Sunday, July 10, 2016

असली कार्यकर्ताओ से छिना हक़ पुरुषोत्तम ने

हक रक्षक दल (Haq Rakshak Dal-HRD) की स्थापना

श्री देवेन्द्र सिंह मीणा उर्फ देवराज जी द्वारा ‘मीणा आदिवासियों’ के साथ किये जा रहे अन्याय और विभेद से व्यथित होकर और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिये ‘मीणा आदिवासियों’ को एकजुट करने के लिये व्हाट्सएप और फैसबुक पर ‘पे-बैक टू सोसायटी’ नाम से ग्रुप और पेज बनाकर ‘मीणा समाज’ के लोगों को जोड़ा। जिसमें अनेक युवाओं ने उत्साह दिखाया। जिनकी संख्या लगातार बढती गयी। गैर-मीणा आदिवासी भी इसमें शामिल हुए और सभी ने अपने विचार और भावनाओं को खुलकर व्यक्त किया।

हक़ रक्षक दल प्रमुख चुने जाने पर श्री डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ का दल से प्रमुख सदस्य श्री महेश मीणा द्वारा माल्यार्पण कर स्वागत किया गया  
इसके अगले कदम के रूप में 27 जुलाई, 2014 को दौसा, राजस्थान में मीणा छात्रावास में ग्रुप के सदस्यों की बैठक रखी गयी। जिसमें सभी सदस्य पहली बार एक दूसरे से रूबरू मिले और सभी ने अपने-अपने विचार तथा अनुभव साझा किये। सभी ने लोगों के बीच जाकर समाज को जागरूक करने पर बल दिया। साथ ही आगे भी ग्रुप की बैठकें करते रहने का निर्णय लिया गया।

इसी दौरान श्री देवराज जी की डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ जी से मोबाइल और व्हाट्सएप के जरिये विभिन्न मुद्दों पर लागातार चर्चा होती रही। डॉ. निरंकुश जी, श्री देवराज जी के मार्फ़त ग्रुप को जरूरी मार्गदर्शन देते रहे और इसी दौरान09 अगस्त, 2014 को ‘विश्‍व आदिवासी दिवस’ के मौके पर डॉ. निरंकुश जी एवं श्री देवराज जी ने सभी सदस्यों को प्रोत्साहित किया कि वे इस अवसर पर अपने विचार खुलकर व्यक्त करें। म. प्र. और राजस्थान के आदिवासियों ने देशभर में जगह-जगह इस अवसर पर सभा, बैठक, चर्चा आदि का आयोजन किया। जिन सबकी खबरों और व्यक्त भावनाओं को एकत्रित करके डॉ. निरंकुश जी ने ‘‘विश्‍व आदिवासी दिवस-मनुवादी-आर्य शुभचिन्तक नहीं, शोषक हैं!’’ शीर्षक से एक आलेख के रूप में सोशल मीडिया के अनेकानेक प्रतिष्ठित वैब-न्यूज-पोर्टल्स पर प्रकाशित करवाया। (देखें : नव भारत टाइम्सआवाज-ए-हिन्दस्वर्गविभाप्रेसपालिका न्यूज चैनल) जिसको पढकर भेदभाव तथा नाइंसाफी से व्यथित आदिवासी और अन्य कमजोर वर्गों के लोगों में देशभर में उत्साहजनक प्रतिक्रिया देखने को मिली। जिससे ये बात स्पष्ट हो गयी कि मनुवादी व्यवस्था से सभी लोग परेशान हैं। डॉ. निरंकुश जी ने ‘पे-बैक टू सोसायटी’ के सदस्यों को जब से जुडे़ हैं, लगातार मार्गदर्शन देने का प्रयास किया है।

नयी दिल्ली से हक़ रक्षक दल के प्रमुख सदस्य श्री महेश मीणा उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए मंच पर
बांये से दायें श्री देवेन्द्र सिंह मीणा उर्फ देवराज हक़ रक्षक दल के प्रमुख श्री डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ और श्री डॉ. अनिल टाटू 
उपरोक्त छोटी सी किन्तु महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि और श्री देवराज जी की दूरगामी सोच तथा आकांक्षा को आगे बढ़ाते हुए 18 अगस्त, 2014 को सारस रेस्टोरेंट, जयपुर में ‘पे-बैक टू सोसायटी’ ग्रुप की से एक बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें दूर-दूर से आकर मीणा आदिवासी वर्ग के लोगों द्वारा पूर्ण मनोयोग से भाग लिया गया।

बैठक का संचालन जोशीले युवा श्री हरिगोपाल मीणा द्वारा किया गया। श्री देवेन्द्र सिंह और श्री महेश मीणा के प्रस्ताव पर सर्व-सम्मति से बैठक की अध्यक्षता श्री डॉ. श्री पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ जी को सौंपी गयी, जबकि श्री डॉ. अनिल टाटू और श्री ओम प्रकाश मीणा बैठक में विशेष आमन्त्रित अतिथि के रूप में शामिल हुए।

बैठक का संचालन, राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के जोशीले युवा सदस्य श्री हरिगोपाल मीणा द्वारा किया गया
श्री डॉ. श्री पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ जी द्वारा बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों को अपने-अपने परिचय के साथ-साथ खुलकर अपने-अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया गया। सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। जिसका सार निम्न बिन्दुओं में निकला-
01-वर्तमान सामाजिक और प्रशासकीय व्यवस्था से हम सभी परेशान हैं और इससे बचाव के लिये हमें कुछ न कुछ कदम उठाना जरूरी है।
02-सदस्यों ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि आदिवासियों और दलितों के अलग-अलग तथा संयुक्त रूप से अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं। जो सबके सब मीणा-मीना मुद्दे पर चुप हैं।
03-दलित-आदिवासी वर्गों के गॉंव से लेकर संसद तक सभी दलों में अनेक निर्वाचित जन प्रतिनिधि हैं, लेकिन मीणा और मीना के मुद्दे पर सबके सब आश्‍चर्यजनक रूप से मौन हैं, जो मीणा समाज के लिये गहरी चिन्ता और दु:ख का कारण है।
04-मीणा समाज के नेताओं की इस विषय पर चुप्पी पर भी सभी ने दु:ख और चिन्ता व्यक्त की।
05-यही नहीं उच्च स्तर पर पदस्थ अधिकारी भी इस मामले में कोई दिशा नहीं दे रहे हैं, बल्कि सभी बचाव की मुद्रा में हैं।
06-मीणा-मीना के प्रायोजित विवाद के चलते मीणा जाति के लोगों के जाति प्रमाण-पत्र नहीं बनाये जा रहे हैं। ऐसा लगता है मानो हमारा कोई धणी-धोरी नहीं है।
07-राजस्थान सरकार और भारत सरकार भी इस बारे में पूरी तरह से मौन हैं, जबकि सबको पता है कि मीणा और मीना एक ही जाति है। इस पर भी सभी ने दु:ख और चिन्ता व्यक्त की।
08-मीणा और मीना के मुद्दे पर सभी छोटे-बड़े राजनैतिक दलों और संगठनों की चुप्पी पर भी सभी ने आश्‍चर्य व्यक्त किया कि आखिर ये सब मीणा-मीना जाति को संरक्षण क्यों नहीं दे रहे हैं।
09-राजनैतिक दलों की मीणा जाति से नाराजगी के लिये सदस्यों ने गत विधानसभा चुनावों में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा द्वारा मीणाओं को भाजपा और कॉंग्रेस के विरुद्ध एकजुट करने को भी एक कारण बताया, जबकि अन्य कुछ सदस्यों ने इससे असहमति जाहिर की

10-मीणाओं को दूसरे आदिवासियों और दलितों की ओर से इस मुद्दे पर समर्थन नहीं मिलने का मुद्दा भी सामने रखा गया।
राजस्थान के बारां जिले से हक़ रक्षक दल के प्रमुख सदस्य श्री अरविन्द मीणा 'आरव' उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए
उपरोक्तानुसार उपस्थित सदस्यों के विचार सुनने के बाद आज की सभा की अध्यक्षता कर रहे डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ जी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि-

1-सबसे पहले हम अर्थात् मीणा समाज के लोगों को इस बात को समझना होगा कि अब हमारे लिए ईमानदारी से विचार करने का वो समय आ गया है, जब हम सोचें कि-
हक़ रक्षक दल के प्रमुख श्री डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’
(1) आखिर हम से दूसरे समाज या हमारे खुद के प्रतिनिधि या संगठन क्यों दूर हो रहे हैं?
(2) हमारी वर्तमान बदतर दशा के लिये कौनसे कारण जिम्मेदार हैं?
(3) जब तक हम ईमानदारी से अपनी आलोचना नहीं करेंगे, अपनी कमियों को नहीं समझेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ सकते हैं।

(4) दूसरों पर उंगलियां उठाने से पहले, सबसे पहले हमें अपनी सामाजिक और हमारे व्यावहार की कमियों और बुराईयों के बारे में चर्चा करनी होगी। जिससे हम समझ सकें कि हम अलग-थलग क्यों पड़ते जा रहे हैं?
02-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-हम शुरू से ही अर्थात आदिकाल से ही एक खुद्दार और स्वाभिमानी आदिवासी कौम के रूप में जाने जाते रहे हैं, जिनका अर्थात मीणाओं का मतस्य नामक जनपद पर अपना राज्य था। उस जनपद का भौगोलिक आकार मतस्य अर्थात् मछली के चित्र के आकार का था। इसलिये इसे मतस्य जनपद कहा जाता था और इसी कारण इसके ध्वज पर मछली का चिह्न अंकित होता था। आर्यों के दुराचारों के विरुद्ध सुदासराज नामक आर्य राजा के विरुद्ध अन्य अनेक राजाओं के साथ मिलकर मतस्य जनपद के राजा ने भी सामूहिक युद्ध में भाग लिया था। जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि मतस्यवंशी वर्तमान मीणा जन जाति के वंशज आर्यों के नहीं, बल्कि मूल भारतीय आदिनिवासी (अबोरिजनल इण्डियन ट्राइब्स) वीर अनार्यों के वंशज हैं। ये अलग बात है कि मनुवादियों की ओर से मतस्य अर्थात मछली को ही विष्णु का मतस्य अवतार घोषित करके हमारे समाज को आर्यों का वंशज बनाने का दुष्चक्र चलाया जा रहा है, जिससे कि हमें क्षत्रिय आर्यों के वंशज घोषित करके अनुसूचित जन जातियों की सूची से बाहर निकलवाना आसान हो सके। दुखद आश्चर्य तो यह है कि भोले-भाले मीणा आदिवासी मनुवादियों के षड्यंत्रकारी चंगुल में फंसते जा रहे हैं। यही नहीं हमारे अनेक उच्च पदस्थ अधिकारी "विष्णु के मतस्य अवतार मीनेष के मंदिर बनवाकर" मनुवादियों के इस दुष्चक्र को बढ़ावा देने में योगदान दे रहे हैं। 


03-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-दुर्भाग्य से कालान्तर में अनेक ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक कारणों और आर्यों के षड़यन्त्रों के चलते हमारे पूर्वज आर्यों की वैदिक संस्कृति तथा आर्य ब्राह्मणों द्वारा प्रतिपादित अमानवीय मनुवादी व्यवस्था के मोहपाश में फंसकर खुद को आर्य क्षत्रियों का वंशज मानने लग गये। जबकि कड़वा सच तो ये है कि भारत भूमि पर व्यापार करने आये ब्राह्मण आर्यों के साथ उनके सैनिकों के रूप में भारत में आये समस्त मूल आर्य क्षत्रियों का तो संसार के सबसे बड़े और निष्ठुर कातिल आर्य ब्राह्मण परशुराम द्वारा गिन-गिन कर इक्कीस बार विनाश (क़त्ल) कर दिया गया। ऐसे में भारतभूमि पर आर्य ब्राह्मण परशुराम के अनुसार कोई मूल आर्यवंशी क्षत्रिय तो शेष बचा ही नहीं। ऐसे में हमारे लोगों के समक्ष ये सवाल उठना चाहिए की मीणा कौनसे आर्य क्षत्रिय हुए? इसका जवाब मनुवादियों के पास भी नहीं है!

04-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि- मीणा समाज की एकता को तोड़ने के लिए और मीणा समाज के कद्दावर नेता डॉ. किरोड़ी की छवि को कलंकित करने के लिए कुछ स्वार्थी लोगों का कहना है कि डॉ. किरोड़ी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से मिलकर मीणाओं को गर्त में मिला दिया। ऐसे लोगों से मेरा सीधा सवाल है कि ऐसा कौनसा मीणा नेता है जिसने मीणाओं को गर्त में से उठाकर सर पर बिठा दिया। इसलिए यहाँ उपस्थित सभी भाइयों को इस बात को याद रखना होगा कि किसी के बहकावे में आकर हमें अपने मीणा समाज की एकता को तोडना नहीं, बल्कि जोड़ना है। समाज को मजबूत करना है। 

05-डॉ. निरंकुश जी ने आगे कहा कि डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी के विरुद्ध चलाये जा रहे निराधार और राजनैतिक षड्यंत्र के कारण, सम्पूर्ण मीणा समाज राजनैतिक रूप से पूरी तरह से अकेला सा पड़ता जा रहा है। कुछ लोगों द्वार जानबूझकर ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी को समर्थन देने के कारण कॉंग्रेस और भाजपा मीणा जाति के विरुद्ध एकजुट होकर, हमको तहस-नहस करने के लिये आश्‍चर्यजनक रूप से एकजुट हो गये हैं, जबकि इस दुष्प्रचार के पीछे निश्चय ही निष्ठुर मनुवादी ताकतों का हाथ है।

06-डॉ. निरंकुश जी ने बतलाया कि-भाजपा की वर्तमान राजस्थान सरकार द्वारा आदेश जारी करके अजा एवं अजजा के विद्यार्थियों के लिए संचालित छात्रावासों में "सामाजिक सौहार्द" स्थापित करने के नाम पर चालीस फीसदी गैर अजा एवं अजजा वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाना शुरू कर दिया गया है। जिससे अजा एवं अजजा वर्गों के चालीस फीसदी कम बच्चों को छात्रावास की सुविधा मिलेगी। यही नहीं छात्रावासों में अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के प्रवेश के लिये भी कम से कम पचास फीसदी अंकों की अनिवार्यता कर दी गयी है। जिसके कारण हो सकता है कि इन वर्गों के साठ फीसदी विद्यार्थियों को भी प्रवेश नहीं मिल पाये। यह मनुवादी ताकतों का कमजोर आरक्षित वर्गों को समाप्त करने का खुला षड़यन्त्र है। डॉ. निरंकुश जी ने सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा किया कि-यदि भाजपा की राज्य सरकार वास्तव में सामाजिक सौहार्द स्थापित करना चाहती है तो सफाईकर्मियों में आर्यों की भर्ती करना शुरू करे और मन्दिरों, मठों और धर्म पीठाधीश्‍वरों के पदों पर साढे तीन फीसदी ब्राह्मणों के सौ फीसदी कब्जे को समाप्त करे।

07-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-कड़वा सच और आज की परिस्थितियों की जरूरत तो यह है कि हम मीणा समाज के लोगों को, आर्यों के मनुवादी आतंकी शिकंजे से हर हाल में मुक्त होना ही होगा। साथ ही अन्य समाज के लोगों को भी मनुवाद से मुक्त करना होगा।  यद्यपि यह सबसे मुश्किल कार्य है, लेकिन असम्भव नहीं है। इससे हम नब्बे फीसदी अनार्य भारतीयों की ताकत का हिस्सा बन सकेंगे। अत: हमें हर गॉंव-गॉंव और ढाणी-ढाणी में ये सन्देश पहुँचाना होगा कि ‘‘हम अनार्य हैं और हम आर्यों के मनुवादी षड़यन्त्र को समझ चुके हैं।’
यदि हम इनके शिकंजे से मुक्त होने को तैयार हैं तो न मात्र हम अपनी ऐतिहासिक खुद्दारी और स्वाभिमान को बचा पायेंगे, बल्कि इसके साथ-साथ हम हमारी अन्य आदिवासी जातियों, दलितों और पिछड़े वर्ग के साथ-साथ अल्पसंख्यकों में भी अपनी सामाजिक स्वीकार्यता को आसान बना सकेंगें।

08-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-मनुवादियों की जातिवादी व्यवस्था के विभेद और शोषण के परिणामस्वरूप कमजोर दलित जातियों जैसे-भंगी, चमार, खटीक, कोली, धोबी इत्यादि और किसी क्षेत्र विशेष में कम जनसंख्या के कारण या आर्थिक कारणों से कमजोर या निर्बल पिछड़ी जातियों जैसे-जोगी, कुम्हार, माली, गुर्जर, खाती इत्यादि तथा मुसलमान या ईसाईयों के साथ भी हमें सम्मानजनक और सहयोगात्मक रिश्ते बनाने होंगे। हमें उनके सुख-दुख में, उनके साथ खड़ा होना होगा। तब ही हम समग्र अनार्य समाज में अपनी स्वीकार्यता मनवा पायेंगे और हमारे प्रति लोगों के मन में मनुवादियों द्वारा जो जहर भरा जा रहा है, उसे रोक पायेंगे।

09-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-हमें भारतभर में निवास करने वाली सभी आदिवासी जन जातियों के बीच अपने व्यवहार और आचरण से यह प्रमाणित करना होगा कि हम अर्थात् मीणा जन जाति के लोग भी अन्य सभी जन जातियों की ही भांति अनार्यों के ही वंशज हैं और हम अन्य सभी आदिवासी जन जातियों के हितों के लिये काम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।

10-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-हमें हमारे समाज के सभी स्तर के लोक सेवकों और सभी स्तर के जन प्रतिनिधियों को हर हाल में ये अहसास करवाना होगा कि उनको जो संवैधानिक या सरकारी पद और सम्मान मिला है, वह समाज में समानता स्थापित करने वाली भारतीय सविधान की मूल अवधारणा "सामाजिक न्याय और आरक्षण" का ही नतीजा है तथा सरकार और प्रशासन में समाज का प्रतिनिधित्व करते रहना उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। जिसका उन्हें हर हाल में निर्वाह करना होगा। अन्यथा उन्हें आरक्षित वर्गों के गुस्से का सामना करने को तैयार रहना चाहिए।
11-डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि-हमें बिना पूर्वाग्रह के आदिवासियों के साथ दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों सहित समस्त अनार्य भारतीयों के हितों को अपना हित समझकर कार्य करना होगा और षड़यन्त्रकारी मनुवादी आर्यों के प्रति भी हमें किसी प्रकार का दुर्भाव रखे बिना, उनसे सचेत रहकर कार्य करना होगा। तब ही हम जातिवाद को बढावा देने वाले मनुवादी आतंक से अपने वर्तमान और भविष्य को बचा सकेंगे। जिसके लिये हमें केवल मीणाओं का या आदिवासियों का या दलित-आदिवासियों का या दलित-आदिवासियों और पिछड़ों का संयुक्त संगठन बनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस प्रकार के अनेक संगठन तो पहले से ही मौजूद हैं। बल्कि हमें एक ऐसा अनूठा संगठन बनाना है जो मनुवादी-आर्यों के षड़यन्त्रों को उजागर करने के साथ-साथ सम्पूर्ण अनार्यों के हकों की रक्षा के लिये ईमानदारी से हर मोर्च पर काम कर सके। जिसके लिये हमें आगे आना होगा।

12-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि मीना-मीणा विवाद पूरी तरह से मनुवादियों द्वारा प्रायोजित विवाद है, जिसमें कॉंग्रेस और भाजपा सहित सभी दलों पर काबिज मनुवादियों और मीणा विरोधी ताकतों का हाथ है। यही कारण है कि राजस्थान की पिछली कॉंग्रेसी सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा इस वाजिब और सुस्पष्ट मामले को भी जानबूझकर उलझाया जा रहा है। सबसे दुखद तो ये बात है की न जाने क्यों हमारे समाज के संगठन भी इस मामले में बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं।

13-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि-मीना-मीणा विवाद वास्तव में कोर्ट में समाधान योग्य विवाद है ही नहीं, फिर भी इसे प्रशासनिक आधार पर कोर्ट में ले जाकर उलझाया जा रहा है, जिसमें हमारे कुछ बुद्धिजीवी लोग मीणाओं का पक्ष रखने हेतु बचाव की मुद्रा में खड़े हो गए हैं, जबकि ये मसला संवैधानिक है जिसे कोर्ट में नहीं, बल्कि विधायिका में निर्णीत होना है। क्योंकि ऐसे मसलों का समाधान कोर्ट नहीं कर सकता। इस सम्बन्ध में, मैं बहुत पहले से दो समाधान प्रस्तुत कर चुका हूँ। जो यहॉं पर भी बतलाना जरूरी समझता हूँ कि मनुवादी आर्यों द्वारा प्रायोजित इस विवाद के दो लोकतान्त्रिक तथा संवैधानिक समाधान हैं :-
(1) आदिवासियों के समस्त जन प्रतिनिधि संसद में निम्न प्रस्ताव पेश कर, पारित करावें-

‘‘जन जातियों की सूची में क्रम 9 पर ‘मीना’ (Mina) शीर्षक से सूचीबद्ध जन जाति विभिन्न क्षेत्रों में-मीणा/मीना (Mina/Meena), मेंणा/मेंना (Menna), मैणा/मैना  (Maina), मेना/मेणा (Mena), मतस्य (Matasy) आदि नामों से जानी जाती है।’’
या
 (2) मीणा जन जाति के सभी लोग शांतिपूर्ण तरीके से सड़कों पर आकर लोकतान्त्रिक जनान्दोलन के जरिये राजस्थान सरकार को उक्त प्रस्ताव को विधानसभा में पारित करके संसद के समक्ष विचारार्थ भिजवाने के लिये मजबूर करें। 
14-डॉ. निरंकुश जी ने उपरोक्त सभी बातों से अवगत करवाने के बाद सभी उपस्थित साथियों को साफ-साफ शब्दों में आगाह किया कि हम जो कार्य करना चाहते हैं, उसमें सीधे-सीधे हमारा टकराव ताकतवर मनुवादियों और मनुवादियों के मोहपाश तथा शिकंजे में कैद हमारे अपने ताकतवर लोगों से भी होना तय है। इसलिये इस दिशा में आगे बढ़ना है या नहीं इस बारे मेंं इसी स्तर पर सोचसमझकर सभी को निर्णय लेने की जरूरत है।

15-डॉ. निरंकुश जी ने सभी से स्पष्ट कहा कि यदि आप सब इस मनुवादी आतंकवाद की चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हैं तो आगे बढें, अन्यथा इस बात को यहीं खतम करते हैं। सभी गम्भीरता से विचार करके निर्णय लें। ये कोई मजाक या खेल नहीं, बल्कि हमारे समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है। जिसे स्वीकार करने का मतलब है-इंसाफ नहीं मिलने तक-सतत संघर्ष।

16-डॉ. निरंकुश जी के उक्त उद्बोधन के बाद सभी ने एक स्वर में आगे बढने की बात कही और उपस्थित सभी साथियों ने माना कि हालांकि मनुवादी विचारधारा के खिलाफ संघर्ष की शुरूआत सबसे पहले अपने ही घर से करनी होगी, लेकिन सबने कहा के हम सब इससे लड़ेंगे, क्योंकि अब हमारे अस्तित्व का सवाल है। जिसके लिये संघर्ष की दिशा में आगे बढने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।

17-प्रस्ताव पारित : सभा में उपस्थित जनसमूह द्वारा उपरोक्त निर्णय के बाद डॉ. निरंकुश जी ने सभी साथियों का आह्वान किया कि अब हमें एक ऐसे संगठन की स्थापना करनी होगी, जो सम्पूर्ण देश में मनुवादी आर्यों के आतंक के साये में डर-डर कर जीने को मजबूर समस्त अनार्यों का पूरी ताकत के साथ भारतीय संविधान के अनुसार प्रतिनिधित्व करे। इसके लिये सभी संगठन का नाम सुझायें। इस पर आपस में खूब चर्चा की गयी, अनेक नामों पर विचार करने के बाद डॉ. निरंकुश जी के सुझाव पर सभी ने एक स्वर में और सर्व-सम्मति से ‘‘हक रक्षक दल’’ (Haq Rakshak Dal-HRD) नाम से संगठन की विधिवत स्थापना करने और इस संगठन के गठन, संचालन, पंजीकरण कराने आदि सभी कार्यों के लिये डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा ‘निरंकुश’ जी को समस्त अधिकारों और कर्तव्यों के निर्वाह के लिए अधिकृत कर दिया। डॉ. निरंकुश जी ने इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने से पूर्व एक बार फिर से सभी से पूछा कि क्या आप सभी मनुवादी आतंक से लड़ने को तैयार हैं? यदि वास्तव में इस मनुवादी आतंकवाद की चुनौती से लड़ने को तैयार हों तो ही मैं इस जिम्मेदारी को स्वीकार करूंगा, अन्यथा मेरी तथा सभी भाईयों की फजीहत करवाने में कोई अर्थ नहीं है। इस पर सभी ने फिर से एक स्वर में हॉं कहकर डॉ. निरंकुश जी के विचारों को समर्थन दिया। इस पर दिल्ली से पधारे वरिष्ठ साथी श्री महेश मीणा जी ने डॉ. निरंकुश जी का ‘‘हक रक्षक दल’’ (Haq Rakshak Dal-HRD) के प्रमुख के रूप में माल्यार्पण कर सम्मान किया। जिस पर सभी सदस्यों ने करतलध्वनि में समर्थन कर खुशी का इजहार किया। इस पर डॉ. निरंकुश जी ने कहा कि संगठन के संचालन के लिए कुछ सक्रिय साथियों को संगठन की जिम्मेदारियां बांटनी होंगी। जिसके लिए कुछ पदाधिकारी नियुक्त करने पर चर्चा के बाद इसके लिए भी डॉ. निरंकुश जी को ही अपने विवेकानुसार निर्णय लेने के लिए अधिकृत कर दिया गया। डॉ. निरंकुश जी ने इस सभी के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त किया और सभी के सतत सक्रिय सहयोग की उम्मीद व्यक्त की। 

18-विशेष आमन्त्रित अतिथि श्री डॉ. अनिल टाटू और श्री ओम प्रकाश मीणा जी का भी माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। डॉ. निरंकुश जी के अलावा श्री देवेन्द्र सिंह मीणा ‘देवराज’, श्री महेश मीणा, श्री हरिगोपाल मीणा, श्री राजेन्द्र कुमार मीणा, श्री अरविन्द कुमार मीणा ‘आरव’, श्री डॉ. अनिल टाटू, श्री आशीष पंवार, श्री अमृत लाल मीणा, श्री कमल मीणा, श्री जय सिंह मीणा, श्री चन्द्र मोहन मीणा, आदि ने भी सभा को सम्बोधित किया।

19-सभा के अंत में ‘‘हक रक्षक दल’’ (Haq Rakshak Dal-HRD) प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा 'निरंकुश' जी ने सभी साथियों को ‘‘हक रक्षक दल’’ की स्थापना करने और एक सफल गुणात्मक कार्यक्रम आयोजन करने की बधाई देते हुए सभा का विसर्जन किया।

20-उक्त विवरण को पढ़ने के बाद ‘‘हक रक्षक दल’’ के सदस्य कृपया नीचे कमेंट्स बॉक्स में अपनी टिप्पणी जरूर लिखें और साथ ही अपना ई मेल (E-mail ID) भी जरूर लिखे और, या ब्लॉग पर सबसे ऊपर ई मेल रजिस्टर करें। 

डॉ किरोडी लाल मीणा को बदनाम करने का नया तरीका

समाज सेवकों के वेश में भावी मनुवादी जन प्रतिनिधि तैयार हो रहे हैं?

समाज सेवकों के वेश में भावी मनुवादी जन प्रतिनिधि तैयार हो रहे हैं?
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजस्थान सरकार की पूर्ववर्ती कांग्रेसी और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार के प्राश्रय से राजस्थान में 'मीणा' जनजाति को आरक्षित वर्ग में से बाहर निकालने के दुराशय से एक सुनियोजित षड़यंत्र चल रहा है। जिसके तहत 'मीणा' जनजाति के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है की 'मीणा' और 'मीना' दो भिन्न जातियां हैं। 'मीना' को जनजाति और 'मीणा' को सामान्य जाति बताया जा रहा है। जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि शुरू में जारी अधिसूचना में एक सरकारी बाबू ने 'मीणा' जाती को अंग्रेजी में Mina लिख दिया। जिसे बाद में हिन्दी अनुवादक ने ‘मीना’ लिख दिया। इसके बाद से सरकारी बाबू सरकारी रिकार्ड में मीणा जनजाति को समानार्थी और पर्याय के रूप में (Meena/Mina) (मीणा/मीना) लिखते आये हैं। राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा 'मीणा' और 'मीना' दोनों नामों से जनजाति के जाति प्रमाण पत्र भी 'मीणा' जाति के लोगों को शुरू से जारी किये जाते रहे हैं। अनेक ऐसे भी उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, जहॉं पर एक ही परिवार में बेटा का 'मीणा' और बाप का 'मीना' नाम से जनजाति प्रमाण पात्र जारी किये हुआ है।


इसके उपरांत भी मनुवादियों, पूंजीपतियों और काले अंग्रेजों द्वारा आरक्षित वर्गों के विरुद्ध संचालित 'समानता मंच' के कागजी विरोध को आधार बनाकर और समानता मंच द्वारा किये जा रहे न्यायिक दुरूपयोग के चलते मनुवादी राजस्थान सरकार ने आदेश जारी कर दिये हैं कि यद्यपि अभी तक 'मीणा' और 'मीना' दोनों नामों से 'मीणा' जाति को जनजाति प्रमाण-पत्र जारी किये जाते रहे हैं, लेकिन भविष्य में सक्षम प्राधिकारी  ‘मीणा’ जाति को जनजाति के प्रमाण पत्र जारी नहीं करें और जिनको पूर्व में 'मीणा' जन जाति के प्रमाण-पत्र जारी किये गये हैं, उनके भी 'मीना' नाम से जनजाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किये जावें। आदेशें में यह भी कहा गया है कि इन आदेशों को उल्लंघन करने पर अनुशासनिक कार्यवाही की जायेगी।

यहॉं स्वाभाविक रूप से यह सवाल भी उठता है कि यदि ‘मीना’ जाति ही जनजाति है तो 'मीना' जाति के लोगों को 'मीणा जनजाति' के प्रमाण-पत्र जारी करने वाले प्राधिकारियों के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा कोई अनुशासनिक कार्यवाही किये बिना इस प्रकार के आदेश कैसे जारी किये जा सकते हैं? विशेषकर तब जबकि 'मीणा' जनजाति के नाम से सरकार की ओर से जारी किये गये जन के जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर हजारों की संख्या में 'मीणा' जनजाति के कर्मचारी और अधिकारी सेवारत हैं। यही नहीं जब पहली बार मीणा जनजाति को जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था तो काका कालेकर कमेटी ने अपनी अनुशंसा में हिन्दी में साफ़ तौर पर 'मीणा' लिखा था।

उपरोक्त सरासर किये जा रहे अन्याय और मनमानी के खिलाफ जयपुर में मीणा जाति की और से 12 अक्टूबर, 2014 को सांकेतिक धरने का आयोजन किया गया। जहॉं पर एक बात देखने को मिली कि मीणा समाज के लोग अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ तो खुलकर बोले, लेकिन राजनैतिक बातें करने से कतराते दिखे।

इस बारे में मेरा यह मानना और कहना है कि यह सर्व विदित है की आज के समय में कहने को तो देश संविधान द्वारा संचालित हो रहा है, मगर सच तो ये है कि सब कुछ, बल्कि सारी की सारी व्यवस्था ही राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के शिकंजे में है, राजनेता तथा ब्यूरोक्रेट्स राजनैतिक पार्टियों के कब्जे में हैं। राजनैतिक पार्टियों पर मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों का सम्पूर्ण कब्जा है। मतलब साफ़ है कि सारे देश पर संविधान का नहीं मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों का कब्जा है। जब तक देश मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त नहीं होगा, देश का हर व्यक्ति मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों द्वारा संचालित मनमानी व्यवस्था का गुलाम ही बना रहेगा। 

इस सबके उपरान्त भी 'मीणा' जाति ही नहीं, अकसर सभी समाजों के मंचों पर चिल्ला-चिल्ला कर घोषणा करवाई जाती हैं कि यहां राजनीति के बारे में कोई चर्चा नहीं की जाएगी। केवल इस डर से कि राजनीति की चर्चा करने से ऐसा नहीं हो कि 'मीणा' समाज के राजनेताओं का समर्थन मिलने में किसी प्रकार की दिक्कत पैदा नहीं हो जाये। इसके विपरीत इस बात को भी सभी जानते हैं कि राजनेता अपनी-अपनी पार्टी की जी हुजूरी पहले करते हैं। इसके बाद देश, समाज या अपनी जाति के बारे में सोचते हैं। फिर भी राजनीति के बारे में चर्चा क्यों नहीं होनी ही चाहिए? इस बात का कोई जवाब नहीं दिया जाता है।

ऐसी सोच रखने वालों से मेरा सीधा सवाल है कि राजनीति कोई आपराधिक या घृणित या असंवैधानिक या प्रतिबंधित शब्द तो है नहीं? राजनीति हमारे यहॉं संवैधानिक अवधारणा है। जिससे संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र संचालित हो रहा है। ऐसे में राजनेताओं और राजनीति दोनों की अच्छाइयों और बुराइयों पर खुलकर चर्चा क्यों नहीं होनी चाहिए? यदि चर्चा पर ही पाबंदी रहेगी तो फिर समाज को राजनीतिक दलों और राजनेताओं की असलियत का ज्ञान कैसे होगा? राजनैतिक अज्ञानता के कारण मनुवादियों की धोती धोने वाले और मनुवादियों की जूतियां उठाने वाले लोगों को आरक्षित क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाया जाता है! जो समाज की नहीं अपनी पार्टियों की चिंता करते हैं। येन केन प्रकारेण जुटाये जाने वाले अपने वोटों की चिंता करते हैं। ऐसे में विचारणीय विषय यह होना चाहिए कि यदि आम जनता को राजनीति की हकीकत का ज्ञान ही नहीं करवाया जायेगा तो फिर वंचित, शोषित और पिछड़े तबकों के हकों की रक्षा करने वाले सच्चे राजनेताओं का उद्भव (जन्म) कैसे होगा?

12 अक्टूबर, 2014 को जयपुर में आयोजित उक्त मीणा-मीना मुद्दे के विरोध में आयोजित धरने कार्यक्रम का मैं साक्षी रहा। जिसमें मीणा-मीना मुद्दे पर खूब सार्थक और निरर्थक भाषण बाजी भी हुई। दबी जुबान में राजनैतिक बातें भी कही गयी। कभी दबी तो कभी ऊंची आवाज में सरकार को भी ललकारा गया। मनुवादियों द्वारा संचालित आरक्षण विरोधी 'समानता मंच' की बात भी इक्का दुक्का वक्ताओं ने उठायी। जिसे मंच तथा धराना आयोजकों की और से कोई खास तबज्जो नहीं दी। अर्थात 'समानता मंच' के विरोध को समर्थन नहीं मिला। यही नहीं बल्कि सबसे दुखद विषय तो ये रहा कि आरक्षित वर्गों का जो असली दुश्मन है, अर्थात मनुवाद, उसके बारे में एक शब्द भी किसी भी वक्ता ने नहीं बोला। 

अभी तक देखा जाता था कि राजनेता मनुवाद के खिलाफ बोलने से कतराते थे या इस मुद्दे पर चुप रहते थे तो आम लोग कहते थे कि राजनेता वोटों के चक्कर में मनुवाद के खिलाफ नहीं बोलते। मगर मीणा समाज के हकों की बात करने वाले मीणा समाज के कथित समाज सेवक भी इस बारे में केवल चुप ही नहीं दिखे, बल्कि इस मुद्दे से जानबूझकर बचते भी दिखे। मैंने मंच पर अनेकों से इस बारे में निजी तौर पर चर्चा भी की, तो सबने माना कि मनुवाद ही आरक्षण का असली दुश्मन है, मगर बिना कोई ठोस कारण या वजह के सब के सब मनुवाद के खिलाफ बोलने से बचते और डरे-सहमे नजर आये। ऐसे में मेरे मन में दो सवाल उठते हैं-

क्या मीणा समाज के समाज सेवकों को मनुवादियों से डर लगता है?

या

समाज सेवकों के वेश में भावी मनुवादी जन प्रतिनिधि तैयार हो रहे हैं?

पुरुषोत्तम का षणयंत्र जो शशि और मनोज के कंधे पर बन्दूक रखकर चलाया

हक रक्षक दल की रैणी की सभा स्थगित, लेकिन क्यों? पढें और जानें।

हक रक्षक दल की रैणी की सभा स्थगित, लेकिन क्यों? पढें और जानें।
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बसपा के संस्थापक श्री कांशीराम जी ने बहुजन समाज के अग्रणी लोगों का आह्वान किया था कि वे ‘समाज का कर्ज चुकायें।’ इस अवधारणा को उन्होंने ‘पे-बैक टू सोसायटी’ नाम दिया था। इसी अवधारणा को आगे बढाने के लिये श्री देवराज मीणा ने अपने फेसबुक फ्रेण्ड्स को जोड़कर ‘पे-बैक टू सोसायटी’ अर्थात् पीबीएस नामक वाट्स एप ग्रुप बनाकर, इस अवधारणा को पुनर्जीवित किया। जिसके लिये 27 जुलाई, 14 को दौसा में एक मीटिंग रखी गयी। इस आयोजन के तत्काल बाद ही, 27 जुलाई, 14 की मीटिंग में शामिल एक संगठन प्रमुख ने पीबीएस के लोगों को बरगला कर अपने संगठन में जुड़ने के लिये प्रलोभित करना /तोड़ना शुरू कर दिया।

इसी दौरान अजा एवं अजजा संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्टीय स्तर पर सम्मानित विचारक एवं लेखक डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी से श्री देवराज जी ने इस बारे में मुलाकात की। डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी ने उनको समझाया कि मनुवादी ताकतें आजादी के बाद से लगातार सभी वंचित व आरक्षित वर्गों को तहस नहस करने के षड़यंत्र रचती रही हैं। इसलिये केवल मीणाओं के बल पर इस लड़ाई को सफलतापूर्वक नहीं लड़ा जा सकता, क्योंकि आर्यों का देशभर में ताकतवर गठजोड़ है और सभी अनार्य बिखरे हुए हैं। आर्य मनुवाद और हिन्दुत्व की ओट में अनार्यों को आपस में लड़ाते रहते हैं। अत: अब समय आ गया है कि देश के सभी अनार्यों को एक मंच पर एकजुट किया जाये। जिसके लिये पीबीएस की विचारधारा को विस्तार और संगठित रूप देने की जरूरत है। अत: 18 अगस्त, 15 को डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी के विचारों से सहमत होकर, करीब दो-तीन दर्जन लोगों की उपस्थिति में अनौपचारिक रूप से हक रक्षक दल का गठन किया गया और सर्वसम्मति से डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी को इसका रजिस्ट्रेशन करवाने और संचालन करने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी।

श्री देवराज मीणा जी की सलाह पर, श्री देवराज मीणा, श्री महेश मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री रामकिशोर मीणा को डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी ने अपना सहयोगी नियुक्त किया। इसके साथ ही मीणा-मीना विवाद को हक रक्षक दल की प्राथमिकता सूची में प्रथम प्राथमिकता प्रदान करके सोशल मीडिया के मार्फत मीणा समाज को समझाया गया कि मीणा-मीना विवाद का समाधान अदालत के मार्फत सम्भव नहीं है, बल्कि संविधान में संशोधन करके, मूल अधिसूचना में संशोधन के जरिये ही मीणा-मीना विवाद का स्थायी समाधान सम्भव है। इस कारण कोर्ट के मार्फत मीणा-मीना विवाद को लड़ने की बात कह कर समाज को भ्रमित करने वाले और इस हेतु समाज से चन्दा एकत्रित करने वाले ऐलीट वर्ग ने हक रक्षक दल को निशाने पर ले लिया।

अत: विरोधी ताकतों द्वारा हक रक्षक दल में पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर, 18 अगस्त 14 को उपस्थित रहे कुछ ना-समझ हक रक्षकों के मार्फत सवाल खड़े करवाये गये। साथ ही मीणा नेतागिरी नामक मीणाओं के फेसबुक ग्रुप पर हक रक्षक दल की ओर से लिखले वालों को ब्लॉक कर दिया गया।

इस सब को दरकिनार करते हुए हक रक्षक दल की ओर से मीणा-मीना विवाद की हकीकत जनता के सामने लाने के लिये हक रक्षक दल के समर्पित हक़ रक्षकों द्वारा एक लाख हस्ताक्षर करवाकर राजस्थान सरकार को ज्ञापन देने का अभियान शुरू किया गया। जिसके चलते गॉंव और ढाणियों तक लोगों को इस मुद्दे की हकीकत और गम्भीरता का पता चला। लेकिन विरोधियों ने हस्ताक्षरित फोर्मेट्स को फड़वाया दिया गया या जलवाया गया। गुमराह करने के कारण कुछ ने तो अभी तक हस्ताक्षरित फोर्मट जमा नहीं किये हैं। श्री विमल मीणा और श्री रामकिशोर मीणा द्वारा एक भी हस्ताक्षरित फोर्मट जमा नहीं किया गया। इस कारण अभी तक एक लाख हस्ताक्षर पूर्ण नहीं हो सके। 

इसी दौरान हक़ रक्षक दल टीम की ओर से सोशल मीडिया पर लिखना जारी रहा। जिसके लिये हक़ रक्षक दल द्वारा एक अन्य नये फेस बुक ग्रुप को सक्रिय सहयोग देकर, उस पर लिखना शुरू किया। जिससे वह ग्रुप खड़ा हुआ। हक रक्षक दल टीम के विचारों और कार्यों से प्रभावित होकर देशभर के लोगों का अप्रत्याशित समर्थन मिलने लगा। लेकिन हक रक्षक दल टीम द्वारा खड़े किये नये फेस बुक ग्रुप के संचालक ने हक रक्षक दल को अपने हिसाब से हांकने की असफल कोशिश की। यद्यपि बाद में ज्ञात हुआ कि वह श्री रामकिशोर मीणा के मार्फत श्री नरशी मीणा, श्री महेश मीणा और श्री देवराज मीणा को प्रभावित करके, श्री विमल कुमार मीणा को हक रक्षक दल में राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद पर नियुक्त करवाने और हक रक्षक दल को अपने रिमोट से संचालित करने के इरादे को कागजी स्तर पर क्रियान्वित करने में सफल हो गया था। जिसकी जानकारी उस समय नहीं हो सकी। इस बीच हक रक्षक दल की आन्तरिक चर्चाएं लीक होने लगी और फेस बुक ग्रुप के उक्त संचालक तक पहुंचने लगी। श्री रामकिशोर मीणा द्वारा फेस बुक ग्रुप के संचालक के समर्थन में हक रक्षक दल के नेतृत्व के निर्णयों पर गैर-जरूरी और निराधार सवाल उठाये जाने गये। 

इसी बीच अगला बड़ा कदम उठाते हुए डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी के नेतृत्व में हक रक्षक दल की टीम ने जगह-जगह कार्यशाला और जनसभाओं के मार्फत आरक्षण, सामाजिक न्याय और मीणा-मीना मुद्दे की हकीकत को तथा कोर्ट में लड़ने की हकीकत को जनता के सामने रखा तो आश्‍चर्यजनक समर्थन मिलने लगा। यद्यपि श्री रामकिशोर मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा ने व्यक्तिगत कारणों से एक भी मीटिंग में भाग नहीं लिया। सोशल मीडिया पर भी हक रक्षक दल की मुहिम को अपार समर्थन मिला, लेकिन समाज को गुमराह करने वाले और हमारी मुहिम से परेशान लोगों की ओर से हक रक्षक दल के विरुद्ध अनर्गल बातें लिखी जाने लगी। जिन पर प्रदेश प्रभारी होकर भी श्री विमल मीणा चुप्पी साधे रहे और ऐसे विरोधियों के अन्य आलेखों को समर्थन और प्रोत्साहित भी करते रहे। जिस पर हक रक्षक दल की ओर से की जाने वाली आपत्तियों को नकारते हुए श्री रामकिशोर मीणा के सहयोग से विवादों को जन्म देना शुरू कर दिया। जिसके लिये श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा को भी किन्हीं अज्ञात कारणों से भ्रमित किया गया। जिसका खुलासा तब हुआ, जबकि हक रक्षक दल के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की गयी तो श्री देवराज मीणा जी के अथक प्रयासों के बावजूद भी श्री विमल मीणा, श्री रामकिशोर मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा ने अपने दस्तावेज नहीं देने और अपने हस्ताक्षर नहीं करने के बहाने बनाना शुरू कर दिया। साथ ही सवाल उठाने शुरू किये कि डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी जानबूझकर रजिस्ट्रेशन में विलम्ब कर रहे हैं और शुरूआती सहयोगियों की अनदेखी कर रहे हैं।

इसी के साथ उक्त फेसबुक ग्रुप संचालक की ओर से हक रक्षक दल को बदनाम करने वाली सामग्री प्रमुखता से डाली जाने लगी, हक रक्षक दल समर्थक टिप्पणी व पोस्ट हटायी जाने लगी और हक रक्षक दल के प्रमुख समर्थकों को ग्रुप से ब्लॉक करना शुरू किया जाने लगा।

लेकिन संगठन संचालन के अनुभवी और परिपक्व नेतृत्व डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी और हक रक्षक दल की टीम ने देशभर में मीणाओं को जगाने और दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर पर हक रक्षक दल का रजिस्ट्रशन करवाने के प्रयास जारी रखे। साथ ही सभी के सहयोग से नया फेस बुक ग्रुप ‘‘सच का आईना’’ बना दिया। जिस पर पहले महिने में ही करीब दस हजार सदस्य जुड़ गये। इसके बाद भी उक्त ग्रुप संचालक और अन्य विरोधियों द्वारा हक रक्षक दल को अपने कब्जे में लेने या बिखेर देने की सीधी सुनियोजित मुहिम छेड़ दी। सोशल मीडिया के मार्फत चन्दा एकत्रित करने के निराधार आरोप लगाये गये। जिसका सभा आयोजकों द्वारा सीधा जवाब देकर आरोप लगाने वालों का मुंह बन्द कर दिया। मगर श्री विमल मीणा और श्री राम किशोर मीणा चुप्पी साधे रहे। इसके बाद श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा को भी नेतृत्व के विरुद्ध भड़काने के लिये उक्त ग्रुप संचालक के मार्फत हक रक्षक दल, सच का आईना और हक रक्षक दल के नेतृत्व पर व्यक्तिगत आरोप लगाते हुए एक अत्यन्त शर्मनाक तथा समाज को तोड़ने वाली पोस्ट डलवाई गयी। जिसका श्री विमल मीणा और श्री राम किशोर मीणा ने खुलकर समर्थन किया। लेकिन श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा का खुला समर्थन नहीं मिला। बहुसंख्यक समाज हितैषी लोगों द्वारा इस पोस्ट की कड़े शब्दों में आलोचना की गयी। इस बीच श्री विमल मीणा को जब भी समझाया गया, उनकी ओर से हर बार इस्तीफा पेश करके, दबाव बढाने का प्रयास किया गया। श्री देवराज जी के अनुरोध पर सभी की मीटिंग करके समाधान करने के अनेकानेक प्रयास किये गये, लेकिन किसी न की बहाने मीटिंग नहीं होने दी गयी और सोशल मीडिया पर प्रचारित यह किया गया कि डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी मीटिंग नहीं होने देना चाहते हैं।

इस प्रकार उक्त सभी के द्वारा रजिस्ट्रेशन हेतु अन्त तक हस्ताक्षर नहीं किये गये तो 27 फरवरी, 2015 को अन्य समर्पित हक रक्षकों के सहयोग से और श्री देवराज मीणा जी के संगठन से बाहर रहकर काम करने के अनुरोध को स्वीकार करके, विधिवत हक रक्षक दल सामाजिक संगठन की स्थापना करके राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया।

इस बीच श्री महेश मीणा ने वाट्स एप पर "आमना-सामना ग्रुप" बनाकर हक रक्षक दल और हक रक्षक दल नेतृत्व पर खुलेआम अनर्गल आरोप लगाये गये। जिन्हें श्री आरव मीणा के द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया। सांगोद में मीटिंग की चर्चा के दौरान भी श्री महेश मीणा ने यही किया। अब जब 22 मार्च, 15 को रैणी, अलवर की मीटिंग निर्धारित की गयी तो श्री महेश मीणा ने एक ग्रुप बनाया, जिसमें हक रक्षक दल विरोधी और कोर्ट के मार्फत मीणा-मीना विवाद को उलझाने वालों के सहयोगियों को शामिल किया गया। जिसमें हक रक्षक दल और हक रक्षक दल के नेतृत्व पर घृणित आरोप लगाये गये। इन सभी चर्चाओं के दौरान श्री रामकिशोर मीणा, श्री विमल मीणा, श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा ग्रुप में शामिल होकर भी मौन साधे रहे। विरोध में एक शब्द नहीं बोले और जब उनसे कारण पूछा गया तो श्री विमल मीणा ने सातवीं बार त्यागपत्र लिखकर सार्वजनिक रूप से अनेकानेक फेसबुक ग्रुप्स पर पोस्ट कर दिया और उक्त ग्रुप संचालक के ग्रुप पर टिप्पणी में लिखा कि दबाव के कारण त्यागपत्र दिया है। बाद में बिना कोई कारण बताये त्यागपत्र हटा लिया गया, लेकिन श्री देवराज मीणा जी और अन्य अनेक हक रक्षक दल शुभचिन्तकों की ओर से श्री विमल मीणा, श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा से सार्वजनिक रूप से बार-बार अनुरोध किया गया कि यदि वे वास्तव में हक रक्षक दल की मुहिम और समाज हित की  मीटिंग के विरोधी नहीं हैं तो और रैणी क्षेत्र के लोगों को मीणा-मीना विवाद और समाज हित की हकीकत से वाकिफ करवाना चाहते हैं तो वे तीनों आगे आकर रैणी की मीटिंग के आयोजन की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लें। जिसके लिये तीनों ही लगातार हॉं कहते रहे, लेकिन इसके लिये किया कुछ नहीं। अन्तत: षड़यंत्र करने वाले समाज विरोधी सफल हुए और विरोधियों ने मिलकर रैणी के लोगों को जागरूक करने के लिये होने वाली सभा के पूर्वनिर्धारित स्थल पर, अन्य कार्यक्रम का आयोजन प्रस्तावित करवाकर, हक रक्षक दल की सभा को रोकने में सफल रहे।

अत: इन हालातों में श्री विमल कुमार मीणा का राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद से सार्वजनिक रूप से दिया गया, त्यागपत्र स्वीकार किया जाता है और साथ ही स्पष्ट किया जाता है श्री विमल कुमार मीणा एवं श्री राम किशोर मीणा से हक रक्षक दल का कोई वास्ता नहीं है। साथ ही श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा जो वर्तमान में न तो हक रक्षक दल के किसी पद पर हैं और न ही सदस्य हैं, लेकिन इनके द्वारा शुरूआत में हक रक्षक दल के लिये किये गये सहयोग को ध्यान में रखते हुए, इन दोनों से सार्वजनिक रूप से विनम्र आग्रह है कि आप दोनों विरोधियों की हक रक्षक दल की विरोधी मुहिम का हिस्सा नहीं बनें।

मनोज जौरवाल
राष्ट्रीय सचिव एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता
हक रक्षक दल
और
शशि मीणा
राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष,
हक रक्षक दल

मीना गीत संस्कृति छलावा या व्यापार

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