Friday, January 7, 2022

फोकटे नेता

#फोकटे_नेता 😛

अब वह दौर आ गया जहां नेता बनना एक कैरियर जैसा हो गया।हर बेरोजगार युवा स्वयं को नेता के रूप में देखने लगा है। इस दौड़ में महिलाए यानी भाभियां कहां पीछे रहने वाली है हलाकि युवाओं में जो बीमारी थी वह छूटी नहीं। युवाओं की सबसे बड़ी बीमारी यह थी और है कि वह इंतजार करना नहीं चाहते वह जन्मजात चिता की तरह दौड़ना चाहते हैं। युवा चाहते हैं कि वह रातों रात स्टार बन जाए, रातों-रात विधायक बन जाए या दुनिया भर में उनका नाम जाना जाए। 

जब युवाओं ने नेता को कैरियर के रूप में देखा तो उन्होंने ने इसके बनने की विधि पर भी अमल किया। सबसे आसान तरीका जो काफी ट्रेंड में है आजकल फेसबुक पर लाइव आकर फोकट का ज्ञान झाड़ना चाहे मुद्दे के बारे उसे पता ही नही हो । इसमें ज्यादा मेहनत नही है बस फोकट का ज्ञान झाड़ कर लोगो मूर्ख बनाना है खुद को नेता के रूप में प्रमोट करना है। ये काम #भाभियों के लिए बहुत आसान है बस थोड़ी सेक्सी हो तो ये काम और भी आसान हो जाता है इनकी फैन फॉलोइंग बहुत ज्यादा मात्रा में होती है जो भाभी जी के थूक पर नाइस थूक लिखने से लेकर थूक चाटने वाले तक आपको आसानी से मिल जाएंगे बस भाभी को एक सेल्फी डालनी होती है। फिर देखो कमाल फैंस इन्हे विधायक सांसद फेसबुक पर ही बना देंगे क्योंकि युवाओं में भेड़ चाल पनप चुका

आपको बहस करनी हो जाती है और दूसरी बात कि आप सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। फिर लोगो भी लगने लगता है की ये भाई साहब या भाभी जी सच में मेहनत कर रहा है और वही भाभी जी और भाई साहब नेताओ के गले में माला पहनाते नजर आते है इस कदम में भी भाभियां लडको से 4 कदम आगे ही नजर आती है वे नेताओ के गले में माला ही नही डालती अपितु कमरे की सजावट भी बनती है हालांकि लोगो को तो वीडियो वायरल होने पर ही पता लगता है अन्यथा भाभी जी पवित्रता पर कोई कैसे उंगली उठा सकता है उनके फैंस तो उन्हे अपनी आदर्श मानते है। 

इन फोकट के नेताओ को मेहनत तो करनी नहीं है। जब मेहनत नहीं करनी है तो पढ़ाई कहां से करनी है। बिना पढ़े बहस तो कर नहीं सकते या कुछ नया सोच नहीं सकते। भेड़ चाल चलना है। तो अपना यह पुराना पैटर्न, ऊपर जो बताया गया उसको अपनाते हैं और राजनीति करते हैं। युवा नेता के लिए फेसबुक के लाइक और कमेंट उनके वोट की तरह होते हैं। जिसको जितना लाइक और कमेंट वह अपने आप को उतना बड़ा नेता मानता है। लाइक्स के मामले में भी बाजी भाभियां मार जाती है मारे भी क्यों नही मक्खी भी मीठे पर ही बैठती है साहब और अंत में यह कहा जा सकता है कि अधिकतर बेरोजगार युवा ' युवा नेता' बनने को इक्छुक हैं।

आजकल तो IAS अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद नेता बनने का इच्छुक रहता है काला धन तो पहले से ही जमा होता है इनकी नेता पकड़ होती है लेकिन जनता के साथ इनका अटेचमेंट केवल चुनाव के समय होता है। इन्हे समाजसेवा भी रिटायरमेंट के बाद ही नजर आती है भलेई उसी जनता को नोकरी के टाइम गेट से ही भगा दिया हो लेकिन चुनाव के टाइम वही भगवान के रूप में नजर आने लगती है।

खैर अपने को तो मजा लेना तो मजा लेने में कसर नहीं रहनी चाहिए...!!!

जयसिंह नारेङा

फेसबुक का राजनीति करण

वर्ष 2011 यही वह वर्ष था जब मैंने #फेसबुक जॉइन
किया. जब फेसबुक का मतलब भी नही पता था उस टाइम ये सिर्फ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के कार्टून डालने के ही काम आती थी शुरू शुरू में काफी अच्छा लगा वैसे नई चीजे शुरू शुरु में काफी अच्छी ही लगतीं हैं ।

ऐसा लगा कि यह एक ऐसा मंच है जहां पर हम अपने पुराने साथियों को ढूंढ सकते हैं नए मित्र बना सकते हैं. और शुरू में हुआ भी ऐसा ही .. कई पुराने मित्र जिनका केवल नाम तक ही याद था उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि वर्तमान में कौन कहाँ होंगे फेसबुक की सहायता से करीब आ गए ..बढ़िया गपशप हो जाया करता था । 

शुरुआत के 2-3 वर्षों का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा ..शुरू शुरू में हमे भी 2013 में समाजसेवा का भूत सवार हो गया था हम भी भूतपूर्व समाजसेवी हुआ करते थे समाज के लिए दिन देखे न रात लेकिन मिला क्या ?? घंटा 🔔 मीना मीणा विवाद जब पनपा तो HRD नामक एक बड़ा संगठन को खड़ा किया जिसके बलबूते समाज के बड़े बड़े संगठनों को मीना मीणा विवाद पर बोलने पर मजबूर कर दिया था लेकिन उस समय फेसबुक भसड़ ना होने के बजाय एक सार्थक बहस हुआ करती थी जिसका कोई फायदा था अब तो सीधे बात ही गाली गलौच से होती है। 
                 खैर हमको भी कहा पता था की ये जो समाज के मठाधीश बने बैठे है वो सिर्फ हमे यूज कर रहे थे क्योंकि खून में जोश था ना समाजसेवा का भेंचो समाजसेवा के चक्कर में पढ़ाई को इतनी पीछे छोड़ आए की अब लौटना बहुत कठिन लगता है जहां दिन रात इधर उधर की भाग दौड़ थी। रोज रोज समाज की मीटिंग में भाग लेना तो जैसे जिंदगी का हिस्सा ही बन चुका था । घरवालों से तक बहस हो जाया करती थी बहुत सुननी पड़ती थी कभी कभी तो खर्चा पानी तक बंद हो गया था लेकिन स्टूडेंट लाइफ बड़ी ही सेटलमेंट लाइफ होती है मीटिंग में भाग लेने के लिए कही से भी सहारा लेना पड़े लेकिन आदत से मजबूर मीटिंग में ले ही लेते थे । लेते भी क्यों नही काफी बड़ा नाम जो हो गया था हमारा उस दौर में ये अलग बात है की अब कोई पहचानता नहीं है हमारी सारी मेहनत को अकेला आदमी हड़प गया तब हम टूट गए थे खैर छोड़ो आगे की बात करते है लेकिन वर्ष 2015-16 के बाद पता नहीं ऐसा क्या हो गया कि फेसबुक और अन्य सभी सोशल मीडिया का राजनीति करण हो गया है ..।

एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक माध्यम हो गया है .. जैसे ही ऐप खोलते हैं उसपे आपके मित्र या परिजन के कोई अपडेट नहीं मिलेगें ... मिलेगें तो सिर्फ राजनीतिक पोस्ट .. और ये राजनीतिक पोस्ट आपके मित्र द्वारा ही फॉरवर्ड की गयी होगी ...।
                         यदि आज वर्तमान में औसत निकाला जाए तो लगभग 50 % से ज्यादा से राजनीतिक पोस्ट देखने को मिलती है और पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ ही रहा है .. राजनीतिक पार्टियों के IT CELL ने पूरे सोशल मीडिया को कवर कर लिया है ..।।

और यदि आप इस उम्मीद से फेसबुक मे लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया मिलेगा या किसी मित्र के बारे में कोई अच्छी अपडेट मिलेगी तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी आपको मिलेगी तो सिर्फ़ कोई ना कोई राजनीतिक पोस्ट या ऐसी कोई पोस्ट जिससे कोई राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि हो सके ... ऐसे तमाम लोग जो ये उम्मीद से लॉगिन कर रहे हैं कि कुछ नया होगा तो उनके लिए फेसबुक मे अब कुछ नहीं बचा ....।।

जिस तरह से पुरानी चीजें कुछ बदलाव के साथ नयी होकर दुबारा लौटती हैं उम्मीद करेंगे जल्द ही फेसबुक मे कुछ अच्छा हो जिससे यह एक राजनीतिक मंच ना रहकर एक सामाजिक मंच कहलाए क्यों कि इसकी पहचान खत्म होती जा रही है .....।।

जयसिंह नारेङा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...