Tuesday, August 22, 2023

बीमार मानसिकता

बीमार मानसिकता
# सामाजिक मंच #
• बीमार मानसिकता *
' "चुन्नी में चुन्नी में परफ्यूम लगावे चुन्नी में...."
मीना गीत के साथ हाथ हिलाते हुए एक भाभीजी स्टेज पर आती है और अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करने लगती है इतने में ही स्टेज के दूसरे छोर खड़े लोग साथ में नाचने लगते है ऐसा लगता है जैसे मानो नृत्यांगना का साथ देने के लिए ही भिड़ जुटाई गई जिससे उसका हौसला बुलंदियों के आसमान को छू सके।

सामाजिक मंच परिसर का वातावरण पूरी तरह आनंद की भावना से सराबोर हो गया। तभी“चीज ब्रांड मीणा च”युवा नेता ने अपने साउंड वाले को यह निर्देश दिया।
“ जी भाई साहब।”साउंड वाले ने लं ... बा ... सलाम ठोका।
गाना बदल दिया और फिर सभी उस गाने पर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे ।

सुनो ... भेद-भाव किए बिना, सभी आगंतुकों को एक समान
समोसा जलेबी मिलनी चाहिए। ध्यान से कोई छूटे नहीं। "  मंच संचालक
आदेशात्मक स्वर में छोटे कार्यकर्ता से कहा।
“ ठीक है भाई साहब । ”
आदेशानुसार, कार्यकर्ता उसी प्रांगण के सभी लोगो को ... तत्परता से जलेबी समोसे की नाश्ता बांटने में व्यस्त हो गया।
मिलन समारोह का कार्यक्रम में डांस चलता रहा गाने बदलते गए और हर बार डांसर बदलता गया झुंड में नाचते रहे! वहाँ उपस्थित सभी लोग कार्यक्रम को देखने में आनंदमग्न, भाव विभोर थे।

कार्यक्रम से दू..र, परिसर के एक कोने में खड़े ..संगठन के
दो कार्यकर्ता, गणमान्य के स्वागत में में आए नाश्ते के पैकेटों में से
कुछ पैकेटों को निकाल कर, सभी की नजरों से बचाते हुए
अपनी-अपनी झोली में जल्दी से रख रहा था।

तभी, दर्शक दीर्घा के में बैठे कुछ लोगो की निगाह उन पर पड़ गई थी लेकिन उन्होंने इस तरह से रिएक्ट किया जैसे लोगो ने कुछ देखा ही नहीं.......।

थोड़ी देर में सब नाच गान से थक जाते है और सभा में सामाजिक चर्चाओं पर बात करने के लिए सभी आ गए जिनमें सबसे अहम मुद्दा था #डीजे_बंद किया जाए।
सभी का तर्क था की इस से समाज में गलत संदेश जा रहा है और लड़ाई को जड़ का काम कर रहा है इस से हमारे बच्चों पर गहरा असर पड़ रहा है।

वो अलग बात है की सामाजिक मंच पर नाच गान किया जा रहा था साथ ही कथा भगवतों में कथा वाचक के सामने नाचने की खुली छूट है वही पद यात्राओं में "हवा निकल गई पहिया की " जैसे गानों पर समाज की नाबालिग लड़की के साथ बड़ी बूढ़ी महिला भी नाच सकती है क्योंकि धर्म की जड़ सदा हरी रहती है।

दूसरा मुद्दा था #नुक्ता(मृत्यभोज) सभा में ये मुद्दा भी काफी चर्चाओं में रहा क्योंकि नई पीढ़ी काफी सजग हो चुकी है मृत्यु भोज नही करना चाहती जो की सही भी है लेकिन नुक्ता 12 वे दिन ना करके 13,14 या 15 दिन बाद किया जाता है तो पूरा गांव बड़े चाव से जीम सकता है क्योंकि वो नुक्ता की श्रेणी में नही आयेगा।।

#चोरी और #दहेज जैसे मुद्दे पर बात ही नही बन सकी क्योंकि पटेल का छोरा अभी IAS हुआ है और छोरा का रिश्ता 2 करोड़ में तय हुआ है किसी की हिम्मत नही की IAS के बाप से 2 शब्द कह जाए दूसरा पटेल इसलिए नही बोल रहा था वो अपने बेटे को कल बाइक चोरी से छुड़वा कर लाया था सुना है की उसका बेटा स्मैक के चक्कर में चैन छोरी करता फिर रहा है एक बार तो महिला का गले से चैन तोड़ते टाइम महिला गिर गई और गहरी चोट आई थीं जिसके चक्कर में पटेल जी ने 4 लाख में केस सुलझाया था ऊपर से छोरे के लिंक टपोरियों से था पटेल पर उंगली उठाने की हिम्मत किसकी हो सकती है ??

#रील्स बनाने वाली महिलाओं पर चर्चा करने वाले थे लेकिन जो चर्चा करने आई थी वे अभी स्टेज पर नाचने और रील्स बनाने ही बिजी थी उनके हैंसबैंड फोन पकड़े हुए थे इसलिए सभा में भी शामिल नही हो पाए

हा सभा में सभी सहानुभूति का पूरा ख्याल रखा गया था जिसकी जितनी फैन फॉलोइंग थी उसके साथ उतनी ही सेल्फी ली जा रही थी ऐसे में समाज की #हिरोइन (रील्स बनाकर अपने सुंदर सुशील और संस्कार रूपी शरीर से संस्कृति से एक महान पहचान दिलाने वाली) को सम्मानित किया गया उन्हे प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके बाद सभी ने सेल्फी खिंचवाई थी सेल्फी खिंचवाने वालो की संख्या को देखकर ऐसा लग रहा था गुड की भेली पर मक्खियां भिनभिना रही हो ।।

इनकी फैन फॉलोइंग को देखकर मेरी आंखों में आंसू भर आए थे कितनी महान हस्ती है हमारे समाज में जिनका मुझे अब अहसास हो रहा था ।
नोट: मैं सभा में नही था ये केवल परिकल्पना है ।

जयसिंह नारेड़ा

Wednesday, July 19, 2023

नौकरी

#नौकरी

अच्छा नौकरी शब्द सभी को अच्छा लगता है आखिर अच्छा लगे भी क्यों नही ? ये एक परिवार,दोस्त और अपनो को खुशियां देने वाला शब्द है वही जिसे नौकरी मिली है उसकी जीवन के सपनो को साकार करने वाला शब्द है..!!

हर कोई नोकरी के लिए कठोर मेहनत करता है चाहे वो प्राइवेट नोकरी हो या सरकारी लेकिन ये दोनो ही हर किसी के नसीब में नहीं होती है। नोकरी के लिए जितनी मेहनत करते है उतनी ही कम लगती है क्योंकि कंपीटीशन उतना ही ज्यादा हो गया है

कई बार दरवाजे पर दस्तक देकर वापस चली जाती है तो कई बार बिना मेहनत के भी मिल जाती है। खैर दोनो के अपनी मेहनत और लग्न छुपी हुई होती है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जो व्यक्ति नोकरी करता है क्या वो अपनी नोकरी के पूर्ण रूप से खुश है शायद नही.....

देखिए नोकरी चाहे कैसी भी हो परिवार से जुदा करवा देती है तुम्हे परिवार से अलग रहने को मजबूर कर देती है परिवार के साथ 2 वक्त का समय निकालने के लिए तरसना पड़ता है..!!

ऐसा जरूरी नहीं सभी के लिए हो किसी की नौकरी परिवार के साथ रहते हुए भी पूरी होती लेकिन वे कुछ प्रतिशत ही है अधिकतर लोग अपने परिवार को किश्तो में ही टाइम दे पाते है।

हर एक पल किसी त्योहार या घर परिवार के विशेष परियोजन(अवसर) की उम्मीद लगाए बैठे रहते है जैसे होली खत्म तो राखी पर जाने की सोचते है, राखी खत्म तो दिवाली पर और दिवाली खत्म होते ही शादियों का इंतजार करते है फिर वही होली दिवाली की रट लगाए रहते है...!

सुबह घर से तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलना और दिन भर ऑफिस में बॉस के ताने सुनना या फिर कामों में बिजी रहना और फिर शाम को थके हुए घर आना फिर खाना बनाकर खाना और सो जाना सुबह फिर वही रूटीन....कब सुबह का नाश्ता और रोटी भूल गए पता भी नही चलता...टाइम किसी का इंतजार थोड़ी करता है.!ऐसा लगता है जैसे यही रूटीन बन गया हो जैसे जीवन का बाकी मकसद तो मानो खत्म सा ही हो गया हो....बाहरी दुनिया को तो जैसे नजरंदाज कर दिया हो....इसमें फेसबुक ही एक मात्र आपके हंसने और हंसाने का जरिया बन चुकी होती है...!!

छुट्टियां होते हुए भी समय छुट्टी ना मिले तो बहुत गुस्सा आता है जब पूरा परिवार त्योहार या उस अवसर का इंतजार कर रहे हो वे सब खुशियां मना रहे हो आप सिर्फ वीडियो कॉल या कॉल पर उनके साथ सम्मलित हुए हो.....तब लगता है क्या यार क्या हम सिर्फ पेट भरने के लिए ही पैदा हुए है ?? क्या हमे परिवार की खुशियों में सांझा होने का हक नहीं है ??

लेकिन आपकी मजबूरियां( नोकरी की जंजीरो में बंधे आपके अरमान) आपसे ये सब करवा रहे होते है।

जो परिवार हंस रहा खेल रहा है वो कहीं न कही आपकी ही मेहनत और मजबूरियों का नतीजा है उनकी खुशियों की वजह तुम हो.....

हमेशा खुश रहे और मुस्कुराते हुए अपने परिवार को खुश रखने की कोशिश में लगे रहे यही तो जीवन है......परिवार के साथ ना सही परिवार के लिए ही सही.....!!

जयसिंह नारेड़ा

Saturday, April 29, 2023

राजपूतो ने मुगलों को अपनी बेटी दे कर बचाए थे राज्य

क्षत्रिय(राजपूत) जो अपने गौरवशाली इतिहास की बात करते है उनके इतिहास पर थोड़ी नजर डाल लिया जाए जो अकबर का इतिहास मिटाने की बात करते है उन्होंने अपनी बेटियां दे कर अपना साम्राज्य बचाया था ।।

1- जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की. (कछवाहा-अंबेर)

2-15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)

3- 1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया. (राठौर-जोधपुर)

4- 1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)

5-मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)

6-1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)

7-16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)

8-1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)

9-2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)

10- 28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)

11-पहली फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)

12-अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)

13-1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह(राठौर-नागौर)

14-17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से(राठौर-किशनगढ़)

15-5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे. (कछवाहा-आंबेर)

16-30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए(शेखावत-मनोहरपुर)

#नोट कुल मिलाकर अकबर के शासनकाल में कुल 34 शादियां हुई राजपूतों और मुगलों के बीच,
जहांगीर के वक्त कुल 7,
शाहजहां के वक्त 4 और औरंगजेब के वक्त कुल 8 सब मिलाकर 53 शादियां हुईं!

Friday, February 17, 2023

कला या चमत्कार

कला या चमत्कार

अच्छा आप लोगो ने जीवन में कही न कही हाथ देख कर भविष्य बताने वाले तो अवश्य देखे होंगे । वे 10 मिनट में हाथ देख कर भविष्य बता देते है ये उनकी कला है और इसे चमत्कार समझ लेना ही मंदबुद्धिता को दर्शाता है ||

सबसे अच्छा सेल्समैन आपने ट्रेन / बस में देखा होगा जिन्हे कोई ट्रेनिंग नही देता वे आपको 10 मिनट में इतना कुछ बता देते है की आप मन एक बार तो करता ही है की ये चीज ले लेनी चाहिए 
उनकी एक खास बात आपने नोटिस की तो वे चेन को घिस कर बताते है की इसका कलर नही जाता वही उसे पता होता है कि उसकी चेन नही बिकेगा या ये व्यक्ति नही लेगा फिर भी सबको चेक करवाते है ये उनकी एक कला है।

कला का उदाहरण तो आप बीमा वाले से भी ले सकते है जीने से ज्यादा मरने के फायदे बता देते है ये भी उनकी कला है को वे अपनी सर्विस को कैसे बेचते है ??

गांवो में जादू के खेल दिखाने वाले मदारी तो बहुत देखे होंगे वे लड़के को गायब करके सांप बना देते है तो कभी रेडियो टीवी तक निकाल देते है वो उसकी कला है हम समझ नही पाते और उसे जादू समझ बैठते है जबकि वो अपनी कला का चालाकी से  प्रदर्शन करता है। 

अच्छा थोड़े दिन पहले बालाजी की घाटी में नीम के पेड़ से दूध जैसा पदार्थ(द्रव) निकला था सभी उसे चमत्कार समझ कर उसकी पूजा करने लगे थे बहुत लोग तो उस दूध को लेकर गए थे क्योंकि वो तो चमत्कार था ना लेकिन आज उसकी पेड़ के नीचे दारू पीने वाले बोतल पटक कर जाते है क्योंकि वो चमत्कार अब खत्म हो गया । असल में पेड़ का कोई चमत्कार नहीं था बल्कि पेड़ की एक क्रिया ही थी जिसे लोग चमत्कार समझ बैठे थे।

ठीक उसी प्रकार से जिसे कला आती है वो उस कला का दुरुपयोग करके उसे चमत्कार का नाम दे सकता है लेकिन वो चमत्कार तभी होगा जब आप लोग भी उस कला को चमत्कार मानने लगोगे

कभी आपने ताश का खेल तो खेला हो होगा हमारे कुछ दोस्त इसे भी होते है की ताश बांटने में ही गड़बड़ी कर जाते है जिन्हे कोई पकड़ नही पाता असल में वो एक गणित होती है उनके माइंड में चल रही होती उन्हे पता होता है की ये ताश का पत्ता इसके ही आएगा उनकी केलकुलेशन दिमाग में चल रही होती है उसी हिसाब से वो ताश सेट करता है वही कुछ लोगो को ये अनुमान हो जाता है की वो पत्ता इसके पास है इसे भी माइंड की कैलकुलेशन ही माना जा सकता है।

फैसला तो आपको हो करना है की कला को चमत्कार समझना है या फिर कला को कला के रूप में ही देखना है।।

जयसिंह नारेड़ा

Monday, January 30, 2023

बस का सफर

आज ऑफिस से घर जाने के लिए देर हो रही थी इसलिए मैं जल्दी-जल्दी ऑफिस से घर के लिए निकल पड़ा. मेरा ऑफिस घर से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित है और मुझे वहाँ पहुचनें के लिए उत्तम नगर से रोज बस पकड़नी पड़ती है.

आज में बस स्टॉप पर थोड़ा देर से पहुँचा था और मेरी निगाह 817 नंबर वाली बस जा चुकी थी. कुछ ही पल में एक बस आई और मैं उसमें चढ़ गया.

आज बस में काफी ज्यादा भीड़ थी. बड़ी मुश्किल से मुझे बैठने के लिए थोड़ी सी जगह मिल पाई. बस रवाना हो चुकी थी और मैं अपने कान में लीड लगाकर गाने सुनने का मन करने लगा फिर भीड़ को देख कर मोबाइल निकालने की हिम्मत नही हुई क्योंकि मोबाइल चोरी के किस्से मैने बहुत सुन रखे थे.!! यहां कब मोबाइल,पर्स और पैसे गायब हो जाए पता नही लगता इस क्षेत्र में चोर बहुत ज्यादा है। इसलिए मोबाइल जेब पड़े रहने देना ही मैने ठीक समझा ।।

मेरे मन में तरह-तरह के विचारों ने उथल पुथल मचाना शुरू कर दिया. बस और रेल का सफर करनें पर असली भारत के दर्शन होते हैं, यहीं पर ही भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति का वास्तविक पता चल पाता है.

इनमें ही अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा, हिन्दू-मुस्लिम आदि सभी धर्मों, वर्णों और सभी तरह की हैसियत वाले लोग सफर करते हैं. कई लोग वक्त का सदुपयोग करने के लिए राजनीतिक चोसर को फैला कर कुछ न कुछ वाद विवाद का पासा फैंक देते हैं और सभी लोग इस राजनीतिक चर्चा और वाद विवाद के पासे को चटकारे के साथ खेलना शुरू कर देते हैं.

बस में कुछ युवा कानों में इयरफोन लगाकर गाने सुनने में मशगूल थे, तो कुछ लोग अपनी सहयात्री से बाते करने में मशगूल हो गए थे।

मेरे आगे की सीट पर तीन चालीस पैंतालीस वर्ष के आदमीं बैठे हुए थे तथा वो किसी बात पर वाद विवाद कर रहे थे. मैं भी बैठे-बैठे बोर हो रहा था सो मैंने उनकी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया. वो लोग आदर, संस्कार और परम्पराओं के बारे में बातें कर रहे थे.।
उनमे से एक बोला “अब तो समाज में किसी के लिए भी आदर नाम की कोई चीज नहीं बची है, आज पड़ौस में रहने वाली एक छोटी सी बच्ची मुझसे जबान लड़ाने लग गई.

उसके घरवालों को इतनी भी तमीज नहीं है कि वो उस बच्ची को आदर और संस्कारों के बारे में कुछ सिखाये. बड़ो से कैसे बात की जाती है? कैसे उनका आदर किया जाता है? अंकल न सही, कम से कम नाम के आगे जी तो लगा देती.“सीधे ही नाम से संबोधित कर रही थी तू तड़ाके से बात करने लगी थी.!

दूसरा आदमीं उसकी बात में हाँ से हाँ मिलाते हुए बोला “तुम सही कहते हो, अब तो बच्चों को क्या बच्चों के पेरेंट्स को भी संस्कारों का नहीं पता.।

वैसे बच्चों का भी अधिक दोष नहीं है क्योंकि बच्चे तो वही सीखेंगे जो वो घर में देखेंगे और जब घरों का वातावरण ही कुसंस्कारी हो रहा है तो फिर बच्चों का क्या दोष हैं. लोग अब बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान कहाँ करते हैं ?”

अब तीसरे की बारी थी सो वह भी बोल पड़ा “भाई, बात तो सही है, संस्कार तो पुरानी पीढ़ी से ही नई पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं और जब पुरानी पीढ़ी ही संस्कारों से महरूम रहे तो वो नई पीढ़ी को क्या संस्कार दे पायेगी.

अपने समय में तो ऐसा नहीं होता था, हम तो बड़े बुजुर्गों को उनके पैर छूकर सम्मान दिया करते थे. अब कहाँ किसी का सम्मान रह गया है? सब पाश्च्यात संस्कृति में रंगे जा रहे हैं और कोई किसी को सम्मान नहीं देता है, संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं.“।

अभी इनकी बातें चल ही रही थी कि अगले बस स्टॉप उत्तम नगर वेस्ट से एक औरत अपने एक हाथ में थैला और दूसरे हाथ में लगभग तीन साल के बच्चे को लेकर चढ़ी.

बस में सीट तो क्या पैर रखने की भी जगह नहीं थी परन्तु फिर भी उसने चारों तरफ ढूँढती हुई निगाहों से देखा और मेरे आगे वाली सीट के कुछ आगे खड़ी हो गई.

अचानक बस चालक ने ब्रेक लगाये और वो महिला बच्चे सहित आगे की तरफ गिरती गिरती बची और फिर से अपनी जगह पर खड़ी हो गई. उसने उन तीन संस्कारी आदमियों की तरफ देखा तो उनमें से एक फुसफुसाया “यहाँ तो हम पहले से ही तीन लोग बैठे हुए हैं, यहाँ पर जगह नहीं हैं.“

फिर कुछ देर पश्चात अगले बस स्टॉप नवादा से लगभग सत्तर वर्ष के एक बुजुर्ग बस में चढ़े. पीछे आकर वो भी उस महिला के पास में खड़े हो गए परन्तु किसी ने भी न तो उस बुजुर्ग के लिए और न ही उस महिला के लिए सीट छोड़ी.

मैं भी इस बारे में सोच रहा था परन्तु पता नहीं क्यों मैं भी ऐसा नहीं कर पाया. शायद में भी रोज-रोज एक सी परिस्थितियाँ देखकर संस्कारविहीन हो चुका था.

अगले स्टॉप द्वारका मोड़ पर लगभग बीस वर्ष की एक सुन्दर युवती बस में चढ़ी. उस युवती को बस में चढ़ता देखकर ऐसा लगा जैसे बस में बैठा हर पुरुष ये दुआ कर रहा हो कि काश ये मेरे पास आकर बैठे.।
बस में जगह नहीं थी सो वह भी पीछे आकर उन बुजुर्ग के पास खड़ी हो गई. उसे बस में खड़ा देखकर उन तीन आदमियों का जी जलता हुआ सा प्रतीत हो रहा था.।

जब रहा नहीं गया तो उनमे से एक बोला “आप यहाँ बैठ जाइये.” एक अजनबी के द्वारा सीट मिलने पर वह खुश हुई परन्तु फिर बोली “लेकिन यहाँ तो सीट खाली ही नहीं है?” दूसरा बोला “कोई बात नहीं, हम लोग थोड़ा-थोड़ा एडजस्ट कर लेंगे.“
लेकिन वो थोड़ा सकुचाते हुए बोली “नहीं नहीं, कोई बात नहीं.“ उसका ये उत्तर सुनकर तीसरे आदमी का पौरुष जागा और वह सीट पर से उठते हुए बोला “ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई महिला खड़े-खड़े सफर करे और हम देखते रहें.

ये हमारे आदर और संस्कार नहीं है कि हम महिलाओं का सम्मान नहीं करें. हमारी संस्कृति हमें महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाती है इसलिए आप कृपया यहाँ पर बैठिये.“ इतने आदर्श वाक्य सुनकर वह युवती मनमोहक मुस्कान के साथ उसकी सीट पर बैठ गई.

पास ही खड़े बुजुर्ग और बच्चे के साथ वाली महिला ये सब देखकर सोच में पड़ गए कि “हम भी तो इतनी देर से बस में खड़े थे फिर अचानक इनका सोया हुआ ये सम्मान कैसे जाग गया?”

इस प्रकार के आदर और सम्मान को देखकर मैं शर्म से पानी-पानी हुए जा रहा था और आखिर में मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपनी सीट पर उस महिला को बैठाया और स्वयं खड़ा हो गया. मैंने महसूस किया कि अब मेरे मन में एक अजीब सा गर्व हिलोरे मार रहा था.

मिलते है अगले किस्से के साथ......

जयसिंह नारेड़ा

Sunday, January 8, 2023

अच्छा हम इतने फ्री है

अच्छा हम इतने फ्री है

आपको नही लगता की हम अब इतने फ्री हो चुके है की फेसबुक पर सारे दिन बकचोदी कर लेते है,बहस भी उन मुद्दों पर कर लेते है जिनकी हमे जानकारी तक नही होती है, कई बार तो मैं तो सोचता हु यदि फेसबुक नही होती तो इतने विद्वान ,विदुषी अथवा स्याने लोगो से डिजिटल मुलाकात कैसे होती ??

हम आजकल क्रिकेट पर ज्ञान बांटने लगते है तो कभी हम देश की अर्थव्यवस्था को फेसबुक पर पोस्ट डालकर चांद पर ले जाते है । वही दूसरी और देखा जाए तो चंद लोगो को केवल हिंदू मुसलमान करने के लिए छोड़ रखा है। 

खैर छोड़ो कुछ लोगो को देखकर ऐसा लगता है मानो जैसे किसी पार्टी अथवा नेता ने भाड़े पर रखा हुआ है वे तो मानो जैसे पालतू जानवर की तरह अपने मालिक के हुकम का इंतजार करते है और उन्ही कहे अनुसार अपने कदम उठाते है।

आजकल फेसबुक पर देखो तो सबको एक ही काम नजर आता है वो है #HD 🤣 वाह नाम सुन कर वस वही पहुंच गए होंगे ख्यालों में पहुचोगे क्यों नही जब सारे दिन यही देखते और लिखते रहते हो। 

इनमे से आधे तो केवल चंद लाइक कमेंट के लिए डालते है और पुरानी वीडियो को ही उल्ट फेर करते रहते है खैर हम क्या लेना देना है ? हम तो इंस्टाग्राम पर टुंडी कनिया देखने वालो मे से है हमारी नई नई सस्ती अभिनेत्रियां अपने अंग प्रदर्शन करती रहती है वहां। खुद को सस्ते में प्रमोशन मिल जाता है अंग प्रदर्शन करने मात्र से ही ।

चलिए आपका ज्यादा माथा नही खाऊंगा मै भी अब इंस्टा पर जा रहा हु कोई भाभी कमर मटका रही होगी 🤣🤣🤣

जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...