#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता है। जिसे कुछ वर्ष पूर्व बाहियाद कहा जाता था । ये शब्द पचवारा राजौटी क्षेत्र की बात नही कर रहा हु। लेकिन हमारे क्षेत्र में मीणा गीत को बाहियाद यानी की जिसे बदमाश लोगो की पहचान के रूप में जाना जाता था। जिन्हे ट्रैक्टर –जीप अथवा खुले में चलाने वाले को बदमाश समझा जाता था। मीना गीत को #मां_बाप के सामने चलाना तो ऐसे था जैसे की बहुत गिनोना पाप कर दिया हो । हर किसी की हिम्मत नही होती थी जो मां बाप के सामने गीत चला दे। बाप उठाकर जूता मारने से नही चुकता यहा तक की गांव में बड़े बुजुर्ग या अपने से बड़े आदमी के सामने गीत सुनने में झिझक होती थी। इस टाइम कन्हैया दंगल,पद दंगल और सुड्डा दंगल को ही संस्कृति के रूप में देखा जाता था लेकिन पिछले 10 साल से बहुत बदलाव आया है आजकल मीना गीत को संस्कृति बनाने का ट्रेंड सा चलने लगा है। अब जरूरत से ज्यादा स्याने लोग कहेंगे पहले विष्णु ने वाहियाद या सेक्सी गीत गाए है तब तुम लोग कुछ क्यों नही कहते थे तो स्यानो पहली ब...