*भूली-बिसरी बातें ( 8 )*
*'आप तो विदशी आक्रमणकारियों के वंशज हैं '*
उपरोक्त बात मैंने उन लोगों को एक खुले मंच से कही , जिनको कांशी राम जी मनुवादी कहते थे । बात करीब 15 वर्ष पहले की है । रामबाग सर्किल , जयपुर पर स्थित सुबोध शिक्षण संस्थान के संचालक प्रो. मानचन्द खण्डेला ने अपनी संस्थान में ' आरक्षण ' पर एक ' सेमीनार ' रखी थी । आरक्षित - वर्ग से भी 3-4 प्रतिनिधी बुलाये थे , जिनमें मैं भी एक था । उसमें कई विद्वानों को भी बुलाया था जो ज्यादा संख्या में भी थे और सभी तथाकथित ' उच्च- वर्ग ' से थे । उनमें करीब 20 तो युवा ब्राह्मण थे , जिन्होंने सबसे आगे की कुर्सीयां रोकी , क्योंकि वे इस काम में सबसे आगे रहते हैं । सेमीनार का संचालन खुद प्रो. खण्डेला कर रहे थे ।उन्होने सबसे पहले बोलने का निमन्त्रण ब्राह्मणों को ही दिया । आशा के अनुरूप ही उन्होंने 'आरक्षण ' का जम कर विरोध किया और इसको कन्डम करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी । कुछ वक्ताओं के बाद आरक्षण को तो छोड़ दिया और आलोचना का विषय ' मीणा ' बन गया । कहने लगे प्रशासन में जहां जाओ वहां मीणा ही मीणा । बैंक में चपरासी मीणा , बाबू मीणा ,मैनेजर मीणा । रेल्वे की खिड़की पर मीणा , डिब्बे में टीटी मीणा ।सचिवालय में जाओ तो हर कमरे के बाहर मीणा अधिकारी की ही नेम- प्लेट और अन्दर स्टाफ भी मीणा । जिलों में कलेक्टर मीणा , एस. पी . मीणा , थानों में थानेदार मीणा , सिपाही मीणा । सब जगह मीणा ही मीणा ,कह कर अपनी पूरी भड़ास निकाली और कहा यह सब आरक्षण के कारण हुआ है।
मैं बैठा बैठा सुन रहा था । काफी इन्तजार के बाद मेरा भी नम्बर आया। माईक पर पहुंचते ही मैंने पूछा: ' खण्डेलाजी ! सेमीनार का विषय तो ' आरक्षण ' था , यह ' मीणा ' कैसे बन गया? क्योंकि आरक्षण पर तो कुछ ही बोले , बाकी तो सब मीणों पर ही बोले ।खण्डेलाजी व अन्य सभी हंस कर रह गये और करते भी क्या ?
' आरक्षण ' के आलोचक ब्राह्मण माईक के सामने ही बैठे थे । मैंने उनके मुखातिब होकर कहा कि यदि मीणों ने ' आरक्षण ' के सहारे कुछ प्रगति की है तो इसमें गलत क्या है ? आरक्षण उनको दिया ही आगे बढ़ने के लिए था । आरक्षण संविधान द्वारा दिया गया है और संविधान बदलने पर समाप्त भी हो सकता है ।पर यदि आपको मीणों से तकलीफ है तो वह जाने वाली नहीं है , क्योंकि मीणा इस भूभाग का , जिस पर आप बैठे हैं , का एक हजार वर्ष पूर्व तक शासक रहा है , वह इस देश का मूलनिवासी है वह कहीं जाने वाला नहीं है ,जबकि आप तो विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज हैं । इतना सुनते ही वे भड़क गये । 20-25 थे , सब खड़े होगये । एक छापा तिलकधारी ने पूछा , हम ब्राह्मण कहां से आये ? मैंने कहा बैठ जाईये , उत्तेजित मत होईये । आपके उत्तेजित होने और आंख दिखाने से कोई डरने वाला नहीं है,बीस क्या बीस हजार हों तो भी कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है और जिस दिन हमने आंख दिखानी शुरू कर दी , आप सामने खड़े नहीं रह पायेंगे। आपने मीणों के बारे में अतिशयोक्ती पू्र्ण बातें कही हैं, ईश्वर करे आपका कथन सही हो ।आपने तो बिना प्रमाण के बात कही है , मैं प्रमाण के साथ कहूंगा ।आपके पू्र्वज आर्य के रूप में यूरेशिया के काकेसस नाम के क्षेत्र से आये , जहां आज आर्मेनियां और जोर्जिया नाम के दो छोटे छोटे देश हैं । यह बात इतिहास में लिखी है और इतिहास आपके ही इतिहासकारों ने लिखी है , हमारी लिखी हुई नहीं है ।हमें तो आपके पूर्वजों ने शिक्षा का अधिकार ही नहीं दिया था । मूलनिवासियों को शिक्षा का अधिकार तो 1854 में अंग्रेजी सरकार के लार्ड मैकाले ने दिया था ।
यह सुन कर सारे हाल में सन्नाटा छागया । प्रतिकार की कोई गुंजाईस ही नहीं थी । इतिहास को कौन झुंठला सकता है ? कुछ और वक्तव्यों के बाद सेमीनार समाप्त होगई ।
बाहर आकर जब मैं अपनी गाड़ी में बैठने लगा तो कुछ ब्राह्मण पास आकर बोले : ' आपने तो आज ब्राह्मणों के खिलाफ़ बहुत बोला ' । मैंने कहा ' वह तो आपने बुलाया , वरना हम तो आपका सम्मान करते हैं ,दान - दक्षिणा देते हैं , रोज आटा देते हैं । मैंने आगे कहा कि एक बात जो मैंने वहां नहीं कही वह अब कह देता हूं ।'हम आदिवासी हैं , मांसभक्षी हैं , यदि किसी ने हमारे विकास का रास्ता रोकने की कोशीश की तो हमें हथियार की जरूरत नहीं है , हम उनको बटकों से खा जायेंगे '। इतना सुनते ही वे ऐसे भागे कि मुड़ कर भी नहीं देखा ।इस घटना का जिक्र करने पर इस से भी गम्भीर वाकया मेरे साथ दूसरी जगह पेश आया , वह बाद में कभी सुनाऊंगा ।
*बी . एल. मीना , राष्ट्रीय अ्ध्यक्ष , राष्ट्रीय मीणा महासभा*
Thursday, December 8, 2016
आर्य विदेशी आक्रमणकारियो के वंशज
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