Saturday, May 16, 2020

मेरा गांव टोड़ी खोहर्रा एक परिचय

मेरा गांव #टोड़ी_खोहर्रा एक #परिचय

टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! दुनिया भर जितने भी नारेड़ा गोत्र के लोग बसे हुए है उन सबका निकास इसी गांव से माना जाता है!

गांव के आस-पास के पांचों गांव नारेड़ाओ के है लेकिन केवल नारेड़ाओ का कहना मैं ठीक नही

समझूंगा क्योकि इस गांव में नारेड़ाओ के अलावा दमाच्या,जारेड़ा और जोरवाल के साथ साथ अन्य गोत्र भी मिल जाएंगे | कुछेक जातियों को छोड़ कर गांव में सभी जातियां मिल जाएगी | इस बसावट से पूर्व गांव के डूंगर के अंदर यानी तीन दिशाओं से घिरे डूंगर के मध्य रहा करता था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है।

गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है।

गांव में हासिल माता का प्राचीन मंदिर है जिसे नारेड़ाओ की कुल देवी माना जाता है इसी के साथ साथ नाहरसिंह बाबा का प्राचीन मंदिर है ।

ऐसा माना जाता है कि नारेड़ा गोत्र से पहले इनका गोत्र सिसोदिया (सिसोड़या) था लेकिन कुल देवता नाहरसिंह की बजह से इनका गोत्र बदल कर नारेड़ा हो गया है नारेड़ा गोत्र का इतिहास मैंने दूसरी कहानी में लिखा हुआ है इसलिए इसमे मैं इस बारे में बात नही करूँगा।

नाहरसिंह बाबा का स्थान यह स्थान नारेड़ा गोत्र के कूल देव की बजह से फेमस है यह डूंगर की तलहटियों में अपनी छाप छोड़ता है।कूल देव होने की बजह से गांव के लोगो की आस्था इस पर झलकती है।

हासिल माता का स्थान एक छोटी डूंगरी की छोटी पर बना हुआ है हालांकि अब इसे तोड़ कर नया बनाया जा रहा है यह स्थान गांव का सबसे प्राचीन स्थान है। यह नारेड़ाओ की कुल देवी मानी जाती है।

संत बाबा स्थान किसी जन्नत से कम नही लगता जब बरसात हो जाती है चारो तरफ हरा भरा होने के साथ साथ उसमें से झरने गिरते है मानो जैसे प्रकति ने स्वर्ग यही बनाया हो

साध बाबा का स्थान करौली जिले के सबसे बड़े स्थानों में शुमार है यहां कुंड और हरा भरा घास का मैदान अपने आप मे शोभा बढ़ाता है

गांव में मिट्टी का किला भी अपनी शान बनाता दिखाई देता है ऐसा माना जाता है की राजाओं की लड़ाई में तोप दागे जाने की बावजूद यह किला टस से मस नही हुआ लेकिन इस समय इसकी हालात जर्जर हो चुकी है।

गांव के साथ साथ पांचों गांवो में धूम्रपान लगभग पूरी तरह से बंद है इसमे महत्वपूर्ण भूमिका में साध बाबा का योगदान माना जाता है क्योंकि गांव के अधिकतर लोग इनके अनुयायी होने के कारण इन सबसे परे रहते है। हालांकि कुछ लोग आज भी हुक्का रखते है कुछेक नवयुवक भी धूम्रपान में अग्रणी हो सकते है|

गांव में #धौक के पेड़ को #धराणी माना जाता है इसकी बजह से काटना वर्जित है इसे काटने पर दंड भी रखा गया है इसके सुखी लकड़ी को काम में ले सकते है हरे पेड़ को नही काट सकते।
अपवाद फिर भी इसे काटने से नही चूकते है।

गांव का कोई खास खेल तो नही है लेकिन गायन शैली में गांव न अपनी खास पहचान बनाई हुई है गांव ने #कन्हैया दंगल में अपनी छाप छोड़कर बड़ी बड़ी पार्टीयो से अपना लोहा मनवाया है कन्हैया के अलावा #सुड्डा, #पद और #कीर्तन भी अपनी शैली में प्रस्तुति दे चुके है लेकिन खास पहचान नही मिलने के कारण कन्हैया तक सीमित रह गए।

आजकल गांव अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा है पहले गांव में ट्रेक्टर संघ,कुली संघ ,अध्यापक संघ के साथ गांव भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था जो अब नगण्य हो चुका है।
इस पर ज्यादा बुद्धिजीवियों का कहना ये भी है कि इससे पैसे की बर्बादी होती है जबकि उन्हें ये बात समझ नही आती है कि पैसे की बर्वादी को ध्यान में ना रखकर संस्कृति और भाईचारे को ध्यान में रखना भी जरूरी है इनसे गांव का भाईचारा बढ़ता है।

गांव के पंच पटेलों की बैठने की जगह #थाई(अथाई) मुख्य रूप से 2 थाई हुआ करती थी लेकिन आज दरबाजा में उसकी जगह चाय की थडियों ने ले ली है जहां पर न्याय के बजाए तास खेलने या सट्टा लगाने में समय बिताते हैं ये सभी के लिए नही कहा है कुछेक लोगो के लिए कहा गया है।

गांव में अब कर्मचारियों का अलग से संघ बना है जिनका मुख्य उद्देश्य गांव को नई दिशा देना है लेकिन अभी उन्हें ही दिशा नही मिल पाई है वे खुद अभी तक दिशाहीन हो रहे है स्कूल में पैसे खर्च करने से उनकी दुकान चल रही है खैर में इस पर नही बोलूंगा।

गांव में प्रतिभायो की कोई कमी नही है जिसका प्रमाण आपको नाहरसिंह बाबा पर रखी #ट्रॉफियों को देख कर मिल जाएगा।

गांव में शिक्षा के लिए 12 वी तक कि स्कूल है जिसकी हालत आज से 20 साल पहले जैसी थी वैसी ही अब है लेकिन सुधार नही हो पाया है।

गांव के सारे मार्ग लगभग ठीकठाक है लेकिन उनमें आज कीचड़ मिल जाना कोई नई बात नही है।
गांव में बाजार ना मात्र का है लेकिन जरूरत का सामान लगभग सभी मिल जाता है।

गांव में घुसते ही धाबोली यानी यज्ञशाला है जिसे 20 साल बाद अब सजाया गया है यह पांचों गांवो की मानी जाती है इसमे युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।

गांव की एकता तब नजर आती है जब सावर्जनिक रूप कोई आयोजन किया जाता है इसमे बच्चे से बड़े बुजुर्ग के साथ साथ महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है।इसी एकता को कायम रखने के लिए कन्हैया दंगल अहम भूमिका निभाता है।

✍️✍️✍️ जयसिंह नारेङा

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