माटी के लाल-आदिवासी कविता :- जयसिंह नारे ड़ा ××××××××××××××××××××××××××××××× वो जो सभ्यताओं के जनक है, होमोफम्बर आदिवासी, संथाल-मुंडा-बोडो-भील, या फिर सहरिया-बिरहोर-मीण-उराव ...
~~ आदिवासी महिला :- एक संघर्ष की मिशाल -~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ देखा जाये तो बुआ गोलमा देवी जी को काम करने की न के बराबर भी जरुरत नही है ये चाहे तो बस चुटकियो मे ही अपना काम किसी नौकर या अन्य व्यक्ति से करवा सकती है लेकिन ऐसा नही करती है क्योकि ये है आदिवासी आदिवासियो को काम करने आदत नही लत होती है जो मरते मरते भी नही भुलते इन्हे हर काम करना आता है संघर्ष करना तो जिन्दगी का जैसे एक आम पहलु हो खैर छोड़ो मै ये पोस्ट गोलमा जी के लिए लिख रहा हु तो उनके बारे कुछ बताना जरुर चाहुंगा गोलमा जी वैसे हमारे गाव टो ड़ी खोहरा(टोडाभीम) से ही है गोत्र से नारे ड़ा है जन्म से ही संघर्ष मे जीवन गुजरा है गाव(पिहर) मे भी ज्यादा अमीर घर नही था जो कि आराम कि जिन्दगी गुजार सके! बचपन से ही खेती-बाड़ी के काम काज को संभाला और खेती के साथ साथ घरेलु काम काज झाडु पोछा,बर्तन,भैसो का काम,रसोई ऐसे सारे काम करना शुरु से ही आता था शादी के बाद भी सामान्य स्तर का परिवार मिला डा साहब उस समय नौकरी भी नही लगे वे सिर्फ उस समय पढाई करते थे गोलमा जी के आने के बाद वे बीकानेर चले गये और डाक्टर बन गये समय...
एक मच्छर , साला एक मच्छर , आदमी को हिज ड़ा बना देता है ! ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक खटमल पूरी रात को अपाहिज कर देता है. सुबह घर से निकलो, भीड़ का हिस्सा बनो. शाम को घर जाओ, दारू पिओ, बच्चे पैदा करो और सुब...