Friday, February 2, 2024

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार

दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता है। जिसे कुछ वर्ष पूर्व बाहियाद कहा जाता था । ये शब्द पचवारा राजौटी क्षेत्र की बात नही कर रहा हु। लेकिन हमारे क्षेत्र में मीणा गीत को बाहियाद यानी की जिसे बदमाश लोगो की पहचान के रूप में जाना जाता था। जिन्हे ट्रैक्टर –जीप अथवा खुले में चलाने वाले को बदमाश समझा जाता था।

मीना गीत को #मां_बाप के सामने चलाना तो ऐसे था जैसे की बहुत गिनोना पाप कर दिया हो । हर किसी की हिम्मत नही होती थी जो मां बाप के सामने गीत चला दे। बाप उठाकर जूता मारने से नही चुकता यहा तक की गांव में बड़े बुजुर्ग या अपने से बड़े आदमी के सामने गीत सुनने में झिझक होती थी। 

इस टाइम कन्हैया दंगल,पद दंगल और सुड्डा दंगल को ही संस्कृति के रूप में देखा जाता था लेकिन पिछले 10 साल से बहुत बदलाव आया है आजकल मीना गीत को संस्कृति बनाने का ट्रेंड सा चलने लगा है। 

अब जरूरत से ज्यादा स्याने लोग कहेंगे पहले विष्णु ने वाहियाद या सेक्सी गीत गाए है तब तुम लोग कुछ क्यों नही कहते थे तो स्यानो पहली बात तो उस टाइम फेसबुक नही थी ना ये एंड्रॉयड फोन थे ना ही तुम्हारे जैसे वकील थे उस टाइम गीत सुनने के लिए केसिट हुआ करती थी और सुनने के लिए रेडियो हुआ करता था जो इतना वायरल होना संभव नहीं था और विष्णु ने भी उसमे सुधार कर लिया था उसके बाद से विष्णु ने अपनी एक अलग पहचान बना ली । 

अब मूसड चंद कहेंगे हनी सिंह के गीत तो सुनते अरे झंडू जब सुधर खुद के नही दूसरो को कहा से सुधारेंगे और हनी सिंह को भी थप्पड़ पड़ा था उसके बाद तो नही गाए ना उसने गान में दम है तो बंद करवा लो

अब कहेंगे गुर्जर तो रसियो में चड्डी उतार देते है तो रामधन गुर्जर को कलेक्टर नीरज के पवन ने मुर्गा बना कर ऐसा मारा था जो आज तक नजर नही आ रहा है तो अति का अंत सबका आता है। लेकिन सब के सफाई देने वाले सफाई कर्मी नही थे। 

कहते है सिक्का खुद का खोटा हो तो दूसरो से बोलना मूर्खता है । अब झंडू ये भी कहेंगे समाज का है गरीब है अरे तुम्हे क्या लगता है बस यही गरीब है बाकी सब तो अंबानी है ना । और 50 हजार महीने के कमाने वाला गरीब है तो फिर अमीर की परिभाषा क्या है ?? बाकी सारे सिंगर क्या अडानी के खानदान से है ??

गीतों का व्यापार करना गलत भी नहीं है और अपने व्यापार को फैलाने के लिए व्यापारी का नीचता पर उतरना भी ठीक है लेकिन शुरुआत अपनी घर की बहन बेटियों से करे तो व्यापार ज्यादा बढ़ेगा 🤪🤪

छिंगरो के अपने अपने चेले चमांटें होते है वे चेले भी व्यापारी से मिलकर छोटी मोटी ठेली लगाते है अपनी ठेली चलाने के लिए व्यापारी के गुणगान करने में कैसे चुकेंगे अन्यथा ठेली बंद नही हो जायेगी ?? 
आखिर ठेली पर सामान तो वही से आता है ना 😛😁

संस्कृति को व्यापार कहना गलत नही है।

✍️✍️जयसिंह नारेड़ा

Saturday, January 13, 2024

बचपन की मकर सक्रांति

बचपन की मकर संक्रांति ........!!
समय के साथ सब बदल गए,लेकिन नहीं बदली है तो वो गुड़ और तिल की गजक की खुशबू......ठंड के मौसम के साथ ही दस्तक देती है बाजारों में तिल और गुड़ की सजावट.....और उसके साथ ही आसमान में पक्षियों से भी ज्यादा नजर आने लगती हैं,रंग बिरंगी पतंग.....जो चारो आसमान को घेरे रहती है....ऐसा लगता है जैसे आसमान में रंगो की चादर बिछाई गई हो....

विभिन्न रंगों एवम् विभिन्न आकारों की ये पतंगे जब आसमान में एक साथ उड़ती हैं तो विभिन्नता में एकता का बोध कराती हैं ।

संक्रांत वाले दिन सुबह सुबह जीजी(मम्मी) घरों के आगे की झाड़ू लगाया करती थी सड़को को साफ करना परंपरा का हिस्सा रहा है...अच्छा सबको याद तो होगा ही अपने गांवो में एक कहावत काफी प्रचलत थी आपकी तरफ थी या भी हमारी तरफ तो थी ऐसा माना जाता था की संक्रांत वाले दिन जो नही नहाता है वो अगले जन्म में गधा बनता है इसका ऐसा खौफ बना दिया जाता है की न चाहते हुए भी उस दिन सभी नहा ही लेते है....कुछ आस्था को माने वाले नहाने के लिए मोराकुंड जाते थे कुछ अन्य जगह भी जाते थे..

वो संक्रांत वाले दिन सुबह सुबह नहा के सबका एक साथ बैठ कर आग पर चल पीड़ा करना और फिर तिलकुटे और विभिन्न प्रकार के भोजन दाल-बाटी,चूरमा, खीर-पुआ तो कही कही कड़ी बाजरा का अन्नुकूट और शाम को गर्मा गर्म पकोड़ी का स्वाद एक अलग ही एहसास दिलाता था।

बचपन के साथ ये बातें भी अब पुरानी लगती हैं।आज के बच्चों को ना दही चूरमा भाता है और ना तिलकुटे की गजक की खुशबू और मिठास ही इन्हे लुभाती है।

मुझे याद है जब हम जयपुर रहते थे तब तो महीने पहले से ही पतंग उड़ाना शुरू कर देते थे और जैसे जैसे संक्रांत नजदीक आती जाती माहौल बहुत ज्यादा बढ़ जाया करता था छत पर डीजे लगा कर नाचना और बस शोर शराबा करने में काफी मजा आता था। ( हमारे गांव में पतंग रक्षाबंधन पर उड़ाई जाती है) रात को चिमनी जलाकर आसमान में छोड़ना वाकई अलग ही लेवल का अहसास होता था।

छोटे छोटे दुकान वालों की भी खूब चांदी रहती थी,वे रंग बिरंगीपतंग सजा कर अपनी दुकान में सबसे आगे लगा देते थे,आते जाते नजर उस पे पड़ती और बच्चो का मन उन्हें लेने के लिए भटक जाया करता था ।

अब के शहरी जीवन में ये चंचलता विलुप्त होती जा रही है,बच्चे खुद मे,मोबाइल में और टीवी की दुनिया में सिमटते जा रहे हैं।अब तो त्योहार आते हैं और चले जाते हैं । बच्चों को भनक भी नहीं लगती.....क्योंकि उन्हें अब मोबाइल से ही फुर्सत नही मिलती उन खुशियों के लिए टाइम ही नही निकाल पाते है अब उन्हें बचपन जीने की आदत ही नही रही है....पहले त्योहारों पर दोस्तो का इंतजार हुआ करता की गांव के दोस्त जो बाहर रहते है वे आयेंगे लेकिन अब वो भी खत्म हो गया है।

त्यौहार का सबसे ज्यादा इंतजार मां बाप करते है की उनके बच्चे आयेंगे परिवार में चहल पहल होगी हंसी मजाक होगी एक दूसरे के साथ उठने बैठने के साथ साथ सुख दुख के पल बांटने का मौका मिलेगा क्योंकि बच्चो के बहाने ही मां बाप भी अच्छे पकवान बना कर खा लेते है थोड़ी खुशियों में शामिल होने का मौका मिल जाता है बिना बच्चो के मां बाप के लिए वो त्योंहार एक दम सुने हो गए है ...

अब के बच्चे हाथों से मोबाइल छोड़ना ही नही चाहते नोकरी से छुट्टी नही मिल पाती है...वो जिम्मेदारियों तले अपने बच्चन के हर उस खेल का और त्योहारों की खुशियों गला घोट कर रह जाते ह
ज़िंदगी में बड़े बड़े सपने देखने के चक्कर में बचपन को भूल गए है...!!

मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनाएं 🙏🙏
जयसिंह नारेड़ा 

Thursday, January 11, 2024

किसान कर्ज

किसान कर्ज
किसान कर्ज की प्रवृति रोकनी चाहिए ....हां बिलकुल रोकनी चाहिए इस से आदत लग गई है और किसान बिगड़ गए है। उन्हे लोन लेने की आदत पड़ चुकी है और इस प्रवृति के आदि हो चुके है। बिलकुल अब इस पर विराम लगना ही चाहिए।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जिस किसान परिवार से आप निकल कर आगे बढ़े हो सुना है आपकी माताजी ने भी जेवर गिरवी रख कर आपको बीकानेर पढ़ने के लिए भेजा था क्योंकि उनके हालात ऐसे नही थे की आपको उच्च शिक्षा दे सके....।।
                                                         ठीक ऐसे ही हालात हर किसान के होते है साहब कल तक आप किसानों की आवाज हुआ करते थे किसानों के हक के लिए आंदोलन किया करते थे कर्जमाफी के लिए धरना प्रदर्शन किया करते थे.....यानी वो सिर्फ छलावा मात्र था ।
                    यानी आपने भी सिद्ध कर दिया की सत्ता में आते ही आप उन सब परस्तिथियो को भूल गए जिन परस्तिथियों के लिए सड़कों पर उतरा करते थे। 

हर किसान के पास इतने पैसे नही होते है की अपने बच्चो को उच्चतम शिक्षा दे सके उन्हें बेहतर शिक्षा के लिए बाहर भेज सके...अरे किसान की बेटी की तो शादी भी साहब कर्जे से होती है वो कर्जा ले कर अपनी बच्ची को अच्छे घर में रिश्ता करना चाहता है हर वो खुशी देना चाहता है जो उसकी बेटी के लिए जरूरत है ताकि कल को कोई ये ना कहे की बाप ने बेटी को कुछ नही दिया। अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देकर आपकी ही तरह डॉक्टर बनाना चाहता है इंजिनियर बनाना चाहता है। 

खेतो में पानी के अभाव में आपसे रोज निवेदन करते है ERCP ले आओ सत्ता में आने से पूर्व आप कहते थे डबल इंजन की सरकार आने दो इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाएंगे और लाभ दिलाएंगे लेकिन लाभ तो छोड़ो आप तो किसानों के कर्ज लेने को उनकी आदत बताने लग गए।

ये कर्ज लेने की आदत नही है साहब ये मजबूरी है कोई नही चाहता अपनी जमीन को गिरवी रख कर कर्ज ले लेकिन हालात ऐसा करने पर मजबूर कर देते है।एक किसान अपने परिवार के पालन पोषण उनकी मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के लिए कर्ज ले ही लेता है। कर्ज भी चुकाता है और नही चुका पाता है तो ये बैंक वाले भी कम नहीं है उस जमीन को नीलाम कर देते है ये कोई नही चाहता की उसकी जमीन उसके जीते जी नीलाम हो और एक दिन किसान आत्महत्या कर लेता है।

साहब किसान फसल को अपने बच्चे की तरह पालता है हर कीट पतंगों से उसे बचाता है कभी सर्दी,धूप,छांव और गर्मी को नही देखता है जिस माइनस डिग्री में लोग घरों से निकलने में कतराते है उस ठंड में वो खेतो में पानी दे रहा होता है क्योंकि आपकी सरकार बिजली भी तो टाइम पर नही देती है । पूरी पूरी रात जाग कर खेतो की रखवाली करता है और बरसात के कारण फसल नष्ट हो जाए तो दुख होता है साहब बहुत दुख होता है उस फसल से जिस कर्जे की आप बात कर रहे हो उसे चुकाने का सपना देखता है सोचता है की कर्जे को चुकाने के बाद कुछ बचेगा तो अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करेगा बच्चो को कपड़े दिलाएगा ,बेटी को बेस करेगा,भात भरेगा ऐसे न जाने कितने ही सपनो को लेकर जीता है।

आप लोगो को दिक्कत अडानी अंबानी को कर्ज देने में दिक्कत नही होती क्योंकि वे पैसे वाले है नीरव मोदी,विजय माल्या जैसे लोग करोड़ों रुपयों को लेकर भाग जाए उस से आपको और आपकी सरकार को फर्क नही पड़ता लेकिन किसान लाख पचास हजार का लोन ले ले और चुका नही पाए तो नीलामी पर उतर जाते है और आप जैसे मंत्री उसे आदत कह देते है। बहुत फर्क होता है सत्ता और विपक्ष का ये आपने सिद्ध कर दिया । ये कुर्सी सारे दर्द को भुला देती है जो दर्द आप सड़को पर चल कर दिखाया करते थे।

धन्यवाद साहब इस प्रवृति को जल्द से जल्द बंद कीजिए ऐसे महान कार्य अपने कर कमलों से करके जाइए ताकि हम गर्व से कह सके की किसान परिवार से निकल कर मंत्री बने और किसानों को लिए ये तोहफा दिया है।

जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...