Sunday, April 24, 2016

मन के मते ना चालिए

मित्रों एक बड़ी नदी के किनारे  काली घनघोर रात में दोनों पती पत्नी  सड़क के बाजू में अपनी चार पहिंया  गाड़ी को रोक कर खड़े हुए थे ।।

घनघोर काली रात में मूसलाधार बारिश हो रही थी ।।

उनकी चार पहिंया  गाड़ी के पार्किंग इंडिकेटर जल रहे थे और उस घनघोर बारिश में कभी कभी गरज और चमक के साथ बिजली गिरने का प्रकाश  आँखों की रौशनी कुछ समय के लिये बंद किये दे रहा था ।।

लेकिन दोनों पती पत्नी अपनी गाड़ी से बाहर निकल कर खड़े हुए थे ।।

बहुत तेज़ बारिश के कारण वो ठण्ड से ठिठुर भी रहे थे किन्तु फ़िर भी खड़े थे ।।

और हर एक आने वाले वाहन  वालों को रुकने के लिये  निवेदन भी कर रहे थे ।।

लेकिन क़ोई भी वाहन वाला उनके निवेदन से रुकने को तैयार नही था और ज़्यादा स्पीड से वहाँ से गुजरते जा रहे थे।।

एक के बाद एक कर कर के उनकी नज़रों के आगे से सैकड़ों वाहन गुज़र चुके थे लेकिन क़ोई रुकने को तैयार नही था ।।

अंततः  एक बंदा उन दोनों पती पत्नी को किसी मुसीबत में है  ऐसा सोंचकर रुक जाता है ।।

उस नेक बन्दे ने उस दंपत्ती की मदद की नीयत से अपनी गाड़ी रोकी थी ।।

और उसने पूछा बोलिये साहब क्या परेशानी है मै आपकी क्या मदद कर सकता हूँ ।।

उन दोनों पती पत्नी ने कहा भाई साहब सबसे पहले तो आपको हमारे निवेदन पर रुकने के लिये धन्यवाद ।।

फ़िर उन्होंने आगे कहा

बात दरअसल यह है की यहाँ से लगभग 20 मीटर दूर एक पुल है जो नदी के तेज़ बहाव के कारण टूट गया है अब और आगे जाने का रास्ता नही है हम यहाँ से गुजरने वाले हर वाहन वालों को रोकने का प्रयास कर रहे है ।।

किन्तु पता नही क्यों जब से हम यहाँ खड़े होकर जाने वाले लोगों को रोकने का प्रयास करते है तो वो जाने वाले हमे देखकर और ज़्यादा गती से अपने वाहन यहाँ से दौड़ाकर निकाल ले गये लगभग सैकड़ों वाहन वाले इस नदी में बह चुके है ।।

आप पहले शख़्स हो जो जीवित बचे हो ।।

उस बन्दे ने कहा मेरे मन में आपके प्रती शक़ नही था और इस घनघोर काली रात में आप दोनों को इस प्रकार ठण्ड में भारी बारिश में ठिठुरते हुए देखकर मुझसे रहा नही गया और आपकी मदद के लिये मै रुक गया था ।।

उस शख़्स की आँखे भर आई और उन दोनों का शुक्रिया अदा करने लगा की आप दोनों पती पत्नी ने आज मुझे जीवन दान दिया है।।

मै आपका अहसान मंद हूँ ।।

मित्रों यह कहानी हमे यह सीख देती है की अक्सर हम  ज़िन्दगी सफ़र में  इस प्रकार के आह्वानों को ठुकराते हुए आगे निकल जाते है  लेकिन हम तनिक रुककर विचार नही करते।।
जबकि हमे रास्तों में मिलने वाले इंडिकेशन पर थोड़ा रुककर विचार अवश्य करना चाहिये।।

हर एक  निस्वार्थ भावना से अपना  अनमोल समय देने वाला बंदा  अपना निजी लाभ नही देखता बल्कि उसके आसपास के लोगों को  अनजानी  बलाओं और आफ़त से बचाना चाहता है किन्तु हम शक़ के कारण उसके प्रति नज़रिया ही सही नही  रख पाते  और अनजानी राहों पर बेख़ौफ़ चल पड़ते है

प्लीज़ भाइयों कभी कभी रुक कर भी फ़ैसले लिये जा सकते है ।।।
#जयसिंह_नारेड़ा

Thursday, April 7, 2016

मीणा समाज के पञ्च पटेलों की गुमसुदा की तलाश

~~~मीणा समाज पञ्च पटेलों के गुमसुदा की तलाश~~~
कुछ दिन पहले समाज के पञ्च पटेलों में समाज को आदर्श समाज बनाने की होड़ क्या मची की वे उस समय इतने सारे वादे कर गए की उन वादों के आगे तो मोदी के फेकू वादे भी कम पड़ गए!
*पंच पटेलों द्वारा किये गए कुछ वादे जिनको निभाने में रहे असमर्थ:-
1-शादियों में डीजे बन्द रहेगा
2-भात,जामणाऔर लग्न में 2 वेश अथवा एक परिवार के लोगो को वेश
3-मृत्यु भोज बन्द रहेगा
4-शराब पर पूर्ण पाबन्दी
5-चोरी पर रोक लगाने की कोशिश
6-दहेज पर रोक लगाने की कोशिश
इत्यादि ऐसे बहुत से वादे किये गए लेकिन हकीकत कुछ और ही निकल रही है!
*हकीकत:-
1-पञ्च पटेलों का कही जोर लगा या नही पर डीजे पर पूरा जोर दिया बन्द करवाने के लिए लेकिन बेचारे असमर्थ रहे
गांव हो या शहर गरीब(कमजोर) व्यक्ति को तो महाशयों ने डीजे तो क्या एक छोटा सा स्पीकर तक नही चलाने दिया! यंहा तो इन्होंने फर्ज निभा ही दिया
लेकिन क्या करे बेचारे अमीर(ताकतवर,लठ्दारियो) के पास डीजे बन्द करवाने जाने सोच सपनो में भी नही देख सकते!
ताकतवर लोगो की शादियों में खूब डीजे चले है और चल रहे है लेकिन पटेल जी चुप चाप डर के कारण बस जीम कर ऐसे आ जाते जाने इनके पीछे कोई पहलवान इनको पीटने के लिए आ रहा हो!
खैर छोड़े पटेलों को चाय जो पीनी है इनके घर जाकर फिर क्यों बन्द करवाये डीजे फिर चाय भी तो बन्द हो जायेगी!
2-अब पटेल जी यंहा भी क्या करे समान स्तिथि यंहा भी रही जो कमजोर थे उनके यंहा वे ही 2 वेश आये लेकिन ताकतवर लोगो के हाल ही निराले है!
आज कल तो मांग भात और लग्न में वेश और रुपयो की कर रहे है कहते जनाब इतने रूपये जेब हो तो भात या लग्न लाओ वरना आना ही मत
लेकिन पटेलों को तो सांप सूंघ गया बोल ही नही सकते बेचारे
3-तिये और नुक्ते तो बंद कर ही दिए लेकिन बहुत जगह नया ही नियम निकाल लिया लोगो ने 12 वे दूसरे दिन नुक्ता करने लग गए अब तो चक्क पुआ पूड़ी बनावे है और कहते ह हम नुक्ता नही कर रहे ये तो सवामनी है! पटेल जी जीम कर घर बड़े आराम से कहते हुए आते है की सवामनी जोर की बनी
4-शराब ओह्ह यंहा तो पटेल जी देखना ही भूल गए शायद सिर्फ फेकू वादे के बाद शायद याददास्त चली ही गयी हो!
कुछ जगह शराब के ठेके बन्द करवाये लेकिन नतीजा कितना अच्छा निकला की 20-30 दिन ठेका बन्द करवा दिया या हटवा दिया!
ठेके वाले बड़े ही शातिर तरीके से कुछ दिन बन्द करने के बाद थोड़ी दूर ही दुबारा बड़े आराम से बेच रहे है!
पटेल जी अब क्यों रोकेंगे भई उनको फ्री में दारु मिल जाती है(कुछ पटेलों के लिए)
5-चोरी पर तो रोक पटेल जी पर कभी लगी ही नही थी चोर तो बड़े आराम से घूमते है पटेलों को पता होने के बावजूद चुप्पी शादे बैठे ह!
अभी कल ही मेरे गांव में आदिवासी देवस्तान नाहर सिंह बाबा के यंहा से चोरी हो गयी लेकिन पटेलों की तो साहब आदत बिगड़ ही चुकी है पता होने की बावजूद चुप्पी!
आये दिन मोटरसाइकिल चोरी होती लोगो की हर गाँव के पटेलों को पता होता है अपने गांव में कौन लड़का कैसा है कौन चोरी कर सकता है लेकिन कभी उसे रोकने या दण्ड देने तक की कोशिस भी नही करते!
6:-  लड़का=लड़की+दहेज़
इसको तो पटेल जी ही समर्थन दे रहे है अपने बेटे की बोली इस इस तरह लगाते है जैसे कोर्ट ने उसे नीलाम करने का आदेश दे दिया हो!
अपने मान सम्मान के चक्कर में मर्यादा भी भूल जाते है आज ग्वार से ग्वार लड़के की 5 लाख और एक मोटरसाइकिल के साथ फूल जेवर की बोली लगती है!
नोकरशाहीयो(ताकतवर,सरकारी नोकरी) वाले तो जनाब 10-30 लाख तक की बोली लगा रहे जैसे रूपये तो पेड़ कर ही लटक रहे हो
यदि कोई कस्टम,आईएएस या Ras अथवा नोकरी के उचे होदे पर तो महाशय करोड़ो में बिकते है!
बेचारे गरीब की तो शामत आ गयी करे भी तो क्या करे एक तो गरीबी से मरा हुआ ऊपर से समाज के पटेल जीने नही देते!
खैर मै ज्यादा लम्बा नही लिखूंगा
मेरा निवेदन की कृपया इन पञ्च पटेलों की खोज करके आदर्श समाज बनाने का कष्ट करे
साथ ही अच्छे पदों पर जो नोकरी लगे वे प्लीज अपनी बोली बंद करवाये रूपये तो आप ही काफी कमा लोग फिर बेटी वाले पर किस बात का जोर लगाते हो इस पर आप ही सुधार कर सकते है!
धन्यवाद
नोट:-मेरा मकसद किसी व्यक्ति विशेष के दिल को आघात करने का नही है,अतः इसे गलत रूप में ना ले
मेरा मकसद समाज की समस्या को समझाने का प्रयास मात्र है
आप सभी के विचार आमन्त्रित है
लेखक
#जयसिंह_नारेड़ा

पार्वती योनि

नेहा नरुका की कविता 'पार्वती योनि'

ऐसा क्या किया था शिव तुमने ?
रची थी कौन-सी लीला ? ? ?
जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग
माताएं बेटों के यश, धन व पुत्रादि के लिए
पतिव्रताएँ पति की लंबी उम्र के लिए
अच्छे घर-वर के लिए कुवाँरियाँ
पूजती है तुम्हारे लिंग को,

दूध-दही-गुड़-फल-मेवा वगैरह
अर्पित होता है तुम्हारे लिंग पर
रोली, चंदन, महावर से
आड़ी-तिरछी लकीरें काढ़कर,
सजाया जाता है उसे
फिर ढोक देकर बारंबार
गाती हैं आरती
उच्चारती हैं एक सौ आठ नाम

तुम्हारे लिंग को दूध से धोकर
माथे पर लगाती है टीका
जीभ पर रखकर
बड़े स्वाद से स्वीकार करती हैं
लिंग पर चढ़े हुए प्रसाद को

वे नहीं जानती कि यह
पार्वती की योनि में स्थित
तुम्हारा लिंग है,
वे इसे भगवान समझती हैं,
अवतारी मानती हैं,
तुम्हारा लिंग गर्व से इठलाता
समाया रहता है पार्वती योनि में,
और उससे बहता रहता है
दूध, दही और नैवेद्य...
जिसे लाँघना निषेध है
इसलिए वे औरतें
करतीं हैं आधी परिक्रमा

वे नहीं सोच पातीं
कि यदि लिंग का अर्थ
स्त्रीलिंग या पुल्लिंग दोनों है
तो इसका नाम पार्वती लिंग क्यों नहीं ?
और यदि लिंग केवल पुरूषांग है
तो फिर इसे पार्वती योनि भी
क्यों न कहा जाए ?

लिंगपूजकों ने
चूँकि नहीं पढ़ा ‘कुमारसंभव’
और पढ़ा तो ‘कामसूत्र’ भी नहीं होगा,
सच जानते ही कितना हैं?
हालांकि पढ़े-लिखे हैं

कुछ ने पढ़ी है केवल स्त्री-सुबोधिनी
वे अगर पढ़ते और जान पाते
कि कैसे धर्म, समाज और सत्ता
मिलकर दमन करते हैं योनि का,

अगर कहीं वेद-पुराणऔर इतिहास के
महान मोटे ग्रन्थों की सच्चाई!
औरत समझ जाए
तो फिर वे पूछ सकती हैं
संभोग के इस शास्त्रीय प्रतीक के-
स्त्री-पुरूष के समरस होने की मुद्रा के-
दो नाम नहीं हो सकते थे क्या?
वे पढ़ लेंगी
तो निश्चित ही पूछेंगी,
कि इस दृश्य को गढ़ने वाले
कलाकारों की जीभ
क्या पितृसमर्पित सम्राटों ने कटवा दी थी
क्या बदले में भेंट कर दी गईं थीं
लाखों अशर्फियां,
कि गूंगे हो गए शिल्पकार
और बता नहीं पाए
कि संभोग के इस प्रतीक में
एक और सहयोगी है
जिसे पार्वती योनि कहते हैं

(नेहा नरुका महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में शोध सहायक हैं.)

भय का भूत

रात 10 बज रहे थे गांव में एकदम सुनसान माहौल था!
मन्द मन्द गति से ठंडी हवाए चल रही थी जो शरीर को ठण्ड का अहसास करवाने के लिए काफी थी!पेड़ के पत्तो व् सियार और कुत्तो के भोकने की आवाज उस सुनसान माहौल को डरावना बना रही थी!
तभी अचानक रोज की तरह बिजली चली गयी,अब गांव और ज्यादा डरावना सा लग रहा था,चारो और अँधेरा छा चूका था!तभी अचानक कुछ बजने की आवाज धीरे धीरे आ रही थी मै बाहर छत पर खाट(चारपाई) बिछा कर लेता हुआ था! उठ कर देखा तो मेरा मोबाईल ही बज रहा था वो मेरे दोस्त का कॉल था मैंने कॉल के प्रतिउत्तर देते हुए
हेल्लो...
दोस्त:-अरे कब से फ़ोन कर रहा हु उठाया क्यों नही(थोडा जोर देते हुए)
मै:-अरे यार शिव मै बाहर छत पर सो रहा था और फ़ोन अंदर कमरे में रखा तो ध्यान बाद में पड़ा!
दोस्त:-रहन्दे!सुन कल अपने घर पे प्रोग्राम(सवामनी) ह जल्दी आजा अभी बहुत काम बाकी ह यार,मै अकेला पड़ गया!
मै:-अंकल जी और तेरा छोटा भाई कहा गए जो तू अकेला लग रहा ह बाकी सब लोग भी तो है!
दोस्त:-पापा और मोनू पड़ौस के गांव भट्टी का इंतजाम करने गए ह सुबह से माल उतरना चालू होगा इसलिए सब कुछ अभी करना है!
(संयोगवस उस दिन मेरी गाड़ी भी घर पे नही थी)
मै:-मै आऊंगा कैसे गाड़ी घर नही है,पैदल काफी दूर पड़ता है!
दोस्त:-आजा यार मै ले आऊंगा रास्ते में से यदि पापा टाइम पर आ गए तो,ज्यादा दूर थोड़ी है 2 कोश(6 किलोमीटर) और तू कोनसा पूरा पैदल ही आएगा मै आ जाऊंगा लेने
मै:-भाई आने की बात नही है रात बहुत हो रही है अकेले रात में आना खतरे से खाली नही है!
देखता हु फिर भी यार
दोस्त:-हा भाई देख ले और आ ही जाना भाई काम बहुत है!
मै बहुत देर से इंतजार कर रहा था की बिजली आ जाये,कोई व्यक्ति उधर जाने वाला मिल जाये जिसके साथ मै जा सकु लेकिन निराशा ही हाथ लगी
कुछ देर बाद बैठे रहने के बाद मैंने सोचा क्यों नहीं मै ही किसी को यंहा से साथ ले चलु!
एक दो साथियो को जगाया पर कोई फायदा नही हुआ और मैंने अब अकेले जाने का मन आखिर बना ही लिया
मैंने बेग में कपड़े रखे थे और मोबाईल का चार्जर था बेग साइड में लटकाने वाला था और जूते पहनकर चल दिया!
रास्ते में कुत्तो के भुसने(चिल्लाने) की आवाज ही रात के सन्नाटे को खराब कर रही थी!
फ़ोन में गाने बजाते हुए जा रहा था लगभग 3 किलोमीटर जा चूका था तभी मैंने अपने मित्र को फ़ोन लगाया लेकिन उसका मोबाइल बन्द आ रहा था!
(मन ही मन सोचने लगा आज तो पुरे रास्ते पैदल ही जाना पड़ेगा)
हल्की हल्की सी गर्मी महसूस हो रही थी इसलिए मैंने अपनी शर्ट खोलकर बैग के ऊपर ही पटक दी और आगे बढ़ गया
कुछ दुरी पर कुत्ते एक जगह को घूरते हुए जोर जोर भोक रहे ऐसा लग रहा था मानो वहा कोई है जिस पर वे भौक रहे है!
मेरे कदम उसे देखने के लिए तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे साथ में ही मन थोड़ी घबराहट बढ़ रही थी क्योकि वहा कोई दिखाई नही दे रहा था!
(अँधेरी रात तो थी ही हो सकता है जिसकी बजह से नजर नही आ रहा था)
यही सोच कर आगे बढ़ा जिस जगह वे भौक रहे उस से थोडा ही दूर था!
अचानक मेरे पैर के आस पास कुछ दिखाई दिया मै उसे देखने निचे झुका तो वहा कुछ नही दिखाई दिया!
मानो दिल बैठ सा गया हो हिम्मत ना आगे जाने की हो रही थी ना पीछे मुड़कर देखने की ऊपर से कुत्तो की भोकने की आवाज मेरी तरफ बढ़ रही थी!एक बार हवा के झोके ने मुझे पूरा ही हिला इतना तेज था की मै गिरते गिरते बचा जैसे ही थोडा निचा झुका मुझे फिर कुछ दिखाई दिखाई दिया अब मेरी हालात खराब थे!बड़ी मुश्किल से हिम्मत बांध कर दुबारा निचे झुका तो कुछ दिखाई नही दिया!
कुछ समझ नही आ रहा था की आखिर भाग जाऊ या किसी के आने का इंतजार करू!
(यदि कुछ है तो वो मुझे यंहा भी डरा सकता है और भागूंगा तो मुझे भागने नही देगा ऐसा सोचकर आगे ही जाने का निर्णय लिया)
म मन में घबराहट लिए लड़खड़ाते हुए कदमो से धीरे धीरे आगे जाना लगा! ऐसा महसूस हो रहा था की कोई मेरे पीछे पीछे चल रहा हो उसके पीछे आने की सरसराहत कानो में साफ़ साफ सुनाई दे रही थी!
लेकिन मै हिम्मत करके बढ़ने की कोशिश कर रहा था कुछ ही दूरी तय कर पाया था कि कुछ अजीब सी आवाजे सुनाई दे रही थी मै बार-बार अपना ध्यान हटाना चाह रहा था लेकिन मेरा ध्यान चाह कर भी नही हटा पा रहा था!
समय का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ने के शिवाय मेरे पास कोई और उपाय नही था काफी आगे जाने के बाद मैंने उसी आवाज को फिर से महसूस किया!
अबकी बार हिम्मत बना चुका था ये सोच कर की कुछ है तो वो मुझे वैसे भी नही जाने देगा ना भागने देगा अब जो होगा देखा जायेगा और आगे बढ़ा
एक बड़ का पेड़(बरगद) के पेड़ में अचानक आवाज आई जो की मेरे पास में ही एक खेत में था
ऐसा लग रहा था उसमें कोई जोर जोर से कूद रहा हो! उसकी डाली टूट कर गिरेगी,पत्तो के सरसराहट की आवाज में कानो में एक दम साफ साफ आ रही थी!
रात के समय होने के कारण बरगद के पेड़ में कुछ दिखाई भी नही दे रहा था इतनी हिम्मत भी नही थी की उसके पास जाकर देख आऊ
मै अपने रास्ते यानि पगडण्डी पर निरंतर आगे बढ़ रहा था !मेरा डर अभी कम नही हुआ था!
अभी भी वह आवाज मेरा पीछा कर रही थी!आवाज मानो जैसे मेरे पैरों के पास से ही आ रही हो! जैसे कोई कुत्ता या बिल्ली मेरे पीछे चल रहा हो !अबकी बार हिम्मत करके पीछे मुड़कर देखा लेकिन पीछे कुछ नही था!मैंने अपना एक जूता खोल लिया इसी इरादे से की कही बिल्ली या कुत्ता ही हो जिससे मैं डर रहा हु उसे जूते से मारूँगा
और एक बार फिर पीछे मुड़ कर देखा तो एक सफेद सफेद सा कपड़ा दिखाई दिया और मैंने अपने जूते का प्रहार चालू कर दिया
जैसे मै घुमु वैसे ही वो मेरे पीछे पीछे घूम जाता मैंने खूब उस पर जूते मारे पर उस पर कोई ऐसे नही था अब मुझे डर ज्यादा लगने लग गया और मै भागने लग गया अब मै दोस्त के गांव के पास ही पहुच चूका था!अब मैंने अपनी शर्ट पहन ली साथ में खुद को नॉर्मल करते हुए आगे बढ़ा और उनके घर पहुच गया
सबने मेरे हाल पूछे मैंने उनको कुछ नही बताया हम कल की तैयारी के लिए काम में जुट गए और जब काम खत्म हो गया हम सो गए
सुबह मैं जगा तो चाय लेकर आई दोस्त की भाभी मुझे देख कर जोर जोर से हस रही थी!
उसने अपने पति को कान मे मेरे बारे में बताया तो वह भी हसने लगा ऐसे ही धीरे धीरे सब हसने लग गए
मैंने कारन जानना चाहा लेकिन कोई बता नही रहा था आखिर दोस्त के पापा से ही पूछ लिया
अंकल भाभी और बाकी लोग मेरे ऊपर क्यों हस रहे तो अंकल ने हँसी के साथ कहा बेटा तू रात में कौन सु कुश्ती लड़ के आयो है जो थ्यारी शर्ट माटी में बुरी तरह हो रही ह पाछ सु"
ये सुनकर मैंने शर्ट खोलकर देखी तो सच में ही ऐसी हालत थी अब मेरी समझ में आ गई थी की कल रात सरसराहट की आवाज कहा से आ रही थी
सच यही था कि जब मैंने अपने बैग पर शर्ट को रखा तो उसका कुछ भाग नीचे लटक रहा था वही जमीन से घिसट रहा था जिससे वो आवाज आ रही थी
मैंने जिसकी पिटाई की थी वो मेरी शर्ट का ही कपड़ा था! मुझे भी हँसी आने लग गयी अब उनको ये बात नही बताने का ही निर्णय लिया क्योकि फिर वे मेरी मजाक उड़ाते और मुझे चिढ़ाते
मैंने कहा-अंकल मै एक किसान भुग्गा(एक प्रकार का वाहन-जुगाड़) में बैठ के आयो जो वा  गंदो हो रियो होयगो जेसू होगी दूसरी लायो हु वाकू पहन लुंगो"
दोस्त ने कहा अब अपन दोनों फ्रेस होने चले तो मैंने कहा उस बड़ की तरफ चलने के लिए तो वो राजी हो गया
वहां जाकर देखा तो उस बड़ में लंगूर बैठे थे अब सब समझ आ चुका था कि रात में बड़ में किसकी आवाज आ रही थी
मुझे अपने आप पर हँसी आ रही थी किसी को कुछ बता नही सकता था!
हम वहां से फ्रेस होकर घर गए और फिर काम में जुट गए
इसी तरह समय बीत गया और मै वापस घर आ गया

Note:-ये कहानी काल्पनिक है इसका किसी घटना एवं पात्र से कोई सम्बन्ध नही है!
इस कहानी का उद्देश्य भय के बारे अवगत करवाना है कि व्यक्ति भय से क्या क्या सोच लेता है!

लेखक:-जयसिंह_नारेडा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...