Friday, October 7, 2016

राम राज का सच

-:-राम राज का सच-:--
काफी दिनों से ये पोस्ट लिखने की सोच रहा था!यहाँ तक की कुछ तो लिख भी रखी थी लेकिन पूरी नही कर पाया कोई ना कोई काम आ ही जाता था!
आज थोड़ा वक्त मिला तो इसे पूरा कर दिया जिसे आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हु!
बुद्दिजीवी साथियो को ये पोस्ट काफी अच्छी लगेगी और रोचक जानकारी भी मिलेगी ये पोस्ट तथ्यात्मक जानकारी पर आधारित है!
आपका ज्यादा समय खराब नही करते हुए सीधे पोस्ट पर आता हूं

राम राज का सच:--
                              आर के आकोदिया जी की पुस्तक से साभार है! ये मैंने आर के आकोदिया जी की पुस्तक से लिख रहा हु!

हिन्दू धर्म शास्त्रों की काल गणना के अनुसार चार युग -सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग और कलियुग माने गए है!
राम के जन्म के बारे और जन्म लेने के कारणों के बारे में कई ऋषियों ने लिखा लेकिन वाल्मीकीय रामायण को अधिक महत्व प्राप्त है क्योंकि वाल्मीकि राम के समकालीन थे!
तुलसीदास का जन्म 1554 में हुआ और उस समय देश मुगलो का गुलाम था इर उन्होंने रामचरित मानस की रचना की जो उच्च वर्ग में लोकप्रिय है!
राम ने मनुष्य जन्म क्यों लिया रामचरित मानस के बालकाण्ड के इस दोहे से प्रकट होता है "बिप्र धेनु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार! निज इच्छा निर्मित तनु माया गुण गो पार"!!
राम को ब्राह्मण राजा नही बनना देना चाहते थे इस दोहे से पता चलता है"बिपति हमारी बिलोकि बड़ी मातु करिअ सोई आजु!रामु जाहि बन राजू तजि होइ सकल सुरकाजू!
"सुनी सुर विनय ठाढ़ी पछितानि,भइउँ सरोज बिपिन हिमराती!देखि देव पुनि कहहि निहोरी,मातु तोहि नही थोरिउ खोरी!!"
ब्राह्मणों ने इन दोहो में सरस्वती से विनती की ह की राम राज को त्याग कर देव यानि ब्राह्मण की रक्षा करे!

अब वस्ल्मिकी रामायण में सरस्वती का कही उल्लेख ही नही है  केवल ब्राह्मण और ऋषि ब्रह्मा के पास गए का ही उल्लेख है!
वाल्मीकि रामायण में राम के जन्म को लेकर भी विचित्र विवरण है! राजा दशरथ को गुरु वशिष्ठ एवं अन्य देवो ने सलाह दी की श्रंग ऋषि को अश्वमेघ यज्ञ के लिए आमंत्रित किया जाये!
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड सर्ग-9
काश्यपस्य च पुत्रोअस्ति विभाण्डक इचित श्रुत:,ऋष्यश्रंग इति ख्यातस्तस्य पुत्रो भविष्यत!
स वने नित्यसंवर्द्धो मुनिर्वनचर सदा,नान्यम जानाति विप्रेन्द्रो नित्यं पित्रनुवर्तनात!!
द्वैविध्यम ब्रह्मचर्यस्य भविष्यति महात्मन,लोकेषु प्रथित राजन विप्रेश्च कथित सदा!!
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि श्रंग ने यज्ञ करके उसमें से आदमी प्रकट किया और उस आदमी ने दशरथ को खीर दी और इसे सब रानियों के साथ बाँट कर खाने को कहा और राजा ने ऐसा ही किया जिससे रानियों के गर्व धारण हो गया!
एक और विचारणीय प्रश्न उतपन्न होता है जैसा की बालकाण्ड के सर्ग-17 के श्लोक नम्बर 19-20 से यह पता चलता है कि जिस देवता का जैसा रूप,वेष और पराक्रम था उससे उसी के समान पृथक पृथक पुत्र उत्तपन्न हुए!सभी देव व् ऋषि मानव प्राणी थे जिनसे अवैध संबंध बनाए वे भी अबोध बलाये व् महिलाएं थी फिर बन्दर,भालू व् लंगूर के रूप में उन्हें क्यों दर्शाया गया है? भालू,बन्दर और लँगूर में भाषा ज्ञान नही होता है वार्तालाप नही कर पाते है फिर उनसे राम सीता व् रावण ने कैसे बात की होगी? उनकी बोलचाल का माध्यम क्या रहा होगा? यह भी विचार का विषय है!
वाल्मीकी रामायण अयोध्या कांड सर्ग-55
"क्रोशमात्रम तथो गत्वा भ्रातरौ रामलक्षमनो,बहनु मेध्यान मृगान हत्वा चेरतुर्युमुनावने!"
अर्थात- एक कोस की यात्रा करके दोनों भाई राम और लक्ष्मण मार्ग में मिले हुए हिंसक पशुओं का वध करते हुए यमुना नदी पर वन में विचरने लगे!
वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड सर्ग-10
ते चार्चा दण्ड करन्ये मुनयः संषितवृता
माँ सीते स्वयमागम्य शर्मयम शरणम गताः!!
मया चैतद्वच श्रुत्वा कात्स्नयें परिपालनम
ऋषिनाम दंडकारण्ये सनश्रुतं जनकात्मजे,
संश्रुत्य च न शक्ष्यामि जीवमान प्रतिश्रवम!!
मुनिनामन्यथा कर्तु सत्यमिष्टम ही में सदा!
अप्यहं जीवितं जिव्हां त्वाम् वा सीते सलक्षमाणं!!
न तू प्रतिज्ञा संश्रुत्य ब्रह्मनोभ्यो विशेषतः!

भावार्थ:- सीते दण्डकारण्य में रहकर कठोर व्रत का पालन करने वाले मुनि बहुत दुखी है इसलिए मुझे शरणागतवत्सल जानकार वे मेरे पास आये है!ऋषियों की यह बात सुनकर मैंने पूर्ण रूप से उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा की है!
मुनियों के सामने यह प्रतिज्ञा करके अब जीते जी इसे मिथ्या नही कर सकूंगा
"सीते मै अपने प्राण छोड़ सकता हु,तुम्हारा और लक्ष्मण का भी त्याग कर सकता हु किंतु अपनी प्रतिज्ञा को विशेषतः ब्राह्मणों के लिए की गयी प्रतिज्ञा को मै कदापि नही तोड़ सकता!!18 1/2)

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