इसी तरह वक्त के साथ साथ इस भ्रम मतलब एकतरफा प्यार में भी प्रगाढ़ता आने लगी और यही ख्याल रहने लगा की शायद आज नही तो कल उसे मेरे प्यार का एहसास जरुर होगा और वो किसी फिल्म की नायिका की तरह मेरे पास दौड़ी चली आएगी। और मेरा ये भ्रम सदा भ्रम ही रहा । एक तरफ मैं था जो उसे पाने की खातिर कुछ भी कर गुजरने की भावना लिए बैठा रहता था। मुझे उम्मीद थी की शायद उसे कभी न कभी तो एहसास होगा ही। लेकिन मुझे क्या पता था की मोहब्बत में एहसास एक तरफ होने से कुछ नही होगा, आग दोनों तरफ होने से ही प्यार परवान चढ़ता है। मगर इसमें मेरा क्या दोष था? मेरी भावना मेरा प्यार तो निश्छल, निस्वार्थ और किसी बहते दरिया के पानी की तरह साफ़ पवित्र और पारदर्शी था।
मेरी एक बहुत बड़ी कमजोरी है, मई मित्रो पर बहुत जल्दी और ज्यादा विश्वास कर लेता हु । एक तरह से ये मेरी ताकत भी थे। मगर मेरी मोहब्बत में मेरी ये ताक़त ही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी बन गयी थी। कुछ सच्चे मित्रों की आड़ में कुछ जालसाजी मेरे मित्रो की सूचि में आ गये। और उन्होंने मेरी सपनो की रंगीन दुनिया की या यु कहे तो मेरी कथित प्रेमिका से मेरी बुराई और झूठे अवगुणों का प्रदर्शन सुरु कर दिया।
और वे मेरी मोहब्बत को भीतर ही भीतर खोखला करते गए। जिसका मुझे कभी आभास भी न हुआ। एक और बात की इसमें सिर्फ मेरे कथित मित्रो कही दोष नही था बल्कि कुछ उसकी परम मित्र जो एक तरह से परछाई की तरह थी। उन्होंने अपनी संकुचित विचारो और अपने निम्न संस्कारो का परिचय देते हुए मेरे बारे ने बिना कुछ जाने ही मेरे व्यव्हार के बारे में उस से बहुत कुछ कह दिया जिससे उसके मन में मेरे बारे में एक नकारात्मक छवि बन गयी । इसी के चलते मुझे कभी मेरी बात कहने क कोई अवसर ही प्राप्त न हुआ।
और हमारी प्रेम कहानी का सफर यही खत्म हो गया!
मेरी एक बहुत बड़ी कमजोरी है, मई मित्रो पर बहुत जल्दी और ज्यादा विश्वास कर लेता हु । एक तरह से ये मेरी ताकत भी थे। मगर मेरी मोहब्बत में मेरी ये ताक़त ही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी बन गयी थी। कुछ सच्चे मित्रों की आड़ में कुछ जालसाजी मेरे मित्रो की सूचि में आ गये। और उन्होंने मेरी सपनो की रंगीन दुनिया की या यु कहे तो मेरी कथित प्रेमिका से मेरी बुराई और झूठे अवगुणों का प्रदर्शन सुरु कर दिया।
और वे मेरी मोहब्बत को भीतर ही भीतर खोखला करते गए। जिसका मुझे कभी आभास भी न हुआ। एक और बात की इसमें सिर्फ मेरे कथित मित्रो कही दोष नही था बल्कि कुछ उसकी परम मित्र जो एक तरह से परछाई की तरह थी। उन्होंने अपनी संकुचित विचारो और अपने निम्न संस्कारो का परिचय देते हुए मेरे बारे ने बिना कुछ जाने ही मेरे व्यव्हार के बारे में उस से बहुत कुछ कह दिया जिससे उसके मन में मेरे बारे में एक नकारात्मक छवि बन गयी । इसी के चलते मुझे कभी मेरी बात कहने क कोई अवसर ही प्राप्त न हुआ।
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नोट:-कहानी का किसी घटना एवम पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!यदि इसका किसी से कोई सम्बन्ध पाया जाता है तो उसे महज एक संयोग माना जायेगा
आपका अज्ञानी लेखक
जयसिंह नारेड़ा
जयसिंह नारेड़ा
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