Wednesday, December 21, 2016

शनिवार या शनि का वार(एक झूठे भय का नाम)

शनिवार या शनि का वार

बड़ी गंभीर समस्या है आज की पीढ़ी के लोगो की आज का इंसान भी इतनी शिक्षा और विज्ञानं के युग में भी अपने अंदर एक भय बनाये हुए रख रहा है!
सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है!पता नही उसके मन में किस बात का डर बना हुआ है!
हकीकत यही की उसको डर इस बात का लग रहा है जो है ही नही,बस अपने दिमाग पर काबू नही कर पा रहा है!
खैर छोड़िये सीधे पॉइंट पर आते है!
हम रोज की तरह अपनी कोचिंग जा रहे थे,मै रोज की तरह अपने दोस्तों से पहले ही पहुच कर स्टैंड पर खड़ा हो जाता हूं और उनका आने तक इंतजार करता हु!आज भी वही हुआ मै इंतजार कर रहा था इतने मेरे दोस्त आ गए!
आज कुछ दोस्त बड़े अजीब लग रहे थे माथे पे चंदन का टीका तो किसी के सिन्दूर का टीका लगा हुआ था!
मैंने उनका ये नया रूप देखा तो रहा नही गया और पूछ ही लिया
"भाई आज सुबह सुबह मंदिर से आये हो क्या"
इस पर उनका बड़ा सरल सा जबाव मिला"नही यार आज शनिवार है ना तो हम व्रत है और भगवान के आशीर्वाद के रूप में हे टिका लगाये हुए है!
मेरी आदत है ही जब तक मन को संतुष्ठी नही मिल जाती तब तक प्याज के छिलकों की तरह उतारते रहो! वस् मै सवाल पर सवाल किए जा रहा था जिनका जबाव शायद उनके पास था ही नही,वे बार बार यही कह कर मेरी बात को टाल देते की" तू तो मानता ही नही है फिर हमें बताने का क्या फायदा"
हालाँकि वे सही ही कह रहे थे की जब मै मनाता ही नही हु तो उनका बताने का कोई फायदा नही था लेकिन मेरे मन में उपज रहे प्रश्नों का जबाव मुझे चाहिए थे!
मेरे अंदर जानने की जिज्ञासा बढ़ रही थी
हम बस में सफर करके कोचिंग वाले स्टैंड पर उतरे जहा से कोचिंग 100 मीटर की दुरी पर थी!
स्टैंड का भी आज अजीब सा हाल बना रखा था मैंने वहां देखा की लोहे की चद्दर को काट कर एक जगह पीपे पर रखा हुआ था जिस पर कोई आकृति बनी हुई थी!
और इसकी तरह आकृति स्टैंड पर तीन चार जगह रखी हुई थी!
इन सभी आकृतियों(तस्वीरों) के आगे एक बड़ा सा पीपा भी रखा हुआ था जिनमे कुछ मात्रा में सरसों का तेल था! और उन आकृतियों के ठीक पास एक दीपक जल रहा था जिसमे कुछ सिक्के भी पड़े हुए थे!उन लोहे की चद्दरों में एक समानता थी वह थी उन सभी में एक जैसी आकृति थी जो की काले रंग या ऑयल से बनाई गई थी!
जैसे ही हम बस से उतर कर आगे बढ़े तो मेरे साथी मित्रो ने उस आकृति के आगे सर झुकाया और कुछ सिक्के भी उस दीपक में डाल दिए,ऐसा एक ही मित्र ने नही अपितु उसे देखकर सभी करने लगे!
मै ये सब खड़े खड़े देख रहा था,अब मेरे अंदर प्रश्नों की संख्या बढ़ चुकी थी जिनका जबाव शायद ही मेरे मित्रो के पास था !उनकी देखा देख काफी लोग वहां आकर अपना सर झुका कर सिक्के उस दीपक में डाल रहे थे कुछेक तो पीपे में भी डाल रहे थे!
पास में ही एक बूढी सी औरत एक प्लास्टिक की पन्नी पर बैठी हुई थी वह काफी थकी हारी सी लग रही थी,आँखों में बेबसी साफ नजर आरही थी,उसे अपनी पेट की भूख मिटाने के लिए भोजन की आवश्यकता थी जिसके लिए वह वहां बैठ कर लोगो से पैसे देने की गुजारिश कर रही थी जबकि लोग उसे अनदेखा कर रहे थे,कुछ लोग कह भी रहे थे "इनको तो कोई है नही सुबह सुबह मांगने आ जाते है"
हमारी कोचिंग को शुरू होने में अभी 30 मिनिट बाकि थी इसलिए मैंने दोस्तों के साथ 30 मिनिट वही गुजरने की अपील की !
इस पर मैंने उन लोगो को सहमत कर लिया था!अभी पुरे 10 मिनिट भी नही हुए थे और उस आकृति पर काफी लोगो ने सिक्के चढ़ा दिए थे!कुछ लोग तो पास की एक दुकान से 10 रूपये का सरसो का तेल लाकर भी उस पीपे में डाल रहे थे,ऐसा उस ही आकृति के साथ नही हो रहा था अपितु सभी आकृतियां बड़ी जल्दी मालामाल होती नजर आ रही थी लेकिन अभी भी उस बूढी औरत के पास मात्र 2 रूपये ही आये थे!
मेरे सब्र का बांध टूट चुका था मैंने आखिर पूछ ही लिया"भाई ये आकृति किसकी है जो तुम लोग इसके आगे सर झुकाकर सिक्के और तेल डाल रहे हो"
मेरी इस बात को सुनकर वे हँसने लगे जैसे मैंने कोई जोक्स सुना दिया हो ये मेरी समझ से बाहर था तभी एक दोस्त सोनू ने कहा"अरे तू इसे नही जानता ये शनि महाराज की मूर्ति है आज के दिन इसकी पूजा होती है,यदि ये किसी के पीछे लग जाये यानि इसकी कुदृष्टि पड़ जाये तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है!इसलिए इसे खुश रखने के लिए तेल डालते है और इसकी पूजा होती है!"
मेरे लिए ये जबाव पर्याप्त था ये समझने के लिए की ये मूर्ति किसकी महाराज की है,ऐसा नही था कि मै शनि के बारे में नही जानता था बल्कि मै सिर्फ उस मूर्ति या आकृति से अनभिज्ञ था!
मेरे समझ में सारी बात आ गयी थी की वे उसके आगे क्यों झुक रहे थे!
मै यही सोच रहा था कि इतनी पढाई का क्या फायदा जब आदमी इन आडम्बरो और पाखंडवाद से नही निकल पाया हो
अभी तक मानसिक गुलामी से पीछे नही छुड़ा पाया है अपनी आगामी पीढ़ी के लिए भी यही भ्रम और डर बनाकर रखेंगे ताकि वे भी इसी तरह के पाखंडवाद से नही उभर पाये और जीवन भर डर डर कर जीता रहे!
आज का इंसान पहले ही बहुत समस्याओ से डरा हुआ है उसे इतना डरा दिया जाता है कि वह कोई भी काम करने से पहले अपना ध्यान उस पर केंद्रित कर ही नही पाता है!

चलिये इसी शनि महाराज का उदाहरण ले लेते है!

लोगो के मन में ये डर बन गया है कि शनि महाराज की कुदृष्टि हमारे ऊपर ना पड़ जाये अन्यथा उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा,
बहुत बार देखने को भी मिलता है जब लोग कहते है कि यार मेरा ये काम बनते बनते बिगड़ गया
अपनी असफलता को छुपाने के लिए वे उस का दोष दुसरो के ऊपर यानि भगवान या शनि के ऊपर मंढ देते है!और बड़ी शौक से कहते है मेरा काम होने ही वाला था पर शनि की नजर लग गयी
या फिर यु कहे की काम तो हो जाता पर भगवन को यह मंजूर नही था!
चलिये छोड़िये

वापस कहानी पर आते है!

मैंने अपने दोस्त की बात सुनकर पूछ लिया भाई फिर अभी तो आप कह रहे थे की शनि वार के दिन हनुमान जी का व्रत रहते है ये शनि की दृष्टि से बचाता है!
अब मेरे मित्र के पास जबाव नही था उसने अपना पुराना डायलाग छोड़ दिया
"भाई तू मानता नही है तेरे समझ नही आएगा"

हमारी कोचिंग का समय हो लिया था और लगभग 3 घण्टे वहाँ पढ़ कर वापस घर जाने के लिए स्टैंड पर आये तो देखा की वे पीपे तेल से भर चुके थे उनकी जगह दूसरे पीपे रखे जा रहे थे!
मैंने पीपे बदलने वाले भाई से पूछ लिया
"भाई अब आप इस तेल का क्या करोगे,शनि महाराज का भंडारा या कोई धार्मिक काम में लगाओगे"
उसने मेरी तरफ घूरते हुए बोला"ना भाई इस से कोई भंडारा नही होगा हम इसे बाजार में बेचते है और अपना गुजारा करते है!
इतने में ही मैंने अपना दूसरा सवाल कर दिया "भाई यदि आप इसे बेचोगे तो शनि के दृष्टि आप पर नही पड़ेगी"
इस बात पर उसका जबाव बड़ा ही मजेदार था
"हम शनि के पुजारी है हम पर दृष्टि नही डालता"
मै मन ही मन सोच रहा था जिन्होंने तेल चढ़ाया वे नकली भक्त थे शायद तभी तो उन पर दृष्टि डाल देता है!असली भक्तो को तो उसका तेल बेचने के साथ साथ उसके रुपयों को खर्च करने की भी छूट प्रदान कर रखी है!
उसका जबाव सुनकर मेरे दोस्तों के चहरे की रौनक भी खत्म हो चुकी थी !
मैंने उस मूर्ति के सिक्के डालने से बेहतर 20 रूपये के समोसे उस बूढी औरत को ला कर दे दिए!जिस पर मेरे दोस्तों की प्रतिक्रिया अजीब दिखाई पड़ी वे मुझसे कह रहे थे "भाई इनका रोज का यही काम है इनके पास सब कुछ होते हुए भी मांग कर ही खाना पसंद करते है!ये मेहनत तो करना चाहते ही नही है बस फ्री का चाहिए"
इस बात को सुनकर मै आप में कुंठित सा हो गया
"यार क्यों बकवास कर रहा है शनि को कोनसे तेल और रुपयों की जरूरत है जो तुम लोग उसे नही मांगने पर भी बड़े शौक से चढ़ा कर आते हो,
उसे क्यों फ्री में देते हो"मैंने रूखे मन से कह दिया
फिर हम वहां से चल दिए और घर आ ही तो गये लेकिन मेरे दोस्त पुरे रास्ते चुप ही रहे उनके मुख से कोई शब्द नही निकल रहा था

लेखक:-
#जयसिंह_नारेड़ा

मनचली

सुबह का समय था,चिड़िया चहक रही थी!
सूर्य पूर्व से उदय हो रहा था और अपनी लालिमा चारो तरफ फैला रहा था!सूर्य की लाल किरणे घर में पड़ती हुई बहुत अच्छी लग रही थी!ऐसा लग रहा था मानो घर सुंदरता बनाने के लिए उसमे चार चांद लगा दिए गए हो!
ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी!घर के आंगन में लगे नीम के पेड़ की टहनियां हवा के झोंके से आपस उड़ कर एक दूसरे गले मिल रही थी!
ऐसा प्रतीत हो रहा था जाने काफी दिनों बाद मिलने का अवसर मिला हो जिससे वे आपस में खेल रही हो!
"अजी!सुनते हो आज छेङी(बकरिया) खोलने का विचार नही है क्या"सन्नो ने रवि को बाड़े(बकरियों के रहने के लिए बनाया गया स्थान) में से आवाज लगाई!
रवि अलगाव(आग) जलाकर बैठा हुआ था! हाथ में हुक्का लिए उसे सुलगा रहा था!वह सन्नो की आवाज को अनसुना करते हुए हुक्का पीने में व्यस्त रहा!
"दही राख्यो है शाम की रोटी रखी है बाजरा की उनको खा कर चले जाना बाद टिन्नू के हाथ भेज दूंगी"सन्नो ने फिर कहा
रवि ने अब हुक्का रख कर नहाने लग गया और नहा धोकर और रखी हुई बाजरे की रोटियों को खाकर छेड़ी(बकरियों) को जंगल के लिए खोलने के लिए बाड़े में चला गया!
"अरे इनको पानी पिला दिया क्या"रवि ने सन्नो की तरफ देखते हुए पूछा
"कहा से पिलाऊँ सुबह सुबह पानी,जाते वक्त सरपंच के कुंडे पर पिला लेना"सन्नो ने थोड़े तेज स्वर में बोला!
रवि अपनी बकरियों को खोलकर ले जाता है!कंधे पर पानी की बोतल और कुल्हाड़ी रख कर चलता है!रवि रोज की तरह गीत गाते हुए रास्ता तय करता है और रास्ते में जहाँ सरपंच का कुंडा के पास बनी खेड़(पानी भरनी की जगह) पर बकरियों को पानी पिलाता है!
यही पर वह अपने साथियों का इंतजार भी करता है और सभी के आने पर एक साथ जंगल की ओर निकल जाते है!
थोड़ी देर में मुन्ना,हरिया,और गोपाल भी अपनी बकरियों को लेकर आ जाते है और चारो बकरियों के लेकर जंगल की तरफ दो लोग बकिरियो के आगे और दो पीछे पीछे चलते है!

आज हरिया थोड़ा उदास सा लग रहा था इसे देखकर मुन्ना मजाक बनाता है!
मुन्ना:- गोपाल मुझे तो इस्यो लागे आज या बेचारा कु भूखो ही भगा दियो दिखे,चुप चाप मुह लटकाये जा रहा है"!
(इस बात पर हरिया अपनी उदासी को तोड़ते हुए)
"नही ऐसी कोई बात नही है"कह कर अपनी बात खत्म करता है!
इसी तरह हँसी मजाक में दिन व्यतीत हो जाता है!शाम को थके हारा रवि घर आता है! सन्नो को चिड़ाते हुए कहता है!
"अरे ओ भागवंती अब चाय तो पिला दे सुबह से घर से बाहर है कभी खबर तो ले लिया कर"
सन्नो इसका कोई प्रतिउत्तर नही देते हुए अपने काम में लगी रहती है!उसके दूसरी बार कहने पर
"तुम्हे तो बस अपनी ही सूझती है मै घर पर कोनसी खाली ही बैठी रहती हूं!तुम्हे तो घर की फ़िक्र है नही"सन्नो चिढ़ते हुए अंदाज में कह देती है!
"ओह्ह रवि काई कर रहो है,खेत पे सोने चलेगा क्या सुना है रोजड़े आकर गेहू को खा जाते है"गोपाल खासते हुए घर में अंदर प्रवेश करता है!
गोपाल का घर रवि के घर के पीछे ही था और खेत भी पास पास थे!जिसकी बजह से दोनों में बड़ा प्यार था!लेकिन गोपाल की नीयत ठीक नही थी,पुरे गांव में उसकी बदमासी के चर्चे आम तौर पर चलते थे!
गोपाल चालक होने साथ साथ शरीर से भी हष्ट पुष्ट था!एक ही कमी थी अभी उसकी शादी नही हुई थी और ना ही उसके आगे पीछे कोई था!अकेला रहता मन जो आता करता रहता था!उसकी सन्नो पर काफी दिन से नजर थी लेकिन सन्नो का कोई संकेत नही मिल पा रहा था!
सन्नो और रवि की शादी को हुए अभी डेढ़ वर्ष(1 वर्ष,6 माह)ही गुजरे थे! लेकिन ऐसा लगता नही था कि उनकी शादी को डेढ़ वर्ष हो गए है!
"नही यार मै तो खेतो पर नही जाता हूं छेड़ी न में सु ही थको हार आऊँ फिर इतनी हिम्मत नही बचती"रवि ने असमर्थता जताते हुए कहा
उन दोनों की बात को सन्नो भी सुन रही थी उससे बोले बिना रहा नही गया और कहने लगी
"भाई साहब,याकू तो काम करते ही जोर आवे,खेत न कु तो कभी जाके को संभाले"
(गोपाल को तो शायद इसी बात का इंतजार था कि सन्नो से बात करने का मौका मिले)
रवि थोड़ा झुंझलाते हुए"ठीक है अब जावा करुंगो अब चाय तो पिला दे,गोपाल आजा बैठ चाय पीकर जाना"
(कुछ ही देर में सन्नो दोनों के लिए चाय बना लाती है और वही नीचे चूल्हे पर बैठ जाती है)
रवि ने भी अब गोपाल के साथ खेतो पर सोने का मन बना लिया था !
गोपाल रोज किसी न किसी बहाने से रोज रवि के घर जाता रहता था!और सन्नो से मजाक करने का कोई मौका नही छोड़ता था!
सन्नो भी मजाक करने में कोई कसर नही छोड़ती थी!ये बात अब पड़ौसियों को अखरने लग गयी!सन्नो को वे गैर चलन की महिला समझने लगे थे ये बात सन्नो के जेठ और ससुर को पता चली तो उन्होंने सन्नो को बुरा भला कहना शुरू कर दिया!
रवि घर लौटा तो सन्नो ने उसे कुछ भी नही बताया वह अपने अंदर ही अंदर जहर का घुट को दबाये हुए थी!वह नही चाहती थी की उसकी बजह से घर में किसी भी प्रकार का कोई झगड़ा हो लेकिन किस्मत शायद कुछ और ही मंजूर था!रवि अभी खाना खाने के लिए तैयार ही हुआ था कि उसका बड़ा भाई सुग्न्या यानि सन्नो का जेठ आ गया!
"रवि या थ्यारी घरवाली को समझाले हमारा घर के आज तक कोई कालो कोनी और गोपाल कु घर बुला कर हँस हँस के बतलाती है!पड़ौसी सब उलटी सुलटी बात करते है जो हमे अच्छा नही लगता!पूरा गांव जानता है कि गोपाल किस्यो आदमी है"सुग्न्या ने पूरा जहर एक साथ उगल दिया
रवि कुछ बोलने वाला ही था कि उससे पहले ही सन्नो :-मै कोई ऐसी वैसी घर की नही हु जो मुह काला करवाउंगी,वस् वो ऐसे ही बोल लेती हूं"
रवि अब सारी बात को भांप गया कि आखिर माजरा क्या है!थोड़ी देर सोचते हुए कहता है!
"भाई मै समझा दूंगा सब तुमको कोई टेंशन नही लेनी चाहिए,मै गोपाल से घर आने की मना कर दूंगा"
सुग्न्या का गुस्सा थोड़ा कम हुआ और बड़बड़ाता हुआ घर से चल दिया!
(रवि ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नही दिया और अपने निजी काम में लग गया)
कुछ दिन तो गोपाल ने बिलकुल आना बंद कर दिया,जब बात ठंडी पड़ गयी तो फिर रोज आने लग गया अब उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी वह रवि की गैर हाजरी में ही ज्यादा आने लगा!वह जंगल में बकरियों को रवि के पास छोड़ कर कोई न कोई बहाना बना कर रवि के घर चला जाता था!
गोपाल महिलाओं की दुखती रग को पहचानता था!गोपाल दिखने में काफी सुंदर था उसका सुडौल शरीर उसे और आकर्षक बनाता था!
"भाभी म्हारो भी ब्याह करवा दे ना कही सु कोई थ्यारी बहन हो या कोई रिस्तेदारी में होय,जेसू म्हारो भी घर बस जायेगो"गोपाल ने मजाकिया अंदाज में अपना प्रस्ताव रख दिया
सन्नो कोनसी कम थी मजाक करने में उसने भी कह दिया"किसी लुगाई चाहिए तोकु!
गोपाल भाभी के शब्दो को सुन कर बड़ी खुशी के साथ कहता है"भाभी बस मुझे तो बस तेरी जैसी ही चाहिए जो घर कु संभाल सके,अब तोकु तो खूब पतों है अपना घर में कोई काम तो है ही कोनी मौज करेगी खूब"
सन्नो हस्ते हुए:- इस्यो काई देख लियो मेरे अंदर जो तो कु मेरे जैसी चाहिए!
शायद गोपाल को तो इसी पल का इंतजार था ये सब सुनकर कहने लगा"भाभी सच बात तो या है मोकू तू बहुत पसंद है,हमेशा यही सोचता हूं कि तू ही मेरी घरवाली होती,मै खूब लाड करता"
"तुम बड़े छुपे रुस्तम निकले,इतनी अच्छी लगती हु क्या मै"सन्नो ने कुटिल मुस्कान के साथ कह दिया
(गोपाल की हिम्मत बढ गयी थी उसने सन्नो का हाथ पकड़ कर अपनी और खीच ली और अपनी बाहों में भर लिया!इससे सन्नो कसमसा गयी और उसके बाहुपाश को छुड़ाते हुए दूर हुई)
"तुम तो कुछ ज्यादा ही रोमांटिक हो गए हो,किसी ने देख लिया तो मुझे घर में घुसने नही देंगे"सन्नो ने तेज स्वर में अपनी बात कह दी
वे आपस में इस तरह बात ही कर रहे थे की अचानक सुग्न्या आ गया और गोपाल को रवि की गैर हाजरी में देख उसका गुस्सा सातवे आसमान था!
"तोसे मना कर दी थी ना घर आने की फिर तू काई लेने आयो है,मै कुछ ज्यादा कहु उससे पहले निकल जा वरना तेरी खैर नही"सुग्न्या गोपाल को ललकारते हुए कहता है!
गोपाल सुग्न्या के तेबर देख कर चुपचाप घर से निकल लिया!
उसके मन के ख्बाव अधूरे रह रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए वह काफी दिन से प्रयासरत था!
गोपाल के जाने के बाद सन्नो और जेठ सुग्न्या में तू तू मैं मैं हो गयी,और सन्नो अपने कपड़े लेकर पीहर चली जाती है!
सुग्न्या को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता है!वह मन ही मन खुश था,रवि का बसा हुआ घर उसके मन में खटकता था!जिसका एक ही कारन था सन्नो,सन्नो ने अपने जेठ को मुह लगने नही दिया जबकि जेठ भी सन्नो को अपना दिल दे बैठा था,और उसे पाने की काफी कोशिशो के बावजूद सन्नो ने कोई हरी झंडी नही दिखाई थी,उसे लग रहा था कि गोपाल उसके बिच का कांटा बन रहा है!इसलिए गोपाल के प्रति ईर्ष्या भरी हुई थी!
दिन ढलता गया शाम को रवि घर आता है!
तभी आवाज लगाता है"अरे कहा गयी इन बकरियों को बाड़ा में बंद करवा दे,और काम बाद में कर लेना"
(रवि ने कई बार आवाज लगाई लेकिन उसकी आवाज का प्रतिउत्तर देने के लिए कोई नही था)
उसी ने बकरियों को बंद कर इधर उधर पूछने लगा तो पता चला की सन्नो तो पीहर चली गयी है!
अब तो मानो रवि का तो दिल बैठ सा गया था,घर के सारे काम की फ़िक्र और सन्नो की याद उसे खाये जा रही थी!रात में भी उसे नींद नही आ रही थी,जैसे तैसे रात निकाली!
सुबह होते ही रवि ने बकरियों को पानी पिलाया और गोपाल की बकरियों ने शामिल करके उससे ससुराल जाने की कह कर आ गया!
रवि नहा धोकर अपने ससुराल जा पंहुचा वहां देखता है सन्नो खाना बना रही थी!
सन्नो को देख कर मन में थोड़ी ख़ुशी हुई साथ में ससुर से बात करने का डर भी लग रहा था!
रवि की तरफ देखते हुए ससुर ललकारते हुए
"अरे छोरा,या म्हारी छोरी काई फालतू है क्या,जो इससे बेवजह लड़ते हो,ज्यादा भारी पड़ रही है तो म्हारी तो यही रह लेगी,दो रोटी इसकी और सही"
रवि जबाव देता उससे पहले ही ससुर कहने लगा"जा तेरा भाई कु और दो चार आदमी न कु लेकर आजो हम जब ही छोरी कु भेजेंगे,ऐसे तो तुम कल के जाये फिर छोरी सु लड़ेंगे,हमारी छोरी का कहा ठिकाना है फिर"
(रवि को कुछ नही सूझ रहा था उसे नही पता था कि इतनी सी बात को लेकर बात का बतंगड़ बना दिया जायेगा,हालाँकि सन्नो का मन भी जाने का ही था लेकिन बाप के डर से वह कुछ नही पा रही थी)
रवि मुह लटकाये हुए वापस अपने गांव आ गया,उसने ये बाते किसी को नही बताई थी दिल पर पत्थर रखते हुए उसने 2 माह इसी तरह निकाल लिए थे!उसका एक एक दिन एक वर्ष के समान कट रहा था,उसके दर्द कोई समझने वाला नही था!
किसी भी परिवार के सदस्य ने सन्नो के बारे में कोई चर्चा नही की थी अंत में हार कर उसने अपने भाइयो और अपने करीबी दोस्तों से सन्नो को लाने के बारे कहा !उसने उन लोगो को बड़ी विनती करके मनाया था!
2 दिन बाद वह अपने ससुराल अपने भाइयो और दोस्तों के साथ चला गया
जाते ही उसकी नजरे अपनी सन्नो को खोजने लग गयी कुछ क्षण बाद सन्नो दिख जाती है!
इस बार सन्नो खुश नजर आ रही थी मानो उसे लग ही रहा था कि जैसे आज तो रवि उसे अपने साथ ले ही जायेगा,रवि की उत्सुक दिखाई पड़ रहा था कि वह घर ले जाये!
ससुर ने सभी से सारी बात पक्की करने बाद सन्नो को जाने के लिए कह दिया की उसे दुबारा शिकायत का मौका नही मिलना चाहिए !सन्नो तो इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी!जैसे उसे जाने की अनुमति मिली वह इसतरह खुश हुई जैसे किसी पंछी को पिजरे से आजादी मिल गयी हो!
सन्नो घर पहुचते ही अपने घरेलु काम में लग गयी चुकी थी!सब कुछ पहले जैसा हो गया था
सन्नो अपने खेतों पर चारा लेने के लिए चली जाती है और रवि भी बकरियों को लेकर जंगल की ओर निकल जाता है!
गोपाल को शायद इस बात का पता था कि आज सन्नो खेतो पर गयी हुई है वह भी वही पहुच गया,आज अपने दिल की बात कहने का मन बना चुका था!उसने हल्के कदमो से जाते हुए सन्नो को पीछे से कस के पकड़ लिया,सन्नो झटपटाने लगी लेकिन गोपाल के कोई असर नही हुआ!
"देख तेरी बजह से मेरी काफी बदनामी हो चुकी है मै तुमसे बात नही करना चाहती"सन्नो ने रूखा सा जबाव दे दिया
गोपाल कहने लगा"भाभी जब प्यार किया है तो डर क्यों लग रहा है,मै किसी को पता नही लगने दूंगा!
(ऐसा कहते हुए गोपाल ने अपने बाहु पास से मुक्त करते हुए जमीन की तरह धक्का दे दिया इस धक्के से सन्नो बेखबर थी और वह सरसो को तोड़ते हुए नीचे गिर गयी,गोपाल ने थोड़ी ही देर में सन्नो की इज्जत तार तार कर दी)
"देख सन्नो मै तुझे बहुत प्यार करता हु,तुझे किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक मांग लेना,मै तेरे से दूर नही हु"ऐसा कहते हुए वह वहां से चला गया
सन्नो अपने आप में खुश भी थी क्योकि उसे शारीरिक सुख मिला काफी समय हो गया तंग और साथ साथ में दुःखी भी थी क्योकि वह ऐसा नही चाहती थी!
गोपाल तो बस अब यही फ़िराक में रहता की कब सन्नो अकेली मिले और अपनी वासना की तृप्ति करे,सन्नो भी अब उसे प्यार करने लगी थी!अब रवि से शारीरिक सम्बन्ध कम कर दिए थे,जबकि वे दोनों(गोपाल और सन्नो) जब भी अकेले रहते शारीरक सुख भोगने का आनन्द लेते थे!
दोपहर का समय था,धुप सर पर चढ़ रही थी!
सन्नो नहा धोकर छत पर अपने बाल सूखा रही थी इतने में ही गोपाल आ गया था!सन्नो भी शायद उसी का इंतजार कर रही थी,आते ही दोनों प्रेम लीला में डूब गए उनका ध्यान गेट पर भी नही गया !गेट खुला हुआ था टिन्नू जो काफी देर से ये नजारा देख रहा था वह भाग कर अपने पापा यानि सन्नो के जेठ को बुला लाया उसने जाकर कहा
"पापा गोपाल चाचा चाची को नीचे लेकर बैठे हुए है"
इस बात को सुनकर टिन्नू से कहा तू यही रह मै अभी आया और किसी को बताना मत
"ये सब क्या चल रहा,वाह संस्कारी औरत उस दिन तो परिवार की बड़ी बड़ी मिशाल दे रही थी और आज इस कुत्ते से साथ अपना काला मुह कर रही है"सुग्न्या गुस्से से बोला
(सुग्न्या ने पास पड़ी लाठी के एक चोट गोपाल की पीठ पर मार दी दूसरी मारने को तैयार हुआ तब तक गोपाल भाग निकला)
सुग्न्या सन्नो को इस नग्न हालात में देखकर अपने आप को नियंत्रित नही कर पाया और गेट लगाते हुए
"देख सन्नो जो हुआ उसे भूल जा,यदि तू चाहती की मै किसी से नही कहु तो तुझे साथ जैसा मै कहूंगा करना पड़ेगा"
(सन्नो बेवस थी कुछ कहने की जरा भी हिम्मत नही थी,बस मौन अवस्था में सिर्फ गर्दन हिलाकर कर स्विकृति दे दी)
सुग्न्या ने भी आव देखा न ताव और सन्नो की इज्जत को तार तार कर दिया!
सन्नो मन ही मन अपने किये हुए पर पछता रही थी लेकिन कुछ कर भी नही सकती थी!वह रवि को कुछ पता नही चलने देना चाहती थी!जेठ अपना मुह बन्द रखने के लिए रोज उसकी इज्जत के साथ खेलता था!उसने गोपाल को घर जाकर पीट दिया था जिसके कारण गोपाल ने तो सन्नो के सपने देखने भी बंद कर दिए थे लेकिन वह सुग्न्या से बदला लेना चाहता था और उसने सारी बात रवि के सामने उगल दी! रवि को अभी उसकी बातों पर यकीन नही हो पा रहा था!
एक दिन रवि घर से जंगल की कह कर निकल गया लेकिन वह पीछे से मकान की छत पद चढ़ कर लेट गया ताकि किसी को दिखे नही!सुग्न्या को इस बारे में कोई खबर नही थी वह तो रोज की रवि के जाने बाद अपनी प्रेम लीला करने के लिए आ जाता था उस दिन भी वह आ गया और अपने प्रेम रस में डूब गया था इन सब को रवि अपनी आँखों से देख रहा था! रवि सन्नो को गैर मर्द की बाहों में देखकर अपने आप में बहुत क्रोधित हो रहा था वहां से उठ कर एक मजबूत सी धौक की लाठी लाया और दोनों के मारने लगा जैसे तैसे करके सुग्न्या तो भाग निकला लेकिन सन्नो की रवि ने जमकर पिटाई की थी!
वह अपनी किस्मत पर रो रहा था,उसने उस दिन खाना नही खाया,सन्नो ने भी खाना नही खाया था
रवि ने अगले दिन सुबह होते ही सन्नो को घर से निकल जाने का कह दिया
सन्नो कर भी क्या सकती थी वह अपने पीहर चली गयी!
वक्त कब निकल गया पता ही नही चला था!
इस दुःख को सिर्फ वे दो लोग ही महसूस कर रहे थे
आज सन्नो को घर से गये 12 वर्ष हो गए थे उसके दो जुड़वाँ पुत्रों ने जन्म लिया था!जिन्हें वह अपने पीहर में ही पाल रही थी!
रवि को अब उसके घर वाले समझाते तो कभी दोस्त समझाता लेकिन उसके मन का क्रोध अभी भी शांत नही हो पा रहा था!
आखिर कर उसे इन सबके सामने झुकना ही पड़ा और वह 4-5 पटेलो को साथ लेकर सन्नो के गांव पहुच गया !
ससुराल में भी उसने कई पटेल इकट्ठे किये और सन्नो को ले जाने का प्रस्ताव रखा!
ससुराल पक्ष तो पहले ही तैयार था सन्नो को भेजने के लिए दोनों पक्षो की रजामंदी के बाद सन्नो को घर ले आया!
रवि अभी भी सन्नो से बात नही करना चाहता था!
लेकिन अपने बच्चों को देख कर उसका मन पिघल जाता
कुछ दिन ऐसे ही गुजरते रहे एक सन्नो ने कह दिया "यदि तुम मुझसे ऐसे ही नाराज रहोगे तो मै अबकी बार अपनी जान दे दूंगी,मै अपनी गलती के लिए माफी मांग रही हु!
रवि"तुम्हे कितना आसान लगता है ना सब कुछ भूल जाना,तू क्या समझ रही मुझसे तेरी जरूरत पड़ी थी,मै तो समाज के डर से तुम्हे ले आया हु की हर कोई कहता था कि बच्चों पर तो रहम कर"
इतनी बात सुनकर सन्नो की आँखों में आंसू निकल आते है और वह बैठ कर रोने लगे जाती है!रवि का ह्रदय इतना विशाल भी नही था कि उसे रोता देख सके
वह उसे मनाने लग गया अंततः उसने मना ही लिया,सन्नो ने वादा किया कि वह अब कभी भी ऐसा कृत्य नही करेगी
रवि ने सबकुछ भुला दिया था,अब मेहनत भी अधिक करने लगा था
अब उसे अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाना था जिससे उसका नाम रोशन हो

नोट:-कहानी के सभी पात्र, घटनाये व् स्थान इत्यादि सब काल्पनिक है!यदि इस कहानी का किसी व्यक्ति व् घटना से कोई सम्बन्ध मिलता है तो उसे सिर्फ संयोग माना जायेगा

कोई बात या शब्द बुरा लगा हो तो क्षमा करें ये मेरी कहानी लिखने की शुरुआती समय है अभी सिखने में बहुत वक्त लगेगा!
अतः आप लोगो से निवेदन रहेगा की कोई गलतीया रह गयी हो तो अवश्य बताये ताकि मै सुधार कर सकू और अपना बेहतर करने का प्रयास कर सकू!
धन्यवाद

आपका अपना छोटा सा अज्ञानी लेखक
-----जयसिंह_नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...