार भी किया लगभग किसी ने नही.....
खैर छोड़िये जो आप फेसबुक पर पोस्ट डालकर बाप प्रति प्यार जता रहे है वो उन्हें दिखाया या फिर आपके पिताजी फेसबुक पर आपकी प्रतिक्रिया देख पा रहे है शायद ये भी नही ......फिर ये दिखावा क्यो जब बाप इन सब आडम्बरो को देख ही नही पा रहा हो ।।
                                                आज भी बाप के लिए तो वही आम दिन है जो हर रोज हुआ करता था ।

जबकि माँ बाप के लिए तो बेटा बेटी हर रोज स्पेशल होता है वो अलग बात है कि छोटी मोटी लड़ाई होती रहती है!

बचपन से लेकर आजतक हर दिन, हर घण्टे, हर मिनट और हर सेकेण्ड जो भी हमने सांसे गिनी है, वो सब पापा की बदौलत है। हम और हमारा अस्तित्व तो सिर्फ उनकी बदौलत, हमारी एक पहचान है यहां तक कि सर नेम भी हमारा उनकी बदौलत है।

माँ हमे जन्म देती है लेकिन माँ के साथ साथ हमारा भरण पोषण करने वाला और कोई नही हमारा बाप ही होता है परिवार के वजन को अपने सर पर लेकर हमे किसी चीज की कमी होने देता । परिवार रूपी बगिया के माली हमारे पिता होते हैं, जो इस बगिया की देखभाल पुरे तन मन धन से करते हैं वो भी निःस्वार्थ।

एक ऐसे इंसान जो सारी जिंदगी सिर्फ हमारे लिए मेहनत
करते हैं, पैसे कमाते है, हमारे और हमारे परिवार के सपनो को पूरा करने में वो कभी नहीं थकते, वो पिता होते हैं।

माँ के बाद जो हमारे दूसरे भगवान होते हैं, जिनकी वजह से पूरे हमारे अरमान होते हैं, वो पिता होते हैं।

लाखों कष्ट सहकर उफ़्फ़ भी नहीं करते, और हमारी छोटी सी खरोंच पर भी परेशान हो जाने, पिता होते हैं।
खुद तकलीफ में हों लेकिन, हमारे आँखों को देखकर हमारे मन की आवाज सुनने वाले, पिता होते हैं।

हमारी ख़ुशी में अपनी खुशी ढूंढने वाले सिर्फ और सिर्फ हमारे पिता होते हैं। पर आज अफ़सोस इस बात का है कि वो बाग जिसे कभी किसी पिता ने बसाया था, उन छोटे छोटे नाजुक से पौधों  को जिसने पेड़ बनाया था, उसी वृक्ष के छाँव की उन्हें जब जरूरत होती है, तो न जाने कहाँ से उस विशाल वृक्ष के सारे पत्ते ये कहकर झड़ जाते हैं कि अब तो पतझड़ का मौसम है, आपको
किसी और के बगीचे में चले जाना चाहिए। कितना दुःखी
होता होगा वो माली, जिसने खून पसीने से सींच कर एक छोटे पौधे से इतना विशाल वृक्ष बनाया, आज वही उन्हें छाँव भी नहीं दे पा रहा, उनके दुःख की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

लेखक

जयसिंह नारेङा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...