Tuesday, November 29, 2016

प्यार की एक अजीब दास्ताँ

~~~प्यार की एक अजीब दास्ताँ~~~
शीतकाल का मौसम था!गांव के चारो ओर सरसो के पीले फूलो के खेत ऐसे दिखाई पड़ते जैसे कोई पिली चादर बिछाई गई हो!ऐसे मौसम में गांव में लोगो के चहरो पर एक अलग ही प्रसन्नता दे रही थी!सूर्य की किरण जैसे ही निकलती लोगो का चहल पहल बढ़ रही थी!
इस गुलाबी मौसम को और ज्यादा सुन्दर बनाने वाला वेलेंगटाइन डे. यानी वह दिन जब उम्र की सीमाओ को तोडकर हर दिल रूमानी हो जाता है, वह भी आ रहा हैं। सभी को इस दिन का बेसबरी से इंतजार है और राजेश को भी, क्योकी इस बार मन मे थोडा संतोष है की हमेशा की तरह इस रूमानी मौसम मे भी वह अकेला नही था। उसके साथ इस बार वैलेंटाइन डे उसके साथ है!
पहले वेलेनटाइन डे जितना नजदीक आता राजेश की टेंशन  बढने लगती,उसका खून उतना ही ज्यादा खौलता ओर 14 फरवरी के दिन राजेश का गुस्सा और दुख दोनो अपने चरम पर होते।राजेश के इस गम का कारण था की इस दिन को प्रेम का दिन कहा जाता है प्रेमी-प्रेमीकाओ का दिन कहा जाता है और यही उसकी दुखती रग थी क्योकी प्रेमी तो वह था पर प्रेमिकाओं  को मामले मे महाशय का बैलेंस  जीरो था।राजेश साल भर भगवान से प्रार्थना करता की इस बार तो कोई लडकी उसकी गर्लफ्रेड बन जाए जिसे वह अपना वेलेनटाइन बनाकर अपने साथ के दोस्तो मे सिर उठाकर चल सकू। लेकिन लगता है की भगवान बिजी ज्यादा रहते है, उनके सामने ऐसे प्रार्थना प़त्रो की लम्बी लाइन लगी रहती होगी, इस भीड भाड मे राजेश की प्रार्थना उन तक पहुचने से पहले ही कही गुम हो जाती और राजेश की मानो इच्छा हमेशा इच्छा ही रह जाती थी।
इस गम को मिटाने के लिये इस पर कुछ मरहम लगाने के लिये 14 फरवरी को हमेशा राजेश का कार्यक्रम तय था की गले मे सफ़ेद तोलिया डालकर वेलेंगटाइन डे का विरोध करना है ओर अपनी संस्कृति को बचाना है। इस बहाने राजेश जैसो को अपने दिल के दर्द से कुछ राहत तो मिल ही जाती थी।
गर्लफ्रेंड ना होने से राजेश को कोई खास परेशानी नही थी,वह आजाद पंक्षी होकर खुश था। लेकिन अपने बाकी दोस्तो और उनकी प्रेमिकाओ को देखकर धीरे-धीरे यह उसके लिये सबसे बडी परेशानी बन गयी, और यह इतनी बढ गयी की हमेशा खुश रहते हुए भी उसकी दोस्ती दुख के साथ हो गयी।
राजेश अपने दोस्तो को देखता तो सोचता, यार उपर वाला भी कैसे कैसे गधो को लड़की से सेटिंग करवा देता है। निश्चित तौर पर राजेश भी अपने दोस्तो से किसी बात मे कम नही था। वह आकर्षक था, स्मार्ट था लेकिन ना जाने क्यो ? इस सब के बाबजूद भी कोई लडकी राजेश घास नही डालती। दूसरी तरफ उसके दोस्त दोस्त थे जिनकी सारी जेबे लडकियो से भरी हुई थी। वो एक को छोडते तो दूसरी तुरन्त उनकी बाहो मे मिलती थी। कभी कभी राजेश को लडकियो पर भी दया आती की बेचारी किन कमीनो के चंगुल मे फस रही हैं लेकिन थोडी देर बाद मे महसूस करता की लडकियो के प्रति राजेश की दया का कारण इंसानियत नही उसकी विवश्ता थी,उसके मन की जलन थी।
राजेश को लगता है की उसकी जलन कुछ हद तक सही भी थी क्योकी उसके ज्यादातर सभी दोस्त शराब और सिगरेट पीते,ओर एक राजेश था जो ना शराब ना सिगरेट और लडकी का तो सवाल ही नही था। फिर भी ना जाने वे कमीने ऐसा कौन सा जादू जानते थे जो की अवगुणो की खान होने के बाबजूद लडकिया उनकी तरफ खीची चली आती थी। सभी के गर्लफ्रेड के अकाउंट हमेशा फुल रहते थे !ठन ठन गोपाल रहे तो बस वही था। राजेश आज तक इस बात को नही समझ पाया कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यो होता था ? क्यो प्रेम के इस मेले मे बस वह ही अकेला था? क्या सच मे लडकियो की पसंद खराब होती है या उसे अपने बारे मे कोई गलतफहमी थी।
राजेश ने अपने जीवन मे गर्लफ्रेडं के आकाल पर काफी रिर्सच किया और उसके नतीजे मे पाया की लडकियो के मामले मे अपने सूखेपन के बहुत से कारणो मे से एक कारण वह भी था, या कहे की सबसे बडा कारण वह स्वंय था। जब भी वह किसी लडकी को देखकर उसे ट्राई करता, उसके पीछे पड़ने की कोशिश करता और उस कोशिश के बीच वहाँ उसका कोई दोस्त आकर अपनी टाँग अडा देता तो वह उससे कोई प्रतिद्वन्दता नही करता क्योकी उसमें लडकियो के मामले मे दोस्तों से टकराने की हिम्मत ही नही थी। इसलिये वह स्वयं अपने आप को आउट मान लेता और रिटार्यट हर्ट होकर दोस्ती का फर्ज निभाते हुए मैदान अपने दोस्त के लिये खाली कर देता। ऐसा करने से दुख तो होता था लेकिन ज्यादा दर्द तब होता जब उसका दोस्त उस लडकी को सफलतापूर्वक अपना मोबाइल न0 देकर जीत जाता था!
अगर दिन अच्छा हो और भाग्यवश इस काम मे कोई टाँग ना अड़ाये और थोडे प्रयास के बाद कोई लडकी भी राजेश को कनखीयो से देखने लगती, उसकी चोर नजरो की भाषा को समझने का एहसास कराती और स्वंय आगे बढकर राजेश को आमंत्रण देती तो ना जाने क्यो उस समय मे राजेश सुदबुध खोने लगता,उस समय राजेश की सोचने समझने की शक्ति बिना बताये हडताल पर चली जाती,राजेश की घबराहट अपने शिखर पर होती, ओर उस लडकी को छोडकर वह बाकी सभी चीजो पर  इस तरह ध्यान लगा देता !उसके चेहरे की उडती हुई हवाइयाँ और 420 की रफतार से दौडती दिल की धडकने खुद ब खुद राजेश को अपनी मंजिल से दूर कर देती और इस तरह सारे किये कराये पर पानी फिर जाता।
राजेश की परेशानी थी की वह लडकियो से दोस्ती करना चाहता था, गर्लफ्रेड बनाना चाहता था और ना जाने क्या क्या करना चाहता था। लेकिन सच तो यह है की वह लडकियो से बात करने मे भी घबराता था। किसी लडकी से बात करते समय उसके दिमाग के सारे फयूज एक एक करके उडने लगते, उसके शब्द खुद के गले को ही कसने लगते !
पिछली सर्दीयो की बात है राजेश काॅलेज मे खाली पीरीयड मे क्लास के बहार खडा होकर चारो तरफ के रंगीन नजारे देख रहा था।उसने देखा की एक खूबसूरत सी लडकी साइंस लैब मे से कंधे पर बैग टाँगे उसकी ही तरफ ही चली आ रही थी।राजेश की नजरे पूरी सर्तकता से उस पर लगी हुई थी।फासला कम होने पर उसकी नजरे राजेश की नजरो से टकरायी, नजरो के इस पहले टकराव मे ही राजेश ने अपने हथियार डाल दिये और अपनी नजरे झुका ली लेकिन उसकी नजरे राजेश पर ही टीकी रही, उसके चेहरे की चमक दर्षा रही थी जैसे वो राजेश को अच्छी तरह जानती है।राजेश भी उसके चेहरे का ध्यान करके अपनी याददाश्त के पहीये को बार बार घुमाया परन्तु फिर भी वह उसे पहचान नही पाया, लेकिन वह समझ गया की अवशय वो उसके किसी दिन की कमाई है, जिससे डरकर उसने मुह मोड लिया होगा। लेकिन इन फिजूल की बातो को नजरअंदाज करके राजेश ने ध्यान किया की वो धीरे धीरे उसकी तरफ ही आ रही थी।
अब राजेश की  धडकने उसके बढते कदमो से भी गती से भी तेज गती से बढने लगी।राजेश को वो खूबसूरत लडकी एक जल्लाद की भाती नजर आने लगी।क्योकि राजेश लडकियो के मामले मे वह अपनी हैसियत जानता था और ये समझ गया की वह इसका सामना नही कर पायेगा। अतः अपने बचाव के लिये राजेश ने अपनी किताब खोली और उसके शब्दो को इतनी तल्लीनता से देखने लगा जैसे कुछ पलो मे ही वह इसमे घुसने वाला है। परन्तु ऐसा होना नही था और ना ही हुआ लेकिन उस लडकी को राजेश के पास ही आना था और वो लगातार राजेश के नजदीक आती ही आ रही थी ।
वो मुस्कुराते हुए राजेश पास आयी और बोली ‘अरे तुम यहा कैसे, इसी कालेज मे पढते हो?’
उसके बोलते ही राजेश को लगा जैसे उसके उपर किसी ने एटम बम गिरा दिया हो,उसकी आॅखो ने उससे नजरे मिलाने से साफ इंकार कर दिया,राजेश के शब्द हकलाहट मे उलझ गये, दिमाग बता ही नही पा रहा था की कहना क्या है। बडी मुशकिल से राजेश की जुबान ने उसका बचाव करते हुए कहा ‘जी हाँ’।
उसके बाद उसने भी कुछ कहा लेकिन राजेश के कानो ने कुछ सुना ही नही । बस राजेश के मुह से इतना ही निकाला ‘मेरी क्लास शुरू हो गयी है चलता हू।’
इतना कहकर राजेश ने अपनी डूबती साँसो को बचाया। वो दिसम्बर का महीना था, कडाके की ठंड पड रही थी लेकिन क्लास रूम के अंदर जाकर राजेश ने महसूस किया की उसका चेहरा पसीनो से तरबतर था,उसकी हालत ऐसी थी जैसे वह मैराथन दौड जीतकर आया है। आप इसे भले ही मजाक समझे लेकिन उसके लिये यह मैराथन जीतने से भी ज्यादा कठिन काम था।
इस घटना मे राजेश सिर्फ अपनी कमी के कारण हाथ आया मौका या यु कहे की मुँह मे रखा लडडू गवा दिया और इसका उसे महीनो तक अफसोस भी रहा, लेकिन ऐसे अफसोस का क्या फायदा जब जब खुद ही खडी फसल मे आग लगायी हो ?
राजेश प्रेम की नैया मे बैठने मे असफल था, वही उसके दोस्त लगातार लव मैच जीतकर सफलता की सीढी चढ रहे थे। उनकी सफलता मेरे राजेश की जलन को और तेजी से जला रही थी।राजेश असफलता की आग को और ज्यादा हवा दी इन मोबाइलो ने। जब भी राजेश के किसी दोस्त का फोन आता तो वो बाकी सब को इगनोर करके तत्काल उस फोन से चिपक जाता, उसकी बातो मे एकदम मिश्री घुल जाती और वो घण्टो फोन पर लगा रहता।राजेश के यह बात समझ मे नही आती की आखिर ये साले, घण्टो फेान पर करते क्या हैं? एक दो बार उसने सुनने का प्रयास किया , सभी की लगभग ऐक जैसी ही बाते थी ’’क्या कर रही हो?.........आज क्या बनाया है?........आलू के पराठे, हमे तो गोभी के पसंद हैं..........अब हमे कब खिलाओगी......क्या पापा आ रहे है...........अच्छा गये ..........और बताओ, लगता है तुम्हे सर्दी हो गयी है...... नही आवाज ऐसी आ रही थी।’’ और भी ना जाने कितनी बाल से खाल निकालने वाली बाते, जिनका सिलसिला थमता ही नही था। इन बातो को थोडी देर सुनकर ही राजेश बोर होने की एक्टींग करता था, जबकी सच्चाई ये थी की जो ’’अंगूर ना मिले वो खट्टे ही होते हैं’’।
मोबाइल से राजेश का दर्द बस इतना ही नही था, असल मे इस दर्द का वास्तविक कारण था की इस मोबाइल की वजह से राजेश से छोटी उम्र के लड़के भी गर्लफ्रेड पाने की दौड मे कई कदम आगे निकलने लगे थे और वह ही गधे की तरह बस उन्हे आगे बढता देख रहा था! मोबाइल के कारण लव स्टोरी की शुरूवात के प्रयास और सफलता के बीच का रिस्क बहुत कम हो गया, या कहें की लगभग समाप्त ही हो गया था। अब प्यार की स्टार्टिंग से लेकर सारी बातचीत, सारे इजहरार, गुस्सा, रूठना, मनाना और ब्रेकअप सब कुछ मोबाइल फोन पर ही हो जाते हैं, और किसी को कानो कान खबर भी नही होती।
एक जमाना था जब चिटठी, जिसे प्यार की भाषा मे अँगूठा टेक भी ‘लेटर’ कहता था, प्रेमिका तक पहुचाने पडते थे। जिसे प्रेमिका तक पहुचाना अपने आप मे एक जंग मे जाना था और इस महान कार्य को करते समय पकडे जाने पर यह ‘लेटर’ बाकायदा एक पक्का सबूत होता था जो खुद शोर मचा- मचाकर चरित्र की धज्जीया बिखेर देता था। इस दुर्घटना से बचने के लिये प्रत्येक प्रेमी एक दो छोटे चेले पाले रखता था, जो उनके प्रेम की नैया को पार लगाने मे खेवन हार का काम करते थे। वैसे यह समय उन चेलो के लिये एक तरह से ट्रेनिंग टाइम होता था। इस ट्रेनिंग के सहारे ही आगे जाकर वे भी मैदान मे उतरते थे।राजेश भले ही इस खेल के खिलाडी तो नही बन पाया लेकिन बचपन से वह ये ट्रेनिंग ले रहा था!
बात उस समय की है जब मोबाइल तो दूर कस्बे मे टेलिफोन भी नही थे,जमाना लेटर और ग्रीटींगस का था।राजेश के पडोस मे एक भैया रहते थे ‘बिरजू भैया’ वो राजेश को खूब टाफी बिस्कुट खिलाते थे, इसलिये दोनों में खूब पटती थी और राजेश भी ज्यादातर उनके आस पास ही मंडराता रहता था। एक बार उन्होने राजेश को एक गुलाबी खुशबूदार लिफाफा दिया और कहा ‘‘बेटा राजेश, देख वो सामने साक्षी दीदी जा रही है ना, उनको ये लिफाफा दे आ, ध्यान रखना लिफाफा देते हुए तुझे कोइ देखे ना, समझा।राजेश उस समय उनकी बात समझ तो नही पाया था लेकीन फिर भी हाॅ मे सिर हिला दिया और बिरजू भैया की आज्ञा का पालन करते हुए फुर्ती से लिफाफा साक्षी दीदी तक पहुचा दिया और ईनाम मे उनसे 100 रूपया ऐंठकर सब कुछ वहीं भूल गया।
शाम को नुक्कड पर सारे उम्र लडको की मिंटीग जुडती थी, राजेश उन सभी मे लड़की के मामले में सबसे ज्यादा कड़का था लेकिन फिर भी उस मिटीग मे पूरा नेता बनता था। उस शाम भी राजेश अपने दोस्तो के साथ बैठा था, इनमे साक्षी दीदी का भाई भी था। इस सभा मे प्रेम पत्र चर्चा का विषय थे, सभी लडके लम्बी लम्बी छोड रहे थे,राजेश इन बातो से थोडा नादान था राजेश को सही से उनकी बातो का मतलब समझ नही आ रहा था। लेकिन जब सब लम्बी लम्बी फेक रहे थे तो भला राजेश कैसे पीछे रहता,  इसलिये नासमझी में राजेश ने कह दिया ‘‘ एक ग्रिटीेग तो मैने आज ही साक्षी दीदी को दिया है, बिरजू भैया ने दिलवाया था।’’ साक्षी के भाई ने राजेश को घूरकर देखा और गोली की रफतार से अपने घर को दौड गया। बस फिर क्या था राजेश के इन दो बोलो से तूफान खडा हो गया। इस तूफान मे साक्षी और बिरजू के परिवार वालो ने एक दिन मे ही दोनो के सिर से इश्क का भूत उतार डाला। इस तरह साक्षी और बिरजू की लव स्टोरी शुरू होते ही ‘दी एण्ड’ हो गयी, लेकिन दोनो के परीवारो की शत्रु स्टोरी का गाजे बाजे से शुभारंभ हो गया। जो अगले कुछ सालो तक जारी रही।
कुछ लोग इस  प्रेम कहानी की असफलता के लिये राजेश को जिम्मेवार मानते थे परन्तु उसने कभी ऐसा नही माना क्योकी ये सब उससे नासमझी मे हुआ था। लेकिन बाद मे उस घटना को सोचकर लगता की आज जो राजेश के साथ हो रहा है वो इसी दुर्घटना का परिणाम है।राजेश की वजह से दो प्यार करने वाले हमेशा के लिए बिछड गये। शायद उन्होंने दिल से राजेश को ‘श्राप’ दिया होगा, इसी कारण राजेश की जवानी यू ही बेरंग और सूखी कट रही थी।
यू बेरंग होती अपनी जवानी मे रंग भरने के लिये राजेश ने काफी जतन किये, बहुत हाथ पैर मारे, फिर भी राजेश को सफलता के दर्शन नही हुए। लाख कोषिशो के बाद भी राजेश किसी लडकी के दिल की धडकन नही बन पाया। धीरे-धीरे प्रेम की सफलता के सारे दरवाजे राजेश के लिये बंद होते जा रहे थे और राजेश असफलता की गहराइयो मे डूबता जा रहा था। राजेश के मन ने भी यह मान लिया था की वह खत्म हो चुका हू, अब इस रेस से बहार हो चुका है। लेकिन कमबख्त दिल इस बात को मानने को तैयार ही नही था, वो लगातार इस बात को झुठला रहा था,अपने आपको मन ही मन धिक्कार रहा था की ‘‘बुझती हुई लौ भी एक बार भभक कर जलती है’’और मैं तो बिना जले ही बुझने जा रहा हॅू , मुझे भी सबकुछ भूलकर एक बार जोर से जलना चाहिये, एक आखरी कोशिश करनी चाहिये।राजेश ने किसी रोमांटिक हिन्दी फिल्म मे सुना था की जब भी दिल और दिमाग की लडाई होती है तो उसमे जीत हमेशा दिल की होती है, और राजेश के केस मे भी यही हुआ।उसके दिमाग ने दिल के आगे सरेण्डर कर दिया और उसने एक अन्तिम रेस के लिए फिर से कमर कस ली।
वह अपने इस आखिरी प्रयास मे कोई कमी नही छोडना चाहता था इसलिए उसने अपनी खामीयो को पहचाना और उन्हे सुधार करने का प्रयास करने लगा।उसने जैसे तैसे अपने डर पर, अपनी झिझक पर काबू पाया, अपनी हेयर स्टाइल बदलकर शाहरुख़ स्टाइल करायी। अपने कपडो को भी थोडा चेक किया और पूरी तरह से फिट हो गया कम से कम एक लडकी को अपनी गर्लफ्रैड बनाने के अभियान के लिये।
अपनी तैयारियों को परखने के लिये राजेश शादी ब्याह जैसे फंग्शनो मे जाने लगा जहाँ उसकी आशाए कुछ चमकने भी लगी लेकिन वहाँ पर एक अनार और सौ बीमार वाली स्तिथि जैसे की तैसे थी। चारो तरफ दोस्तो, जानकारो की भीड और समय की कमी के चलते उसे पूर्ण सफलता के दर्शन नही हुए। लेकिन फिर भी वहा मिली कुछ आंशिक सफलताओ से उसको स्वंय पर जो अविश्वास था वो विश्वास मे बदलने लगा था।
जल्द ही उसे अपने नये नये कॉन्फिडेंस के साथ मैदान मे उतरने का मौका मिल गया।उसके पडोस मे रहने वाली पिंकी जो हास्टल मे रहकर पढती थी वो शर्दी की छुट्टियों मे घर आयी थी। इस बात का पता राजेश को तब चला जब उसने ध्यान दिया की लडके उसकी गली मे कुछ ज्यादा ही चक्कर मार रहे हैं। जब से उसने होश संभाला है ज्यादातर उसके सारे दोस्त और दुश्मन खुलकर उस पर लाइन मारते थे, वैसे राजेश भी चुपचाप उसपर लाइन मानता था और सबके सामने उसे इस तरह इग्नोर करता जैसे उसका उसमे कोई इंट्रेस्ट ही ना हो, लेकिन वो बस दिखाने के दाँत थे अगर सच कहे तो वो बचपन से ही राजेश की ड्रीमगर्ल थी।
पडोस मे रहने के कारण उससे राजेश की हाय हैलो तो थी परन्तु उससे आग कुछ नही और ना ही राजेश की कभी हिम्मत हुई की वह उससे आगे बढ सके। लेकिन इस बार हवा का रूख कुछ और था, जमाना वो ही था लेकिन थोडे बदले बदले थे। इस बार राजेश पूरी तरह से पिंकी को अपने रंग मे रंगने के लिये तैयार था।
अगले दिन वो राजेश को छत पर दिखी,राजेश  तो कब से इस मौके के इंतजार मे था, इसे गवाने का तो कोई मतलब ही नही था।राजेश तीर की तरह छत पर पहुचा उसने राजेश को देखा और राजेश तो उसे कब से देख ही रहा था, उन दोनो ने हाय हैलो की, पिंकी थोडी खूबसूरत थी इसलिये नकचढी भी थी अतः हाय हैलो के बाद उसने राजेश को इग्नोर ही कर दिया। लेकिन राजेश इतनी आसानी से हार मानने वाला नही था,राजेश ने अपनी तरफ से बातो का सिलसिला शुरू किया ‘‘कब आयी, कब तक छुट्टी है, पढाई कैसी चल रही है.........आदी बिना मतलब की बातो से स्टार्ट करके धीरे धीरे उनकी बातचीत की गाडी पटरी पर चलने लगी,उन्होंने करीब आधा पौन घंटा बाते की, बातो का यह हसीन सफर और भी लम्बा चलता अगर पिंकी की मम्मी की आवाज लाल बत्ती बनकर बीच मे ना धमकती। मम्मी के बुलाने पर उनकी बातो का सिलसिला टूटा और वो मुस्कुरा कर बाय कहकर चली गयी।
उसके जाने के बाद राजेश ने आपनी आँखे बंद की और इस पल को हमेशा के लिये अपने मन मे कैद करने की कोशिश करने लगा। कुछ पल बाद वो हकीकत मे लौटा,अपनी खुशी पर थोडा लगाम लगाने का प्रयास किया लेकिन वह चाहकर भी ऐसा नही कर पा रहा था।अब उसके पाँव जमीन पर नही पड रहे थे और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट के सिवाय कोई दूसरा एक्सप्रेशन ही नही आ रहा था।
उसकी ये मुस्कान ज्यादा देर तक नही रही, क्योकी इस पर ब्रेक लगाने वाला जल्द ही आ धमका। शाम को उसके दौसा वाले मामा घर आये थे।उनके लडके (ममेरे भाई) अजय की शादी थी इसलिये वो शादी से पहले ही उन्हें लेने आ गये थे। पापा खेती बाड़ी के काम मे बिजी थे और वो इतने दिन पहले वहाँ जा नही सकते थे इसलिये उन्होने राजेश और उसकी मम्मी को मामा के साथ जाने के लिये कह दिया। हर औरत की तरह राजेश की मम्मी भी अपने मायके जाने के लिये हमेशा ही तैयार रहती हैं, वो तत्काल अपनी पैकिग मे लग गयी, परन्तु उनकी बात मानना राजेश के लिये स्वय अपने अरमानो की अर्थी निकालना था, और राजेश अपने अरमानो का गला घोटकर वहा शादी मे जाना नही चाहता था।उसने अपनी तरफ से ना जाने के लिये एक से एक बहाने बनाये,पढाई और ट्यूशन छूटने का रोना रोया, दोस्त की बहन की शादी की दुहाई भी दी, लेकिन,राजेश के पापा पर उसके किसी भी बहाने का कोई असर नही हुआ अपितु थोडी देर बाद उन्होने अपनी लाल आखे दिखाकर राजेश को वहा जाने का अन्तिम आदेश दे दिया। उनके चेहरे को देखकर राजेश समझ गया की अब अपना झण्डा झुकाकर पिताजी की आज्ञा का पलन करना ही होगा।
राजेश उस रात चैन से सो ना सका,उसकी आखे तो नम थी पर उसके दिल खून के आँसू रो रहा था।मन ही मन कभी अपनी फूटी किस्मत और कभी भगवान को कोसता रहा।लेकिन क्या करे ना तो कोसने से भगवान का कुछ बिगडने वाला था और ना ही किस्मत का, अतःउसे अपने ऊँचे उडते सपनो के पंख काटकर सुबह की गाडी से मामा के साथ जाना ही पडा।
पाँच घण्टे के सफर के बाद वे दौसा स्टेशन पर उतरे, मामा का घर स्टेशन से थोडी दूर था इसलिए अजय उनको रिसिव करने आया था। उसके चेहरे की मुस्कुराहट देखकर राजेश का मन हुआ की कह दू की ‘साले मेरे चेहरे की हँसी चुराकर मुस्कुरा रहा है, अबे थोडे दिन बाद भी तो शादी कर सकता था।’ लेकिन अपने मन की बातो को मन मे ही रखकर राजेश उसके गले लग गया। इस मिलन के बाद वे गाडी मे बैठकर घर की तरफ चल दिये।राजेश पुरे रास्ते में ये ही सोचता रहा की आखिर ये पाँच दिन कैसे कटेंगे।
थोडी देर बाद घर पर पहुचे वहाँ पहुचकर लगा जैसे सभी लोग उन पर अपना सारा प्यार लुटाने के लिये तैयार बैठे थे। उन सभी की तरफ से प्रेम की बारिश सी हो गयी, इस प्रेम वर्षा के बदले मे राजेश को भी दस पन्द्रह लोगो के पाँव छूने पडे,सच तो यह था कि अब उसका बचा हुआ मूड वही खराब हो गया क्योकी निजी तौर पर राजेश को पैर छूने से सख्त नफरत थी। लेकिन सबके प्रेम के आगे राजेश को हथियार डालकर उनके पाँवो मे गिरना ही पडा।
रात को अपने ख्यालो में खोते हुए हुए ही ना जाने कब राजेश को नींद आ गयी, अगले दिन जब सुबह राजेश वहाँ घूमकर महसूस किया की उसे यहाँ भेजकर भगवान ने कोई गलती नही की है। क्योकी राजेश अपने घर एक पिंकी को छोडकर आया था लेकिन यहा तो चारो तरफ का मौसम ही पिंक पिंक हो रहा था। सभी एक से एक खूबसूरत थी, आखिर दौसा शहर था भाई। यह तय करना मुश्किल था की ज्यादा खूबसूरत कौन सी है। उपर वाले ने शायद आज राजेश की ऊँगली कस कर ही पकडी हुई थी, क्योकी उस खूबसूरती के मेले मे वह ही एक ठीक ठाक सा लडका था जो पूर्णतय लडकियो पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए था। वहा अधिकतर शादी शुदा या कुछ कम उम्र के लडके थे और जो दो चार राजेश के बराबर थे वो शक्ल सूरत स्टाइल मे उसके आस पास भी नही थे। आप चाहे तो कह सकते है की राजेश वहा अंधो मे काना सरदार था।
घर पर आयी अधिकाश लडकिया उसकी हमउम्र कजिन(मामा की लडकी) दीपिका की सहेलिया थी। दीपिका से बचपन से ही राजेश की अच्छी दोस्ती थी, और उसने दोस्ती का फर्ज निभाते हुए एक एक कर उन सभी से राजेश का परिचय करवाया। उनसे बाते करते हुए राजेश ने ताड लिया की यहा अपना दाल गल सकती है।
राजेश को उनमे से किसी एक को चुनना था, लेकिन ऐसी खुशकिस्मती उसे जीवन मे पहली बार मिली थी इसलिये उसे यह काम पहली बार साइकल सीखने से भी ज्यादा कठिन लग रहा था! स्तिथि एक बीमार और सौ अनार वाली थी और यह बीमार तय नही कर पा रहा था की कौन सा अनार खाया जाये।
राजेश एक पर अपना विश्वास जमाता तुरन्त ही दूसरी का चेहरा देख कर उसका मन डोेलने लगता, दूसरी को देखता तो नजर तीसरी वाली के पीछे चल पडती। बहुत सा समय उसने इसी उलझन को सुलझाने मे लगा दिया की इनमे से किसे चुनु। इस उलझन मे ही दो दिन पंख लगाकर उड गये तब राजेश को डर भी लगने लगा की कही वह सारा समय अपनी इस बेवकूफी मे ही ना गवा दे, अतः इस विश्वयुद्व सरीखी परेशानी से बचने के लिये राजेश ने तय किया की आज जिस पर पहली नजर पड़ेगी उसे ही अपनी हमसफ़र बनाने का जोरदार प्रयास करूँगा
लेकिन सब कुछ इतना आसान भी नही था की बस उसके सोचने से ही कोई लडकी उसकी झोली मे आ गिरेगी, इसके लिये उसे मेहनत करनी थी और ऐसी मेहनत से राजेश कभी भी मुँह नही मोडता था।
कुछ ही क्षण में दीपिका एक और दोस्त शादी में शामिल होने आती है!उसके संपूर्ण रूप को देखकर राजेश हतप्रभ सा रह गया! बड़ी ही सुन्दर और आकर्षक थी वो! गोरी सुन्दर काया और मृग जैसे सुन्दर आँखों वाली उस सुंदरी ने राजेश के दिल तारो को हिला दिया! ऐसा मनमोहक और सुन्दर रूप उसने पहले कभी नही देखा था!उसकी आँखे क्या थी जैसे चुम्बक जो बार बार राजेश को अपनी और खिंच रही थी! उसके हाव भाव,रूप-सौन्दर्य और उसकी तीखी नजर से घायल हो चूका था!राजेश शर्माकर बाहर आ गया और दीपिका को बुलाकर उसके बारे में पूछने लगा! दीपिका ने उसके बारे में बताया!
उसका नाम था ‘स्वाति’।राजेश के लिए वो ऐशवर्या राय से कम नही थी ।राजेश को लगा जैसे उसे उसकी मंजिल मिल गई हो,उसे एक एक सीढी चढते हुए अपनी मंजिल को पाना था और इसके लिए वह पूरी तरह से तैयार था। उसकी कोई गर्लफ्रेड नही थी लेकिन वह लडकियो को पटाने के सारे दावपेंच अच्छी तरह से जानता था।राजेश के पास वहाँ समय ही समय था जिसमे वह अपना सारा हुनर दिखा सकता था, और वह दिखाने में कोई कसर नही छोड़ रहा था। हरपल किसी ना किसी बहाने राजेश उसके आसपास फटकता रहता, बिना मतलब की बातो की सीढी और तारीफो के पुल बनाता रहता।शायद राजेश के सारे तीर लगभग अपने निशाने पर लग रहे थे, बात पूरी तरह से तय थी वे दोनो हवा का रूख समझ गये थे और साथ बहना चाह रहे थे, बस इंतजार था तो दिल की खिडकियो को खोलने की पहल करने का, आखिर प्रपोज करे तो करे कौन?
राजेश अपने काम मे पूरी तल्लीनता से, पूरे समर्पण, पूरे जोश के साथ रमा हुआ था। लेकिन वह ही तो मछली की आख भेदने मे अर्जुन बना हुआ था।उनके इस कार्यक्रम की भनक धीरे धीरे उसकी सभी सहेलियो को लग गयी और अन्त मे दीपिका भी इस सच्चाई से रूबरू हो गयी।
जब दीपिका ने राजेश से अपनी अजीब सी नजरो से देखते हुए कहा ’’क्या बात है बच्चे बहुत ऊचा उड रहा है?’’ उस समय ध्यान आया की वो दीपिका उससे दो महीने बडी थी दीदी लगती और उसके इस ‘बच्चे’ शब्द मे राजेश को उसका बडप्पन साफ नजर आने लगा,अब राजेश के पास इस सवाल का कोई जवाब नही बन पा रहा था।राजेश के दिल ने ये मान लिया की बेटा चुपचाप निकल ले, क्योकी अब तो बनता काम बिगडना तय ही है, बिना जूते पडे ही बच जाए तो गनीमत होगी। लेकिन लगता है की ईशवर राजेश के साथ था और उसने दीपिका को सदबुद्वी दी, जिसे अपने रास्ते की रूकावट समझ रहा था वो तो राजेश नैया पर करवाने वाली केवट निकली और राजेश को अपनी मंजिल तक पहुचने मे सर्पोट करने लगी।राजेश ने कई बार स्वाति से अकेले मिलने की कोशिश की लेकिन फिर भी उससे अकेले मिल नही सका।अंत में राजेश ने अपनी यह परेशानी दीपिका को बतायी और उसने बडी आसानी से शादी वाले दिन अपने कमरे राजेश को यह मौका दिला ही दिया।
यह वो मौका था जिसके लिये उसने एक अर्से तक इंतजार किया, बहुत मेहनत की लेकिन इस मौके को पाकर  घबराहट के मारे राजेश के पाव काप रहे थे।उसे डर था की कही उसका हाल उस खिलाडी की तरह ना हो जाय जो प्रतिभाशाली होते हुए भी अपने पहले मैच मे घवराहट के मारे शुन्य पर आउट हो जाता है। राजेश ने अपने इस दबाव को कम करने के लिए बाबा भोमिया का सहारा लिया और तीन चार लम्बी लम्बी सासे ली जिससे राजेश डूबती धडकने कुछ शांत हुई।स्वाति से मिलने की जल्दी मे राजेश वहाँ थोडा पहले ही पहुच गया था। वहा अकेले खडे होकर उसके मन में ना जाने कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे, दो तीन बार राजेश को लगा की वो नही आएगी लेकिन यह सोचकर नही गया की कही वो उसे ना पाकर वापस ना चली जाय।राजेश काफी देर अपने दिमाग की इन्ही भूलभुलैया मे उलझा रहा।
तभी स्वाति आयी वो भी थोडी नवर्स थी, उसकी नजरे झुकी हुई थी। वो बोली ’’क्या बात है राजेश जी? दीपू कह रही थी की आपने हमे बुलाया है।
कुछ काम था क्या?‘‘
राजेश की एक कमी थी लड़की को देख कर वो पूरी तरह अपने होश खो बैठता था उसे वो कॉलेज वाला सीन तुरन्त याद आ जाता था! लेकिन राजेश इस बार इसके लिये पूरी तरह तैयार था,
’’नही कुछ काम नही था, बस ऐसे ही, क्या हम  आपको बुला नही सकते?’’
राजेश ने पहली बार इस मैदान पर जीतने के लिए कदम रखा।
‘‘नही ऐसा नही है, आप जब चाहे हमे बुला सकते हैं।’’ उसने कहा
राजेश जानता था की वो क्या सुनने चाहती है और शायद वो भी समझ रही थी की वह क्या कहना चाहता है, लेकिन परेशानी यह थी की वे दोनो ही नबाव बन गये थे, पहले आप पहले आप वाले अंदाज मे वे दोनों बाते एक दूसरे पर टाल रहे थे। इसी बीच राजेश को लगा की कहीं पहले आप पहले आप के चक्कर मे गाडी ना निकल जाये, अतः लैडिज फस्ट के नियम भुलाकर उसने ही पहला कदम बढाया
’’स्वाति जी कल को आप चली जायेंगी, फिर आपसे मुलाकात कैसे होगी, क्या हम कभी दोबारा मिलेंगे?‘‘
स्वाति भी कम नही थी उसने कहा ‘‘हाँ हाँ क्यो नही मिलेंगे, दुनिया भले ही बडी हो लेकिन अपनो से फासले बडे नही होते। आप अपना मोबाइल नम्बर दे दीजिये, मै आपको जरूर काल करूंगी।’’
उसके बात खत्म करने से पहले ही वह एक साँस मे बोल पडा ’’999..............’’
उसने भी तेजी से राजेश के नम्बर नोट कर लिया।
अब राजेश के तरकश मे कोई तीर नही बचा जो वह उस पर चला सके, बस होठो पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट चिपकाये खडा रहा।
थोडी देर राजेश के बोलने का इंतजार करके उसने ही इस खामोशी को तोडा
‘‘क्या कुछ और कहना था या बहार चलें।’’
उसके इस झन्नाटेद्वार वक्तव्य से राजेश लगभग नींद से जागने की एक्टींग करते हुए बोला
‘‘हाँ हाॅ... क्यो नही, लेकिन क्या आपको हमारा साथ इतना अखर रहा है की आप बहार जाना चाहती हैं।’’
उसने कहा ‘‘नही ऐसी बात नही है, मै बस सोच रही थी की कोई और भी काम हो।’’
अब राजेश को उसकी तरफ से पूर्ण स्वीकृती मिल चुकी थी, लेकिन आगे बढने मे रिस्क तो था ही। मामला 99 प्रतिशत सेट था पर बचा हुआ एक प्रतिशत उसकी वाट भी लगवा सकता था।
आखिर राजेश ने फैसला कर लिया, जो होगा देखा जायेगा और अपने दिल को मजबूत करके बोला ‘‘स्वाति जी मुझे आपसे कुछ और भी कहना है।’’
‘ हाँ तो कहीये, मै सुन रही हू’’स्वाति ने नजरे नीचे झुकाते हुए कहा।
‘ मुझे आप बहुत अच्छी लगती है, मै आपको पसंद करता हू, आई लव यू’’
राजेश ने अपनी जिन्दगी मे पहली बार किसी लडकी से ये तीन शब्द कहे थे, और वह तैयार था की अगर वो चाहे तो इन शब्दो के प्रतिउत्तर मे उसे चांटा भी मार सकती है।
राजेश अपने दोनो जवाबो को सुनने को तैयार होकर एकटक उसे देख रहा था। उसकी नजरे अब भी झुकी हुई थी और चेहरा भी ज्यादा लाल हो गया था। वो कापते होठो से बोली ‘‘मुझे तो आप जबसे मिले हो तब से ही पसंद हो, मै भी आपको चाहती हू। लडकी हूँ ना इसलिए कह नही सकी, लेकिन आपने भी ये ढाई शब्द कहने मे बहुत समय लिया।’’
इतना कहकर वे दोनों सीने से लग गये जैसे दो  बिछड़े हुए प्रेमी वर्षो बाद मिले हो। उसे अपनी बाहो मे समेटे हुए राजेश लगा मानो वह किसी दूसरी दुनिया आ गया है। वे दोनो थोडी देर बिना कुछ बोले इसी तरह खडे रहे, तभी उन्हें बाहर थोडी आहट सुनायी दी,ना चाहते हुए भी अलग होना पड़ा।
बाहर दीपिका थी वो अन्दर आयी और बोली
‘‘ अगर आप दोनो की मिटिंग खत्म हो गयी हो तो चलकर तैयार हो जाये शादी मे भी चलना है। वो मुस्कुराते हुए दीपिका के साथ चल दी, जाते हुए वो राजेश तरफ पलटी और उसने राजेश फलाइग किस दी, जो सीधे राजेश दिल मे उतरती चली गयी।
राजेश इतना खुश था की उससे यह खुशी संभाले नही संभल रही थी, एक बार राजेश डर लगने लगा की इस खुशी के कारण कही उसे हार्डअटैक ना आ जाये।उसके दोस्त अक्सर दिल टूटने पर गम मिटाने के लिये शराब पीते थे, मुझे ऐसा मौका कभी मिला नही था। लेकिन उस दिन अपनी पहली सफलता के सागर मे शादी मे खूब जमकर डांस किया डांस करते वक्त राजेश को ऐसा लग रहा था जैसे उसने शराब पी रखी हो उसको नसा सा छा रहा था।ये नसा प्यार का था जो स्वाति को दिखाते हुए अपने आप आ रहा था!राजेश को अपने डांस की क्षमता का तब पता चला जब अगले दिन नींद का नसा उतरा और उसके पूरे बदन मे दर्द उठने लगा।लेकिन राजेश को दर्द की चिंता नही थी, आखिर उसने एक जंग जीत ली थी।
अगले दिन उन सभी लडकियो की हास्टल वापसी थी, राजेश को यह मालूम था लेकिन डांस में थकावट के कारण वह जल्दी उठ ना सका । जब वह उठा तो तैयारी पूरी हो चुकी थी।राजेश ने उससे बात करने की कोशिस की लेकिन राजेश को कोई मौका ही नही मिला। वो स्टेशन जाने के लिये गाडी मे बैठ चुकी थी,राजेश ने उसमे एडजस्ट होने का काफी प्रयास किया, लेकिन ज्यादा भीड के कारण राजेश उसमे घुसपैठ नही कर सका। सिर्फ एक सीट खाली थी ड्राइवर की और ड्राइविंग राजेश को आती नही थी।उस दिन राजेश को अपनी इस कमी पर बहुत अफसोस हुआ और उसने तय कर लिया की घर जाकर सबसे पहले ड्राइविंग स्कूल मे दाखिला लेना है। लेकिन यह सब बाद मे होना था फिलहाल तो राजेश उसे सिर्फ यही पर ही उसे मिस  कर सकता था। वो थोडी उदासी के साथ राजेश के चेहरे पर उदासी छोडकर चली गयी।
वो अपनी राह चली गयी और रह गया तो बस अकेला और तन्हा बेचारा राजेश!राजेश की ट्रेन शाम को थी लेकिन बिना उसके शाम पकडनी तो दूर एक एक पल काटना सालो काटना जैसा लग रहा था। शाम को उन्होंने वापसी की ट्रेन पकडी। मम्मी ना जाने रास्ते भर किस किस का निंदा रस फैला रही थी लेकिन राजेश उन्हे अनसुना करके आखे बंद किये स्वाति के ख्यालो मे खोया रहा, और मन ही मन खूब उची उची पतंगे उडाता रहा, आखिर पहला पहला प्यार था इसलिये वह कुछ ज्यादा ही एक्साइटड था।
                     
वैसे वह और भी ज्यादा एक्साइटिड अपने दोस्तो से मिलने के लिए भी था क्योकि वह अपनी खुशी को उनके सामने जल्द से जल्द दिखाना चाहता था। इसलिए घर पहुचने पर बिना वक्त गवाये वह सीधा अपने दोस्तो के पास पहुचा।वह मन ही मन खुशी का यह बम उनके सामने फोडने के लिये उतावला था।  लेकिन राजेश अपने आप पर काबू रखा और उनसे हाय हैलो करके शांत रहा।राजेश चाहता था की वो खुद ही उससे पूछे और थोडी देर बाद उसके दिल की बात उनमे से एक के होठो पर आ ही गयी ‘‘और लाल, कैसी रही शादी, कुछ सैटिंग वैटिग हुइ या बस ऐसे ही मुफत मे धक्के खा कर आ गया।’’
रवि का सवाल सुनकर राजेश थोडा मुस्कुराया और फिर राजेश ने एक ही साँस मे सारी कहानी और भी मिर्च मसाला लगाकर बया कर डाली।राजेश की प्यार की अजीब दास्ता सुनकर उनमे से अधिकांश ने इसे बनायी कोई झूठी स्टोरी समझा, लेकिन उसके चेहरे की चमक ने उन्हे राजेश के ऊपर विश्वास करने को मजबूर कर ही दिया। आज तक उनकी लवस्टोरी सुनकर राजेश जलता था लेकिन जीवन मे पहली बार उसने उनके चेहरे पर मायूसी देखी, और सच ये था कि उन्हें जलता देख राजेश के कलेजे को ठंडक पहुच रही थी। 
राजेश की इस लव स्टोरी से उसके दोस्त जल रहे थे लेकिन चैन राजेश के दिल को भी नही था क्योकी स्वाति और उसके बीच की दूरी उसे सजा के जैसी लग रही थी।वह उसे हर हाल मे मिलना चाहता था, उससे बाते करना चाहता था लेकिन ऐसा कर नही सकता था।वह बार बार अपने मोबाइल को देखकर सोचता की उसका फोन क्यो नही आया, कभी कभी उसे अपने आप पर गुस्सा आता की कही उसने जल्दबाजी में उसका फोन नम्बर क्यो नही लिया,मै ऐसी मूर्खता कैसे कर सकता हूँ।
हो सकता है की वो बेचारी किसी मजबूरी या शर्म की वजह से फोन नही कर पा रही हो, आखिर वो एक लडकी है।
कभी दिमाग दूसरी तरफ घूमता और मन मे  आता की कही ये उसके साथ कोई मजाक तो नही था, कही वह उन बेवकूफो मे से एक तो नही जैसे वो रोज बनाती होगी। और भी ना जाने क्या क्या उल्टे सीधे ख्याल राजेश के हाल बेहाल कर रहे थे। परन्तु एक बार मन मे उसका मुस्कुराता चेहरा आते ही सारी शंकाये हवा हो जाती, और दिल से आवाज आती की उसका फोन जरूर आयेगा।
उसका इंतजार लम्बा होता जा रहा था, उसे हर एक नये नम्बर से आने वाली काॅल पर लगता की ये स्वाति का ही काॅल है, लेकिन ऐसा होता नही था। आाखिर उसका इंतजार खत्म हुआ लेकिन इंतजार की घडी टूटकर सीधी मेरे सिर पर ही आ गिरी, फोन आया
धीरे से फोन में आवाज आई
"पहचान गये क्या जनाब"
राजेश ने तुरंत प्रतिउत्तर देते हुए कहा"हां यार पहचान गया बहुत दिन से तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था!लेकिन तुम्हारा कोई काल या मेसेज नही आया !पता नही मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचने लगे गया"
अच्छा जी इतनी याद आ रही थी मेरी"स्वाति ने धीमे स्वर में कहा!
राजेश अब बड़े ख़ुशी से जबाव देते हुए बोला"नही करीना कपूर की याद आ रही थी,सच में यार मैं बेचैन था हर वक्त तुम्हारे फोन का इंतजार करता रहता था और तुम्हे एक बार भी मेरी याद नही आयी"
"ऐसा नही है मै तुम से बहुत प्यार करती हूं बस हिम्मत नही रही थी आज हिम्मत करके फ़ोन किया है"स्वाति के प्रतिउत्तर में प्यार झलक रहा था!
इतने में ही स्वाति की माँ ने उसे आवाज लगा दी और वह "आई लव यू" कहते हुए फ़ोन से अलविदा कह गयी
अब सेल फोन पर बातों का सिलसिला चल पडा. एक-एक दिन बस इस इंतजार में कटते रहे कि एक दिन वो भी घड़ी आएगी जब उनके बीच के सारे फासले मिट जायेंगे!उन दोनों की बातों का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया. बातें करते-करते अक्सर शाम से सुबह हो जाती. घंटों बातें करने के बावजूद भी उनकी  बातें अधूरी रह जाती. बस यह आलम था उनकी बातों और रातों का कि होठों तक पानी कि बूंद आते-आते वे प्यासे रह जाते थे! दोनों अपनी बातों में एक हकीकत की दुनिया बसा रखे थे जिसे सपनों से कहीं दूर छुपायें फिरते. उसमें उनका दो कमरों का छोटा सा घर; जिसमे उनके फुल जैसे दो बच्चे 'श्रेयांस और करिश्मा' हस्ते हुए नज़र आते थे. अक्सर स्वाति राजेश को 'श्रेयांस का पापा' और राजेश उसे 'करिश्मा की मम्मी' कहकर बुलाता था!एक बार की बात है जब राजेश लम्बी यात्रा से घर को लौटा!थके होने के कारण, जल्दी खाना खाकर सो गया. रात को करीब 1 बजे करिश्मा की मम्मी का मिस काल आई. गहरी नींद में होने के कारण राजेद उसका जवाब नहीं दे सका. उसने मेसेज किया, "श्रेयांस के पापा, आप सो गएँ हैं क्या? प्लीज, उठिए न. हमें आपसे बातें करनी है. " जब राजेश ने मेसेज को पढ़ा उस समय रात को सवा दो हो रहें थे.
राजेश ने फोन किया तो करिश्मा की माँ अभी भी इंतजार में जग रही थी!अब इससे राजेश के दिल पर गहरी चोट लगी की वो सो गया और उसकी सच्ची प्रेमिका अभी तक उससे बात करने के लिए जगी हुई है!
"कहा थे जब से मै कबसे तुम्हारा इंतजार कर रही हु"थोड़ा भारी गले से स्वाति बोली
उसकी आवाज से लग रही थी की वह रो रही है!
राजेश ने थोड़ा अपनी गलती को स्वीकारते हुए"क्या हुआ मेरी जान को यार आज थोड़ा काम में बिजी था जिससे थक कर सो गया
सॉरी करिश्मा की मम्मी
तुम ऐसे मुझे मत बुलाओ मर जायेगी तुम्हारी ये जान"रोते हुए स्वाति ने अपनी बात कह दी
राजेश ने उसे समझा कर सोने के लिए कह दिया
आखिर वो दिन भी आ गया जब स्वाति के घरवालों को भी इस बात की भनक हो गयी जब उसका सेल फोन ले लिया गया गया. फिर वही हुआ जो अक्सर दो दिलों के साथ होता है. उसे मारने-पीटने के साथ-साथ डराया और धमकाया गया. उनकी मम्मी ने राजेश को फोन करके ढेर सारी गालियों के साथ, यह चेतवानी दी कि यदि वे इस रिश्ते को आगे बढ़ाते है तो वो उनकी बोटी-बोटी करके चील और कौवों को दे देंगी. पर उन दोनों इस बात की चिंता नहीं थी क्योंकि आज कल चील और कौवें दीखते ही कहाँ हैं!
राजेस ने उनकी मम्मी को बताया, "हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिससे आप लोगों का सर शर्म से नीचा हो,हम दोनों एक-दुसरे से शादी करना चाहते हैं और वो भी आपकी रजामंदी से." मगर वो उसकी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. मुझसे नफ़रत का वहां वो आलम था कि यदि स्वाति अपने जुबान से राजेश नाम ले ले तो उसके होठों पर राजेश का नाम आने से पहले उसके मुंह पर जोर की पड़ती थी! राजेश ने उसके वहां जाने का निर्णय कर लिया और एक दिन स्वाति से मिलने उसके कोचिंग क्लास पर गया. वह राजेश को देखकर मुस्कुरा रही थी. शायद इसलिए कि उस जख्म और दर्द को देखकर की कही राजेश की आखों में आंसू न निकल आये क्योंकि उसे पता था कि राजेश बहुत ही भावुक है !
वह हसतें हुए बोली, " राजेश! सब कुछ ख़त्म हो गया." उसकी जुबान से यह शब्द सुनकर राजेश की आँख भर आई
राजेश ने उसे समझाया, "स्वाति! हम सिर्फ अपने लिए नहीं जी रहे हैं. हम जी रहे हैं अपने आने वाले कल के लिए जहाँ किसी मोड़ पर हमारे बच्चे 'श्रेयांस और करिश्मा' अपने मम्मी-पापा का इंतजार कर रहे हैं. जब हम एक दुसरे के जीवनसाथी हैं तो हमें एक साथ आने वाले मुश्किलों का सामना करना होगा. भले ही हमारी जिंदगी दो पल की क्यों न हो पर वह पल हमें एक साथ गुजरना है. यदि हम ऐसा न कर सके तो हमारा रिश्ता एक गाली बनकर रह जायेगा और हमेशा के लिए हमें बदचलन और आवारा का नाम दिया जायेगा. हमें अपने रिश्तें को एक पाक अंजाम तक पहुँचाना है और इसके लिए चाहे हम इस दुनिया में रहें या न रहें. हाँ हमारी सोच रहे
उसे राजेश की बात कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी. एक बार फिर वे दोनों ने अपने आने वाले कल के लिए, आज को भुलाकर एक नयी उड़न के लिए खुद को तैयार किये. इस दौरान राजेश ने किसी भी तरह अपने पैरेंट्स को मना लिया!क्योकि राजेश के माँ बाप इतने कठोर दिल के नही थे वे गांव खेती में अपना जीवन यापन कर रहे थे बेटे की ख़ुशी के लिए हमेशा आगे बढ़ चढ़ कर उसका साथ देते थे पर उन्हें कभी कभी गुस्सा जब आता जब राजेश उनकी बातों पर ध्यान नही देता था!मगर स्वाति के पैरेंट्स अभी तक उनके रिश्तें के लिए तैयार नहीं हुए और यह मानकर चल रहें थे कि उन दोनों का रिश्ता ख़त्म हो चूका है. एक दिन अचानक उनको खबर हुई कि आज भी दोनों के बीच बातों का सिलसिला कायम है. मम्मी ने एक बार फिर उसकी पिटाई की जिससे उसका हालत बुरी तरह बिगड़ गई. उससे भी जी नहीं माँना तो रस्सी से उसका गला कस दिया. फिर भी स्वाति बेजान पत्थरों की भाति सबकुछ सहती गयी. बस इतना ही बोल सकी, "मुझे जो करना था, वह कर दी. अब आपको जो करना है, करिए." कभी-कभी एक माँ कितना निर्दयी हो जाती है की अपने जिगर के टुकड़े की जान की प्यासी बन जाती है, इस बात का यकींन नहीं होता!स्वाति छटपिटाती रही परन्तु मम्मी ने गले से रस्सी का फंदा नहीं निकाला !वो तो गनीमत थी कि उनकी दीदी ने हस्तक्षेप करकर स्वाति की जान बचायी!नहीं तो उस दिन एक माँ के हाथों अनर्थ हो जाता और ममता हमेशा के लिए अभिशापित हो जाती!जब राजेश एक बार फिर अन्जानी से मिलने उसके कोचिंग क्लास गया तो उसके चेहरे पर पड़े घावों और गर्दन पर पड़े रस्सी के निशान से सारा माज़रा समझ गया और राजेश चाहकर भी अपने आँखों से छलकते आंसुओं को रोक न सका. परन्तु आज भी स्वाति के चेहरे पर पहले की भाति एक हँसी थी. जितना मजबूत वो है, राजेश नहीं क्योंकि वो हरेक परिस्थितियों का हँसकर सामना करती है. सचमुच वह उस समय इस दुनिया में सबसे अधिक समझदार और शक्तिशाली औरत लग रही थी. जिसे राजेश ने अपनी पत्नी के रूप में पाया था!स्वाति ने कहा, "अब कुछ नहीं हो सकता. यदि हम दोनों शादी करते हैं तो हमारे अपने हमारे साथ-साथ खुद को मार देंगे. ऐसा उनका कहना है और फिर हम अपना रिश्ता निभाकर क्या करेंगे कि हमारे वजह से कोई अपना इस दुनिया में न रहे." यक़ीनन यह एक महान सोच थी और उससे भी महान उसका त्याग जो अपने पैरेंट्स के लिए करने जा रही थी. शायद उसे पता नहीं था कि उसका त्याग पैरेंट्स के लिए नहीं बल्कि झूठी शान और मर्यादा के लिए था
वे अपने रिश्ते को बचाने की खातिर अपनी जान देने को तैयार थे!उसे जितना अपनो से लड़ना था,उतना लड़ चुकी थी. अब और उसमे हिम्मत नहीं थी कि वह रिश्तें को जिन्दा रख सके!अन्दर ही अन्दर टूट चुकी थी!
स्वाति ने कहा, "राजेश! हो सके तो मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो क्योंकि इस समस्या का बस यही एक हल दिख रहा है."
राजेश ने कहा, "नहीं स्वाति यदि मरना ही है तो हम साथ मरेंगे. परन्तु परिस्थितियों से भाग कर नहीं बल्कि लड़ते हुए."
अब राजेश का मन आक्रोशित हो चूका था अपने प्यार का टूटने का डर और स्वाति से बिछड़ने का गम उसे और आक्रोशित बना रहा था! उसे स्वाति की माँ और पिता जी पर गुस्सा इसलिए आ रहा था कि कोई अपने जिगर के टुकड़े को भला ऐसे कोई मारता है! और अपने वह गुस्से में स्वाति का हाथ पकड़ते हुए स्वाति के घर की तरफ ले जा रहा था !
स्वाति इसका विरोध कर रही थी कह रही थी"राजेश तुम पागल हो गए वे तुम्हे और मुझे दोनों को मार देंगे प्लीज तुम वापस चले जाओ"
लेकिन अब राजेश एक सुनने को तैयार नही था बार बार स्वाति का रस्सी के पड़े हुए घाव आँखों के सामने आ रहे थे!
स्वाति ने एक झटके के साथ अपना हाथ छुड़ा लिया और कहने लगी प्लीज तुम चले जाओ मै तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हु!
राजेश का ऐसा गुस्सा स्वाति पहली बार देख रही थी राजेश ने कहा "स्वाति यदि तुम नही मिली तो मै वैसे ही मर जाऊंगा इससे अच्छा है मै तुम्हारे घरवालो से ही मर जाऊ ताकि मेरा प्यार अमर रह जाये!
स्वाति के पास अब कोई शब्द नही थे राजेश ने दुबारा उसका हाथ पकड़ा और घर ले जाकर ही छोड़ा! ये सब देख कर स्वाति के पापा का खून खोल चूका था उन्होंने कहा हम तेरी शादी जरूर इसके साथ कर देते लेकिन दूसरी जाति में नही करेंगे हमारी इज्जत मिटटी में मिल जायेगी!
अब राजेश का गुस्सा एकदम से शांत पड़ गया और उसने स्वाति के पांव पकड़ कर कहने लगा"आप यदि हम दोनों को अलग कर दोगे तो हम मर जायेंगे !आप हमें अलग मत करो
लेकिन वे सुनने वाले नही थे!गुस्से से घर के अंदर गये और लाठी लेकर आये और आते ही राजेश की पिटाई करने लगे ये सब स्वाति से बर्दास्त नही हो पाया और वो बीच में आ गयी जब तक वो बचा पाती राजेश के सर पर लाठी की लग चुकी थी और राजेश गिर पड़ा !
स्वाति ने ये राजेश को गिरते हुए देखा तो उसे सँभालने की कोशिश करने लगी पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी राजेश जमीन पर गिर चूका था !राजेश के गिरते ही स्वाति भी बेहोस हो गयी
जब स्वाति को होश आया तो उसके पापा उसके पास बैठे थे!
बेटा तुम अपनी जाति के किसी भी लड़के से शादी कर लो मैं मना नही करूँगा लेकिन दूसरी जाति में करोगी तो उसका भी इसी तरह यही हाल होगा!
स्वाति का रो रो कर बुरा हाल था बस उसका धयान सिर्फ राजेश पर था! वो भाग कर अपने कमरे में गयी और पंखे से अपनी चुन्नी को बांध कर खुद को उस पर लटकाने के लिए तैयार हो गयी! उसे अब लग रहा था कि उसका जीवन खत्म हो गया है जब उसका प्यार ही नही रहा तो वह जी कर क्या करेगी! ऐसे ही उलटे सुलटे ख्याल उसके मन में आ रहे जैसे वो लटकने को तैयार हुई उसके पापा वहां आ गए और जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर मारा जिससे स्वाति गिरते गिरते बची थी! उनकी पांचो उंगलियों के निशान ज्यो के त्यों बन चुके थे!उसका पूरा चेहरा लाल हो गया वो फिर से राजेश के लिए मिन्नते मांगने लगे गयी!
स्वाति को उसके पापा ने खूब समझाया लेकिन उसकी कुछ समझ नही आ रहा था!
आखिर उन्हें स्वाति के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया!
बाप था आखिर कब तक जुल्म करता अपनी फूल जैसी बेटी को इस हालत में और ऐसे बिलखते देख उससे भी रहा नही गया
कहते है ना की पत्थर पर यदि चोट मारते रहेंगे तो वह भी आखिर टूटता ही है! ये तो स्वाति के पिता थे जो उसे बहुत प्यार करते थे लेकिन दूसरी जाति में शादी के खिलाफ होने की बजह से इतना सब कर चुके थे!
उन्होंने स्वाति को उठाया और राजेश के साथ शादी करवाने का वादा करते हुए रोने जैसी शक्ल हो गयी थी!
लगभग 4-5 घंटे बाद राजेश को होश आया लेकिन सर पे चोट के कारण वो खड़ा होने में असमर्थ था तभी उसे स्वाति ने संभाल लिया और उसकी तरफ पहले की भांति ही मुस्कुरा रही थी!उन्होंने ही राजेश का इलाज करवाया और जब राजेश ठीक हो गया तो स्वाति के पापा ने कहा अब तुम घर जाओ हम स्वाति की सगाई की रस्म पूरी करने तुम्हारे घर आएंगे
आाखिर राजेश का इंतजार खत्म हुआ लेकिन इंतजार की घडी टूटकर सीधी मेरे सिर पर ही आ गिरी, फोन आया लेकिन स्वाति का नही राजेश की मामी का। हैलो बोलते ही मामी ने हँसते हुए कहा ‘‘अच्छा बच्चे तेरे भी पर निकल आये, चार दिन मे खूब गुल खिलाये है तूने और हमे जरा भी भनक नही लगने दी।’’
उनके शब्द सुनकर राजेश समझ गया की वो कौन से गुल की बात कर रही हैं परन्तु फिर भी उसने नादान बनते हुए पूछा ‘जी..जी कैसे गुल....’।
‘जी के बच्चे चल मम्मी से बात करा’ मामी ने राजेश की बात पूरी होने से पहले ही उसे दोबारा झटका दे दिया। राजेश उन्हे कुछ समझाता, अपनी सफाई देने की कोषिश करता उससे पहले पीछे से मम्मी बोल पडी ‘ अरे तेरी मामी का फोन है क्या ?’ राजेश का दिमाग उस समय काम नही कर पा रहा था, घबराहट मे उसके मुह से निकल गया ‘जी’।       ‘ ला फोन दे, मेरी बात करवा।’ मम्मी ने राजेश फोन छीनते हुए कहा।
राजेश से फोन लेकर मम्मी मुस्कुराते हुए मामी से बात करने लगी, लेकिन जैेसे जैसे बात बात आगे बढ रही थी मम्मी के चेहरे की मुस्कुराहट गंभीरता मे बदलने लगी। उनके चेहरे के हाव भाव देखकर राजेश समझ गया की लफड़ा होने वाला है इसलिये फोन कटने से पहले ही घर से बाहर निकल आया। बाहर आकर भी उसे शांती नही मिल रही थी, समझ नही पा रहा था की इस छोटी सी बात का बतंगड कैसे बन गया। खैर जो होना था सो हो गया उसे तो देखना था की अब क्या होगा। एक अजीब सा डर उसको बार बार डराता रहा, वो दिन उसके लिये एक खतरनाक सपना बन गया । आखिर कब तक बाहर घूमता शाम को उसे वापस घर आना ही पडा। जब राजेश घर पहुचा तब तक पापा भी आ चुके थे, शायद पापा ही वो डर थे जिससे राजेश दिन भर डरता रहा। उन्हे देखकर उसके पैर कापने लगे लेकिन फिर भी वह अपने डर को अपने अंदर कैद करके नार्मल ही बना रहा।
राजेश ने अपनी और स्वाति शादी की बात खुद के घरवालों से अभी तक मजाक में ही की थी सिरियसली नही की थी
पापा पहले से ही राजेश के आने का ही इंतजार कर रहे थे। उन्होने राजेश को अपने पास बुलाया। अपने चेहरे पर वो ही चिरपरीचित गंभीरता ओढे हुए उन्होने राजेश से पूछा ‘कहा घूमकर आ रहे हो हीरो, कहा था तू सुबह से?
राजेश इस सबाल का उत्तर पहले ही सोचकर आया था,वह अपना जबाब पेश करता इससे पहले ही पापा फिर से बोले ‘तूने उस लडकी से, क्या नाम है उसका ‘स्वाति’ तूने कुछ कहा था उससे?’
‘कौन स्वाति? कौन है ये? मैने क्या कहा  उससे, कुछ भी तो नही।’राजेश ने नासमझ बनते हुए जबाब दिया
‘अच्छा तू नही जानता कौन स्वाति, लेकिन तेरी मामी तो कुछ और ही बता रही थी।  पापा ने फिर सवाल दागा।
‘क्या बता रही थी मामी? राजेश थोडा हकलाते हुए पूछा लेकिन इस बार उसके चेहरे से उसका  बनाबटी भोलापन बह गया।
पापा राजेश की शब्दो की हकलाहट और चेहरे पर आते पसीने को देखकर सारी सच्चाई समझ गये। वे गंभीरता को गुस्से मे बदलते हुए बोले ‘सच बता क्या किया तूने?’
पापा के इस कठोर चेहरे को देखकर राजेश की जुबान जम सी गयी और उसे जबाव देने की जगह पसीने छूटने लगे।उस दिन उसकी आँखो मे आसू आ गये क्योकि जिस प्यार के खातिर उन दोनों ने जो यातनाये झेली थी वो सब याद करके उसकी आँखे स्वतः ही नमी हो गयी थी!उसने रूधे गले से झिझकते हुए कहा ‘‘ साॅरी पापा, लेकिन सारी गलती मेरी ही नही है, स्वाति भी मुझे पसंद करती है और बात उसने ही आगे बढायी थी।पापा वो बहुत अच्छी है हम दोनों एक दूसरे के बिना नही जी पाएंगे!हमे अलग मत करना,वो आप सब का बहुत ख्याल रखेगी" राजेश ने सारी कहानी एक बार में ही कह दी कैसे उन्होंने अपने प्यार को साबित करने के लिए क्या क्या करना पड़ा!स्वाति ने उसके लिए कितनी यातनाये झेली है!
राजेश की हालत देखकर पापा बहुत जोर से हसे, वो उसके पास आये और बोले ‘‘इतना परेशान क्यो हो रहा है। डर मत, जो कह दिया सो कह दिया। जवानी मे ऐसी बाते होती ही रहती हैं।तुम दोनों ने कुछ गलत नही किया मैं तुम्हारे प्यार के खिलाफ नही हु’’ राजेश पापा के इस बदले हुए रूप को समझता उससे पहले ही वो फिर से बोले ‘अरे गधे स्वाति के साथ साथ तू उसके परिवार को भी पसंद है,उसे बिलकुल विश्वास नही था कि स्वाति के पापा सच में मान जायेंगे वो समझ रहा था हिंदी फिल्मों की तरह स्वाति के पापा ने उससे झूठ कहा है लेकिन ये सच था और इस बात से हैरान भी था अभी पापा की बात खत्म नही हुई थी वे कह रहे थे "तेरी और स्वाति की शादी कराना चाहते है वो लोग, यही बात करने को तेरी मामी ने फोन किया था। तेरी मम्मी और तेरे मामा मामी को भी लडकी बहुत पसंद है। फिर मेरे इंकार का तो सवाल ही नही उठता। चलो हम तेरे लिये लडकी ढूढने से तो बचा गये, ये काम तूने खुद ही कर लिया।
राजेश तो घर यही सोचकर आया था की यहा गुस्से का ताण्डव होगा लेकिन यहा तो उसकी जगह शादी पुराण पढा जाने लगा। इतने इमोशन और ड्रामे के बीच ना जाने कहाँ से उसके सिर पर ये शादी का बम फट पडा जिसकी आवाज सुनकर उसका सारा इश्क हवा हो गया, कमरे मे लाइट जलते हुए भी उसकी आखो के सामने अंधेरा छा गया। उसे शादी की कोई जल्दबाजी नही थी पर स्वाति को जल्द से जल्द पाना भी चाहता था!
वह मात्र 23 साल का ही था, अभी कालेज खत्म हुआ है, और इतनी जल्दी शादी।
वह पापा से मना नही कर सकता था क्योकी ऐसा करने पर एक लम्बा चौडा भाषण और शायद उसके बाद उसकी धुलाई भी तय थी। इसलिये उसने पापा से ध्यान हटा कर मम्मी को अपना निशाना बनाया।लेकिन मम्मी को तो अपने भाई और भाभी की बात की ज्यादा चिंता थी। लोग कहते है की औरत को अपने मायके से आयी मिट्टी भी सोने से ज्यादा प्यारी लगती है, और यहाँ तो उसकी मम्मी को उनके मायके के जानकार की लडकी बहू के रूप मे मिल रही थी, इसलिये उन्होने राजेश की बातो पर गौर करने से ज्यादा मौहल्ले मे अपनी इस खुशी का ढोल पीटना ज्यादा जरूरी समझा।
राजेश ने अपने मन को तसल्ली मिल रही थी की उसकी शादी उसकी पसंद की लडकी से हो रही है और ऐसे खुशनसीब बहुत कम लोग होते हैं, इसलिये उसने दुखो का देवदास बनने की जगह खुश होना जरुरी समझा।
राजेश के पापा ने बिना वक्त गवाये स्वाति के माता पिता को घर आने को निमंत्रण दे दिया। जल्द ही उन्होने घर आकर उनका रिश्ता पक्का कर दिया। पापा कुछ ज्यादा ही जल्दी मे थे उनहोने महीने भर बाद ही उनकी मंगनी का प्रोग्राम तय कर दिया। उसी दिन से घर मंगनी की तैयारी होने लगी।उसके दोस्त इसकी तैयारी में इतने जोर शोर से लग गये जैसे राजेश नही उनकी मंगनी हो!..
साले कमीने।
इस बीच दो तीन बार स्वाति का काॅल आया, उसने थोडी प्यार भरी बाते भी की लेकिन उससे ज्यादा बाते मंगनी मे पहनी जाने बाली अपनी और राजेश की ड्रेस सेट करने के लिये की, उसकी बाते सुनकर राजेश अहसास हुआ की वो अपने प्रेमिका के रूप को पीछे छोडकर पूरी तरह पत्नी के खांचे मे फिट हो चुकी है,
एक ‘परफेक्ट पत्नी’।   
आखिर मंगनी का दिन भी आ ही गया,
राजेश अपने माता पिता की इकलोती संतान था इसलिये पापा ने भव्य आयोजन किया। सभी अपनो को निमंत्रण दिया गया, सैकडो की तादात मे कार्ड बाटे गये, सभी दोस्त रिश्तेदार सजधज कर आये थे,खासकर महिलाएं जिन्होंने मेकअप करने मे जरा भी कंजूसी नही की थी। हाल मे चारो तरफ बहुत भीड थी दोस्तो रिश्तेदारो की भीड मे उसे वहा पिंकी भी नजर आयी लेकिन राजेश की मंगनी असल मे उसके लिये इश्क के मैदान से रिटायरमैंट का जलसा था, इसलिये राजेश ने कभी हाथ ना आने वाली उस खूबसूरत ट्राफी से नजरे चुराकर उसके लिये मेहनत करने का काम अपने दोस्तो पर छोड दिया।
आज राजेश को हर तरफ से बधाइयाँ मिल रही थी, लोगो से गले मिलते मिलते उन्हे शुक्रिया धन्यवाद कहते कहते वह थकने लगा था वहाॅ हर कोई उसकी पसंद को देखने के लिये उतावला था और थोडा उतावला वो भी था। आखिर उसके साथ साथ सभी का इंतजार खत्म हुआ,स्वाति महरूम लहंगा चुंदरी पहनकर आयी, वो बहुत खूबसूरत लग रही थी मानो ऐसी लग रही थी जैसे खुदा ने एक हफ्ते की छुट्टी लेके उसको तरासा हो,
"कोई तो रोको राजेश का इससे प्यार बढ़ता जा रहा था"
स्वाति ने राजेश को देखा और मुस्कुराई, उसे मुस्कुराता देख राजेश मन मे ना जाने कहा से ,ख्याल आया-
तू मेरी आँखो का वो हसीन सपना है,
जिसे देखकर, जिसे पाकर
लगता है,
काश!
मै आँखे बंद ही ना करता।
लेकिन जब आँखे बंद कर ही ली तो अब सपना देखना ही पडेगा, भले ही मुस्कुराकर देखो या आंसू बहाकर, वह इस सच्चाई को समझ गया था और उसने मुस्कुराकर यह सपना देखने का फैसला किया! दोनो ने खुशी खुशी एक दसरे को अंगूठी पहनाई। चारो तरफ तालियो का शोर था, वहाँ बजने वााली हर एक ताली उन दोनो के लिये थी, हर कोई उनकी खुशी मे खुश था, हर एक नजर उन दोनो पर टिकी हुई थी, सिवाय उसके दोस्तो के, उनकी नजरे उनसे ज्यादा स्वाति की सहेलियो पर अटकी हुई थी और वो किसी ना किसी बहाने से उनके चारो ओर मंडरा रहे थे। अपने दोस्तो को फुलफार्म मे बैटिंग की तैयारी करता देखकर राजेश समझ गया की ये आजाद परिंदे है ऊची उडान तो भरेगे ही, भरने दो ।
राजेश स्टेज पर अकेला बैठा था, क्योकी उसके पास बैठी स्वाति तो नाते रिश्तेदारो से मिलने वाले प्यार और आर्शिवाद को संभालने मे व्यस्त थी। इस अकेलेपन की घडी मे राजेश ने नजरे घूमाकर देखा की वहाँ कहीं डीजे पर डांस चल रहा था तो कही शराब के जाम छलक रहे थे, कही मम्मी अपनी सहेलियो मे चहक रही थी तो कही उसके दोस्त अपनी मस्ती मे मस्त थे और दोस्तो के इस झुण्ड का एक पंक्षी, वो.... राजेश इन सब के बीच अपने चेहरे पर बडी सी मुस्कान चिपकाये अपनी प्रेमिका.... राजेश अपनी होने वाली पत्नी के पास बैठा था,उसकी इस बडी सी मुसकान के पीछे उसके आंसू के साथ साथ दर्द छिपा था और अपने दिल का दर्द बस वह ही तो जानता था
नोट:- इस कहानी का किसी व्यक्ति,वस्तु एवं स्थान से कोई संबंध नही है!यदि किसी से इसका तालुक मिलता है तो उसे सिर्फ संयोग मात्र माना जायेगा
ब्लॉग:-https://jsnaredavoice.blogspot.in/2016/11/blog-post_29.html?m=1
लेखक:-जयसिंह_नारेड़ा

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