Friday, October 21, 2016

भय से डरता आम इंसान

----भय से डरता आम इंसान----
यहां दो चित्रों को मिलाकर एक चित्र तैयार किया गया है जिसका उद्देश्य यह समझाना मात्र है कि जब गणेश चूहे पर बैठ कर ब्रह्माण्ड की यात्रा कर सकता है तो फिर आम आदमी मुर्गे पर बैठ कर अपनी यात्रा क्यों नही कर सकता है!
अब आपको ये बात अजीब लगेगी की भला कोई व्यक्ति मुर्गे पर कैसे बैठेगा और यदि बैठ भी गया तो मुर्गा बचेगा भी या उसका कचूमर निकल जायेगा!
जनाब ज्यादा मत सोचियेगा क्योकि जब गणेश जी जिसे व्यक्ति अपना भगवान मनाकर पूजा करता है वे भी तो चूहे पर ही बैठे हुए है जबकि मुर्गा का आकार तो चूहे से काफी बडा है जिससे चूहे की अपेक्षा मुर्गे पर आसानी से बैठा जा सकता है!जरा दिमाग पर जोर डालियेगा!
आज का इंसान बहुत डरा हुआ है। हर ज़िन्दगी भीतर से कितनी सहमी हुई-सी है। बाहर चाहे कोई कितना भी खिलखिलाए लेकिन भीतर किसी-न-किसी जाने-पहचाने या अनजाने डर का हल्का या गहरा साया बना ही रहता है। हर इंसान को अपने भविष्य से डर लगता है। ऐसा लगता है जैसे कि हम मौत से भी अधिक अपने भविष्य से डरते हैं। असुरक्षा की भावना ने इस कदर हमारे अंतस में अपने पंजे गड़ा लिए हैं कि हम हर बात को लेकर भयभीत हैं। असुरक्षा की इस भावना के पीछे काफ़ी हद तक हमारी महत्त्वकांक्षाओं का हाथ भी है। अपनी ज़िन्दगी में हमें सब कुछ परफ़ेक्ट चाहिए –कोई बीमारी ना हो, कोई कलेश ना हो, कोई दुख ना हो, बहुत-सा धन मिले, बड़ा-सा घर हो, लम्बी-सी गाड़ी हो, जीवनसाथी सुंदर हो, बच्चे बड़े स्कूलों में पढ़े और फिर उन्हें भी बहुत-सा धन मिले… कमाल की बात यह है कि अगर ये सब मिल भी जाता है तो भी हमारा डर कम नहीं होता! तब हमें किसी और अनहोनी के होने या फिर कुछ ऐसा घट जाने का डर सताने लगता है जो हमारे नए-नए प्राप्त सुख में बाधा डाल दें!

कुल मिलाकर बात यह कि चारों ओर हर इंसान डरा हुआ दिखता है। कुछ लोग इस डर को ज़ाहिर कर देते हैं कुछ छिपाकर रखते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो इस डर में जीते जीते इसके इतने आदी हो चुके होते हैं कि उन्हें इस डर के अस्तित्व का पता ही नहीं चलता –चाहे जो भी हो लेकिन भय का यह राक्षस हर दिल में घर किए हुए है।
यदि इन टिप्पणियों के पीछे डर की लेशमात्र भावना भी हुई तो यह ईश्वर और मनुष्य के साथ उसके प्रेम भरे संबंध का अपमान ही होगा। ईश्वर से कभी नही डरना चाहिए क्योंकि ईश्वर कभी हमारा बुरा नहीं करता। भगवान हमारे रक्षक हैं, भक्षक नहीं!

जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि असुरक्षा की इस भावना के पीछे काफ़ी हद तक हमारी महत्त्वकांक्षाओं का हाथ भी है। हमारी ज़रूरते इतनी अधिक बढ़ चुकी हैं कि उन्हें पूरा करना शायद ईश्वर के बस में भी नहीं रह गया है। अधिकांश लोग अपनी पूरी उम्र अर्थहीन कार्यों में व्यर्थ करते हैं –कोशिश उनकी यही होती है कि बस भविष्य में आराम हो जाए –लेकिन भविष्य का आराम ढूंढते-ढूंढते जीवन ही बीत जाता है और जब अंतिम क्षण ज़िन्दगी के दरवाज़े पर दस्तक देतें हैं तो आदमी बस यही सोचता रह जाता है:

जीवन सारा बीत गया, जीने की तैयारी में!

अधिकतर लोग जीने की तैयारी करते-करते ही जीवन बिता देते हैं –और जीवन को जी नहीं पाते। अधिकांश लोग केवल अपने लिए संसाधन जुटाने में ही जीवन गंवा देते हैं और किसी अन्य को प्यार, मुस्कान और समर्पण देने के सुख से हमेशा वंचित रहते हैं। लोग यदि अपने मन से भविष्य का डर निकाल पाएँ और दूसरों के लिए जीना सीख पाएँ –तभी वे जी पाएंगे। जो केवल स्वयं के लिए जीने के संसाधन जुटाते हुए जीते हैं –उनका “जीना भी कोई जीना है लल्लू?”

नोट:- मेरी पोस्ट के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति,भगवान या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी भगवान से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। पुनः मेरा मकसद किसी की आस्था को ठेश पहुचाना नही था!यदि उन्हें ऐसा लगता है तो मेरी कोई गलती नही ह ये सब मै नही पुराण,वेद एवं ग्रन्थ कहते है अतः मुझसे पहले उन्हें दोषी साबित करे
लेखक:-
जयसिंह नारेड़ा

Saturday, October 15, 2016

बेटी पढ़ाओ बेटी पढ़ाओ

खंडवा कलेक्टर -
दशहरे के अवसर पर खंडवा कलेक्टर श्रीमती स्वाति मीणा जी .......

हमे गर्व है की हमारे समाज की बहन बेटिया आगे बढ़ रही है और इससे हमारे समाज का नाम रोशन हो रहा है!
एक जमाना था जब बहन बेटियों को सिर्फ पैर की जूती समझा जाता था उन्हें पढाई से वंचित रखा जाता था!
हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है जहाँ बेटे की पढाई के लिए जमीन जायदाद तक बेच दी जाती है!जबकि बेटियों के लिए सुविधा ना के बराबर दी जाती थी!
बेटे को जहा अच्छे प्राइवेट स्कूल में रखा जाता वही बेटी को सरकारी स्कूल में रखा जाता है यहां तक की आज भी कुछ बहन बेटियों के साथ भी यही हाल होता है!
जहाँ आज समाज का एक नारी-वर्ग शिक्षित होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है, परन्तु वहाँ एक वर्ग ऐसा भी देखने को मिलता है जो आज भी अशिक्षा के दायरे में सिमट कर मूक जीवन व्यतीत कर रहा है ,और सवाल यह उठता है कि उनकी स्थिति में कितना सुधार हो रहा है ? हम प्रत्येक वर्ष महिला-दिवस बहुत धूमधाम और खुशी से मनाते हैं पर उस नारी-वर्ग की खुशियों का क्या जो अशिक्षा के कारण अपने मानवीय अधिकारों से वंचित महिला-दिवस के दिन भी गरल के आँसू पीती है l ऐसे समाज में पुरुष स्वयं को शिक्षित ,सुयोग्य एवं समुन्नत बनाकर नारी को अशिक्षित,योग्य एवं परतंत्र रखना चाहता है l शिक्षा के अभाव में भारतीय नारी असभ्य,अदक्ष अयोग्य,एवं अप्रगतिशील बन जाती है l वह आत्मबोध से वंचित आजीवन बंदिनी की तरह घर में बन्द रहती हुई चूल्हे-चौके तक सीमित रहकर पुरुषों की संकीर्णता का दण्ड भोगती हुई मिटती चली जाती है l पुरुष नारी को अशिक्षित रखकर उसके अधिकार तथा अस्तित्व का बोध नहीं होने देना चाहता l वह नारी को अच्छी शिक्षा देने के स्थान पर उसे घरेलू काम-काज में ही दक्ष कर देना ही पर्याप्त समझता है
अशिक्षा के कारण एक गृहिणी होते हुए भी सही अर्थों में गृहिणी सिद्ध नहीं हो पाती है l बच्चों के लालन-पालन से लेकर घर की साज-संभाल तक किसी काम में भी कुशल न होने से उस सुख-सुविधा को जन्म नहीं दे पाती जिसकी घर में उपेक्षा की जाती है l
अशिक्षा के कारण नारी का बौद्धिक एवं नैतिक विकास भी उचित रूप से नहीं हो पाता l आमतौर पर घर-परिवार में यही मान्यता बनी रहती है कि नारी को घर का काम-काज ही देखना होता है,तो उसे शिक्षा की क्या आवश्यकता है ? परिवार का मानस एक ऐसी रूढ़िवादिता से ग्रसित हो जाता है,जिसमें नारी को न तो पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथा न उसे वैसी सुविधा प्रदान की जाती है l अशिक्षा का शिकार नारी अनेकानेक पूर्वाग्रहों ,अन्धविश्वासों ,रूढ़ियों ,कुसंस्कारों से ग्रस्त होकर अपने अधिकारों से वंचित हो जाती है l अगर नारी शिक्षित होकर एक कुशल इंजीनियर, लेखिका,वकील,ड़ॉक्टर भी बन जाती है , तो भी कई बार पति व समाज द्वारा ईष्यावश उसका शैक्षणिक शोषण किया जाता है l परिणामस्वरूप नारी को शिक्षित होते हुए भी पति का अविश्वास झेलकर आर्थिक, मानसिक व दैहिक रूप से उत्पीड़ित होना पड़ता है l
आमतौर पर घर-परिवार में यही मान्यता बनी रहती है कि नारी को घर का काम-काज ही देखना होता है,तो उसे शिक्षा की क्या आवश्यकता है ? परिवार का मानस एक ऐसी रूढ़िवादिता से ग्रसित हो जाता है,जिसमें नारी को न तो पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथा न उसे वैसी सुविधा प्रदान की जाती है l अशिक्षा का शिकार नारी अनेकानेक पूर्वाग्रहों ,अन्धविश्वासों ,रूढ़ियों ,कुसंस्कारों से ग्रस्त होकर अपने अधिकारों से वंचित हो जाती है l अगर नारी शिक्षित होकर एक कुशल इंजीनियर, लेखिका,वकील,ड़ॉक्टर भी बन जाती है , तो भी कई बार पति व समाज द्वारा ईष्यावश उसका शैक्षणिक शोषण किया जाता है l परिणामस्वरूप नारी को शिक्षित होते हुए भी पति का अविश्वास झेलकर आर्थिक, मानसिक व दैहिक रूप से उत्पीड़ित होना पड़ता है l
आज भी समाज में किसी न किसी रूप में नारी का शैक्षणिक स्तर पर शोषण किया जा रहा है l महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार और छेड़छाड़ ,घरों ,सड़कों,बगीचों,कार्यालयों सभी स्थानों पर देखा जा सकता है lबलात्कार,दहेज उत्पीड़न,हत्या आदि के जो मामले प्रकाश में आते हैं,उनमें से अधिकांश सबूतों के अभाव से टूट जाते हैं l बाल-विवाह की त्रासदी अनेक कन्याएं भोग रही हैं जो चाहे इन सभी का कारण नारी को अशिक्षित बनाकर उसे उसके मानवीय अधिकारों से वंचित करना है l वास्तविकता यह है कि एक शिक्षित नारी ही अपने परिवार की अशिक्षित नारियों को पढ़ाकर अपने अर्जित ज्ञान व विकसित क्षमता का लाभ पूरे परिवार को दे सकती है!
यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार की व्यवस्था ज्यादा अच्छी तरह से चला सकेगी l एक अशिक्षित नारी न तो स्वयं का विकास कर सकती है और न ही परिवार के विकास में सहयोग दे सकती है l शैक्षणिक स्तर पर कन्या शिक्षा की सदैव से ही उपेक्षा की जाती रही है व उसे केवल घरेलू कामकाजों को सीखने तथा पुत्र-सन्तान को जन्म देने के सन्दर्भ में ही प्रकाशित किया जाता है l इसलिए नारी सबसे पहले पूर्णता शिक्षित हो तभी वह शोषण व अत्याचारों के चक्रव्यूह से निकल कर मानवी का जीवन व्यतीत कर सकेगी l
इसलिए नारी शिक्षा पर अधिक से अधिक बल दिया जाना आवश्यक है!बहन बेटियों से उनके शिक्षा का अधिकार नही छिना जाना चाहिए ताकि वे आगे बढ़ने में सक्षम हो अपने निर्णय अथवा फैसले खुद लेने के काबिल बने!
बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ
लेखक:-जयसिंह नारेडा

Friday, October 7, 2016

राम राज का सच

-:-राम राज का सच-:--
काफी दिनों से ये पोस्ट लिखने की सोच रहा था!यहाँ तक की कुछ तो लिख भी रखी थी लेकिन पूरी नही कर पाया कोई ना कोई काम आ ही जाता था!
आज थोड़ा वक्त मिला तो इसे पूरा कर दिया जिसे आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हु!
बुद्दिजीवी साथियो को ये पोस्ट काफी अच्छी लगेगी और रोचक जानकारी भी मिलेगी ये पोस्ट तथ्यात्मक जानकारी पर आधारित है!
आपका ज्यादा समय खराब नही करते हुए सीधे पोस्ट पर आता हूं

राम राज का सच:--
                              आर के आकोदिया जी की पुस्तक से साभार है! ये मैंने आर के आकोदिया जी की पुस्तक से लिख रहा हु!

हिन्दू धर्म शास्त्रों की काल गणना के अनुसार चार युग -सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग और कलियुग माने गए है!
राम के जन्म के बारे और जन्म लेने के कारणों के बारे में कई ऋषियों ने लिखा लेकिन वाल्मीकीय रामायण को अधिक महत्व प्राप्त है क्योंकि वाल्मीकि राम के समकालीन थे!
तुलसीदास का जन्म 1554 में हुआ और उस समय देश मुगलो का गुलाम था इर उन्होंने रामचरित मानस की रचना की जो उच्च वर्ग में लोकप्रिय है!
राम ने मनुष्य जन्म क्यों लिया रामचरित मानस के बालकाण्ड के इस दोहे से प्रकट होता है "बिप्र धेनु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार! निज इच्छा निर्मित तनु माया गुण गो पार"!!
राम को ब्राह्मण राजा नही बनना देना चाहते थे इस दोहे से पता चलता है"बिपति हमारी बिलोकि बड़ी मातु करिअ सोई आजु!रामु जाहि बन राजू तजि होइ सकल सुरकाजू!
"सुनी सुर विनय ठाढ़ी पछितानि,भइउँ सरोज बिपिन हिमराती!देखि देव पुनि कहहि निहोरी,मातु तोहि नही थोरिउ खोरी!!"
ब्राह्मणों ने इन दोहो में सरस्वती से विनती की ह की राम राज को त्याग कर देव यानि ब्राह्मण की रक्षा करे!

अब वस्ल्मिकी रामायण में सरस्वती का कही उल्लेख ही नही है  केवल ब्राह्मण और ऋषि ब्रह्मा के पास गए का ही उल्लेख है!
वाल्मीकि रामायण में राम के जन्म को लेकर भी विचित्र विवरण है! राजा दशरथ को गुरु वशिष्ठ एवं अन्य देवो ने सलाह दी की श्रंग ऋषि को अश्वमेघ यज्ञ के लिए आमंत्रित किया जाये!
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड सर्ग-9
काश्यपस्य च पुत्रोअस्ति विभाण्डक इचित श्रुत:,ऋष्यश्रंग इति ख्यातस्तस्य पुत्रो भविष्यत!
स वने नित्यसंवर्द्धो मुनिर्वनचर सदा,नान्यम जानाति विप्रेन्द्रो नित्यं पित्रनुवर्तनात!!
द्वैविध्यम ब्रह्मचर्यस्य भविष्यति महात्मन,लोकेषु प्रथित राजन विप्रेश्च कथित सदा!!
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि श्रंग ने यज्ञ करके उसमें से आदमी प्रकट किया और उस आदमी ने दशरथ को खीर दी और इसे सब रानियों के साथ बाँट कर खाने को कहा और राजा ने ऐसा ही किया जिससे रानियों के गर्व धारण हो गया!
एक और विचारणीय प्रश्न उतपन्न होता है जैसा की बालकाण्ड के सर्ग-17 के श्लोक नम्बर 19-20 से यह पता चलता है कि जिस देवता का जैसा रूप,वेष और पराक्रम था उससे उसी के समान पृथक पृथक पुत्र उत्तपन्न हुए!सभी देव व् ऋषि मानव प्राणी थे जिनसे अवैध संबंध बनाए वे भी अबोध बलाये व् महिलाएं थी फिर बन्दर,भालू व् लंगूर के रूप में उन्हें क्यों दर्शाया गया है? भालू,बन्दर और लँगूर में भाषा ज्ञान नही होता है वार्तालाप नही कर पाते है फिर उनसे राम सीता व् रावण ने कैसे बात की होगी? उनकी बोलचाल का माध्यम क्या रहा होगा? यह भी विचार का विषय है!
वाल्मीकी रामायण अयोध्या कांड सर्ग-55
"क्रोशमात्रम तथो गत्वा भ्रातरौ रामलक्षमनो,बहनु मेध्यान मृगान हत्वा चेरतुर्युमुनावने!"
अर्थात- एक कोस की यात्रा करके दोनों भाई राम और लक्ष्मण मार्ग में मिले हुए हिंसक पशुओं का वध करते हुए यमुना नदी पर वन में विचरने लगे!
वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड सर्ग-10
ते चार्चा दण्ड करन्ये मुनयः संषितवृता
माँ सीते स्वयमागम्य शर्मयम शरणम गताः!!
मया चैतद्वच श्रुत्वा कात्स्नयें परिपालनम
ऋषिनाम दंडकारण्ये सनश्रुतं जनकात्मजे,
संश्रुत्य च न शक्ष्यामि जीवमान प्रतिश्रवम!!
मुनिनामन्यथा कर्तु सत्यमिष्टम ही में सदा!
अप्यहं जीवितं जिव्हां त्वाम् वा सीते सलक्षमाणं!!
न तू प्रतिज्ञा संश्रुत्य ब्रह्मनोभ्यो विशेषतः!

भावार्थ:- सीते दण्डकारण्य में रहकर कठोर व्रत का पालन करने वाले मुनि बहुत दुखी है इसलिए मुझे शरणागतवत्सल जानकार वे मेरे पास आये है!ऋषियों की यह बात सुनकर मैंने पूर्ण रूप से उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा की है!
मुनियों के सामने यह प्रतिज्ञा करके अब जीते जी इसे मिथ्या नही कर सकूंगा
"सीते मै अपने प्राण छोड़ सकता हु,तुम्हारा और लक्ष्मण का भी त्याग कर सकता हु किंतु अपनी प्रतिज्ञा को विशेषतः ब्राह्मणों के लिए की गयी प्रतिज्ञा को मै कदापि नही तोड़ सकता!!18 1/2)

Saturday, October 1, 2016

मीणा लम्बा गीत की 2 लाइन,मीणा संस्कृति

(1)पीतल का किवाड़ साकल बाज वाली छः,
तेरो बनगो काम चलेजा मैया जाग वाली छः!!
(2)गोरा गोरा हाथ जामे पीतल को लोट्यो,
काई पावेगी परण्या कु आगो नींद को झोको!!

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...