Monday, January 23, 2017

वेदना एक किसान की

*वेदना एक किसान की*
आपके पास समय हो तो आवश्य पढ़े
एक किसान की वेदना भला एक किसान ही समझ सकता है!कहते हैं..इन्सान सपना देखता है तो वो ज़रूर पूरा होता है!मगर किसान के सपने कभी पूरे नहीं होते बड़े अरमान और कड़ी मेहनत से फसल तैयार करता है और जब तैयार हुई फसल को बेचने मंडी जाता है!बड़ा खुश होते हुए जाता है!
बच्चों से कहता है"आज तुम्हारे लिये नये कपड़े लाऊंगा फल और मिठाई भी लाऊंगा,"
पत्नी से कहता है..
तुम्हारी लुगड़ी(साडी)भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है आज एक लुगड़ी(साडी) नई लेता आऊंगा.
पत्नी:–”अरे नही जी..ये तो अभी ठीक है..!” “आप तो अपने लिये जूते ही लेते आना कितने पुराने हो गये हैं और फट भी तो गये हैं..!”
जब किसान मंडी पहुँचता है!
ये उसकी मजबूरी है!की वो अपने माल की कीमत खुद नहीं लगा पाता!व्यापारी उसके माल की कीमत अपने हिसाब से तय करते हैं!
एक साबुन पर भी उसकी कीमत लिखी होती है!
एक माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है!लेकिन किसान अपने माल की कीमत खु़द नहीं कर पाता!
खैर..
माल बिक जाता है!लेकिन कीमत उसकी सोच अनुरूप नहीं मिल पाती!माल तोल के बाद
जब पेमेन्ट मिलता है!
वो सोचता है!
इसमें से दवाई वाले को देना है, खाद वाले को देना है, मज़दूर को देना है!
अरे हाँ,
बिजली का बिल भी तो जमा करना है!
सारा हिसाब लगाने के बाद कुछ बचता ही नहीं.
वो मायूस होकर घर लौट आता है!
बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं!
“पिताजी..! पिताजी..!” कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं:-
“हमारे नये कपडे़ नहीं ला़ये..?”
पिता:–”वो क्या है बेटा..कि बाजार में अच्छे कपडे़ मिले ही नहीं,दुकानदार कह रहा था
इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे़ आयेंगे तब ले लेंगे..!”
पत्नी समझ जाती है, फसल कम भाव में बिकी है!वो बच्चों को समझा कर बाहर भेज देती है!
पति:–”अरे हाँ..!”
“तुम्हारी (लुगड़ी) साड़ी भी नहीं ला पाया..!”
पत्नी:–”कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!”
पति:– “अरे वो तो मैं भूल ही गया..!”
पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है!पति पत्नी का रिश्ता ऐसा ही होता है!जो उसके बातो और उसके चेहरे को देखकर सुख दुख को पहचान लेते है!लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है .
और अपनी नम आँखों को लुगड़ी(साडी) के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है.
फिर अगले दिन
सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद ,
एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है.
….
ये कहानी
हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है!
…..
हम ये नहीं कहते
कि हर बार फसल के सही दाम नहीं मिलते,
लेकिन जब भी कभी दाम बढ़ें, मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं!और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं!
कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती मुस्कराती हुई कहती हैं!
सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं हमारी रसोई का बजट ही बिगड़ गया!
कभी अपने बास्केट को कोने में रख कर किसी खेत में जा कर किसान की हालत तो देखिये!
कभी कोई ये नही कहता शराब या फिर मेकअप के दाम बढ़ गए है!
वो किस तरह फसल को पानी देता है!
15 लीटर दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है!
20 किलो खाद की बाल्टी उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है!
वह दिन देखता है न रात,ना सर्दी देखता है ना गर्मी, कोई मौसम नही देखता!
बीमार भी हो जायेगा तो अपने खेतों पर जरूर जायेगा!
अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है!
चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना पैर तक बहाता है!
ज़हरीले जीव जंतुओं का डर होते भी खेतों में नंगे पैर घूमता है!
……
जिस दिन ये वास्तविकता आप अपनी आँखों से
देख लेंगे!
उस दिन आपके किचन(रसोई) में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध सब सस्ते लगने लगेंगे!
अज्ञानी लेखक
जयसिंह नारेड़ा




तू की जाने प्यार मेरा....भाग-2

इसी तरह वक्त के साथ साथ इस भ्रम मतलब एकतरफा प्यार में भी प्रगाढ़ता आने लगी और यही ख्याल रहने लगा की शायद आज नही तो कल उसे मेरे प्यार का एहसास जरुर होगा और वो किसी फिल्म की नायिका की तरह मेरे पास दौड़ी चली आएगी। और मेरा ये भ्रम सदा भ्रम ही रहा । एक तरफ मैं था जो उसे पाने की खातिर कुछ भी कर गुजरने की भावना लिए बैठा रहता था। मुझे उम्मीद थी की शायद उसे कभी न कभी तो एहसास होगा ही। लेकिन मुझे क्या पता था की मोहब्बत में एहसास एक तरफ होने से कुछ नही होगा, आग दोनों तरफ होने से ही प्यार परवान चढ़ता है। मगर इसमें मेरा क्या दोष था? मेरी भावना मेरा प्यार तो निश्छल, निस्वार्थ और किसी बहते दरिया के पानी की तरह साफ़ पवित्र और पारदर्शी था।
मेरी एक बहुत बड़ी कमजोरी है, मई मित्रो पर बहुत जल्दी और ज्यादा विश्वास कर लेता हु । एक तरह से ये मेरी ताकत भी थे। मगर मेरी मोहब्बत में मेरी ये ताक़त ही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी बन गयी थी। कुछ सच्चे मित्रों की आड़ में कुछ जालसाजी मेरे मित्रो की सूचि में आ गये। और उन्होंने मेरी सपनो की रंगीन दुनिया की या यु कहे तो मेरी कथित प्रेमिका से मेरी बुराई और झूठे अवगुणों का प्रदर्शन सुरु कर दिया।
और वे मेरी मोहब्बत को भीतर ही भीतर खोखला करते गए। जिसका मुझे कभी आभास भी न हुआ। एक और बात की इसमें सिर्फ मेरे कथित मित्रो कही दोष नही था बल्कि कुछ उसकी परम मित्र जो एक तरह से परछाई की तरह थी। उन्होंने अपनी संकुचित विचारो और अपने निम्न संस्कारो का परिचय देते हुए मेरे बारे ने बिना कुछ जाने ही मेरे व्यव्हार के बारे में उस से बहुत कुछ कह दिया जिससे उसके मन में मेरे बारे में एक नकारात्मक छवि बन गयी । इसी के चलते मुझे कभी मेरी बात कहने क कोई अवसर ही प्राप्त न हुआ।
और हमारी प्रेम कहानी का सफर यही खत्म हो गया!
नोट:-कहानी का किसी घटना एवम पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!यदि इसका किसी से कोई सम्बन्ध पाया जाता है तो उसे महज एक संयोग माना जायेगा
आपका अज्ञानी लेखक
जयसिंह नारेड़ा

तू की जाने प्यार मेरा....भाग-1

कुछ दिनों से शायद मुझे उसमें कुछ अधिक ही दिलचस्पी हो रही थी, ऐसा लगता था जैसे उसके बिना सब कुछ अधुरा सा है। अगर दोस्तों में भी कोई उसका जिकर करता तो दिलो दिमाग में एक अजीब सी सिहरन पैदा होती थी। मगर उसके मन ऐसा कुछ था या नहीं मै नहीं जानता। मगर मुझे सिर्फ उसे देखना या उसके बारे में बात करना हमेशा से अच्छा लगता था। कोचिंग जाता तो भी ऐसा सोचता काश वो मुझे बस में दिख जाए। मन में एक ही विचार रहता एक एक बार उसे जी भर के देख लू तो दिल को सुकून मिल जाये। मगर उसके दर्शन भी दुर्लभ ही थे। या यु कहे तो हमारी किस्मत में उनके दीदार शायद कम ही थे। उनका और हमारा संपर्क कभी नही हो पाता था वो आगे की सीट पर बैठते और हम पीछे की सीटों पर!हमारी पहचान कोचिंग में बदमासो में होती थी!हमारे दोस्त भी उसे चाहने में लगे हुए थे और हम अपनी रफ्तार दोस्तों के लिए रोकना चाहते थे!लेकिन ये सब करना आसान नही हो पा रहा था! उनके साथ उसी बस में जाना और आना यही दिनचर्या बन गयी थी मेरी। और शाम के वक्त उनका बाहर निकलना तो होता ही न था और हमारे दोस्त भी किसी दुश्मन से कम नही थे!जब उनका निकलने का समय होता कमीने कही ना कही से टपक जाते। हम घंटों अपने घर की छत पर उनकर इन्तेजार करते रहते।
गुस्सा भी आता था लेकिन उनके सामने आते ही सब हवा हो जाता। सच कहु तो उसके सामने बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी। दिल की बात बताना तो दूर कुशल मंगल भी न पूछ सकता था। फिर धीरे धीरे उनसे मोह बढ़ता ही गया और उन्होंने हमें दरकिनार करना शुरू कर दिया । एक हम थे जो उनकी फिकर दिन रात करते और एक वो थी जो हमारी फिकर सायद कभी न करती होंगी।
मै हमेशा सपनो की दुनिया में खोया रहता था!
बस यही से हमारे प्यार की कहानी शुरू हो जाती है ...
शेष अगली किश्त में.......
नोट:-कहानी का किसी घटना एवम पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!यदि इसका किसी से कोई सम्बन्ध पाया जाता है तो उसे महज एक संयोग माना जायेगा
एक अज्ञानी लेखक की कलम से
जयसिंह नारेड़ा

Monday, January 16, 2017

कहानी मेरे प्यार की...

सुबोध कॉलेज जयपुर में बी.कॉम फाइनल ईयर में ऐडमिशन लिए मुझे एक हफ्ते हो चुके थे । एक दिन मैं कॉलेज जल्दी पहुँच गया था तो यूँ ही बालकनी से टेक लगाये इधर उधर देख रहा था ।कॉलेज के सामने नंबर 5 बस आके रुकी, मैं बस से उतरते छोटे बच्चों को देखने लगा उस बस में मेरे क्लास के भी कुछ लड़के आते थे 
बच्चे उतर चुके थे मैं बस के गेट पे ही टकटकी लगाये था। फिर जो हुआ ... उसे बयां नहीं किया जा सकता । एक खूबसूरत लड़की, पता नहीं कौन, कॉलेज ड्रेस (नीला पेण्ट और चेक शर्ट) पहने उतरी । मैं थोडा सावधान हुआ उसे देखने के लिए बालकनी के कोने पर गया । गेट से बस काफी दूर रूकती थी । वो गेट के तरफ आ रही थी । बदलियां छाई थी ठंडी हवाएँ चल रही थी । मैं भी हवाओं के साथ उड़ रहा था ।पहली नज़र में ही उसे देखने के बाद दिमाग फ़िल्मी कल्पनायें करने लगा ।
जैसे फिल्म में हीरोइन आती और उसके हर कदम हवाओं के झरोके लाते हैं और हीरो आँखे बंद किये उसे महसूस करता है । लगभग ऐसी ही स्थिति थी मेरी । वो कॉलेज में प्रवेश कर चुकी थी । मैं जल्दी से नीचे भगा ये देखने के लिए की आखिर वो किस क्लास में जाती है । मेरे नीचे पहुंचते ही वो ऑफिस में प्रवेश कर गई !कॉलेज टीचर की स्पीच के सब सब इकट्ठे हुए थे। आज दिमाग कहीं और ही था । दोस्तों ने कहा था जो लड़की दूर से अच्छी दिखती है वो होती नहीं है । मैंने सोचा स्पीच के बाद उसे थोड़ा नजदीक से देखूंगा लेकिन अभी ये निश्चित नहीं था की वो किस क्लास में पढ़ती है ।
स्पीच खत्म होने के बाद हम क्लास में गए । चूँकि क्लास में 7 पंक्तियों में बेंच लगे थे फिर भी मैं लास्ट बेंच स्टूडेंट था । क्लास में लड़कियों की लाइन आनी शुरू हुई और फिर मैं जैसे ख़ुशी से पागल हो गया आँखे फ़ैल गईं जब मैं उसे उस लाइन में देखा ।लंबे खुले बाल ,हिरन की जैसी आँखे गेहुआ रंग वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी वो । वो बैठी, जिस हिसाब से हम दोनों बैठे थे हम में सबसे ज्यादा दुरी थी । वो पहली लाइन की पहली बेंच पे मैं आखिरी बेंच पे । मैं उठा और उसे नजदीक से देखने के लिए बोतल लिए आगे गया । उसे सर झुकाये बैग में हाथ डाले कुछ निकाल रही थी ... वो वाकई बहुत ही खूबसूरत थी ... बहुत खूबसूरत । उसे एक नज़र देखकर बोतल भरने नीचे चला गया । क्लास से बाहर निकलते ही दांत पीसकर "yes yes" बोले जा रहा था । मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मुझे सपनो की रानी मिल गई हो
पानी भर के क्लास रूम में आया, क्लासटीचर आ चुके थे । उसका नाम पता चलने वाला था । फिर भी मैं नाम गेस किये जा रहा था ....... पूजा ? हम्म , नहीं ... रानी ?... हो सकता है ... या फिर धन्नों .... भक् इतना फ़र्ज़ी नाम... हा हा हा । इन्हीं कल्पनाओं में खोया था तबतक अटेंडेंस चालू हो गया । कृतिका.... प्रेजेंट सर ... ओह, कृतिका, हाँ यही नाम था उसका । कितनी मीठी आवाज थी उसकी । दिमाग में कृतिका नाम को लेकर तोड़ने फोड़ने लगा, कृतिका ... छू ... मन ऐसा ही कुछ । आज दिमाग पता नहीं क्यू बचकानी हरकते कर रहा था । हालांकि क्लास में बहुत से स्मार्ट लड़के थे और मैं तो थोड़ा भी नहीं । ये भी पता था आधा क्लास उसी के पीछे पड़ने वाला है फिर भी मैं आत्मविश्वास से भरपूर था ।
दिमाग में बोले जा रहा था ... तुम मेरी हो ..। धीरे धीरे दिन बीतते गए क्लास रूम में उसकी हर एक हरकत पे मेरी नज़र होती थी । और हर एक लड़के पर भी की कौन उसे देख रहा है । अबतक उसका नेचर जान चूका था, बिल्कुल शालीन, रंगीन दुनिया से बिल्कुल हटके, सकारात्मक विचारों वाली न मोबाइल का शौक ना इंटरनेट ।
मेरा दिमाग खोया खोया सा रहने लगा था । हालाँकि मैं थोडा बदमास मिजाज का था तो उसकी हरकत पे कभी कभी शायरी भी बोल दिया करता था और दोस्त भी वाह वाह रपेट देते थे । कुमार शानू और मोहम्मद रफ़ी के गाने सुनने और गुनगुनाने की आदत से हो गई थी ।दिन भर नेट पर उसके लिए शायरी ढूंढता लेकिन अभी तक उस से अपनी दिल की बात न कह पाया था । बी.कॉम फाइनल ईयर परीक्षा के लिए टीचर ने हमारा एक साधारण सा टेस्ट लिया। 4 सेक्शन के 400 बच्चों में से टॉप 50 में से मेरे सेक्शन के मुझे लेकर कुल कुल 10 लड़के थे जिसमे मेरा 16 वां और दूसरे का 18वां स्थान था । मेरा स्टेटस बढ़ चूका था क्लास रूम सभी लोग थोड़ी इज्जत से देखते थे । टीचर ने हम दोनों के लिए ताली बजवाई । मेरी नज़रें बस उसी को निहार रहीं थी । सब लोग मेरी ओर देखकर ताली बजा रहे थे इसी बीच कृतिका से मेरी नज़रे लड़ जाती और मेरा दिल जोर से धड़क उठता था । अब शायद वो भी मुझे कुछ कुछ नोटिस करने लगी थी । मैं उसे प्रपोज़ करना चाहता था ।
मैंने ये बात अपने कमीने दोस्त राजेश और अमित से कहा । राजेश ने कहा चल चलते हैं, इंटरवेल हो चूका था वो क्लास रूम में अकेली ही बैठी थी मौका अच्छा था । लेकिन तभी उस कमीने ने एक लड़की से कुछ कहा ... शायद कोई कमेंटबजी ....वो लड़की खरी खोटी सुना के आगे बढ़ गई ... मैंने राजेश से पूछा तेरी gf थी वो ?? उसका जवाब था नहीं । ये सब करते कृतिका ने हमें देख लिया था । मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, गेहूं के साथ घुन भी पिस चूका था । वो हमें देखकर गर्दन नीचे कर के हिलाये जा रही थी, शायद वो मेरा आकलन कर रही थी । मैं खुद की नज़रों से गिर चूका था ।कॉलेज में मेरे सबसे प्यारे 4 ही दोस्त थे(अमित,राजेश,अरविन्द और रविंद्र)
जिगरी दोस्त था वो कमीना इसलिए कुछ बोल भी नहीं सकता था लेकिन मैंने उसे ऐसा आगे न करने के लिए वार्निंग दे दी, उसे भी दुःख था । एक दिन कमीनो से कहा यार जरा उसके बारे कुछ पता कर के बता ना । दूसरे दिन उनके पास बस एक इंफोर्मेशन थी लेकिन जो थी बहुत बड़ी थी । उसे इंप्रेस करने का उससे अच्छा तरीका कोई न था । मेरे दोस्तो के मुताबिक उसे लिखना बहुत पसंद था और कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में कविता देने वाली थी । मैं आज बहुत खुश था क्योंकि उस समय भी चंद लेख मैं भी लिख लेता था । मैंने भी अपनी एक क्वालिटी वाला लेख अच्छी खासी फोटो सहित पत्रिका के लिए दे दी । महीने भर बाद पत्रिका सबके हांथो में थी । पत्रिका के मेरे हाथों में आते ही जल्दी जल्दी उसकी कविता का पन्ना खोजा । ऊपर उसकी हल्की धुंधली सी तस्वीर नीचे नाम कृतिका क्लास बी.कॉम section c।
बारिश के मौसम पर उसकी कविता थी ... थोड़ी बच्चों वाली टाइप की थी ... पर मैं बार बार उसकी कविता को पढ़ता... हर बार । क्लास में अच्छे लेखों और कविताओं की तारीफ हो रही थी । मैंने भी थोड़ी अच्छा लिखा था तो मेरी भी । कृतिका वही किताब खोले बैठी थी ... मैं उसकी तरफ देख रहा था ... तभी उसने मेरी तरफ देखा ... मुझे समझते देर न लगी की वो अभी मेरा ही लेख पढ़ रही है ... मैं भी उसी की रचना खोले बैठा था । वो कुछ सेकंड तक मुझे देखती रही और मैं भी उसे, वो मुस्कुराई मैं भी मुस्कुराया । आज दिल बाग बाग हो गया था । फिर इंटरवेल हुआ । क्लास में ... मैं और कमीना दोस्त और कुछ लड़कियां थीं ।आगे बेंच पर बैठे पत्रिका पढ़ रहे थे और जिस जिस ने रचनाएं दी थी उसे पहचाना जा रहा था ... अरे ये तो राजेश है न बे  का .. पक्का चोरी कर के दी होगी ... अबे ये कमीना अमित कबसे लेख लिखने लगा वो भी गरीबी पर .. अमिर बाप की बिगड़ी औलाद ....सबको निशाने पे लिए जा रहे थे तभी कृतिका क्लास में आई । हम चुप हो गए । बेंच पे बैठते ही कहा अच्छा लिखते हो जय बहुत अच्छा । मैंने उसे थैंक्स बोला । मेरे दिल के तार बजने लगे
दिल ने कहा बेटा लपेट ले और बात कर ले । तभी एक लड़की ने बोल दिया ये जय शायरी भी बहुत अच्छी करता है । कृतिका ने कहा "ऐसा क्या" । लड़की - अरे पता नहीं क्या तुमको तुम्हारे ऊपर सबसे ज्यादा करता है । ये सुन के कृतिका चुप हो गई .... मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया । शायद कृतिका को कुछ कुछ समझ में आने लगा था, वो अभी भी चुप थी । मैंने परिस्थिति को सँभालते हुए कहा -- अरे कृतिका वो बहुत फ़र्ज़ी है ऐसे ही बोलती है उसकी बातों पर ध्यान मत देना ... वैसे तुम्हारी कविता भी लाजवाब थी । उसने मुझे धन्यवाद देते हुए कहा तुम्हारा लेख ज्यादा अच्छा था । मैंने कहा - अच्छा सही में ? मुझे तो नहीं लगता । उसने भी मेरी बात दोहरा दी - अच्छा ? मुझे भी नहीं लगता । हम दोनों कुछ देर तक चुप रहे फिर एक साथ खिलखिला के हँसने लगे । मेरी हंसी तो वैसे हो सियार जैसी थी .... लेकिन उसकी हंसी तो इतनी सुरीली और दिल में घंटी बजाने वाली थी की बिन बादल बरसात और बिन घटा मोर नाचने लगे ।
यूँ ही हम लगभग 10 मिनट तक बात करते रहे । जब कॉलेज की छुट्टी हुई तो बस के पास बाइक निकालकर खड़ा था उसे देखने के लिए । वो आई बस में बैठी और चली गई । आज मेरा दिल उछल उछल के धड़क रहा था । तेज़ धुप भी बर्फीली ठण्ड का एहसास दिला रही थी । आज पता नहीं कौन सी आंतरिक शक्ति बाइक चला रही थी ... क्या चढ़ाव क्या ढलान कुछ् नहीं सूझ रहा था । कुमार शानू का वो गीत "पहली पहली बार मोहबत्त की है कुछ न समझ में आये मै क्या करूँ" को मेरी अंतरात्मा बिल्कुल स्पष्ट सुन रही थी । उसी का चेहरा आँखों में समाया हुआ था । रास्ते में कौन आ रहा है कौन जा रहा है कोई सुध् नहीं । घर पहुंचा हाथ मुंह धो के खाना खाया । लव सांग्स की एक लंबी चौड़ी प्ले लिस्ट बना के सुनता रहा ।
उस से कॉलेज में अब रोज बात होती । उसे कभी कभी अपनी लेख सुनाता तो कभी वो अपनी कविता। एग्जाम को 1 महीने बाकी रह गए थे, कॉलेज बंद होने वाला था । शायद अब हमारी मुलाकात 2 महीने बाद होने वाली थी । घर जाते वक़्त हम दोनों मिले ... मैंने आने वाले एग्जाम के लिये उसे बेस्ट ऑफ़ लक कहा ... उसने भी मुझे कहा ... ये भी की ... दिमाग सिर्फ पढाई पर लगाना ... कुछ दिन लेख शायरी बंद कर दो । वो मुस्काई, बाय बोला और बस में बैठ गई ... मैं बगल में खड़ा था वो खिड़की में से मुझे देख रही थी .. शायद उसे एहसास हो चूका था की मैं उससे प्यार करता हूँ । आज मैं बहुत उदास था और.. शायद वो भी । वो चली गई मैं उसे एकटक निगाहों से देखता रहा।
मेरी आँखों में आंसू थे .. तभी कमीना आया और ढांढस बन्धाने लगा । फिर मैं ये सोचकर खुश हो गया की एग्जाम खत्म होने के सबको एक दिन कॉलेज आना था ..... उस दिन हमें अच्छे रिजल्ट की शुभकामना और भविष्य के लिए हिदायत देने को बुलाया गया था । किताबों और उसकी यादों की कश्मकश के बीच एग्जाम खत्म हुआ । सभी पेपर बहुत अच्छे हुए थे, मैं बहुत खुश था । हफ्ते भर बाद कॉलेज जाना था । बहुत बेचैन था, नींद गायब थी, भूख भी बहुत कम लगती थी । दिमाग कल्पनाओ के समुन्दर में गोते खा रहा था ... कृतिका आएगी उस दिन ... क्या वो ड्रेस में होगी या किसी और लिबास में ? .... ।
आखिर वो दिन आ ही गया रात को जैसे तैसे 2 बजे सोया था और सुबह 4 बजे ही उठ गया । 7 बजे का टाइम था । जल्दी से नहा धो के हल्का फुल्का नाश्ता चाय किया । आज जींस और चेक शर्ट में स्कूल जाने वाला था । कायदे से Deo लगा के आज अपनी बाइक स्प्लेंडर प्लस उठाई अच्छे से साफ की और 6 बजे ही घर से निकल गया । चूँकि आज सारे दोस्तों से विदा होने वाला था तो वैसे भी मन भावुक था । 10 मिनट में स्कूल पहुँच गया ... कमीने दोस्त वही खडे था । बाइक से उतरकर उनसे गले मिला । एग्जाम का हाल चाल लिया गया । कमीने ने  पेट में गुदगुदी करते हुए कहा ... क्या बात है बड़ा सज धज के आया है ... मैंने उसे ठोंक दिया वो चुप हो गया ।
बहुत दोस्तों से मुलाकात हुई । बस के आने का टाइम हो रहा था ... दिल की धड़कने बढ़ रही । कभी कभी ये सोचके घबरा जाता की "वो आयेगी भी या नहीं" .... तभी मन खुद से कहता ऐसा नहीं होगा ... वो जरूर आएगी । मैं बालकनी में चला गया ... उसे उसी पुराने अंदाज में देखने के लिए जैसा उसे पहली बार देखा था ... बिलकुल उसी जगह खड़ा था । अभी इसी कंफ्यूजन में था की वो क्या पहन के आएगी ... बाकी लड़कियां खूबी सज धज के आई थीं । तबतक कुछ दूर बस दिखी ... हाँ वो 5 नंबर बस थी । मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा । बस रुकी सारे हमारी क्लास के स्टूडेंट थे । मैं लगातार देखे जा रहा था की कब वो निकलती है ... वो निकली ...
वही स्कूल की ड्रेस पहने हुए ... आँखों में वही चमक वही दमकता चेहरा ... वही शालीनता ... भला उसे और किस साज सज्जा की जरुरत थी ...। ऐसा लग रहा था मानों 1 साल पहले की घटना रिपीट हो रही हो । वही हवा के झरोंको को आँख बंद करके महसूस कर रहा था । उसकी नज़रे ऊपर उठीं उसने मुझे देखा मैंने उसे । मैंने ऊपर से ही बोला .... हाय कृतिका कैसी हो ? .. उसने कहा ... पहले नीचे तो आओ जय ... वो बहुत खुश दिख रही थी । मैं दौड़ा नीचे गया ... बिल्कुल उसके सामने आ गया ... जी किया बाहों में भरके गले लगा लूं । दिल जोरों से धड़क रहा था ।उसने उसने पूछा एग्जाम कैसा बीता ... मैंने कहा "एकदम खराब" ... उसने कंधे पर ठोंकते हुए कहा "चल झूठा .. तुम्हारा और ख़राब " । कृतिका ने कहा - बड़े स्मार्ट लग रहे हो ... मैंने भी कह दिया - "तुम भी बहुत खूबसूरत लग रही हो ... हमेशा की तरह ।और हम एक साथ हंस पड़े ।
कॉलेज का कार्यक्रम खत्म होने के बाद बोला गया की एक घंटे बाद कॉलेज की छुट्टी कर दी जायेगी जिनसे मिलना हो मिल लो । आज शायद आखिरी दिन था ... फिर पता नहीं कब मुलाकात होगी ... यही सोचते हुए हम दोनों आमने सामने बैठे थे ... आज निश्चय कर के आया था की उससे अपनी दिल की बात बोल दूंगा लेकिन समय बीत रहा था मैं बोल नहीं पा रहा था । उसकी भी हालात मेरी जैसी ही थी ... शायद वो भी मुझसे कुछ कहना ही चाहती थी .... शायद वही जो मैं उससे । कॉलेज में बीते पुराने वक़्त को याद किया जा रहा था । आँखों से आँखे मिली हुई थी ... हमें एक दूसरे की दिल की बातें पता थीं बस जबानी तौर पर कहना था जो अब बहुत कठिन प्रतीत हो रहा था । बात करते करते हमारी ऑंखें भर गई थीं ।
तभी अनाउंस किया गया की जिसे बस से जाना है बस में जल्दी से बैठ जाये । ये सुनते ही लगा मेरा दिल बाहर निकल जायेगा । पांव कांप रहे थे । ऐसा लग लग रहा था दिल की बात दिल में ही रह जायेगी । मैंने उससे कहा जाने दो ना बस को मैं तुम्हे बाइक से घर तक छोड़ दूंगा । उसने कहा मुझे कोई दिक्कत नहीं ...कोई और देखेगा तो क्या सोचेगा । पता नहीं क्यों मैं उसकी बात नहीं काट पाया । बस में बैठने के लिए एक बार फिर अनाउंस किया गया । अब मुझे चलना होगा ये कहते वो उठ गई ... उसकी आँखे नम थी ... मैं मन ही मन रो रहा था और सोच रहा की काश अभी अपने हांथो से उसके आंसू पोंछ दू। वो जाने लगी ... मैं जैसे हरासमेंट का शिकार हो रहा था ... धड़कन रुक सी गई थी । वो स्कूल के गेट पर पहुँच चुकी थी ... मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था ... मैंने आवाज लगाई - "कृतिका रुको थोडा" ।
ये सुनते ही कृतिका ने अपने पाँव वापस खिंच लिए । मैं जल्दी में लड़खड़ाते हुए उसके पास गया । अब निश्चय कर लिया था ... इस बार बोल के रहूँगा । वो गेट के पास खड़ी तो मैं उसके पास पहुंचा ... करीब .. बिल्कुल करीब । पूरा शारीर कांप रहा था । मैंने एक झटके में बोल दिया ... "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ " । मेरी नज़रे झुकी हुई थी उसके जवाब का इंतजार था ...। आखिरकार उसका जवाब आया ... "मैं भी " ।
हम एकदम शांत थे । मैंने नज़रों से नज़रें मिलाई और कहा पूरा बोलो ना ... उसने कहा ... "मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ" । ये सुनते ही ऐसा प्रतीत हुआ मानों मैं हवा में उड़ रहा हूँ ।लग रहा था बहुत बड़ा बोझ हट गया हो दिल से । जी कर रहा था कस के गले लगा लूँ पर बहुत से लड़के आ जा रहे थे इसिलिये ऐसा ना कर सका । हम दोनों खुश थे । वो बस में बैठने के लिए जाने लगी ... आँख के आंसू पोछते ... क्या ये मिलन था दो दिलों का ?? कैसा दिलों का मिलन .... जब एकदूसरे से मिलने की संभावनाये धुंधली हों । लेकिन हम सन्तुष्ट थे ।
वो बस में बैठी खिड़की में से निहार रही थी । मैं चुपचाप खड़ा उसे देख रहा था ... बस के स्टार्ट होते ही आँखों में आंसू आ गए । बस चली पड़ी .... बस .... अब सब शांत था । कुछ देर यूँ ही बाइक पे बैठा रहा । कमीने आ गये ... मैं उनसे बिना कुछ कहे सुने गले लग गया ... वो समझ गये की कहानी बन गई लौंडे की ..... ।
अमित ने कहा पार्टी कब दे रहा है ... मैंने कहा ले लेना बे । राजेश ने कहा .... फ़ोन नंबर लिया या एड्रेस ?? ये सुनते ही जैसे मैं फिर सुन्न पड़ गया । उसके जाते वक़्त तो उसे ही निहारता रह गया इन सब चीज़ का तो ध्यान ही नहीं रहा और शायद उसके साथ भी यही हुआ था । इसी बीच फिर एक उम्मीद की किरण जगी ... रिजल्ट .... हाँ वो अपना रिजल्ट लेने जरूर आएगी । कमीनो ने कहा बेवकूफ आशिक़ उस दिन पक्का मांग लेना ।
रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले कश्मकश जारी थी ... की क्या वो रिजल्ट लेने आएगी ? लेकिन इस बार दिल भी ये बात दिल से नहीं कह रहा था । रिजल्ट लेने देर से पहुंचा । कमीनो से मुलाकात हुई .. बोला मैं भी अभी आ रहा हूँ । कृतिका कहीं भी नहीं दिख रही थी । रिजल्ट देते वक़्त सर ने शाबाशी देते हुए कहा बहुत अच्छे नंबर हैं तुम्हारे अच्छे से पढ़ना आगे । 69 % मार्क्स थे । लेने के बाद sign करने लगा रजिस्टर में तो देखा की कृतिका के कालम के आगे ट्रिक लगा है और किसी का सिग्नेचर पड़ा है । एक समय के लिये लगा जैसे दिल धड़कना बंद हो गया है ।
सर से पूछा कृतिका आई थी रिजल्ट लेने ? उन्होंने कहा नहीं ... उसके नाना जी आये थे । नाना जी ? सर ने कहा - हाँ वो अपने नाना जी के यहाँ रहती थी ... उसका घर भरतपुर है । अभी वो घर चली गई है । मैं रिजल्ट लेके बाहर आ गया । उसकी एक सहेली से पूछा -- उसने कहा उसके पास फ़ोन नहीं था इसलिए किसी के पास उसका नंबर या एड्रेस नहीं है ।शिद्दत भरी मोहब्बत ... धूमिल होती दिख रही थी । अब सब सामान्य था या असामान्य ... कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसे दुबारा मिलने की सारी संभावनाये खत्म हो रही थीं । बेचैनी ने घेर लिया था ।ऐसा लग रहा था मुझे ऑक्सीजन की कमी हो रही थी सही से साँस नहीं ले पा रहा था । सब कुछ बर्बाद प्रतीत हो रहा था । कमीने आये. मेरे कंधे पे हाथ ठोंक के बिना कुछ कहे चुपचाप घर को निकल लिया । मैं भी घर चला आया था ।
दिमाग में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे ।
कही कृतिका के प्यार का इकरार झूठा तो नहीं था या फिर वो महज मजाक तो नहीं था ??
लेकिन दिल इस बात की कभी गवाही नहीं दे सकता ।
वो ख़ुशी झुठी नहीं थी ...
वो हंसी झुठी नहीं थी ...
वो आंसू झूठे नहीं थे ...
फिर वो प्यार का इकरार कैसे झूठा हो सकता है ।
इस घटना को 3 साल पुरे हो चुके हैं,
तब से फिर कभी मुलाकात ना हुई ... कभी कभी सपनों में दिख जाती है । आज भी कभी फेसबुक पे कृतिका नाम से रिक्वेस्ट आ जाती है तो दिल झन्ना उठता है । पागलों की तरह उसकी प्रोफाइल चेक करने लगता हूँ .... लेकिन ये मेरी कृतिका नहीं होती है .... शायद किसी और की ।
आज भी अपने कॉलेज में नए सत्र प्रारम्भ होते है शून्य संभावनाये लिए एक बार अवश्य जाता हूँ सिर्फ और सिर्फ यादों को जीवित रखने के लिए ....उसी बालकनी में खड़ा हो कुछ पल इधर उधर देखता हूँ ----
उसकी निशानी के नाम पर वही पत्रिका में छपी उसकी एक धुंधली तस्वीर और कविता है ।
उसकी धुंधली तस्वीर देखकर डर जाता हूँ कहीं यादों में भी उसकी तस्वीर ऐसे ही धुंधली न पड़ जाये ।
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बड़ी शिद्दत से मुहब्बत की थी जिससे,
दिल अभी भी दिल से कहता है आयेगी वो इक दिन ---|
नोट:- इस कहानी का किसी घटना एवं पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!यह एक काल्पनिक कहानी है!यदि इसका किसी से कोई सम्बन्ध पाया जाता है तो वह एक संयोग माना जायेगा !
कहानी थोड़ी लम्बी हो गयी है लेकिन मुझे यकीन है आप लोगो को पसंद आएगी
छोटा सा और अज्ञानी लेखक
जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...