Wednesday, December 21, 2016

शनिवार या शनि का वार(एक झूठे भय का नाम)

शनिवार या शनि का वार

बड़ी गंभीर समस्या है आज की पीढ़ी के लोगो की आज का इंसान भी इतनी शिक्षा और विज्ञानं के युग में भी अपने अंदर एक भय बनाये हुए रख रहा है!
सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है!पता नही उसके मन में किस बात का डर बना हुआ है!
हकीकत यही की उसको डर इस बात का लग रहा है जो है ही नही,बस अपने दिमाग पर काबू नही कर पा रहा है!
खैर छोड़िये सीधे पॉइंट पर आते है!
हम रोज की तरह अपनी कोचिंग जा रहे थे,मै रोज की तरह अपने दोस्तों से पहले ही पहुच कर स्टैंड पर खड़ा हो जाता हूं और उनका आने तक इंतजार करता हु!आज भी वही हुआ मै इंतजार कर रहा था इतने मेरे दोस्त आ गए!
आज कुछ दोस्त बड़े अजीब लग रहे थे माथे पे चंदन का टीका तो किसी के सिन्दूर का टीका लगा हुआ था!
मैंने उनका ये नया रूप देखा तो रहा नही गया और पूछ ही लिया
"भाई आज सुबह सुबह मंदिर से आये हो क्या"
इस पर उनका बड़ा सरल सा जबाव मिला"नही यार आज शनिवार है ना तो हम व्रत है और भगवान के आशीर्वाद के रूप में हे टिका लगाये हुए है!
मेरी आदत है ही जब तक मन को संतुष्ठी नही मिल जाती तब तक प्याज के छिलकों की तरह उतारते रहो! वस् मै सवाल पर सवाल किए जा रहा था जिनका जबाव शायद उनके पास था ही नही,वे बार बार यही कह कर मेरी बात को टाल देते की" तू तो मानता ही नही है फिर हमें बताने का क्या फायदा"
हालाँकि वे सही ही कह रहे थे की जब मै मनाता ही नही हु तो उनका बताने का कोई फायदा नही था लेकिन मेरे मन में उपज रहे प्रश्नों का जबाव मुझे चाहिए थे!
मेरे अंदर जानने की जिज्ञासा बढ़ रही थी
हम बस में सफर करके कोचिंग वाले स्टैंड पर उतरे जहा से कोचिंग 100 मीटर की दुरी पर थी!
स्टैंड का भी आज अजीब सा हाल बना रखा था मैंने वहां देखा की लोहे की चद्दर को काट कर एक जगह पीपे पर रखा हुआ था जिस पर कोई आकृति बनी हुई थी!
और इसकी तरह आकृति स्टैंड पर तीन चार जगह रखी हुई थी!
इन सभी आकृतियों(तस्वीरों) के आगे एक बड़ा सा पीपा भी रखा हुआ था जिनमे कुछ मात्रा में सरसों का तेल था! और उन आकृतियों के ठीक पास एक दीपक जल रहा था जिसमे कुछ सिक्के भी पड़े हुए थे!उन लोहे की चद्दरों में एक समानता थी वह थी उन सभी में एक जैसी आकृति थी जो की काले रंग या ऑयल से बनाई गई थी!
जैसे ही हम बस से उतर कर आगे बढ़े तो मेरे साथी मित्रो ने उस आकृति के आगे सर झुकाया और कुछ सिक्के भी उस दीपक में डाल दिए,ऐसा एक ही मित्र ने नही अपितु उसे देखकर सभी करने लगे!
मै ये सब खड़े खड़े देख रहा था,अब मेरे अंदर प्रश्नों की संख्या बढ़ चुकी थी जिनका जबाव शायद ही मेरे मित्रो के पास था !उनकी देखा देख काफी लोग वहां आकर अपना सर झुका कर सिक्के उस दीपक में डाल रहे थे कुछेक तो पीपे में भी डाल रहे थे!
पास में ही एक बूढी सी औरत एक प्लास्टिक की पन्नी पर बैठी हुई थी वह काफी थकी हारी सी लग रही थी,आँखों में बेबसी साफ नजर आरही थी,उसे अपनी पेट की भूख मिटाने के लिए भोजन की आवश्यकता थी जिसके लिए वह वहां बैठ कर लोगो से पैसे देने की गुजारिश कर रही थी जबकि लोग उसे अनदेखा कर रहे थे,कुछ लोग कह भी रहे थे "इनको तो कोई है नही सुबह सुबह मांगने आ जाते है"
हमारी कोचिंग को शुरू होने में अभी 30 मिनिट बाकि थी इसलिए मैंने दोस्तों के साथ 30 मिनिट वही गुजरने की अपील की !
इस पर मैंने उन लोगो को सहमत कर लिया था!अभी पुरे 10 मिनिट भी नही हुए थे और उस आकृति पर काफी लोगो ने सिक्के चढ़ा दिए थे!कुछ लोग तो पास की एक दुकान से 10 रूपये का सरसो का तेल लाकर भी उस पीपे में डाल रहे थे,ऐसा उस ही आकृति के साथ नही हो रहा था अपितु सभी आकृतियां बड़ी जल्दी मालामाल होती नजर आ रही थी लेकिन अभी भी उस बूढी औरत के पास मात्र 2 रूपये ही आये थे!
मेरे सब्र का बांध टूट चुका था मैंने आखिर पूछ ही लिया"भाई ये आकृति किसकी है जो तुम लोग इसके आगे सर झुकाकर सिक्के और तेल डाल रहे हो"
मेरी इस बात को सुनकर वे हँसने लगे जैसे मैंने कोई जोक्स सुना दिया हो ये मेरी समझ से बाहर था तभी एक दोस्त सोनू ने कहा"अरे तू इसे नही जानता ये शनि महाराज की मूर्ति है आज के दिन इसकी पूजा होती है,यदि ये किसी के पीछे लग जाये यानि इसकी कुदृष्टि पड़ जाये तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है!इसलिए इसे खुश रखने के लिए तेल डालते है और इसकी पूजा होती है!"
मेरे लिए ये जबाव पर्याप्त था ये समझने के लिए की ये मूर्ति किसकी महाराज की है,ऐसा नही था कि मै शनि के बारे में नही जानता था बल्कि मै सिर्फ उस मूर्ति या आकृति से अनभिज्ञ था!
मेरे समझ में सारी बात आ गयी थी की वे उसके आगे क्यों झुक रहे थे!
मै यही सोच रहा था कि इतनी पढाई का क्या फायदा जब आदमी इन आडम्बरो और पाखंडवाद से नही निकल पाया हो
अभी तक मानसिक गुलामी से पीछे नही छुड़ा पाया है अपनी आगामी पीढ़ी के लिए भी यही भ्रम और डर बनाकर रखेंगे ताकि वे भी इसी तरह के पाखंडवाद से नही उभर पाये और जीवन भर डर डर कर जीता रहे!
आज का इंसान पहले ही बहुत समस्याओ से डरा हुआ है उसे इतना डरा दिया जाता है कि वह कोई भी काम करने से पहले अपना ध्यान उस पर केंद्रित कर ही नही पाता है!

चलिये इसी शनि महाराज का उदाहरण ले लेते है!

लोगो के मन में ये डर बन गया है कि शनि महाराज की कुदृष्टि हमारे ऊपर ना पड़ जाये अन्यथा उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा,
बहुत बार देखने को भी मिलता है जब लोग कहते है कि यार मेरा ये काम बनते बनते बिगड़ गया
अपनी असफलता को छुपाने के लिए वे उस का दोष दुसरो के ऊपर यानि भगवान या शनि के ऊपर मंढ देते है!और बड़ी शौक से कहते है मेरा काम होने ही वाला था पर शनि की नजर लग गयी
या फिर यु कहे की काम तो हो जाता पर भगवन को यह मंजूर नही था!
चलिये छोड़िये

वापस कहानी पर आते है!

मैंने अपने दोस्त की बात सुनकर पूछ लिया भाई फिर अभी तो आप कह रहे थे की शनि वार के दिन हनुमान जी का व्रत रहते है ये शनि की दृष्टि से बचाता है!
अब मेरे मित्र के पास जबाव नही था उसने अपना पुराना डायलाग छोड़ दिया
"भाई तू मानता नही है तेरे समझ नही आएगा"

हमारी कोचिंग का समय हो लिया था और लगभग 3 घण्टे वहाँ पढ़ कर वापस घर जाने के लिए स्टैंड पर आये तो देखा की वे पीपे तेल से भर चुके थे उनकी जगह दूसरे पीपे रखे जा रहे थे!
मैंने पीपे बदलने वाले भाई से पूछ लिया
"भाई अब आप इस तेल का क्या करोगे,शनि महाराज का भंडारा या कोई धार्मिक काम में लगाओगे"
उसने मेरी तरफ घूरते हुए बोला"ना भाई इस से कोई भंडारा नही होगा हम इसे बाजार में बेचते है और अपना गुजारा करते है!
इतने में ही मैंने अपना दूसरा सवाल कर दिया "भाई यदि आप इसे बेचोगे तो शनि के दृष्टि आप पर नही पड़ेगी"
इस बात पर उसका जबाव बड़ा ही मजेदार था
"हम शनि के पुजारी है हम पर दृष्टि नही डालता"
मै मन ही मन सोच रहा था जिन्होंने तेल चढ़ाया वे नकली भक्त थे शायद तभी तो उन पर दृष्टि डाल देता है!असली भक्तो को तो उसका तेल बेचने के साथ साथ उसके रुपयों को खर्च करने की भी छूट प्रदान कर रखी है!
उसका जबाव सुनकर मेरे दोस्तों के चहरे की रौनक भी खत्म हो चुकी थी !
मैंने उस मूर्ति के सिक्के डालने से बेहतर 20 रूपये के समोसे उस बूढी औरत को ला कर दे दिए!जिस पर मेरे दोस्तों की प्रतिक्रिया अजीब दिखाई पड़ी वे मुझसे कह रहे थे "भाई इनका रोज का यही काम है इनके पास सब कुछ होते हुए भी मांग कर ही खाना पसंद करते है!ये मेहनत तो करना चाहते ही नही है बस फ्री का चाहिए"
इस बात को सुनकर मै आप में कुंठित सा हो गया
"यार क्यों बकवास कर रहा है शनि को कोनसे तेल और रुपयों की जरूरत है जो तुम लोग उसे नही मांगने पर भी बड़े शौक से चढ़ा कर आते हो,
उसे क्यों फ्री में देते हो"मैंने रूखे मन से कह दिया
फिर हम वहां से चल दिए और घर आ ही तो गये लेकिन मेरे दोस्त पुरे रास्ते चुप ही रहे उनके मुख से कोई शब्द नही निकल रहा था

लेखक:-
#जयसिंह_नारेड़ा

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