मेरे गांव का चतर ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जो हमे संघर्ष की और प्रेरित करती है । टोडाभीम से गुढ़ाचन्द्रजी मार्ग पर अरावली पर्वत मालाओं की तलहटियों में बसा छोटा सा गांव है! गांव की बसावट पहले पहाड़ों के मध्य हुआ हुआ करती थी जो की तीन दिशाओं से घिरा हुआ था लेकिन खेती के लिए दूर होने के कारण लोग अपने अपने खेतों में रहने लगे और आज पूर्व स्थान को छोड़ कर डूंगर की तलहटियों में आ बसा है। गांव आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूरित है गांव में पानी पर्याप्त मात्रा में पूर्ति होने के बजह से खेती ही गांव के लोगो की जीविकोपार्जन है। गांव में सभी साधारण परिवार थे कुछेक सक्षम परिवारों को छोड़ कर और उन्ही मे से एक चतर का घर भी था बहुत साधारण और पुराने तरीके से बना हुआ । दो गह पाटोड जो की कली से पुती हुई और गोबर से लेपी हुई जो की गांवों में बड़ी आसानी से मिल जाया करती है। चतर के पिताजी बचपन से ही मेहनती रहे है उन्होंने डूंगर से पत्थर खोद कर इन्हे पढ़ाया लिखाया । एक बात तो मैं बताना ही भूल गया चतर और अशोक दो भाई है लेकिन अशोक अधिकतर मामा के यहां रहा था जिसकी वजह से गांव में बहुत कम ही रहा है। ...