Sunday, January 3, 2016

आदिवासी नायक जयपाल सिंह मुंडा:-जयसिंह नारेड़ा

जयपाल सिंह मुंडा(3 जनवरी 1903 )
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जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड राज्य के जिला रांची के उपखंड खूंटी के रेमोटे तपकारा गाँव में हुआ था | तपकारा गाँव में अधिकांश मुंडा लोग रहते है जो इसाई है | प्रारंभिक शिक्षा गाँव के चर्च में हुई उसके बाद सेंट पाल्स स्कुल रांची गए | जयपाल सिंह प्रतिभाशाली छात्र थे बहुत कम उम्र में उनमे अदभुत नेतृत्व क्षमता पनप चुकी थी मिशनरीज इस क्षमता और प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड भेज दिया गया | मुंडा जी ऑक्सफ़ोर्ड युनिवेर्सिटी इंगलैंड की हाकी टीम के सद्श्य बन गए .1928 के एम्सटर्डम ‪#‎ओलंपिक‬ में भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी की और देश को ‪#‎स्वर्ण‬ पदक दिलाया और देश-दुनिया में भारत का नाम किया। ये एक ऐसी ‪#‎आदिवासी‬ शख्सियत है , जिसने न केवल खेल और राजनीती बल्कि हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया।
इन्होंने अपने जीवन की दूसरी पारी राजनीती के रूप में शुरू की और भारतीय ‪#‎संविधान_सभा‬ के सदस्य चुने गए। संविधान निर्माण में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। सविधान की पाचवी और छठी अनुसूची व आदिवासियों के लिए अन्य प्रावधान उनके सहयोग से ही बनाये गए उन्होंने सविधान में आदिवासी शब्द को जुडवाने के लिए भी भरपूर कोशिश की पर सफलता नहीं मिली | सविधान सभा की बैठक में आदिवासियों के अधिकारों पर मजबूती से पक्ष रखा | संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा जी ने कहा था की " मैं भी सिंधु घाटी की सभ्यता की ही संतान हूं। उसका इतिहास बताता है कि आप में से अधिकांश बाहर से आए हुए घुसपैठिए हैं। जहां तक हमारी बात है, बाहर से आए हुए लोगों ने हमारे लोगों को सिंधु घाटी से जंगल की ओर खदेड़ा। हम लोगों का समूचा इतिहास बाहर से यहां आए लोगों के हाथों निरंतर शोषण और बेदखल किए जाने का इतिहास है।’’ सविधान निर्मात्री सभा में #आदिवासी हितों की चर्चा करने वाला वहाँ कोई नहीं था। ऐसे समय में ‪#‎मुंडा‬ जी ने#आदिवासियों का पक्ष पुरजोर तरीके से रखा। संविधान सभा में उनके द्वारा दिए गए ओजपूर्ण भाषण का एक अंश--
"एक जंगली और आदिवासी के तौर पर मैं क़ानूनी बारीकियों को नहीं जनता, लेकिन मेरा अंतर्मन कहता है, कि आजादी की इस लड़ाई में हम सब को एक साथ चलना चाहिए। पिछले छः हजार सालों से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है, तो वे आदिवासी ही है। उन्हें मैदानों से खदेड़ कर जंगलों में धकेल दिया गया और उन्हें हर तरीके से प्रताड़ित किया गया। लेकिन अब जब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है, तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।"जयपाल_सिंह_मुंडा जी ने अपने जीवन के अंतिम दिन आदिवासी हितों की लड़ाई लड़ते हुए दिल्ली में बिताये और 20 मार्च,1970 को इस आदिवासी महामानव ने अंतिम साँस ली।इस आदिवासी महामानव, महानायक को इनके 114 वें#जन्मदिन पर हार्दिक ‪#‎श्रद्धांजलि‬... सादर ‪#‎नमन्‬
जय जोहार......
जय आदिवासी.
पी एन बैफ्लावत जी की पोस्ट से साभार
प्रेषक
जयसिंह नारेड़ा

विद्या या ज्ञान की देवी सरस्वती या सावत्री बाई फुले

विद्या या ज्ञान की देवी सरस्वती या सावत्री बाई फुले !!
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सावित्रीबाई फुले • का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था।
इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।सावित्रीबाई ने अपने जीवन का उद्देश्य विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना बनाया। कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं18 स्कूलों की प्रथम संचालिका थी आज से लगभग 168 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई.उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं.आज भारत में जो शिक्षा की सुधरी हुई स्थिति है, वह सरस्वती नहीं माता सावित्री बाई फूले की देन है । आम लोगो की शिक्षा के जनक और जननी तो महामना ज्योतिबा फूले और माता सावित्री बाई फुले हैं । अंग्रेज मैकाले की शिक्षा प्रसार नीति की जड़ में फूले दम्पत्ती थे । उनका पूरा समर्थन और सहारा लेकर लार्ड मैकाले ने भारत में शिक्षा प्रसार किया ।
दूसरी तरफ सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं। उनके एक मुख, चार हाथ हैं। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं।क्या सरस्वती ज्ञान की देवी है ? अगर है तो इन शंकाओं का समाधान करें-
1इसके बिना ईसाई,मुसलमान,प्रकृतिपूजक(आदिवासी)नास्तिक आदि कैसे ज्ञान प्राप्त कर पा रहे है? 2 सरस्वती कितनी भाषाएँ जानती है ? 3 हड़प्पा सभ्यता की लिपि अब तक नहीं पढ़ी गई। इस संबंध में सरस्वती का क्या प्लान है ? 4 सरस्वती के होते हुए स्कूलों में शिक्षकों की जरूरत क्यों पड़ती है ? 5 अंग्रेजों के पहले भारत मेँ अंग्रेजी क्योँ नहीँ थी. क्या सरस्वती पहले अंग्रेजी नहीँ जानती थी ? 6 कई देश शतप्रतिशत साक्षर हो गए, जबकी भारत सरस्वती के होते हुए भी साक्षरता मेँ पीछे है, क्योँ ? 7 मनु ने मनुस्मृति मेँ शूद्रोँ का पढ़ना दंडनीय माना है। आज तक इस मामले मेँ सरस्वती ने कोई एक्शन क्योँ नहीँ लिया ? क्या सरस्वती भी इस षडयंत्र मेँ शामिल थी? ज्ञान तो सरस्वती देती है. क्या यह ज्ञान मनु को सरस्वती ने ही दिया था ? 8 कई भाषाएँ लुप्त हो गई और कई लुप्त हो रही हैँ। सरस्वती उन्हेँ क्योँ नहीँ बचा पा रही हैँ? क्या इतनी सारी भाषाओँ को याद रखना उनके लिए मुश्किल हैँ ? 9 कुछ बच्चे मेहनत करने पर भी पढ़ाई मेँ कमजोर होते हैँ. क्योँ ? क्या वह भेदभाव करती हैँ अगर आप इस निष्कर्ष पर पहुचते की की विद्या की वास्तविक देवी सावत्री बाई है तो उनके जन्म दिन पर हार्दिक नमन !!

पी एन बैफ्लावत जी की पोस्ट से साभार
प्रेषक
जयसिंह नारेड़ा

जागो मूलनिवासी जागो

भारतीय मूल निवासी की गुलामी कितनी बडी गुलामी है , जरा कल्पना कीजिए तो !!!!!

        ��साथियों पहले जो था हमारे लोगों के गले मे मटका लटकता था , कमर मे झाडू बांधना पडता था , यह सब जो होता था , यह देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था  कि  ये गुलाम लोग हैं । लेकिन आज की जो गुलामी है , वह टाई , शूटिंग , शर्टिन्ग , वाली है ।

���� एक कदम भी गुलाम मूल निवासी अपनी मर्जी से नहीं रख सकते ।

���� एक सांस भी गुलाम मूल निवासी मर्जी से नहीं ले सकते ।

���� भले ही आप उन्हे गाली गलोच कर लीजिए चलेगा  , लेकिन ब्राह्मणो के खिलाफ जरासी बात सहन नहीं कर सकते ।

���� अगर अपना मकान खुद का ₹ पैसा खर्च करके बनाया हो लेकिन बगैर ब्राह्मण की मर्जी के ग्रह प्रवेश नहीं कर सकते ।

���� अगर शादी करना हो तो , बगैर ब्राह्मण की सलाह लिए यानी ( कुंडली देखे बगैर ) शादी के लिए रिस्ता तय नहीं कर सकते ।

���� मान लीजिए रिस्ता तय भी हो गया लेकिन किसी ना किसी ब्राह्मण के लिखे पंचाग को देखे बगैर शादी की तारीख तय नहीं कर सकते ।

���� अगर पंचाग देखकर तारीख निकाल भी ली लेकिन , बगैर ब्राह्मण की उपस्थिति के शादी नहीं कर सकते ।

���� शादी के बाद संतान होगी , लेकिन अपनी ही संतान का नामकरण अपनी मर्जी से नहीं कर सकते ।

���� संतान होने के बाद फिर से पंचाग देखा जाता है , कहीं बच्चा मूल मे तो पैदा नहीं हुआ, अगर मूल मे पैदा हुआ है तो बगैर ब्राह्मण की सलाह लिए कुछ भी नहीं कर सकते ।

���� अगर आदमी मर जाता है बगैर पंचाग देखे उसके शव को छू भी नहीं सकते ।

���� यानी कुल मिलाकर यह कहा जाये कि बगैर ब्राह्मण की मर्जी के मर भी नहीं सकते ।

�������� साथियों यह है आज के समय में "ब्रांडेड गुलामी।"
जागो मूल निवासियों जागो

जयसिंह नारेड़ा

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

#मीणा_गीत_संस्कृति_छलावा_या_व्यापार दरअसल आजकल मीना गीत को संस्कृति का नाम दिया जाने लगा है इसी संस्कृति को गीतों का व्यापार भी कहा जा सकता ...