Friday, February 17, 2023

कला या चमत्कार

कला या चमत्कार

अच्छा आप लोगो ने जीवन में कही न कही हाथ देख कर भविष्य बताने वाले तो अवश्य देखे होंगे । वे 10 मिनट में हाथ देख कर भविष्य बता देते है ये उनकी कला है और इसे चमत्कार समझ लेना ही मंदबुद्धिता को दर्शाता है ||

सबसे अच्छा सेल्समैन आपने ट्रेन / बस में देखा होगा जिन्हे कोई ट्रेनिंग नही देता वे आपको 10 मिनट में इतना कुछ बता देते है की आप मन एक बार तो करता ही है की ये चीज ले लेनी चाहिए 
उनकी एक खास बात आपने नोटिस की तो वे चेन को घिस कर बताते है की इसका कलर नही जाता वही उसे पता होता है कि उसकी चेन नही बिकेगा या ये व्यक्ति नही लेगा फिर भी सबको चेक करवाते है ये उनकी एक कला है।

कला का उदाहरण तो आप बीमा वाले से भी ले सकते है जीने से ज्यादा मरने के फायदे बता देते है ये भी उनकी कला है को वे अपनी सर्विस को कैसे बेचते है ??

गांवो में जादू के खेल दिखाने वाले मदारी तो बहुत देखे होंगे वे लड़के को गायब करके सांप बना देते है तो कभी रेडियो टीवी तक निकाल देते है वो उसकी कला है हम समझ नही पाते और उसे जादू समझ बैठते है जबकि वो अपनी कला का चालाकी से  प्रदर्शन करता है। 

अच्छा थोड़े दिन पहले बालाजी की घाटी में नीम के पेड़ से दूध जैसा पदार्थ(द्रव) निकला था सभी उसे चमत्कार समझ कर उसकी पूजा करने लगे थे बहुत लोग तो उस दूध को लेकर गए थे क्योंकि वो तो चमत्कार था ना लेकिन आज उसकी पेड़ के नीचे दारू पीने वाले बोतल पटक कर जाते है क्योंकि वो चमत्कार अब खत्म हो गया । असल में पेड़ का कोई चमत्कार नहीं था बल्कि पेड़ की एक क्रिया ही थी जिसे लोग चमत्कार समझ बैठे थे।

ठीक उसी प्रकार से जिसे कला आती है वो उस कला का दुरुपयोग करके उसे चमत्कार का नाम दे सकता है लेकिन वो चमत्कार तभी होगा जब आप लोग भी उस कला को चमत्कार मानने लगोगे

कभी आपने ताश का खेल तो खेला हो होगा हमारे कुछ दोस्त इसे भी होते है की ताश बांटने में ही गड़बड़ी कर जाते है जिन्हे कोई पकड़ नही पाता असल में वो एक गणित होती है उनके माइंड में चल रही होती उन्हे पता होता है की ये ताश का पत्ता इसके ही आएगा उनकी केलकुलेशन दिमाग में चल रही होती है उसी हिसाब से वो ताश सेट करता है वही कुछ लोगो को ये अनुमान हो जाता है की वो पत्ता इसके पास है इसे भी माइंड की कैलकुलेशन ही माना जा सकता है।

फैसला तो आपको हो करना है की कला को चमत्कार समझना है या फिर कला को कला के रूप में ही देखना है।।

जयसिंह नारेड़ा

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