Thursday, April 7, 2016

भय का भूत

रात 10 बज रहे थे गांव में एकदम सुनसान माहौल था!
मन्द मन्द गति से ठंडी हवाए चल रही थी जो शरीर को ठण्ड का अहसास करवाने के लिए काफी थी!पेड़ के पत्तो व् सियार और कुत्तो के भोकने की आवाज उस सुनसान माहौल को डरावना बना रही थी!
तभी अचानक रोज की तरह बिजली चली गयी,अब गांव और ज्यादा डरावना सा लग रहा था,चारो और अँधेरा छा चूका था!तभी अचानक कुछ बजने की आवाज धीरे धीरे आ रही थी मै बाहर छत पर खाट(चारपाई) बिछा कर लेता हुआ था! उठ कर देखा तो मेरा मोबाईल ही बज रहा था वो मेरे दोस्त का कॉल था मैंने कॉल के प्रतिउत्तर देते हुए
हेल्लो...
दोस्त:-अरे कब से फ़ोन कर रहा हु उठाया क्यों नही(थोडा जोर देते हुए)
मै:-अरे यार शिव मै बाहर छत पर सो रहा था और फ़ोन अंदर कमरे में रखा तो ध्यान बाद में पड़ा!
दोस्त:-रहन्दे!सुन कल अपने घर पे प्रोग्राम(सवामनी) ह जल्दी आजा अभी बहुत काम बाकी ह यार,मै अकेला पड़ गया!
मै:-अंकल जी और तेरा छोटा भाई कहा गए जो तू अकेला लग रहा ह बाकी सब लोग भी तो है!
दोस्त:-पापा और मोनू पड़ौस के गांव भट्टी का इंतजाम करने गए ह सुबह से माल उतरना चालू होगा इसलिए सब कुछ अभी करना है!
(संयोगवस उस दिन मेरी गाड़ी भी घर पे नही थी)
मै:-मै आऊंगा कैसे गाड़ी घर नही है,पैदल काफी दूर पड़ता है!
दोस्त:-आजा यार मै ले आऊंगा रास्ते में से यदि पापा टाइम पर आ गए तो,ज्यादा दूर थोड़ी है 2 कोश(6 किलोमीटर) और तू कोनसा पूरा पैदल ही आएगा मै आ जाऊंगा लेने
मै:-भाई आने की बात नही है रात बहुत हो रही है अकेले रात में आना खतरे से खाली नही है!
देखता हु फिर भी यार
दोस्त:-हा भाई देख ले और आ ही जाना भाई काम बहुत है!
मै बहुत देर से इंतजार कर रहा था की बिजली आ जाये,कोई व्यक्ति उधर जाने वाला मिल जाये जिसके साथ मै जा सकु लेकिन निराशा ही हाथ लगी
कुछ देर बाद बैठे रहने के बाद मैंने सोचा क्यों नहीं मै ही किसी को यंहा से साथ ले चलु!
एक दो साथियो को जगाया पर कोई फायदा नही हुआ और मैंने अब अकेले जाने का मन आखिर बना ही लिया
मैंने बेग में कपड़े रखे थे और मोबाईल का चार्जर था बेग साइड में लटकाने वाला था और जूते पहनकर चल दिया!
रास्ते में कुत्तो के भुसने(चिल्लाने) की आवाज ही रात के सन्नाटे को खराब कर रही थी!
फ़ोन में गाने बजाते हुए जा रहा था लगभग 3 किलोमीटर जा चूका था तभी मैंने अपने मित्र को फ़ोन लगाया लेकिन उसका मोबाइल बन्द आ रहा था!
(मन ही मन सोचने लगा आज तो पुरे रास्ते पैदल ही जाना पड़ेगा)
हल्की हल्की सी गर्मी महसूस हो रही थी इसलिए मैंने अपनी शर्ट खोलकर बैग के ऊपर ही पटक दी और आगे बढ़ गया
कुछ दुरी पर कुत्ते एक जगह को घूरते हुए जोर जोर भोक रहे ऐसा लग रहा था मानो वहा कोई है जिस पर वे भौक रहे है!
मेरे कदम उसे देखने के लिए तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे साथ में ही मन थोड़ी घबराहट बढ़ रही थी क्योकि वहा कोई दिखाई नही दे रहा था!
(अँधेरी रात तो थी ही हो सकता है जिसकी बजह से नजर नही आ रहा था)
यही सोच कर आगे बढ़ा जिस जगह वे भौक रहे उस से थोडा ही दूर था!
अचानक मेरे पैर के आस पास कुछ दिखाई दिया मै उसे देखने निचे झुका तो वहा कुछ नही दिखाई दिया!
मानो दिल बैठ सा गया हो हिम्मत ना आगे जाने की हो रही थी ना पीछे मुड़कर देखने की ऊपर से कुत्तो की भोकने की आवाज मेरी तरफ बढ़ रही थी!एक बार हवा के झोके ने मुझे पूरा ही हिला इतना तेज था की मै गिरते गिरते बचा जैसे ही थोडा निचा झुका मुझे फिर कुछ दिखाई दिखाई दिया अब मेरी हालात खराब थे!बड़ी मुश्किल से हिम्मत बांध कर दुबारा निचे झुका तो कुछ दिखाई नही दिया!
कुछ समझ नही आ रहा था की आखिर भाग जाऊ या किसी के आने का इंतजार करू!
(यदि कुछ है तो वो मुझे यंहा भी डरा सकता है और भागूंगा तो मुझे भागने नही देगा ऐसा सोचकर आगे ही जाने का निर्णय लिया)
म मन में घबराहट लिए लड़खड़ाते हुए कदमो से धीरे धीरे आगे जाना लगा! ऐसा महसूस हो रहा था की कोई मेरे पीछे पीछे चल रहा हो उसके पीछे आने की सरसराहत कानो में साफ़ साफ सुनाई दे रही थी!
लेकिन मै हिम्मत करके बढ़ने की कोशिश कर रहा था कुछ ही दूरी तय कर पाया था कि कुछ अजीब सी आवाजे सुनाई दे रही थी मै बार-बार अपना ध्यान हटाना चाह रहा था लेकिन मेरा ध्यान चाह कर भी नही हटा पा रहा था!
समय का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ने के शिवाय मेरे पास कोई और उपाय नही था काफी आगे जाने के बाद मैंने उसी आवाज को फिर से महसूस किया!
अबकी बार हिम्मत बना चुका था ये सोच कर की कुछ है तो वो मुझे वैसे भी नही जाने देगा ना भागने देगा अब जो होगा देखा जायेगा और आगे बढ़ा
एक बड़ का पेड़(बरगद) के पेड़ में अचानक आवाज आई जो की मेरे पास में ही एक खेत में था
ऐसा लग रहा था उसमें कोई जोर जोर से कूद रहा हो! उसकी डाली टूट कर गिरेगी,पत्तो के सरसराहट की आवाज में कानो में एक दम साफ साफ आ रही थी!
रात के समय होने के कारण बरगद के पेड़ में कुछ दिखाई भी नही दे रहा था इतनी हिम्मत भी नही थी की उसके पास जाकर देख आऊ
मै अपने रास्ते यानि पगडण्डी पर निरंतर आगे बढ़ रहा था !मेरा डर अभी कम नही हुआ था!
अभी भी वह आवाज मेरा पीछा कर रही थी!आवाज मानो जैसे मेरे पैरों के पास से ही आ रही हो! जैसे कोई कुत्ता या बिल्ली मेरे पीछे चल रहा हो !अबकी बार हिम्मत करके पीछे मुड़कर देखा लेकिन पीछे कुछ नही था!मैंने अपना एक जूता खोल लिया इसी इरादे से की कही बिल्ली या कुत्ता ही हो जिससे मैं डर रहा हु उसे जूते से मारूँगा
और एक बार फिर पीछे मुड़ कर देखा तो एक सफेद सफेद सा कपड़ा दिखाई दिया और मैंने अपने जूते का प्रहार चालू कर दिया
जैसे मै घुमु वैसे ही वो मेरे पीछे पीछे घूम जाता मैंने खूब उस पर जूते मारे पर उस पर कोई ऐसे नही था अब मुझे डर ज्यादा लगने लग गया और मै भागने लग गया अब मै दोस्त के गांव के पास ही पहुच चूका था!अब मैंने अपनी शर्ट पहन ली साथ में खुद को नॉर्मल करते हुए आगे बढ़ा और उनके घर पहुच गया
सबने मेरे हाल पूछे मैंने उनको कुछ नही बताया हम कल की तैयारी के लिए काम में जुट गए और जब काम खत्म हो गया हम सो गए
सुबह मैं जगा तो चाय लेकर आई दोस्त की भाभी मुझे देख कर जोर जोर से हस रही थी!
उसने अपने पति को कान मे मेरे बारे में बताया तो वह भी हसने लगा ऐसे ही धीरे धीरे सब हसने लग गए
मैंने कारन जानना चाहा लेकिन कोई बता नही रहा था आखिर दोस्त के पापा से ही पूछ लिया
अंकल भाभी और बाकी लोग मेरे ऊपर क्यों हस रहे तो अंकल ने हँसी के साथ कहा बेटा तू रात में कौन सु कुश्ती लड़ के आयो है जो थ्यारी शर्ट माटी में बुरी तरह हो रही ह पाछ सु"
ये सुनकर मैंने शर्ट खोलकर देखी तो सच में ही ऐसी हालत थी अब मेरी समझ में आ गई थी की कल रात सरसराहट की आवाज कहा से आ रही थी
सच यही था कि जब मैंने अपने बैग पर शर्ट को रखा तो उसका कुछ भाग नीचे लटक रहा था वही जमीन से घिसट रहा था जिससे वो आवाज आ रही थी
मैंने जिसकी पिटाई की थी वो मेरी शर्ट का ही कपड़ा था! मुझे भी हँसी आने लग गयी अब उनको ये बात नही बताने का ही निर्णय लिया क्योकि फिर वे मेरी मजाक उड़ाते और मुझे चिढ़ाते
मैंने कहा-अंकल मै एक किसान भुग्गा(एक प्रकार का वाहन-जुगाड़) में बैठ के आयो जो वा  गंदो हो रियो होयगो जेसू होगी दूसरी लायो हु वाकू पहन लुंगो"
दोस्त ने कहा अब अपन दोनों फ्रेस होने चले तो मैंने कहा उस बड़ की तरफ चलने के लिए तो वो राजी हो गया
वहां जाकर देखा तो उस बड़ में लंगूर बैठे थे अब सब समझ आ चुका था कि रात में बड़ में किसकी आवाज आ रही थी
मुझे अपने आप पर हँसी आ रही थी किसी को कुछ बता नही सकता था!
हम वहां से फ्रेस होकर घर गए और फिर काम में जुट गए
इसी तरह समय बीत गया और मै वापस घर आ गया

Note:-ये कहानी काल्पनिक है इसका किसी घटना एवं पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!
इस कहानी का उद्देश्य भय के बारे अवगत करवाना है कि व्यक्ति भय से क्या क्या सोच लेता है!

लेखक:-जयसिंह_नारेडा

No comments:

Post a Comment

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...